सफाई कर्मचारियों के आंदोलन पर सरकार के कान बंद! स्कूली बच्चों और खिलाड़ियों से उठवा रही कूड़ा

सफाई कर्मचारियों की हड़ताल से प्रदेश के विभिन्न शहरों में कूड़ा-करकट जमा हो गया है. स्थिति दिनों दिन खराब होती जा रही है. ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रदेशभर में अपनी मांगों को पूरा करने के लिए सफाई कर्मचारी 19 अक्टूबर से हड़ताल पर हैं. शुक्रवार को हर जिले में शहरी स्थानीय निकाय मंत्री कमल गुप्ता का पुतला फूंका गया. कर्मचारियों ने नगर निगम कार्यालयों से सरकार विरोधी नारेबाजी करते हुए मार्च निकाले.

लगभग हर शहर की सभी सड़कों पर कूड़े के ढेर देखे जा सकते हैं. कूड़े के ढेर से उठ रही दुर्गंध ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है. हरियाणा के शहर दीवाली पर भी कूड़े के ढेरों से अटे रहे.

इस मामले को लेकर सफाई कर्मचारी राजेश ने हमें बताया, “हरियाणा में सरकार ने सफाई के लिए निजी कंपनियों को सफाई का ठेका दे रखा है जो हम सफाई कर्मचारियों का शोषण करती हैं और समय पर पूरे पैसे भी हमें नहीं देती हैं. जब काम हम सरकार का और पब्लिक का कर रहे हैं तो हमारा शोषण निजी ठेकेदार क्यों करे. सरकार हमें पक्का करे.”

नगरपालिका कर्मचारी संघ हरियाणा के प्रदेशाध्यक्ष नरेश कुमार शास्त्री ने कहा कि कर्मचारी मजबूती से हड़ताल पर डटे हुए हैं, बीते सोमवार को दीपावली के पर्व पर हड़ताली कर्मचारियो ने काले झंडों व उल्टी झाड़ू के साथ राज्य भर में प्रदर्शन कर काली दिवाली मनाई है. हड़ताल को विफल करने के तमाम प्रयासों के बावजूद 57 नगर पालिकाओं, 22 नगर परिषदों व 11 नगर निगमों के सफाई, सीवर फायर व तृतीय व चतुर्थ श्रणी के लगभग चालीस हजार कच्चे व पक्के कर्मचारी हड़ताल पर डटे हुए हैं.

सीटू हरियाणा की प्रधान सुरेखा ने कहा कि सरकार हड़ताली कर्मचारियों की मांगों का तुरंत समाधान करें वरना आंदोलनकारियों के समर्थन में सीटू से जुड़ी तमाम यूनियनें 31 अक्टूबर को सभी जिलों में प्रदर्शन करेंगी.

शहरी स्थानीय निकाय मंत्री कमल गुप्ता और सफाई कर्मचारी संघ के एक प्रतिनिधिमंडल के बीच 28 अक्टूबर को हिसार में बैठक बेनतीजा रही. कर्मचारियों के प्रतिनिधिमंडल ने कथित तौर पर बैठक को बीच में ही छोड़ दिया. हिसार में सफाई कर्मचारी संघ के प्रमुख राजेश ने कहा कि उन्होंने मंत्री के साथ कुछ बिंदुओं पर चर्चा की, लेकिन एक समझौते पर पहुंचने में विफल रहे. उन्होंने अधिकारियों को कल (29 अक्टूबर) तक का अल्टीमेटम दिया था, जिसके बाद वे अपनी भविष्य की कार्रवाई का खाका तैयार करेंगे.

मंत्री ने बाद में कहा कि कुछ कर्मचारी बातचीत नहीं करना चाहते हैं और इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं हो सका है. मंत्री ने कर्मचारियों को डराते हुए पत्रकारों को बताया कि “कानून को अपने हाथ में लेने की कोशिश करने वाले कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. हम अभी भी बातचीत के लिए तैयार हैं.”

19 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल कर रहे सफाई कर्मियों की आवाज सरकार सुनने को तैयार नहीं है, बल्कि सफाई के वैकल्पिक उपाय कर रही है, जिससे गुस्साए कर्मचारियों ने अब नगर निगम गुरुग्राम (एमसीजी) की सड़कों पर सफाई करने वाली मशीनों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है ताकि शहरों में जमा हजारों टन कचरे को साफ करने से रोका जा सके.

प्रदर्शनकारियों को दूर रखने के लिए पुलिस कंट्रोल रूम (पीसीआर) वाहनों को सभी स्वीपिंग मशीन के साथ तैनात किया गया है. गुड़गांव के एमसीजी के संयुक्त आयुक्त नरेश कुमार ने कहा कि अधिकारियों ने 500 टन से अधिक कचरा साफ कर दिया है, लेकिन नगर निकाय की टीमें लगातार खतरे में हैं.

