छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार का अडानी प्रेम ‘हसदेव वन’ में तांडव मचा रहा है!

“अध्यक्ष महोदय, सालों पहले फैमिली प्लानिंग का एक नारा था – “हम दो हमारे दो”. जैसे कोरोना दूसरे रूप धारण कर आता है वैसे ही यह नारा दूसरा रूप धारण कर आया है, आज इस देश को 4 लोग चलाते हैं ‘हम दो और हमारे दो’. यह किसकी सरकार है? पीछे से कई लोगों की आवाज आती है–मोदी, अमित शाह और अडानी व अंबानी की”.
फरवरी 2021 में क्रोनी कैपिटलिस्ट के विरुद्ध यह रणभेरी आवाज भारत की सबसे बड़ी पंचायत में गूंज रही थी. यह आवाज कांग्रेस के आलाकमानी नेता राहुल गांधी की थी.
लेकिन जिस अडानी का विरोध राहुल गांधी सदन में कर रहे थे, नेपथ्य में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार उसी अडानी का हाथ मजबूत करने में लगी हुई थी.
जिसका पता राहुल गांधी को भी था. 23 मई को, विदेश में हसदेव को बचाने से जुड़ा प्रश्न पूछने पर श्री गांधी ने बताया कि वो इस मुद्दे पर काम कर रहे हैं और इसका परिणाम आपको जल्द दिखेगा. कुछ दिन बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री एक बयान में हसदेव की तीनों खदानों पर रोक लगा देने की बात करते हैं.
इसके बाद मीडिया में आदिवासी हितेषी और जुबान के पक्के होने की खूब सुर्खियां बटोरी जाती हैं.
ट्वीट लिंक
7 सितंबर को जब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भारत के दक्षिणतम छोर पर राहुल को तिरंगा सौंप भारत जोड़ो यात्रा का बिगुल फूंक रहें थे. उसी 7 सितंबर को छत्तीसगढ़ में उनकी पुलिस उस यात्रा के मकसद का मखौल उड़ा रही थी. हसदेव के स्थानीय निवासियों की चीत्कार (वन को बचाने के लिए) को अनसुना कर हसदेव वन को उजाड़ने का काम कर रही थी.
वनों का यह सफाया ग्राम सभा की अनुमति के बिना किया जा रहा है. पुलिस के द्वारा कई लोगों को हिरासत में लिया गया है. पेड़ों की यह कटाई परसा ईस्ट केते बासेन खदान के दूसरे चरण के लिए हो रही है.
बयानों से पहली बार मुंह नहीं मोड़ा है. वर्ष 2015 में राहुल गांधी हसदेव वन में बसे मदनपुर गांव गए थे. वहां श्री गांधी ने वादा किया कि कांग्रेस आपके साथ खड़ी है, आपकी लड़ाई लड़ेगी.
वर्ष 2018 में कांग्रेस दल की सरकार बनने के बाद हसदेव वन को बचाने के लिए एक कदम भी नहीं उठाया गया. उल्टा कई और खदानों के लिए अडानी की कंपनी के साथ एमडीओ (माइन डेवलपर एंड ऑपरेटर) कर दिया.

कहां बसा है हसदेव
छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तरी इलाके में करीब 1750 वर्ग किलोमीटर में फैला गहरे वनों का क्षेत्र है. जो मध्यप्रदेश के कान्हा वन क्षेत्र से झारखंड के पलामू वन क्षेत्र के बीच वन गलियारे का निर्माण करता है.
यहां से हसदेव नदी बहती है. हसदेव वन उसी नदी के संभरण (केचमेंट) क्षेत्र का निर्माण करता है.
हसदेव अरण्य वन का पूरा मामला क्या है?
छत्तीसगढ़ में कोयले का भंडार है. जिसे कुछ लोग विकास की आड़ लेकर हड़पना चाहते हैं. ऐसा ही हसदेव के मामले में हो रहा है.
यूपीए की सरकार वर्ष 2007 में हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में 20 के करीब कोयला खदान चिन्हित करती है. 2008 में परसा ईस्ट केते बासन खदान राजस्थान सरकार के उपक्रम राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड को आवंटित करती है. यह उपक्रम माइन खनन और संचालन के लिए अडानी की कंपनी के साथ समझौता करती है.
वर्ष 2010 में भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय द्वारा हसदेव की जैव संपदा को देखते हुए हसदेव वन क्षेत्र को “नो गो जोन” इलाका घोषित कर दिया जाता है.
कंपनी के दबाव में, वर्ष 2011 में तत्कालीन मंत्री जयराम रमेश परसा ईस्ट केते बासन खदान में खनन की अनुमति देते हैं. यह अनुमति विशेषज्ञ समिति की सिफारिश से विपरीत थी.
“इस कोल ब्लॉक का खनन दो चरणों में किया जाना था. अभी इसके दूसरे चरण के लिए वनों की कटाई की जा रही है.”
इस निर्णय को सुदीप श्रीवास्तव द्वारा एनजीटी में चुनौती दी जाती है. मार्च 2014 में एनजीटी जयराम रमेश के फैसले को खारिज कर देता है.
अप्रैल 2014 में सर्वोच्च न्यायालय उस एनजीटी के फैसले पर रोक लगा देता है.
*इसी रोक के बूते अडानी की कंपनी कोयला बेचती रही.*
दिसंबर 2014, में ग्राम सभाएं वन अधिकार अधिनियम, 2006 का प्रयोग करते हुए खनन के विभाग्य प्रस्तावों का विरोध करती हैं.
यह कसमकस लंबी चलती है. धनबल और भुजबल का पूरा प्रयोग किया जाता है.
फर्जी तरीके से ग्राम सभा की सहमति ले ली जाती है.
अब कलेक्टर Noc (अनापत्ति प्रमाणपत्र) जारी करता है.
राज्य सरकार के पास में वन अधिकार अधिनियम की धारा 2 के तहत वन कटाई का अधिकार आ जाता है.
कलेक्टर के द्वारा जारी NOC के खिलाफ गावों के लोग राज्यपाल के पास जाते हैं.

