किसान आंदोलनों के खिलाफ मुकदमों में 38% इजाफा, 12 राज्यों में शांतिभंग के केस दर्ज!

तीन नये कृषि कानूनों को रद्द करने की अपनी मांग को लेकर किसान पिछले दस महीने से देशव्यापी आंदोलन कर रहे हैं. किसानों द्वारा किए गए आंदोलनों और धरना प्रदर्शनों के आंकड़े सामने आए हैं. एनसीआरबी यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने किसानों द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शनों के आंकड़ों की रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट के अनुसार एक साल के भीतर विरोध प्रदर्शनों के दौरान किसानों पर दर्ज मुकदमों में 38 फीसदी का इजाफा हुआ है.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2020 में किसानों द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शनों की करीब 2,188 घटनाएं सामने आई थी. वहीं 2019 में यह आंकड़ा 1,579 था यानी एक साल के भीतर विरोध प्रदर्शनों के दौरान दर्ज हुए मुकदमों में 38 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

यह जानकारी सितम्बर 2021 में जारी रिपोर्ट द क्राइम्स इन इंडिया 2020 में सामने आई है. हालांकि रिपोर्ट में पंजाब समेत नौ राज्यों के आंकड़े शामिल नहीं किए गए हैं.     

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‘डाउन टू अर्थ’ में सितंबर, 2020 में  छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 के दौरान किसानों में बढ़ता असंतोष पिछले वर्षों की तुलना में बड़े स्तर पर देखा गया है.  

एनसीआरबी के अनुसार, 2019 की तुलना में किसानों के विरोध प्रदर्शन की रिपोर्ट करने वाले राज्यों की संख्या 2020 में 12 से बढ़कर 15 हो गई है. 2020 में जिन तीन नए राज्यों में किसानों द्वारा विरोध किया गया उन राज्यों में हरियाणा, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं.

वहीं खेती-किसानी से जुड़े मामलों पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अजीत सिंह ने ट्विट किया, “किसान आंदोलन को सिर्फ एक-दो राज्यों तक सीमित मानने वालों को NCRB की रिपोर्ट देखनी चाहिए. साल 2019 के मुकाबले 2020 में किसान आंदोलन के मामले 38% बढ़े हैं. देश के 13 राज्यों में कृषि से जुड़े विरोध-प्रदर्शनों पर शांतिभंग के केस दर्ज हैं.”

 हालांकि किसान आंदोलनों पर एनसीआरबी की रोपोर्ट में कुछ ऐसे राज्यों को शामिल नहीं किया गया है जहां किसानों ने पिछले साल बड़ी संख्या में विरोध-प्रदर्शन किए थे. इन राज्यों में पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, असम,  मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा, केरल और  तेलंगाना शामिल है. एनसीआरबी की रिपोर्ट में इन राज्यों में हुए विरोध प्रदर्शनों की घटनाओं को शामिल नहीं किया गया है.

वहीं रिपोर्ट के अनुसार किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य से ठीक एक साल पहले 2021 में, 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बड़े विरोध प्रदर्शन हुए थे.

रिपोर्ट के अनुसार किसानों द्वारा झारखंड़,महाराष्ट्र,तमिलनाडू,आंद्र प्रदेश,असम,हरियाणा,हिमाचल प्रदेश और मणिपुर में 2019 के 1,579 प्रदर्शनों के मुकाबले 2020 में 2,188 विरोध प्रदर्शन किए गए. देश के 12 राज्यों में किसानों के विरोध प्रदर्शनों में इजाफा हुआ है, जिसमें झारखंड सबसे आगे है, जहां 2019 की तुलना में 419 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. साथ ही देश के 13 राज्यों में कृषि से जुड़े विरोध-प्रदर्शनों में शांतिभंग के केस दर्ज किए गए हैं.

बाजरा खरीद से हरियाणा सरकार ने पल्ला झाड़ा, भावांतर भरोसे छोड़े किसान!

बीते मंगलवार सूबे के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने खरीफ सीजन 2021-22 में बाजरे की फसल की सरकारी खरीद से हाथ खड़े कर दिए. इस बार बाजरे की खरीद एमएसपी यानी न्यूनतन समर्थन मूल्य की बजाय ‘भावांतर भरपाई योजना’ के तहत होगी. इस साल प्रदेश में 2.71 लाख किसानों ने ‘मेरी फसल, मेरा ब्यौरा’ पोर्टल पर बाजरे की सरकारी खरीद के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया था मगर अब उनकी उमीदों पर पानी फिरता नजर आ रहा है.

सरकार का कहना है कि पिछले सीजन में 7 लाख टन बाजरा एमएसपी पर खरीदा. पिछले सीजन में खरीदे बाजरे को सरकार बाजार में अच्छे दामों पर नहीं बेच पाई इसलिए उसे लगभग 600 करोड़ का घाटा हुआ था. इसके अलावा सरकार ने पड़ोसी राज्य राजस्थान से भी हरियाणा में बाजरे की आवक का हवाला देते हुए इस बार एमएसपी पर खरीद करने से मना कर दिया है.

हैरानी की बात ये है कि इसी साल जून महीने में केंद्र सरकार ने बाजरे के दामों में 100 रुपये की बढ़ोतरी भी की थी. इस बढ़ोतरी के बाद बाजरे का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2250 रूपए/प्रति क्विंटल हो गया था जो कि अबतक का सर्वाधिक दाम है.

हालांकि सरकार ने अपनी इस योजना में बाजरे का बाजार भाव 1650 रूपए/प्रति क्विंटल माना है. भावांतर योजना के तहत सरकार 600 रूपए/प्रति क्विंटल के हिसाब से किसान के खाते में डालेगी यानी अगर किसी किसान का बाजरा प्राइवेट मंडी में 1650 रूपए/प्रति क्विंटल बिका तो इसके बाद सरकार 600 रूपए/प्रति क्विंटल के हिसाब से पैसा उसके खाते में डालेगी. इस तरह जो बाजार भाव और एमएसपी के बीच का अंतर है उसको सरकार अपनी भावांतर भरपाई योजना के तहत भरने का काम करेगी.