नरेश कुमार ने बताया, “प्रदर्शनकारी न केवल श्रमिकों को बल्कि मशीनों को भी निशाना बना रहे हैं. वे इन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि हम कचरा साफ न कर सकें. अब हमें रोड स्वीपिंग मशीनों की सुरक्षा के लिए पीसीआर वाहन मिल गए हैं. प्रदर्शनकारी दिन-ब-दिन के साथ आक्रामक होते जा रहे हैं.”

बड़े अफसर सफाई करवाने की अलग अलग तरह की कोशिशें कर रहे हैं. इन्हीं कोशिशों में सीएम सिटी करनाल के अफसरों ने तो स्कूली बच्चों को सफाई करने में लगा दिया. शहर के विभिन्न स्कूलों के एनएसएस वॉलेंटियर्स ने अपने स्कूलों के आसपास सफाई की, जबकि खेल विभाग के खिलाड़ियों और कर्मचारियों ने कोर्ट कॉम्पलेक्स की सफाई के लिए झाड़ू लगाई.

केएमसी आयुक्त अजय सिंह तोमर के आदेश के बाद, सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल फॉर बॉयज़, श्री राम चरित मानस सीनियर सेकेंडरी स्कूल, टैगोर बाल निकेतन और वीयूएमएम जैन पब्लिक स्कूल के एनएसएस वॉलेंटियरों के अलावा खेल विभाग के खिलाड़ियों, कर्मचारियों और कोचों ने इसमें भाग लिया.

टैगोर बाल निकेतन के प्रधानाचार्य राजन लांबा ने कहा, “हमारे छात्रों ने स्कूल के पास की सड़कों की सफाई की और हम आने वाले दिनों में भी इसी भावना के साथ जारी रखेंगे.”

हड़ताल से सीएम सीटी में सफाई कार्य प्रभावित हुआ है. हालांकि केएमसी ने सड़कों की सफाई और कचरा उठाने के लिए लगभग 100 निजी कर्मचारियों को तैनात किया है, लेकिन विरोध करने वाले कर्मचारी बाधा उत्पन्न कर रहे हैं. केएमसी को पुलिस की मदद लेनी पड़ी और तीन दिन पहले निजी कर्मचारियों को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकने के लिए 24 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया.

सफाई कर्मचारियों की इस हड़ताल का समर्थन पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने भी किया है. उन्होंने कहा, “कांग्रेस सरकार के दौरान उन्होंने 11 हजार सफाई कर्मियों की भर्ती की थी. भविष्य में फिर से सरकार बनने पर इन तमाम कर्मचारियों को पक्का किया जाएगा.”

छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार का अडानी प्रेम ‘हसदेव वन’ में तांडव मचा रहा है!

“अध्यक्ष महोदय, सालों पहले फैमिली प्लानिंग का एक नारा था – “हम दो हमारे दो”. जैसे कोरोना दूसरे रूप धारण कर आता है वैसे ही यह नारा दूसरा रूप धारण कर आया है, आज इस देश को 4 लोग चलाते हैं ‘हम दो और हमारे दो’. यह किसकी सरकार है? पीछे से कई लोगों की आवाज आती है–मोदी, अमित शाह और अडानी व अंबानी की”.

फरवरी 2021 में क्रोनी कैपिटलिस्ट के विरुद्ध यह रणभेरी आवाज भारत की सबसे बड़ी पंचायत में गूंज रही थी. यह आवाज कांग्रेस के आलाकमानी नेता राहुल गांधी की थी.

लेकिन जिस अडानी का विरोध राहुल गांधी सदन में कर रहे थे, नेपथ्य में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार उसी अडानी का हाथ मजबूत करने में लगी हुई थी.

जिसका पता राहुल गांधी को भी था. 23 मई को, विदेश में हसदेव को बचाने से जुड़ा प्रश्न पूछने पर श्री गांधी ने बताया कि वो इस मुद्दे पर काम कर रहे हैं और इसका परिणाम आपको जल्द दिखेगा. कुछ दिन बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री एक बयान में  हसदेव की तीनों खदानों पर रोक लगा देने की बात करते हैं.

इसके बाद मीडिया में आदिवासी हितेषी और जुबान के पक्के होने की खूब सुर्खियां बटोरी जाती हैं.

ट्वीट लिंक

7 सितंबर को जब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भारत के दक्षिणतम छोर पर राहुल को तिरंगा सौंप भारत जोड़ो यात्रा का बिगुल फूंक रहें थे. उसी 7 सितंबर को छत्तीसगढ़ में उनकी पुलिस उस यात्रा के मकसद का मखौल उड़ा रही थी. हसदेव के स्थानीय निवासियों की चीत्कार (वन को बचाने के लिए) को अनसुना कर हसदेव वन को उजाड़ने का काम कर रही थी.

वनों का यह सफाया ग्राम सभा की अनुमति के बिना किया जा रहा है. पुलिस के द्वारा कई लोगों को हिरासत में लिया गया है. पेड़ों की यह कटाई परसा ईस्ट केते बासेन खदान के दूसरे चरण के लिए हो रही है.

बयानों से पहली बार मुंह नहीं मोड़ा है. वर्ष 2015 में राहुल गांधी हसदेव वन में बसे मदनपुर गांव गए थे. वहां श्री गांधी ने वादा किया कि कांग्रेस आपके साथ खड़ी है, आपकी लड़ाई लड़ेगी.