राज्यपाल मुख्य सचिव को जांच की अनुमति देते है.
कलेक्टर साहब काउंटर करने के लिए कुछ लोगों को इकट्ठा कर कंपनी के साथ खड़ा कर देते हैं.
राज्यपाल अनुसुइया उईके हसदेव के निवासियों से मिलकर फर्जी ग्राम पंचायतों की जांच के लिए पत्र लिखती हैं.
23 दिसंबर, 2021 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति ने पीईकेबी के दूसरे फेज को शुरू करने के पक्ष में अनुसंशा की.
पहले फेज का काम मार्च 2022 में पूरा हो जाता है.
25 मार्च को भूपेश बघेल और अशोक गहलोत मिलते है. सहमति बन जाती है.
26 अप्रैल को रात्रि 3 बजे पेड़ काटने शुरू करते है. आदिवासी अपना कठोरी त्योहार मना रहे थे.
हवाला दिया गया कि पेड़ो की कटाई कॉल एक्ट 1957 के तहत की गई है. अगर उस कानून के तहत करना था तो फिर रात में क्यों?
स्मरणीय है पांचवी अनुसूची वाले क्षेत्र में वन अधिकार अधिनियम 2006 लागू है. वहां 1957 के उस कानून की कोई प्रासंगिकता नहीं है.
हाईकोर्ट की लताड़ और जनसमूह के दबाव में पेड़ों की कटाई कुछ समय के लिए रोक दी जाती है.

राहुल गांधी के विदेश में दिए गए बयान के बाद 7 जून को छत्तीसगढ़ सरकार में मंत्री और हसदेव क्षेत्र से विधायक टीएस सिंह देव धरना स्थल पर जाते हैं. धरना करीब 200 दिनों से हो रहा था. वहां मंत्री बाबा यह घोषणा करते है कि पहली गोली मैं खाऊंगा.
जवाब में मुख्यमंत्री बघेल कहते हैं कि टीएस सिंह की अनुमति के बिना एक डंगाल भी नहीं कटेगी.

27 जुलाई को छत्तीसगढ़ विधानसभा में अशासकीय प्रस्ताव पारित किया जाता है. प्रस्ताव हसदेव क्षेत्र में आबंटित सभी कोयला खदानें निरस्त करने का अनुरोध केंद्र सरकार से करता है. इसे भी सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया.
फिर अचानक जज्बात बदल दिया. 40 दिन बाद हसदेव के हरे भरे जंगलों में अडानी की मशीनें गूंज रही थी, बड़े–बड़े पेड़ गिर रहे थे.

राहुल गांधी और उनकी पार्टी जब आदिवासियों के हित में बोलती है तो कोरी लंतरानी ही लगती है. क्योंकि असल में वो भी उसी रास्ते पर चल रही है जिसमे लोगों को दर–ब–दर कर दिया जाता है, विकास के नाम पर.
हसदेव नहीं रहा तो क्या फर्क पड़ेगा?
हसदेव में कई कोल ब्लॉक्स चिन्हित किए गए हैं. अगर उन्हें सभी तरह की स्वीकृतियां मिल जाती हैं तो लाखों पेड़ धरती पर लेट जाएंगे. अशासकीय प्रस्ताव के अनुसार केवल परसा ईस्ट केते बासन के लिए करीबन तीन लाख पेड़ काटे जाएंगे.
हसदेव नदी और बांगो बांध में आने वाले पानी में रुकावट आ जायेगी.
केते खदान क्षेत्र के समीप में लेमरु हाथी रिजर्व है. इसके क्षेत्रफल को लेकर भी विवाद है. खदानों के लिए दी जा रही अनुमति मानव–पशु संघर्ष को बढ़ावा देगी.
जिसकी चेतावनी वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने भी दी है.
कंपनी किसे मूर्ख बना रही है
अडानी कंपनी के साथ राजस्थान सरकार ने परसा ईस्ट केते बासन (पीईकेबी) में खनन के लिए समझौता किया था. पीईकेबी खदान का पहला चरण 2028 तक पूरा होना था. जिसमें से 140 मेट्रिक टन कोयला निकालना था. कंपनी केवल 80 मेट्रिक टन कोयला निकाल के बाद कोयला समाप्ति की घोषणा कर देती है. आपूर्ति में भी कमी कर देती है. सरकार और मीडिया दोनों माहौल बनाने लगते हैं कि देश में अंधेरा छाने वाला है.
और अंत में तथाकथित सभ्य लोग हसदेव के निवासियों को उखाड़ फेंकने लिए तैयार मंडली में शामिल हो जाते हैं.
- Tags :
- अडानी
- कांग्रेस सरकार
- छत्तीसगढ़
- हसदेव वन
Top Videos

किसानों ने 27 राज्यों में निकाला ट्रैक्टर मार्च, अपनी लंबित माँगों के लिए ग़ुस्से में दिखे किसान

उत्तर प्रदेश के नोएडा के किसानों को शहरीकरण और विकास क्यों चुभ रहा है

Gig Economy के चंगुल में फंसे Gig Workers के हालात क्या बयां करते हैं?

Haryana में बाढ़ क्यों आयी? घग्गर नदी | मारकंडा नदी | टांगरी नदी