भावांतर भरपाई योजना का लाभ उन्हीं किसानों को मिलेगा जिन्होंने ‘मेरी फ़सल,मेरा ब्यौरा’ पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करवाया है. इस योजना में भी सरकार ने इलाके की औसत उपज के हिसाब से भरपाई करने की बात कही है. पहले एमएसपी पर खरीद के दौरान सरकार प्रति एकड़ उपज की सीमा तय करती थी और केवल उतनी ही उपज की एमएसपी पर खरीद करती थी. हालांकि इस योजना में सरकार ने एक निश्चित उपज सीमा का ऐलान तो नहीं किया है लेकिन इलाके की औसत उपज के तहत भावांतर भरपाई का लाभ देने की बात सरकार कह रही है.

अब सवाल खड़ा होता है कि अलग-अलग इलाकों में बाजरे की अलग-अलग औसत झड़त आती है तो क्या सरकार इलाके के हिसाब से अलग-अलग उपज सीमा तय करेगी या पूरे हरियाणा में एक ही औसत उपज सीमा तय की जाएगी और उसके तहत ही भुगतान होगा. इसको लेकर सरकार ने अभी स्तिथि स्पष्ट नहीं की है.

सरकार ने अपनी तरफ से बाजरे का बाजार भाव 1650 रूपए/प्रति क्विंटल मान लिया है लेकिन वास्तव में बाजार भाव इस से कम है. आज 30 सितम्बर, 2021 को रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और गुडगांव मंडी में बाजरे का बाजार भाव मात्र 1300 से 1400 रुपये/प्रति क्विंटल है. इसका मतलब ये है कि यदि किसान 1300 रुपये/प्रति क्विंटल के हिसाब से बाजार भाव पर अपना बाजरा बेचता है और 600 रुपये/प्रति क्विंटल पर उसको सरकार देती है, तो उस किसान का बाजरा बिका 1900 रूपए/प्रति क्विंटल. इस हिसाब से किसान को प्रति क्विंटल 350 रूपए का नुकसान होगा क्योंकि बाजरे का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2250 रुपये/प्रति क्विंटल है.

किसान अभी तक सरकारी खरीद के इंतजार में थे, इसलिए उन्होंने बाजरे को मंडी में ले जाना शुरू नहीं किया था. लेकिन इस योजना के ऐलान के बाद सरकारी खरीद का तो रास्ता ही बंद हो गया. ऐसे में किसान के पास अपना बाजरा बेचने के लिए एकमात्र जगह बची है प्राइवेट मंडी. हमने इस विषय में मंडियों में बैठें व्यापारियों से भी बात की तो उनका कहना है कि जब मंडी में बाजरा भारी मात्र में आना शुरू हो जाएगा तो वर्तमान में बाजरे का बाजार में जो भाव है उसके और भी कम होने की संभावनाएं हैं क्योंकि सरकारी खरीद न होने के कारण सारा बाजरा प्राइवेट मंडियों में ही आएगा.

ऐसे में भाजपा सरकार का बार बार एमएसपी को लेकर दावा करना. एक-एक दाने की खरीद करने की बात कहना ये महज भाषण ही साबित होता नजर आ रहा है.

ऐलनाबाद उपचुनाव: अभय सिंह को पटखनी देने के लिए लगोंट कस रहे दिग्विजय चौटाला!

भारत निर्वाचन आयोग द्वारा देश के विभिन्न राज्यों में उपचुनाव के कार्यक्रम की घोषणा ने हरियाणा के सिरसा जिले के ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मुकाबले के लिए राजनैतिक मैदान तैयार कर दिया गया है. इस मैदान में यानी उपचुनाव में न केवल सत्तारूढ़ भाजपा-जजपा गठबंधन का दमखम बल्कि इनेलो के लिए उनका आखरी किला बचाने और कांग्रेस के लिए अपना जनाधार साबित करने का चुनावी खेल होगा.

हरियाणा में भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार बनने के ठीक दो साल बाद ऐलनाबाद विधानसभा सीट पर दूसरा उपचुनाव होने जा रहा है. तीन साल पहले संगठन के दो फांक होने के बाद इनेलो 2019 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट (ऐलनाबाद) पर सिमट गई थी. 30 अक्टूबर को होने जा रहे इस उपचुनाव में देवीलाल परिवार के लोगों के बीच कड़ा मुकाबला होने के कयास लगाए जा रहे हैं.

इन कयासों के पीछे दिग्विजय चौटाला का विधायक बनने का सपना और अभय चौटाला का खुद को देवीलाल परिवार का असली राजनैतिक वारिस साबित करने की मंशा छुपी हुई है. हालांकि अभी किसी भी पार्टी ने अपने उम्मीदारों के नाम फाइनल नहीं किए हैं.  

ऐलनाबाद उपचुनाव में भाजपा-जजपा गठबंधन की यह सीट जजपा के खाते में जाने वाली है, क्योंकि बरौदा में भाजपा का उम्मीदवार चुनावी मैदान में था. भाजपा से चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले पवन बैनीवाल को जब इस बात का भान हुआ कि यह सीट जजपा के खाते में जा रही है तो वह कुछ दिन पहले ही कांग्रेस में शामिल हो गए.

जजपा की ओर से दिग्विजय चौटाला का नाम उम्मीदवारों की सूची में पहले स्थान पर चल रहा है. वह अपने नजदीकी कार्यकर्ताओं से चुनाव लड़ने के लिए सलाह-मशवरा भी कर रहे हैं. अगर दिग्विजय चुनाव लड़ते हैं तो यह चुनाव काफ़ी दिलचस्प हो जाएगा. यह चुनाव पारिवारिक राजनैतिक विरासत पर अपना दावा कायम करने वाला चुनाव हो जाएगा. हालांकि दिग्विजय ने इसको लेकर कोई ब्यानबाजी नहीं की है, लेकिन वह अपने चाचा को पटखनी देने के लिए पर्दे के पीछे लंगोट कस रहे हैं. उनके चाचा भी कई बार सार्वजनिक मंचों से दिग्विजय को चुनाव के लिए ललकार चुके हैं.

विधानसभा चुनाव में लगातार दो हार के बाद कांग्रेस भी अपनी जमीन फिर से हासिल करने की कोशिश कर रही है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा पार्टी कैडर को एक साथ रखने की कोशिश कर रही हैं. उन्होंने पार्टी के महिला प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित ‘महिला पंचायत’ के बाद यमुनानगर में मीडिया को बताया, “कांग्रेस निश्चित रूप से उपचुनाव लड़ेगी और जीतेगी. हम पार्टी की बैठक के बाद उम्मीदवार की घोषणा करेंगे.”