वर्ष 2018 में कांग्रेस दल की सरकार बनने के बाद हसदेव वन को बचाने के लिए एक कदम भी नहीं उठाया गया. उल्टा कई और खदानों के लिए अडानी की कंपनी के साथ एमडीओ (माइन डेवलपर एंड ऑपरेटर) कर दिया.

राहुल गांधी. 15 जून, 2015 को हसदेव के मदनपुर गांव में आदिवासियों को संबोधित करते हुए. 

कहां बसा है हसदेव

छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तरी इलाके में करीब 1750 वर्ग किलोमीटर में फैला गहरे वनों का क्षेत्र है. जो मध्यप्रदेश के कान्हा वन क्षेत्र से झारखंड के पलामू वन क्षेत्र के बीच वन गलियारे का निर्माण करता है.

यहां से हसदेव नदी बहती है. हसदेव वन उसी नदी के संभरण (केचमेंट) क्षेत्र का निर्माण करता है.

हसदेव अरण्य वन का पूरा मामला क्या है?

छत्तीसगढ़ में कोयले का भंडार है. जिसे कुछ लोग विकास की आड़ लेकर हड़पना चाहते हैं. ऐसा ही हसदेव के मामले में हो रहा है.

यूपीए की सरकार वर्ष 2007 में हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में 20 के करीब कोयला खदान चिन्हित करती है. 2008 में परसा ईस्ट केते बासन खदान राजस्थान सरकार के उपक्रम राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड को आवंटित करती है. यह उपक्रम माइन खनन और संचालन के लिए अडानी की कंपनी के साथ समझौता करती है.

वर्ष 2010 में भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय द्वारा हसदेव की जैव संपदा को देखते हुए हसदेव वन क्षेत्र को “नो गो जोन” इलाका घोषित कर दिया जाता है.

कंपनी के दबाव में, वर्ष 2011 में तत्कालीन मंत्री जयराम रमेश परसा ईस्ट केते बासन खदान में खनन की अनुमति देते हैं. यह अनुमति विशेषज्ञ समिति की सिफारिश से विपरीत थी.

“इस कोल ब्लॉक का खनन दो चरणों में किया जाना था. अभी इसके दूसरे चरण के लिए वनों की कटाई की जा रही है.”

इस निर्णय को सुदीप श्रीवास्तव द्वारा एनजीटी में चुनौती दी जाती है. मार्च 2014 में एनजीटी जयराम रमेश के फैसले को खारिज कर देता है.

अप्रैल 2014 में सर्वोच्च न्यायालय उस एनजीटी के फैसले पर रोक लगा देता है.

*इसी रोक के बूते अडानी की कंपनी कोयला बेचती रही.*

दिसंबर 2014, में ग्राम सभाएं वन अधिकार अधिनियम, 2006 का प्रयोग करते हुए खनन के विभाग्य प्रस्तावों का विरोध करती हैं.

यह कसमकस लंबी चलती है. धनबल और भुजबल का पूरा प्रयोग किया जाता है.

फर्जी तरीके से ग्राम सभा की सहमति ले ली जाती है. 

अब कलेक्टर Noc (अनापत्ति प्रमाणपत्र) जारी करता है.

राज्य सरकार के पास में वन अधिकार अधिनियम की धारा 2 के तहत वन कटाई का अधिकार आ जाता है.

कलेक्टर के द्वारा जारी NOC के खिलाफ गावों के लोग राज्यपाल के पास जाते हैं.

तस्वीर में– अक्टूबर 2021 में हसदेव के स्थानीय निवासी राजधानी रायपुर की ओर कूच करते हुए.

राज्यपाल मुख्य सचिव को जांच की अनुमति देते है.

कलेक्टर साहब काउंटर करने के लिए कुछ लोगों को इकट्ठा कर कंपनी के साथ खड़ा कर देते हैं.

राज्यपाल अनुसुइया उईके हसदेव के निवासियों से मिलकर फर्जी ग्राम पंचायतों की जांच के लिए पत्र लिखती हैं.

23 दिसंबर, 2021 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति ने पीईकेबी के दूसरे फेज को शुरू करने के पक्ष में अनुसंशा की.

पहले फेज का काम मार्च 2022 में पूरा हो जाता है.

25 मार्च को भूपेश बघेल और अशोक गहलोत मिलते है. सहमति बन जाती है.

26 अप्रैल को रात्रि 3 बजे पेड़ काटने शुरू करते है. आदिवासी अपना कठोरी त्योहार मना रहे थे.

हवाला दिया गया कि पेड़ो की कटाई कॉल एक्ट 1957 के तहत की गई है. अगर उस कानून के तहत करना था तो फिर रात में क्यों?

स्मरणीय है पांचवी अनुसूची वाले क्षेत्र में वन अधिकार अधिनियम 2006 लागू है. वहां 1957 के उस कानून की कोई प्रासंगिकता नहीं है.