विधानसभा परिणाम 2019

अभय सिंह चौटाला इनेलो 57,055

पवन बेनीवाल भाजपा 45,133

भरत सिंह बेनीवाल कांग्रेस 35,383

ओपी सिहाग जजपा 6,569

जोड़े पर जान का संकट और दलित झेल रहे सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार!

हरियाणा का पंचकुला जिला राज्य का पहला मास्टरप्लान वाला शहर है. यह चंडीगढ़, मोहाली और पंचकुला को मिला कर उस ट्राइसिटी का निर्माण करता है जहां से पंजाब और हरियाणा की राजधानियां संचालित होती हैं. लेकिन इस तमाम चकाचौंध के बावजूद पंचकुला के आसपास के इलाकों में सभ्यता की रोशनी पहुंचना बाकी है. पंचकुला जिले का एक गांव है भूड. इस गांव के रहने वाले एक दलित लड़के और गुर्जर लड़की को अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा है. गांव के दलितों का कथित तौर पर पूरी तरह से बहिष्कार कर दिया गया है. आर्थिक और सामाजिक दोनो तरह से. इससे भूड गांव में काफी तनाव पैदा हो गया है.

दरअसल भूड गांव के 21 वर्षीय आकाश ने पास के ही गांव देबड़ की रहने वाली लड़की से 13 अगस्त, 2021 को पंचकुला कोर्ट में शादी कर ली, जिसके बाद से ये पूरा विवाद शुरू हुआ.

आकाश की मां बाला देवी ने हमें बताया कि जिस दिन उनके बेटे ने कोर्ट में शादी की, उसी दिन लड़की के घरवाले और भूड गांव से गुर्जर समुदाय के लोग उनके घर आए और हर हालत में लड़की उन्हें लौटाने को लेकर दबाव बनाने लगे. बाला देवी का कहना है कि उन्हें इस शादी की कोई जानकारी नहीं थी, जब लड़की वाले उनके घर पहुंचे तब जाकर उन्हें पता चला.

शादी के एक हफ़्ते बाद लड़का और लड़की दोनों के घरवाले पंचकुला कोर्ट में फिर से इकठ्ठा हुए. लड़का और लड़की भी वहां मौजूद थे. बाला देवी ने कहा, “मैंने अपने बेटे और उस लड़की को समझाने की कोशिश की. गुर्जर समुदाय के लोग हमारे परिवार पर ये दबाव बना रहे थे कि हम उनकी लड़की वापस करें. लड़की ने कोर्ट में सबके सामने लड़के से अलग होने से मना कर दिया और वहां से चली गई. इसके बाद हम सब भी घर आ गए.”

आकाश के भाई दीपक हमें बताते हैं कि कोर्ट में जब लड़की ने अलग होने से इनकार कर दिया तब उसके घरवाले वापस चले गए. उन्होंने कुछ और नहीं किया लेकिन हमारे गांव के गुर्जरों ने हमारे परिवार और गांवे में रह रहे सभी दलितों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.

21 अगस्त, 2021 को भूड गांव और आस पास के गुर्जर समुदाय ने एक महापंचायत बुलाई. पंचायत में आस-पास के गांवों से सैकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया.

आकाश की मां बाला देवी को इस पंचायत में तलब किया गया. बाला देवी कहती है, “पंचायत में शामिल होने वाली मैं अकेली औरत थी. पंचायत में गुर्जर समुदाय द्वारा फिर से यही बात दोहराई गई कि उन्हें लड़की किसी भी कीमत पर वापस चाहिए. इस पंचायत में लड़की के घरवाले नहीं पहुंचे थे. उन्होंने मुझे 3-4 दिन का समय दिया. मुझे कहा गया कि अपने लड़के से बात करके उन दोनो को गांव बुला लूं और लड़की वापस कर दूं. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर लड़की वापस नहीं मिली तो इज्ज़त के बदले इज्ज़त ली जाएगी.”

इस पंचायत के बाद गांव में ज़बरदस्त तनाव पैदा हो गया. आकाश के परिवार में उसके माता-पिता के अलावा बड़ा भाई दीपक और उसकी पत्नी भी रहती है. दीपक ने हमें बताया, “महापंचायत के बाद हम बहुत डर गए थे कि कहीं वो लोग हमारे परिवार पर हमला न कर दें. इसी डर के कारण मैं अपनी बीवी को लेकर मेरे ससुराल चला गया था. हम दोनों लगभग 15 दिनों तक वहीं रहे.”

आकाश के परिवार का दावा है कि उन्हें आकाश की शादी और किसी लड़की के साथ संबंध के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं थी. दीपक के मुताबिक कोर्ट मैरिज के बाद आकाश और उसकी पत्नी गांव वापस नहीं लौटे हैं. न ही उन दोनों के साथ परिवार का कोई संपर्क हो पा रहा है.

बाला देवी कहती हैं, “जब हमें पता ही नहीं है कि दोनों कहां हैं तो हम उनकी बेटी कहां से लाकर दें? मैं भी एक मां हूं, मेरा भी दिल करता है अपने बेटे से बात करने का. मगर यहां गांव में अब उसकी जान को खतरा हो गया है, इसलिए वो परिवार में किसी से बात नहीं कर रहा.”

इस बीच भूड गांव में बाकी दलित परिवारों के साथ एक दूसरी समस्या शुरू हो गई. महापंचायत के बाद गुर्जर समुदाय ने गांव के दलित समुदाय का सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार शुरू कर दिया. दीपक बताते है, “गांव के चौकीदार को सामाजिक बहिष्कार की जानकारी देने के लिए दलितों के मोहल्ले में भेजा गया. चौकीदार ने पूरी दलित बस्ती में घूम-घूमकर गुर्जर समुदाय द्वारा लगाए गए तीन प्रतिबंधो की जानकारी दी. पहला, दलित और गुर्जर एक दुसरे के शादी-ब्याह में नहीं जाएंगे. दूसरा, दलित गुर्जरों के खेतों से गाय-भैंसों का चारा नहीं काट सकते. तीसरा, गांव की जो पंचायती ज़मीन है वहां दलित अपने जानवर नहीं चरा सकते.”

भूड गांव चार हिस्सों में बंटा है. एक हिस्से में 80 के करीब दलितों के परिवार रहते हैं. बाकी तीन हिस्सों में हिंदू गुर्जर और मुस्लिम गुर्जर रहते हैं. गांव की अधिकतर जमीनें गुर्जरों के पास हैं. दलितों के पास जमीनों के छोटा-छोटा टुकड़ा है. कोई बड़ा किसान नहीं है.

हमने भूड गांव के दलितों से मिलकर इस आर्थिक सामाजिक बहिष्कार को समझने की कोशिश की. कई दलितों ने आरोप लगाया कि गुर्जर समुदाय ने अपनी जाति के लोगों पर भी दलितों से मिलने-जुलने या किसी भी तरह का संबंध रखने पर पांच हज़ार का जुर्माना लगाने का ऐलान पंचायत में किया गया था.

गांव की ही दलित महिला संजू रानी का कहना है कि इस बहिष्कार के बाद दलितों का जीना मुहाल हो गया है. रानी ने कहती हैं, “हम महिलाएं अब दूर दराज के इलाकों से जाकर चारा लाते हैं. गुर्जरों ने हमसे दूध लेना-देना बंद कर दिया है. हम दलित हैं तो क्या हम इंसान नहीं है जो हमारे साथ इस तरह का बर्ताव किया जा रहा है.”

दलित समुदाय से आने वाले सुरजीत सिंह गांव में आटा चक्की चलाते है. उन्होनें अभी एक महीने पहले ही चक्की के लिए नई मशीन 2 लाख रुपए में खरीदा है. सुरजीत सिंह कहते है, “मैं पिछले 40 सालों से आटा चक्की चला रहा हूं. पहले मेरे पास रोज़ मेरे यहां 7-8 क्विंटल अनाज आता था मगर अब मुश्किल से 2-3 क्विंटल रह गया है. गुर्जरों ने आस-पास के गांवों में भी अपने जाति के लोगों को मेरी चक्की पर आने से मना कर दिया है.”

गांव के दलितों का आरोप है कि उनके समाज के जो लोग गुर्जरों की दुकान किराए पर लेकर कामधंधा करते थे, अब उनकी ददुकाने भी खाली करवाई जा रही हैं.

गांव के दलित राजबीर नाई का काम करते थे. वे बताते हैं, “मैं 2012 से किराए पर दुकान लेकर नाई का काम कर रहा था. महापंचायत के बाद करनैल सरपंच ने मुझे दुकान खाली करने को कहा जिसके बाद मैं वहां से अपना सामान लेकर घर आ गया.” राजबीर पिछले 20 दिनों से अपने घर के बाहर ही एक नई दुकान में अपना काम फिर से शुरू किया है.

20 वर्षीय सुनील बाइक रिपेयर का काम करते थे. उनकी भी दुकान कथित तौर पर गुर्जर समुदाय के लोगों ने दबाव देकर खाली करवा ली. दलित समाज का आरोप है कि महापंचायत के बाद दलितों की लगभग 7-8 दुकानें गुर्जरों ने खाली करवा ली हैं जिसमें इलेक्ट्रीशियन, पंक्चर लगाने वाला, बाइक मैकेनिक आदि शामिल हैं.

45 साल के प्रेम जो कि दलित है और गांव में ही एक क्रेशर प्लांट पर काम करते थे, उनका कहना है कि गुर्जरों ने क्रेशर मालिक को धमकी देकर उन्हें काम से निकलवा दिया. प्रेम पिछले चार सालों से क्रेशर प्लांट पर काम कर रहे थे.

इसके अलावा ग्राम पंचायत में कार्यरत सफाई कर्मचारी धर्मपाल ने भी आरोप लगाया है कि गुर्जर समुदाय ने उन्हें गुर्जरों की बस्ती में सफाई करने से रोक दिया. इसको लेकर जब हमने गांव के सरपंच निर्मल सिंह से बात की तो उनका कहना था कि धर्मपाल को अच्छे से सफाई न करने की वजह से मना किया गया है. उसकी पहले भी कई बार लिखित शिकायत आ चुकी थी. जब हमने सरपंच निर्मल सिंह से धर्मपाल के खिलाफ़ दी गई लिखित शिकायत की कॉपी मांगी तो उन्होनें हमें कोई भी दस्तावेज़ नहीं दिया.

‘साभार: न्यूज़लॉन्ड्री’

उजड़ने के डर में जीने को मजबूर गाजियाबाद के घुमंतू परिवार, धूमिल पड़ती स्थायी आवास की आस

सड़क के किनारे अपनी बांस और तिरपाल से बनी झोपड़ी के सामने बैठे 28 साल के सन्नी कोयले की गर्म भट्टी पर काम कर रहे हैं. लोहा पीटते-पीटते सन्नी ने कहा, “हमें किसी की जरूरत थी जो हमारी परेशानियों के बारे में लिख सके और हमारी समस्या सरकार तक पहुंचा सके.”

ऊपर निर्माणाधीन मेट्रो पुल, दोनों ओर सड़क से गुजरते ट्रैफिक के शोर-गुल के बीच मुश्किल से 15 फुट चौड़े, आधा किलोमीटर लंबे कच्चे रास्ते पर 50 घुमंतू परिवार पिछले कई दशकों से अपनी झोपड़ियों में रह रहे हैं. उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद शहर के गुलडेर गेट की गली नंबर पांच के पास रहने वाले इन घुंमतू परिवारों तक पहुंचते-पहुंचते सरकार की सारी योजनाएं दम तोड़ देती हैं.

लोहा पिटते हुए सवाल पूछने के लहजे में सन्नी कहते हैं, “हम लोग पिछले कई बरसों से यहां सड़क किनारे रहते हैं. हमारा भी कोई पक्का ठिकाना होना चाहिए. हम लोग क्या ऐसे ही भटकते रहेंगे. पांच साल हो गए कहते-कहते किसी ने कुछ नहीं किया. सरकार ने कहा था कि सबको पक्के मकान मिलेंगे. पक्के मकान तो दूर हमें तो एक गज जगह भी नहीं मिली.”

कोयले की भट्टी पर काम करते हुए सन्नी लोहार

इस बस्ती में रहने वाले अधिकतर लोगों के पास आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे आधारभूत दस्तावेज भी नहीं हैं. करीबन 65 साल की बुजुर्ग अंगूरी ने बताया, “मेरे पास आधार कार्ड है फिर भी पेंशन नहीं चालू करते. बोलते हैं कि पता स्थायी नहीं है. अब हमारे पास न जमीन है, न घर, तो स्थायी पता कहां से लाये.” सड़क किनारे रहने वाले इन 50 परिवारों में से केवल एक बुजुर्ग महिला की पेंशन आती है वो भी दिल्ली के पते पर. वो हर बार पेंशन लेने दिल्ली जाती हैं.