हाईकोर्ट की लताड़ और जनसमूह के दबाव में पेड़ों की कटाई कुछ समय के लिए रोक दी जाती है.

तस्वीर में– 26 अप्रैल की रात में काटे गए पेड़.

राहुल गांधी के विदेश में दिए गए बयान के बाद 7 जून को छत्तीसगढ़ सरकार में मंत्री और हसदेव क्षेत्र से विधायक टीएस सिंह देव धरना स्थल पर जाते हैं. धरना करीब 200 दिनों से हो रहा था. वहां मंत्री बाबा यह घोषणा करते है कि पहली गोली मैं खाऊंगा.

जवाब में मुख्यमंत्री बघेल कहते हैं कि टीएस सिंह की अनुमति के बिना एक डंगाल भी नहीं कटेगी.

तस्वीर हसदेव में बसे हरिहरपुर गांव में स्थानीय निवासियों को संबोधित करते हुए मंत्री श्री टीएस सिंह

27 जुलाई को छत्तीसगढ़ विधानसभा में अशासकीय प्रस्ताव पारित किया जाता है. प्रस्ताव हसदेव क्षेत्र में आबंटित सभी कोयला खदानें निरस्त करने का अनुरोध केंद्र सरकार से करता है. इसे भी सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया.

फिर अचानक जज्बात बदल दिया. 40 दिन बाद हसदेव के हरे भरे जंगलों में अडानी की मशीनें गूंज रही थी, बड़े–बड़े पेड़ गिर रहे थे.

तस्वीर में भूपेश बघेल का ट्वीट।

राहुल गांधी और उनकी पार्टी जब आदिवासियों के हित में बोलती है तो कोरी लंतरानी ही लगती है. क्योंकि असल में वो भी उसी रास्ते पर चल रही है जिसमे लोगों को दर–ब–दर कर दिया जाता है, विकास के नाम पर.

हसदेव नहीं रहा तो क्या फर्क पड़ेगा? 

हसदेव में कई कोल ब्लॉक्स चिन्हित किए गए हैं. अगर उन्हें सभी तरह की स्वीकृतियां मिल जाती हैं तो लाखों पेड़ धरती पर लेट जाएंगे. अशासकीय प्रस्ताव के अनुसार केवल परसा ईस्ट केते बासन के लिए करीबन तीन लाख पेड़ काटे जाएंगे.

हसदेव नदी और बांगो बांध में आने वाले पानी में रुकावट आ जायेगी.

केते खदान क्षेत्र के समीप में लेमरु हाथी रिजर्व है. इसके क्षेत्रफल को लेकर भी विवाद है. खदानों के लिए दी जा रही अनुमति मानव–पशु संघर्ष को बढ़ावा देगी.

जिसकी चेतावनी वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने भी दी है.

कंपनी किसे मूर्ख बना रही है

अडानी कंपनी के साथ राजस्थान सरकार ने परसा ईस्ट केते बासन (पीईकेबी) में खनन के लिए समझौता किया था. पीईकेबी खदान का पहला चरण 2028 तक पूरा होना था. जिसमें से 140 मेट्रिक टन कोयला निकालना था. कंपनी केवल 80 मेट्रिक टन कोयला निकाल के बाद कोयला समाप्ति की घोषणा कर देती है. आपूर्ति में भी कमी कर देती है. सरकार और मीडिया दोनों माहौल बनाने लगते हैं कि देश में अंधेरा छाने वाला है. 

और अंत में तथाकथित सभ्य लोग हसदेव के निवासियों को उखाड़ फेंकने लिए तैयार मंडली में शामिल हो जाते हैं.

हरियाणा में 42 हजार मीट्रिक टन गेहूं सड़ा, बारिश में धान का भी यही हाल, 68 हजार क्विंटल स्टॉक गायब

देश के करीब 80 लाख गरीब लोगों के लिए सरकारी गोदामों में स्टोर किया गया गेहूं खराब हो गया है. हरियाणा के सरकारी गोदामों में लापरवाही के चलते पिछले दो साल में 42 हजार मीट्रिक टन गेहूं खराब हो चुका है. हरियाणा के सरकारी गोदाम खराब हो चुके गेहूं के बोरों से भरे पड़े हैं. खुले आसमान के नीचे रखे इन खराब गेहूं के बोरों को मीडिया की नजर से बचाने के लिए तिरपाल से ढक दिया गया है, लेकिन तिरपाल के अंदर रखे गेहूं के बोरों में पौधे तक उग आए हैं.

हरियाणा खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता विभाग का एक पत्र मीडिया में लीक हो चुका है, जिसमें खराब गेहूं को कौड़ियों के भाव बेच देने का जिक्र है. इस पत्र के अनुसार, कुरुक्षेत्र में 24624 मीट्रिक टन, कैथल में 11794 मीट्रिक टन, करनाल में 6587 मीट्रिक टन जबकि फतेहाबाद में 216 मीट्रिक टन ऐसा गेहूं है जो सड़ चुका है और उसे कौड़ियों के भाव नीलाम किया जा चुका है. एक एफसीआई के अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “ये सड़ा हुआ अनाज बड़ी बड़ी कंपनियों को एथॉनोल बनाने के लिए कौड़ियों के भाव देने के लिए ऐसा किया गया है. जो थोड़ा सही हालत में है उसे देसी शराब फैक्ट्रियों को दे देंगे.”

जानकारी के अनुसार, चार जिलों का कुल 42 हजार मीट्रिक टन गेहूं इस साल खराब हो चुका है. इस गेहूं को 5 किलो के हिसाब से सरकार गरीबों को बांटती तो इससे 70 लाख से ज्यादा लोगों को गेहूं मिल सकता था. यह घटना बताती है कि देश में अनाज का सरप्लस उत्पादन होने के बावजूद हम भुखमरी के इंडेक्स में 100 नंबर के बाद क्यों हैं? 

यही हाल प्रदेश में इस सीजन में धान की खरीद का है. अभी हाल के दिनों हुई बारिश ने प्रदेश भर की अनाज मंडियों में धान को नुकसान पहुंचाया है, जिससे मंडियों द्वारा की गई खरीद व्यवस्था का पर्दाफाश हो गया है. किसानों ने अपनी उपज में नमी की मात्रा अधिक होने के कारण नुकसान होने की आशंका व्यक्त की है.

किसानों ने कहा कि बेमौसम बारिश ने अनाज मंडियों में पड़े धान के ढेरों को भीगो दिया है और यह फसल की गुणवत्ता को भी प्रभावित कर सकता है.

अनाज ढकने के लिए बहुत कम प्लास्टिक शीट उपलब्ध
किसान अपनी उपज बेचने के लिए दो दिनों से मंडियों में डेरा डाले हुए हैं, लेकिन बारिश के कारण खरीद नहीं हो पा रही. धान पड़ा पड़ा मंडियों में भीग रहा है क्योंकि वहां बहुत कम प्लास्टिक की चादरें उपलब्ध हैं. आंकड़ों के अनुसार, विभिन्न एजेंसियों ने 58,57,696 क्विंटल धान की खरीद की है, जिसमें से केवल 42,28,840 क्विंटल (72 प्रतिशत) ही उठाया गया है.

किसान धान को ढकने के लिए प्लास्टिक शीट की कमी की शिकायत कर रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें घर से प्लास्टिक शीट लाने के लिए मजबूर किया जा रहा है.

करनाल के उपायुक्त अनीश यादव ने कहा कि सभी सचिवों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि आढ़तियों ने मंडियों में पड़े धान को तिरपाल से ठीक से ढक दिया है.

धान का स्टॉक 68000 क्विंटल कम पाया गया
करनाल की विभिन्न अनाज मंडियों में प्रॉक्सी खरीद के लिए फर्जी गेट पास जारी करने की खबरों के बीच मंगलवार को मुख्यमंत्री उड़न दस्ते की टीम ने जुंडला अनाज मंडी और विभिन्न चावल मिलों में छापेमारी की. दस्ते को करीब 68,000 क्विंटल धान स्टॉक में नहीं मिला है.

दक्षिण हरियाणा: बिजली ट्यूबवेल सिंचाई का किसानों और भूजल स्तर पर गहरा असर!

हरियाणा के बिसोहा गांव (रेवाड़ी जिला) निवासी दीपक पिछले 20 वर्षों से खेती में लगे हैं. वह खेतों में बिजली ट्यूबवेल द्वारा फुव्वारा तकनीक से सिंचाई करते हैं. गांव में खेतों की सिंचाई के लिए अन्य साधन उपलब्ध नहीं हैं. इसी कारण गांव में ज्यादातर किसान सिंचाई के लिए बिजली ट्यूबवेल का प्रयोग करते हैं. दीपक के मुताबिक बिजली ट्यूबवेल से सिंचाई का खर्चा कम पड़ता है. महीने में ट्यूबवेल द्वारा सिंचाई का खर्च 80 रूपए है, जो ज्यादा नहीं है. इसलिए वह सोलर पम्पसेट के बारे में नहीं सोच रहे.

दीपक बताते हैं कि खाली पड़ी जमीन भी ख़राब हो रही है और जमीन का अन्य प्रयोग भी नहीं हो रहा है. इसलिए ट्यूबवेल लगवाकर खेतों में सिंचाई करते हैं. जमीनी पानी भी लगातार खारा हो रहा है और नीचे जा रहा है लेकिन सिंचाई का साधन भी ट्यूबवेल ही है. यहां कोई नहर नहीं है. बिजली ट्यूबवेल से सिंचाई की लागत डीज़ल ट्यूबवेल की तुलना में कम आती है.

अहीरवाल में सिंचाई फुव्वारा तकनीक से ही होती है. गांव के सरपंच नितेश कुमार ने बताया कि फुव्वारा तकनीक द्वारा सिंचाई करने से लाइन बदलने के लिए मजदूर लगाने पड़ते हैं, जिस कारण सिंचाई का खर्च बढ़ जाता है यदि सिंचाई के लिए पानी अन्य स्रोतों द्वारा मिल जाए तो खेतों में खुली सिंचाई की जा सकेगी, जिससे अन्य कई खर्च (पाइपलाइन, मजदूरी आदि) बच जाएंगे.