सड़क किनारे खुले में रहते हुए सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना महिलाओं को करना पड़ रहा है. लगभग 55 वर्षीय महिला शर्पी ने बताया, “नगर निगम वाले हर महीने यहां से हटने के लिए कहकर जाते हैं. यहां से हटकर हम कहां जाएंगे. सरकार को हमारा भी कोई पक्का ठोर-ठिकाना बनाना चाहिए. सरकार की ओर से हमें कोई भी सुविधा नहीं मिली है. पीने का पानी एक किलोमीटर दूर से भरकर लाते हैं. यहां औरतों के लिए शौचालय नहीं है. शौच के लिए हमें बाहर जाना पड़ता है.”    

सड़क किनारे खेलने को मजबूर मासूम बच्चे

अपने कामधंधे के बारे में सन्नी बताते हैं, “अब हमारा काम भी खत्म हो चुका है. बाजार में नये-नये डिजाइन के बर्तन आ गए हैं, लोग उनको खरीदना पसंद करते हैं. हमारे बनाए हुए लोहे के बर्तन नहीं खरीदते. हमारे कुछ परिवार लोहे का काम छोड़कर दूसरे काम में भी लग गए हैं.”

85 साल की एक बुजुर्ग महिला ने बताया, “सब आते हैं बहका-बहका कर चले जाते हैं. फोटो खींचकर, कागज बनाकर ले जाते हैं लेकिन आज तक हुआ कुछ नहीं. हम वहीं के वहीं सड़क पर पड़े हैं. हमारे साथ परिवार में लड़कियां हैं. यहां से रात-बिरात को गलत आदमी आते-जाते हैं तो डर लगता है.” एक छोटे बच्चे को गोद में लिए खड़ी महिला ने कहा,“बारिश के मौसम में सड़क का सारा पानी हमारी झोपड़ियों में भर जाता है. पानी भरने की वजह से चूल्हा तक नहीं जलता. कई बार बच्चे भूखे-प्यासे रह जाते हैं.”

वहीं इस मामले पर जब गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के अधिकारी से फोन पर बात की तो अधिकारी ने इन परिवारों को हटाने की जानकारी नहीं होने की बात कही.

ये लोग डीएनटी (डिनोटिफाइड नोमेडिक ट्राइब्स) से आते हैं. इस समुदाय को लेकर सरकर कितनी गंभीर है इसको सरकारी बजट से समझा जा सकता है. देशभर में करीबन 15 से 20 करोड़ की डीएनटी आबादी के लिए पिछले छह साल में महज 45 करोड़ का बजट दिया गया है यानी प्रधानमंत्री की एक विदेश यात्रा के खर्च से भी कम बजट. एक ओर प्रधानमंत्री के लिए दिल्ली में करोड़ों रुपये की लागत से नया पीएम आवास बन रहा है लेकिन पीएम द्वारा खुद शुरू की गई ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ बेघर लोगों तक नहीं पहुंच रही है.

इंडियन एक्सप्रेस के फ्रंट पेज पर भी भारत बंद को जगह नहीं, अखबारों में जाम की चर्चा ज्यादा

27 सितंबर को किसानों ने तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ ‘भारत बंद’ बुलाया था. देश के लगभग सभी राज्यों में भारत बंद का असर देखने को मिला. सबसे ज्यादा असर हरियाणा, पंजाब में दिखा वहीं दक्षिण भारत के राज्यों में भी लोगों ने किसानों के भारत बंद में साथ दिया. देश के सैकड़ों जिलों में हज़ारों जगहों पर आंदोलनकारी किसानों, राजनीतिक दलों व सामाजिक संगठनों ने रास्ते रोककर भारत बंद का समर्थन किया।

आज के हिंदी और अंग्रेजी के अखबारों ने भारत बंद से जुड़ी खबर को कैसे कवर किया है, इसको लेकर हमने हिंदी और अंग्रेजी के प्रमुख अखबारों की कवरेज को देखा है. इन अखबारों में अंग्रेजी के ‘द इंडियन एक्सप्रेस’, ‘द हिंदू’ और हिंदी के अखबारों में जनसत्ता, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, दैनिक ट्रिब्यून और अमर उजाला अखबार शामिल हैं.

खेती-किसानी से जुड़े मुद्दों को लेकर भारत का मीडिया हमेशा से उदासीन या नकारात्मकता रहा है. पिछले कुछ महीनों में खेती-किसानी को लेकर अगर भारतीय मीडिया में थोड़ी-बहुत चर्चा हुई भी है तो उसकी वजह है किसानों का पिछले 10 महीने का सड़क पर चल रहा संघर्ष.

किसान आंदोलन और खेती-किसानी से जुड़े मुद्दों की कवरेज को लेकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया के इक्का-दुक्का न्यूज चैनल को छोड़कर सबका हाल देखा जा सकता है. किसानों से जुड़े मुद्दों पर मुख्यधारा के प्रिंट मीडिया का रुख भी अमूमन ऐसा ही रहा है. जब तक कोई बड़ी घटना न हो तब तक कोई कवरेज नहीं मिलती और कई बार राष्ट्रीय स्तर की घटना के बाद भी कुछ अखबार अनदेखी कर जाते हैं.

अंग्रेजी के अखबार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने किसानों के भारत बंद को लेकर कुछ ऐसा ही किया है. अखबार ने भारत बंद की खबर को बड़ी खबर नहीं मानते हुए पहले पेज पर जगह नहीं दी है.

इंडियन एक्सप्रेस के पहले पेज पर ‘भारत बंद’ को लेकर कोई खबर नहीं. पेज नंबर 8 पर छपी खबर.

अखबार ने भारत बंद को लेकर पेज नंबर आठ पर केवल पांच कॉलम की कवरेज की है. ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने ‘भारत बंद’ का कुछ राज्यों में मिलाजुला असर बताया.

‘इंडियन एक्सप्रेस’ के पेज नंबर 8 पर ‘भारत बंद’ की खबर

वहीं अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ ने इस बार किसान आंदोलन को पहले पेज कवरेज दी है. द हिंदू ने ‘भारत बंद’ को लीड खबर लेते हुए पहले पेज पर तीन कॉलम की जगह दी है. लेकिन अखबार की हेडलाइन में बंद की वजह से रोड और रेलमार्ग बंद होने की समस्या पर जोर दिया गया है.

अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ में पहले पेज पर’भारत बंद’ से जुड़ी तीन कॉलम की खबर

वहीं हिदी के अखबार जनसत्ता ने भी भारत बंद की खबर को पहले पेज पर स्थान दिया है. लेकिन तीन कॉलम में छपी इस खबर में किसानों के भारत बंद की सफलता से ज्यादा बंद की वजह से लगे जाम की स्थिति पर ध्यान आकर्षित किया गया है. जनसत्ता ने हेडलाइन दी, ‘दिन भर जाम से जूझती रहीं दिल्ली की सीमाएं’

जनसत्ता में ‘भारत बंद’ को लेकर पहले पेज पर तीन कॉमल की खबर

वहीं समाचार पत्र ‘दैनिक जागरण’ किसान आंदोलन को लेकर हर बार की तरह इस बार भी सरकार का भोंपू बजाता नजर आया. दैनिक जागरण ने भारत बंद की खबर मुख्य पेज पर जगह नहीं दी. ‘दैनिक जागरण’ ने ‘भारत बंद’ के असर को नकारते हुए हेडलाइन दी, ‘कृषि कानूनों के खिलाफ बंद बेअसर, हरियाणा में मिलाजुला असर’. साथ ही सब-हेडलाइन दी कि, ‘प्रदर्शनकारियों ने 346 जगह यातायात बाधित किया’

दैनिक जागण ने भारत बंद के असर के नकारा.

वहीं ‘दैनिक भास्कर’ ने भारत बंद की खबर को प्रमुखता से छापा है. दैनिक भास्कर ने भारत बंद को मुख्य खबर के तौर पर लेते हुए हेडलाइन दी, ‘पूरा प्रदेश जाम, सड़कें-बाजार सुनसान’.

‘दैनिक भास्कर’ ने भारत-बंद की खबर को पहले पेज पर प्रमुखता से छापा

वहीं हिंदी अखबार ‘अमर उजाला’ ने भी खबर को पहले पेज पर प्रमुखता से लिया है. अमर उजाला ने हेडलाइन दी, ‘भारत बंद: हरियाणा के 17 जिलों में असर, 320 जगह जाम, बसें-ट्रेनेंं नहीं चलीं, 250 किसानों पर केस दर्ज‘ अखबार ने खबर को बैनर हेडलाइन की तौर पर लिया है.

भारत बंद को लेकर ‘अमर उजाला’ की कवरेज
भारत बंद को लेकर ‘दैनिक ट्रिब्यून’ की कवरेज.

देश भर में दिखा किसानों के ‘भारत बंद’ का असर, किसान बोले-कानून वापसी के बिना घर वापसी नहीं!

तीन कृषि कानूनों को रद्द करने और फसलों पर एमएसपी की मांग को लेकर किसानों ने देशव्यापी भारत बंद किया. देश के अलग-अलग हिस्सों से आई तस्वीरों में किसानों का भारत बंद कार्यक्रम सफल दिखाई दिया. संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से मुजफ्फरनगर किसान महापंचायत में आज के लिए भारत बंद की कॉल दी गई थी. सुबह 6 बजे से शुरू होकर शाम 4 बजे तक चले भारत बंद के दौरान अस्पताल, मेडिकल स्टोर, फायर ब्रिगेड और एंबुलेंस जैसी आपात सेवाओं को छूट रही. 

भारत बंद का सबसे ज्यादा असर हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में रहा. वहीं गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, तेलंगाना और उत्तराखंड में भी किसानों के ‘भारत बंद’ के समर्थन में लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर दिखाई दिए.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के विधानसभा क्षेत्र करनाल में भी भारत बंद का कार्यक्रम सफल रहा. करनाल में किसानों ने रेलवे रोड पर स्थित भाजपा के पार्टी कार्यालय को ही बंद करवा दिया.

वहीं किसान आंदोलन का असर अब अहीरवाल क्षेत्र में भी दिखने लगा है. ऐसा माना जा रहा था कि अबतक इस क्षेत्र में किसान आंदोलन को व्यापक जन समर्थन नहीं मिला था और अहीरवाल क्षेत्र के किसान, किसान आंदोलन में खुलकर भागीदारी नहीं दे रहे थे. लेकिन आज भारत बंद के दौरान अहीरवाल क्षेत्र की तस्वीर अलग ही थी. रेवाड़ी के किसानों ने रेवाड़ी-रोहतक रोड पर स्थित गंग्याचा टोल को फ्री करवा दिया और जब तक किसान आंदोलन जारी रहेगा तब तक टोल नहीं देने की बात कही.

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गंग्याचा टोल पर भारत बंद के समर्थन में जुटे रेवाड़ी के किसान

किसान नेता राकेश टिकैत ने भारत बंद को सफल बताते हुए लिखा,”मुठ्ठी भर किसान, कुछ राज्यों का आन्दोलन बताने वाले आंख खोलकर देख ले कि किसानो के आव्हान पर आज पूरा देश #भारत_बंद का समर्थन कर रहा है, बिना किसी दबाव व हिंसा के ऐतिहासिक #BharatBand जारी है सरकार कान खोल कर लें, कृषि कानूनों की वापसी व MSP की गारंटी के बिना घर वापसी नहीं होगी.”

कृषि विशेषज्ञ रमनदीप सिंह मान ने भारत बंद को सफल बताते हुए केंद्र की बेजेपी सरकार निशाना साधते हुए लिखा,”आज के भारत बंद का रिस्पांस देखने के बाद कोई बीजेपी का नेता, प्रवक्ता, ये नहीं बोल पायेगा की #किसानआंदोलन कुछ एक ख़ास राज्यों का आंदोलन है. बीजेपी वालों के हिसाब से तो आज सारा भारत ही खालिस्तानी, नक्सल, आतंकवादी बन गया है. अगर मोदी जी अब भी न जागे, तो बीजेपी का कोई नाम लेने वाला नहीं बचेगा.”

देश के अलग-अलग राज्यों से भारत बंद की तस्वीरें.