इस इलाके में ज्यादातर किसान अपना जीवन चलाने के लिए खेती पर निर्भर हैं, लेकिन खेती से लगातार आय कम होती जा रही है. फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पाता तो फसलों की लागत भी पूरी नहीं होती. जब दीपक और बिसोहा के गांव वालों से प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (2015) के बारे में पूछा गया तो उन्हें इस योजना के बारे में नहीं पता था.

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत सरकार किसानों को खेत में सिंचाई करने के लिए उचित मात्रा में पानी उपलब्ध करवाने और सिंचाई उपकरणों के लिए सब्सिडी प्रदान करती है. सुनील कुमार शोधार्थी हैं और ग्रामीण एवं औद्योगिक विकास अनुसन्धान केंद्र चंडीगढ़ में काम कर चुके हैं. उनका शोध कार्य “खेती के कार्यो में बिजली के उपयोग” से संबधित है. सुनील कुमार से संबंधित विषय पर बात करने पर उन्होंने बताया कि पेट्रोल तथा डीजल से सिंचाई की लागत ज्यादा है, जिस कारण फसलों की उत्पादन लागत बढ़ती है. सिंचाई लागत कम होने की वजह से किसान बिजली टूबवेल की तरफ ज्यादा रुझान कर रहे हैं, जिससे किसानों के उत्पादन एरिया में भी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन उत्पादित फसल चक्र में परिवर्तन नकारात्मक हो रहा है. किसान गहन सिंचाई की फसलों जैसे धान और गेहूं से कम गहन सिंचाई (कम सिंचाई) की फसलों सरसों, बाजरा आदि की तरफ आ रहे हैं, लेकिन बिजली टूबवेल की तरफ ज्यादा रुझान का विपरीत प्रभाव यह हो रहा है कि भूजल ज्यादा प्रयोग होने की वजह से भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है. किसानों को अपने ट्यूबेल पम्प सेट ज्यादा गहरे करवाने पड़ रहे हैं जिससे पम्प सेट की लगता में बढ़ोतरी हो रही है.

देश में भूजल स्तर लगातार कम हो रहा है. डाउन-टू-अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय जल शक्ति व सामाजिक न्याय मंत्री रतन लाल ने मार्च 2020 में संसद में जानकारी दी कि किसान 2001 में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1816 घनमीटर थी, जो साल 2021 में 1488 घनमीटर रही और साल 2031 में काम होकर 1367 घनमीटर हो सकती है.

हरियाणा सरकार की रिपोर्ट के अनुसार “हरियाणा के कृषि योग्य भूमि की सिंचाई नहर, डीजल तथा बिजली ट्युबवेल्स आदि के माध्यम से की जाती है. हरियाणा में सिंचित कृषि क्षेत्र का 1154 हजार एकड़ भूमि नहरों द्वारा तथा 1801 हजार एकड़ भूमि टुबवेल्स द्वारा सिंचित किया जाता है. हरियाणा में कुल 821399 बिजली ट्यूबवेल्स तथा डीजल पंप सेट हैं जिसमें 275211 डीजल पंप से तथा 546188 बिजली पंप सेट हैं. रेवाड़ी जिले की बात की जाए तो यहां कुल 13605 ट्यूबवेल तथा पंपसेट हैं जिसमें 3311 डीजल और 10294 बिजली ट्यूबवेल पंपसेट हैं.

मौसम अनुसार फसलों की पैदावार

बिसोहा निवासी दीपक कहते हैं कि खरीफ (ग्रीष्म काल) के मौसम में कपास तथा बाजरा और रबी (शीत काल) मौसम में गेहूं तथा सरसों की फसलों का उत्पादन करते हैं. एक एकड़ में गेंहू की पैदावार 50 से 55 मण (1मण=40 किलोग्राम) है, एक एकड़ में सरसों की पैदावार 20 से 25 मण है, एक एकड़ में बाजरा की पैदावार 20 से 22 मण है, खरीफ की फसलों में 1 से 2 बार सिंचाई करते हैं तथा रबी की फसल सरसों में 2 से 3 बार और गेहूं की फसल में 5 से 7 बार सिंचाई करते हैं, यदि समय पर बारिश हो जाए तो ट्यूबवेल द्वारा 1 या 2 सिंचाई कम करनी पड़ती है. बिसोहा से लगभग 35 किलोमीटर दूर मीरपुर निवासी हरि सिंह अपने खेतों में गेहूं और बाजरा की पैदावार करते हैं. गेहूं में सरसो, बाजरा तथा कपास की तुलना में ज्यादा सिंचाई की जरूरत पड़ती है. एक एकड़ में गेहूं की पैदावार लगभग 38-40 मण (1 मण=40 किलोग्राम) और बाजरा की पैदावार लगभग 18-20 मण होती है.