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उत्तराखंड: उधम सिंह नगर में नेशनल हाइवे पर बैठे किसान
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तेलंगाना: भारत बंद के समर्थन में सड़कों पर उतरे किसान
May be an image of 5 people, people standing and road
मध्य प्रेदश: गुना में भारत बंद के समर्थन में आए लोग
May be an image of 8 people, people standing, road and text that says "OPPO ©comrade"
महाराष्ट्र: पालघर में भारत बंद के समर्थन में सड़कों पर महिलाएं
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चंडीगढ़: भारत बंद के समर्थन में सड़क पर बैठे किसान

नोेएडा में भारत बंद में शामिल हुए किसानों और यूपी पुलिस के बीच झड़प हो गई. किसानों ने पुलिस बेरिकेड्स हटाकर खेती-किसानी के नारे लगाए.

भारत बंद के दौरान नोएडा में यूपी पुलिस और किसानों के बीच हुई झड़प

वहीं गुजरात में भारत बंद का समर्थन कर रहे किसानों को गुजरात पुलिस ने हिरासत में ले लिया. किसानों ने पुलिस हिरासत में ही खेती-किसानी के समर्थन में नारे लगाए.

गुजरात पुलिस ने किसानों को हिरासत में लिया

विपक्षी पार्टियों ने किया भारत बंद का समर्थन

वहीं विपक्षी राजनीतिक पार्टियों की ओर से भी भारत बंद को समर्थन मिला. इस कड़ी में मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता राहुल गांधी ने भारत बंद का समर्थन किया. राहुल गांधी ने भारत बंद के समर्थन में ट्वीट करते हुए लिखा, “किसानों का अहिंसक सत्याग्रह आज भी अखंड है लेकिन शोषण-कार सरकार को ये नहीं पसंद है इसलिए #आज_भारत_बंद_है #IStandWithFarmers”

वहीं समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी किसाने के भारत बंद का समर्थन किया. उन्होंने भारत बंद के समर्थन में ट्वीट करते हुए लिखा, “संयुक्त किसान मोर्चा के ‘भारत बंद’ को सपा का पूर्ण समर्थन है. देश के अन्नदाता का मान न करनेवाली दंभी भाजपा सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार खो चुकी है. किसान आंदोलन भाजपा के अंदर टूटन का कारण बनने लगा है.”

भारत ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी किसानों के भारत बंद को समर्थन मिला. अमेरिका, कानाडा,न्यूजीलैंड और इंग्लैंड में रहने वाले भारतीयों ने ‘भारत बंद’ के समर्थन में प्रदर्शन किए गए.

दिन के शुरुआती घंटों में ही दिखा किसानों के ‘भारत बंद’ का असर, रेलवे ट्रैक और राष्ट्रीय राजमार्ग किए बंद!

तीन नये कृषि कानूनों को रद्द करने और फसलों पर एमएसपी की गारंटी की मांग को लेकर किसानों ने भारत बंद बुलाया है. भारत बंद के चलते किसानों ने कई राष्ट्रीय राजमार्गों को बंद कर दिया है. देश के अलग-अलग हिस्सों से भारत बंद की तस्वीरें आ रही हैं. तस्वीरों में किसानों के भारत बंद का असर दिखाई दे रहा है. भारत बंद के दौरान अस्पताल, दवाइयों के स्टोर, फायर ब्रिगेड और एंबुलेंस जैसी आपात सेवाओं को छूट दी गई है.

संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा सुबह 6 बजे से शाम 4 बजे तक भारत बंद का एलान किया गया है. भारत बंद के दौरान हर सार्वजनिक गतिविधि, बाजार, शिक्षण संस्थान, उद्योग धंधे बंद रखने की अपील की है. किसान नेताओं ने तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ देश के आम लोगों से भी देशव्यापी भारत बंद में शामिल होने की अपील की है.

देखिए, भारत बंद के दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों से आई तस्वीरेें

सोरखी गांव में किसानों द्वारा दिल्ली-हिसार (NH-9) बंद किया गया
भिवानी में किसानों ने किया बंद
फतेहाबाद के रतिया में दिखा भारत बंद का असर
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दिल्ली-अमृतसर रेलवे ट्रैक किया बंद
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गाजीपुर बॉर्डर बंद
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दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे बंद
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तेलंगाना रेलवे स्टेशन पर किसानों ने सुबह तीन बजे से किया बंद
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रेवाड़ी में किसानों ने गंग्याचा टोल को फ्री करवाया

वहीं सड़क के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी किसानों के ‘भारत बंद’ से जुड़ी खबरें ट्रेंड कर रही हैं. ट्विटर पर #आज_भारत_बंद_है सुबह से ही नंबर एक पर ट्रेंड कर रहा है.

ट्विटर पर पहले नंबर पर ट्रेंड हुआ किसानों का भारत बंद

भारत ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत बंद को समर्थन मिलने की बात सामने आ रही है. अमेरिका, कानाडा, न्यूजीलैंड और  इंग्लैंड जैसे देशों में भी भारत बंद के समर्थन में प्रदर्शन की तैयारियां हैं.

किसान आंदोलन के एक साल पूरे होने पर ‘प्रधानमंत्री आवास’ के घेराव की तैयारी में किसान!

करीबन दस महीने से देशभर में चल रहा किसान आंदोलन एक नये पड़ाव की ओर बढ़ता हुआ नजर आ रहा है. सरकार की ओर से किसानों की अनदेखी के चलते 18 किसान संगठनों ने एक बड़ा फैसला लिया है. इन 18 किसान संगठनों में देश के अलग-अलग राज्यों के किसान संगठन शामिल हैं. किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने एक वीडियो के जरिए संदेश देते हुए कहा, “26 नवंबर को प्रधानमंत्री आवास का घेराव करने का फैसला लिया गया है.” साथ ही गुरनाम सिहं चढूनी ने प्रधानमंत्री आवास के बाहर पक्का मोर्चा लगाने की भी बात कही.

उन्होने कहा कि 18 किसान संगठनों की सोनीपत में हुई बैठक में प्रधानमंत्री आवास के घेराव का फैसला लिया गया है. इस प्रस्ताव को संयुक्त किसान मोर्चा के सामने रखा जाएगा. प्रधानमंत्री आवास के घेराव की कॉल देने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा से भी अपील की जाएगी.  गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा, “अगर संयुक्त किसान मोर्चा हमारा प्रस्ताव मंजूर करता है तो किसान आंदोलन के एक साल पूरे होने पर यानी 26 नवंबर को प्रधानमंत्री आवास का घेराव करके पक्का मोर्चा लगाया जाएगा.”

किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी

       

किसान करीबन दस महीने से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं. तीन नये कृषि कानूनों को रद्द करने और फसलों पर एमएसपी की गारंटी को लेकर चला आ रहा यह आंदोलन पूरे देश में फैल चुका है. किसान आंदोलन में अब तक 700 से ज्यादा किसान शहीद हो चुके हैं. प्रधानमंत्री आवास के घेराव को लेकर किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने देश के आम लोगों से भी राय मांगी है.

पर्यावरण नियमों को ताक पर रखने वाली कंपनियों के लिए मुख्यमंत्री खट्टर ने की लॉबिंग!

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर द्वारा केमिकल कपंनियों को एनवायरमेंट क्लीयरेंस दिलाने के लिए लॉबिंग का मामला सामने आया है. यमुनानगर स्थित 15 केमिकल कंपनियां पर्यावरण नियमों का पालन किये बिना धड़ल्ले से चल रही थी. कई साल बाद ये कंपनियां पर्यावरण अनुमति हासिल करने के योग्य नहीं थी लेकिन ऐसे में खुलासा हुआ है कि मुख्यमंत्री खट्टर ने इस साल मार्च में इन केमिकल कंपनियों को पर्यावरण मंत्रालय से एनवायरमेंट क्लीयरेंस दिलाने के लिए लॉबिंग की है.     

यह खुलासा अंग्रेजी की वेबसाइट ‘द मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट’ के पत्रकार अक्षय देशमाने की रिपोर्ट में हुआ है. रिपोर्ट के अनुसार मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने ‘फॉर्मेल्डिहाइड’ नाम का केमिकल बनाने वाली 15 कंपनियों के लिए लॉबिंग की है. हरियाणा के यमुनानगर में स्थित ये कंपनियां प्लाईवुड के कारोबार में प्रयोग होने वाले केमिकल पदार्थ ‘फॉर्मेल्डिहाइड’ बनाने का काम करती हैं.

साल 2009 के बाद शुरू हुई ये कंपनियां अनिवार्य पर्यावरण अनुमति लिए बिना ही कारोबार कर रही थी. यह पर्यावरण से संबधी देश के मुख्य कानून जैसे पर्यावरण प्रभाव आकलन, 2006 का उल्लंघन है. किसी भी केमिकल कंपनी को उसके स्थापित होने के दौरान ही एनवायरमेंट क्लीयरेंस दी जाती है ताकि उसके सामने आने वाली पर्यावरण संबंधी दिक्कतों को देख-परख कर एनवायरमेंट क्लीयरेंस दी जा सके. लेकिन हरियाणा में अलग ही मामला सामने आया है. कंपनियां एक दशक से चल रही थी और एनवायरमेंट क्लीयरेंस की मांग अब की जा रही है. ऐसी कंपनी जो पहले से चली आ रही हैं उसकी एनवायरमेंट क्लीयरेंस की मांग और उसे अनुमति देना एक तरह से पहले हो चुके पर्यावरण के नुकसान को अनदेखा करने जैसा है.  

हरियाणा स्टेट पॉल्यूशन बोर्ड के सामने 2019 में यह बात सामने आई थी कि यमुनानगर में 15 केमिकल कंपनियां खुले तौर पर पर्यावरण के नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं. जिसके बाद हरियाणा स्टेट पॉल्युशन बोर्ड ने इन कंपनियों के केमिकल बनाने पर रोक लगा दी थी. लेकिन इसके बाद 23 अक्टूबर 2020 को हरियाणा में फॉर्मेल्डिहाइड केमिकल बनाने वाली एसोशिएशन ने हरियाणा सरकार से केमिकल बनाने की अनुमति देने की अपील की जिसके बाद 11 नवंबर 2020 को इन सभी कंपनियों को केमिकल बनाने के लिए छह महीने की रियायत दे दी गई.

मुख्यमंत्री खट्टर द्वारा पर्यावरण मंत्री को लिखा पत्र

हालांकि इस बीच 2020 में केंद्र सरकार ने इस तरह का नोटिफिकेशन जारी किया था जिसमें पहले से स्थापित केमिकल कंपनियों को बाद में एनवायरमेंट क्लीयरेंस दी जा सकती है. लेकिन इसके खिलाफ कोर्ट में चल रहे मामलों की वजह से यह अभी लागू नहीं किया जा सका है.

बावजूद इसके हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर 3 मार्च को पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर को केमिकल कंपनियों की लॉबिंग करते हुए पत्र लिखते हैं. वहीं सीएम खट्टर द्वारा पर्यावरण मंत्री को लिखे पत्र के तीन महीने बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने केमिकल कंपनियों को 6 महीने की रियायत देने की बात को गैर-कानूनी बताते हुए कहा, “राज्य सरकार के पास केमिकल कंपनियों को रियायत देने का कोई अधिकार नहीं है.”

केंद्रीय मंत्री को लिखे पत्र में सीएम खट्टर ने पर्यावरण की गंभीरता की अनदेखी करते हुए लिखा कि यमुनानगर में चलने वाली प्लाईवुड मार्केट एशिया की सबसे बड़ी मार्केट है. ऐसे में अगर यहां की केमिकल फैक्ट्रियों को काम करने में दिक्कत आती है तो प्लाईवुड इंडस्ट्री का बड़ा नुकसान होगा.” प्रदेश का पर्यावरण मंत्रालय खुद सीएम मनोहर लाल खट्टर के पास है लेकिन वे खुद ही पर्यावरण को लेकर चिंचित होने की बजाए केमिकल कंपनियों के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं.  

वहीं सरकार ने इसका ठीकरा लॉकल अथॉरिटी पर फोड़ते हुए जवाब दिया, “इन केमिकल कंपनियों को काम करने की अनुमति लॉकल अथॉरिटी से मिली थी जिनके पास इस विषय में ज्यादा जानकारी नहीं थी. इस तरह की छोटी केमिकल कंपनियों को पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड जैसे अन्य राज्यों में भी अनुमति मिली हुई है.”   

सीएम खट्टर ने केमिकल कंपनियों की लॉबिंग क्यों की? इस सवाल के जवाब में सरकार ने कहा, “इस मामले में बड़े स्तर पर जनता का हित जुड़ा हुआ है. यमुनानगर एशिया की सबसे बड़ी प्लाईवुड मार्केट है. इस केमिकल के बिना प्लाईवुड मार्केट का काम नहीं चल सकता है. लोगों के रोजगार को देखते हुए यह कदम उठाया गया है.”