डॉ अजय कुमार एग्रीकल्चर डेवलपमेंट ऑफिसर महेन्द्रगढ़ ने बताया कि मिट्टी में सॉइल आर्गेनिक कॉम्पोनेन्ट की कार्बन संरचना होती है जिससे मिट्टी की उपजाऊपन बना रहता है, खारा पानी, रासायनिक खाद, फसल चक्रण आदि से सॉइल आर्गेनिक कम्पोनेंट का अनुपात कम होता जा रहा है. ग्रामीण जनसंख्या की कृषि पर ज्यादा निर्भरता तथा साधन उपलब्धता के कारण फसल चक्रण के बीच अंतर कम होता जा रहा है. पहले किसान फसल चक्र के बीच अंतर करते थे जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति ठीक बनी रहती थी, साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से तापमान में जो वृद्धि हो रही है, वह भी फसलों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है. जैसे मार्च 2022 में हीट वेव (ज्यादा तापमान) के कारण गेहूं की पैदावार में 15% से ज्यादा की कमी आयी है.

खारा (नमकीन) पानी और रासायनिक खाद का खेती पर प्रभाव

राजेश कुमार एक एकड़ गेहूँ 70 से 75 किलोग्राम और सरसो में 50 किलोग्राम तथा बाजरा में 25 से 30 किलोग्राम रासायनिक खाद का प्रयोग करते हैं. वह बताते हैं, “रासायनिक खाद के ज्यादा प्रयोग के कारण मिट्टी की पैदावार भी कम हो रही है. देसी खाद (गोबर की खाद) जमीन को तो ठीक रखता है, लेकिन उससे पैदावार पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता. रासायनिक खाद जमीन को तो ख़राब कर रहा है, पर पैदावार पर देसी खाद की तुलना में ज्यादा असर डालता है.”

कृषि विज्ञान केंद्र झज्जर (हरियाण) से संदर्भित विषय में सम्बंधित जानकारी लेने पर उन्होंने बताया कि रेवाड़ी से लगते हुए झज्जर का दो तिहाई पानी खारा (नमकीन) हो गया है, जिससे मिट्टी लवणीय (कैल्सियम, मैग्निसियम और सल्फेट आयन की अधिकता) होती जा रही है. फसल चक्र में रबी सीजन में गेहूं तथा खरीफ सीजन में पेड्डी चावल, बाजरा तथा कपास की फसलों का उत्पादन किया जाता है. रासायनिक खाद का प्रयोग खेत की मिट्टी को कृषि विज्ञान केंद्र की लैब में चेक करवा के करना चाहिए लेकिन ज्यादातर किसान आपस में एक दूसरे से बात करके रासायनिक खाद का प्रयोग करते हैं.

अस्सिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.नवीन कटारिया ने बताया कि दक्षिणी हरियाणा की जमीन में फसल उत्पादन के आवश्यक तत्व (जिंक, कॉपर, मैंगनीज, आयरन,कॉपरआदि) कम मात्रा में पाए जाते हैं इसके साथ-साथ भूजल में फलोरिड, नमक की मात्रा ज्यादा है इसलिए फसल उत्पादन लगातार कम हो रहा है. जिस कारण किसानों को लगातार ज्यादा रासायनिक खाद का प्रयोग करना पड़ रहा है. जो रसायनिक खाद नाइट्रोजन फॉस्फोरस और पोटैशियम के आदर्श अनुपात (4:2:1) से ज्यादा है. फलोरिड और नमक युक्त भूजल दक्षिण हरियणा के जन मानस को भी बहुत ज्यादा प्रभावित कर रहा है, क्योंकि वहां के लोग पेय जल के रूप में भी इसी पानी का उपयोग करते हैं, जिससे मुख्यत दांतों की बीमारी दांतो का पीला पड़ना देखा जा सकता है.

हरियाणा का भूजल स्तर

बिसोहा निवासी हरीश ने 15 वर्ष पहले 150 फीट गहराई में ट्यूबवेल लगवाया था. पहले पांच वर्षों तक अच्छे से पानी चला लेकिन बाद में टूबवेल पानी छोड़ने लगा फिर ट्यूबवेल को दो बार 20- 20 फीट गहरा किया जा चुका है, लेकिन भूजल लगातार नीचे जाने की वजह से अब एक एकड़ फसल की सिंचाई के लिए दो-तीन बार ट्यूबवेल को चलना और बंद करना पड़ता है. जमीन में पानी इकट्ठा हो सके और खेत की सिंचाई पूरी हो सके, इसके लिए 3 किला (एकड़) जमीन की सिंचाई में एक सप्ताह का समय लग जाता है. फसलों को समय पर पानी नहीं मिलने से फसलों की पकावट अच्छी नहीं हो पाती है. जिस कारण खेतो में कुल पैदावार भी कम होती है.

डॉ अजय कुमार के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश होने की प्रवृति बदल रही है. मानसून स्तर में पहले बारिश लगातार होती रहती थी लेकिन अब कभी बहुत ज्यादा और कभी कई दिनों तक बारिश नहीं होती है, जिससे जमीनी पानी का रिचार्ज नहीं हो पाता है. महेन्द्रगढ़ तथा उसके आसपास के एरिया का पानी प्रतिवर्ष 1 मीटर से 3 मीटर तक नीचे जा रहा है, और पानी खारा (नमकीन) हो रहा है. पानी में फ्लोरिड की मात्रा भी बढ़ती जा रही है, इसके कई कारण है जैसे इंडस्ट्रीज से निकलने वाला पानी, ज्यादा फर्टीलिज़ेर का प्रयोग आदि है.

डॉ.नवीन कटारिया ने बताया कि लगातार पानी का उपयोग करने तथा दक्षिण हरियाणा की वातावरणीय पारिस्तिथि शुष्क और रेतीली जमीन होने की वजह से यहां बारिश भी कम मात्रा में होती है, जिससे जमीन से निकलने वाले पानी की पूर्ति वापिस बारिश के पानी से पूरी नहीं हो पाती है. पहले भूजल की पूर्ति गांव में तालाब और जोहड़ों से भी हो जाती थी लेकिन अब गांव में तालाब और जोहड़ लगभग सूख चुके हैं. भूजल में फ्लोराइड के ज्यादा होने के कई कारण हो सकते हैं, दक्षिणी हरियाणा में मुख्य वजह चट्टानों का घुलना है, यह बारिश और भूजल के कारण हो रहा है. कई चट्टानों में फ्लोराइड, एपेटाइट और बिओटिट आदि की मात्रा ज्यादा होती है. इन चट्टानों के अपक्षय (घुलना) से भूजल में फ्लोराइड की मात्रा बढ़ जाती है. खेतों में फसल उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रयोग किये जाने वाले ज्यादा रासायनिक खाद (फॉस्फेट फर्टिलिसेर) से भी फ्लोराइड बढ़ता है.

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की रिपोर्ट के अनुसार “सामान्य मानसून लंबी अवधि का औसत 2005 से 2010 में सामान्य मानसून वर्षा की LPA दर 89.04 सेन्टीमीटर थी, जो 2011 से 2015 के बीच कम होकर 88.75 सेन्टीमीटर तथा 2018 से 2021 के बीच और भी कम होकर 88.6 सेन्टीमीटर हो गया है.”

कृषि विज्ञान केंद्र झज्जर से मिली जानकारी के अनुसार रेवाड़ी जिले से लगे हुए झज्जर जिले में चोवा (जमीनी पानी की उपलब्धता) 20-30 फीट है, लेकिन वह पानी खरा (नमकीन) है, जो किसी उपयोग लायक नहीं है. खेतो में सिंचाई तथा अन्य उपयोग के लिए अच्छे भूजल 80-100 फ़ीट की गहराई पर मिलता है.

पोस्ट ग्रेजुएट गवर्नमेंट कॉलेज तोशाम तथा बिहार सरकार के जीआईएस विभाग में काम कर चुके असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ वीरेंदर सिंह ने बताया कि रेवाड़ी तथा झज्जर भूजल स्तर की उपलब्धता में अन्तर का मुख्य कारण यह है कि रोहतक और झज्जर जिले में पानी के नहरी व्यवस्था अच्छी है, जिससे जमीन को लगातार पानी मिलता रहता है तथा नहरों के पानी रिसाव से भूजल रिचार्ज होता रहता है. इसी कारण यहां पर जलभराव की समस्या भी हो जाती है जबकि रेवाड़ी में नहरी व्यवस्था अच्छी नहीं है. दक्षिणी हरियाणा मुख्यत रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़ और मेवात में रेतीली जमीन होने के साथ-साथ पहाड़ी इलाका है. जबकि रेवाड़ी के साथ लगते झज्जर जिले में जमीन मिट्टी युक्त है.

रेवाड़ी में नहरी व्यवस्था अच्छी नहीं है. दक्षिणी हरियाणा की भूगर्भिक संरचना हरियाणा के अन्य भाग से अलग होने की वजह से रोहतक, झज्जर का भूजल भी रेवाड़ी महेन्द्रगढ़ की तरफ नहीं जा पता है, जिस कारण जमीन को पानी भी कम मिल पाता है, जिससे भूजल स्तर लगातार गहरा हो रहा है.

मोंगाबे की रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा के करीब 25.9 प्रतिशत गांव गंभीर रूप से भूजल संकट से जूझ रहे हैं, इसी तरह की स्थिति उतर प्रदेश और बिहार में बन रही है. हरियाणा जल संसाधन प्राधिकरण (HWRA) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार हरियाणा के 319 गांव संभावित जल भराव वाले गांव हैं, जिनमें जल स्तर की गहराई 1.5 से 3 मीटर तक है हरियाणा में 85 गांव ऐसे हैं जो गंभीर रूप से जलजमाव से जूझ रहे हैं, जहां जल स्तर की गहराई 1.5 मीटर से कम है.

(यह स्टोरी स्वतंत्र पत्रकारों के लिए नेशनल फाउंडेशन फ़ॉर इंडिया की मीडिया फेलोशिप के तहत रिपोर्ट की गई है.)