नेशनल स्टैटिक्स ऑफिस द्वारा जारी आंकड़ो के मुताबिक अगस्त में रिटेल महंगाई दर बढ़कर 7 फीसदी हो गई है. वहीं जुलाई में रिटेल महंगाई दर 6.7% थी. एक साल पहले यानी अगस्त 2021 में रिटेल महंगाई दर 5.30 फीसदी थी. खाने-पीने का सामान खास तौर पर दाल-चावल, गेहूं और सब्जियों की कीमतों के बढ़ने की वजह से रिटेल महंगाई दर में बढ़ोतरी हुई है. वहीं अगस्त में फूड इन्फ्लेशन 6.69% से बढ़कर 7.62% हो गई है.
रिटेल महंगाई दर लगातार 8 महीनों से आरबीआई की 6% की ऊपरी लिमिट के पार है. जनवरी 2022 में रिटेल महंगाई दर 6.01%, फरवरी में 6.07%, मार्च में 6.95%, अप्रैल में 7.79%, मई में 7.04% और जून में 7.01% दर्ज की गई थी. साथ ही इंडस्ट्रियल ग्रोथ में भी गिरावट दर्ज की गई है. जुलाई में इंडस्ट्रियल ग्रोथ घटकर 2.4% रह गई. इस बीच जून में यह इंडस्ट्रियल ग्रोथ 12.3% थी जो घटकर 2.4 फीसदी पर सिमट गई है. वहीं सरकार ने गेहूं और चावल के निर्यात में कटौती के फैसले पर तर्क दिया है कि इस कदम से महंगाई पर काबू पाया जा सकेगा.
अनाज, दूध, फलों और मसालों में शहरी बाजारों की तुलना में ग्रामीण बाजारों में ज्यादा महंगाई दर रही है. अगस्त 2022 के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में अनाज की महंगाई दर बढ़कर 10.08 प्रतिशत हो गई, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 8.65 प्रतिशत थी. इसी तरह, ग्रामीण क्षेत्रों में फलों की महंगाई दर 8.67 प्रतिशत रही, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 5.98 प्रतिशत थी. ग्रामीण इलाकों में दूध और दुग्ध उत्पादों की महंगाई दर 6.67 फीसदी पर पहुंच गई, जबकि शहरी इलाकों में यह 6.05 फीसदी थी. ग्रामीण क्षेत्रों में मसालों की महंगाई दर 15.19 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों की 14.41 प्रतिशत से ज्यादा रही.
दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस ने महंगाई के खिलाफ हल्ला बोल रैली का आयोजन किया. रैली में दिल्ली से सटे हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश पंजाब और अन्य राज्यों से कांग्रेस कार्यकर्ता पहुंचे. वहीं अधिकतर कांग्रेसी नेता मंच से राहुल गांधी को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की मांग उठाते नजर आए. महंगाई के खिलाफ हल्ला बोल रैली में राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार जो तीन कृषि कानून लेकर आई थी वो किसानों के लिए नहीं थे तीनों कृषि कानून उद्योगपतियों के लिए लाए गए थे.
वहीं मीडिया को लेकर भी राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर निशाना साधा. राहुल गांधी ने कहा कि पूरा मीडिया दो उद्योगपतियों के हाथों में है. ये दो उद्योगपति नरेंद्र मोदी के लिए काम करते हैं और नरेंद्र मोदी इन दो उद्योगपतियों के लिए काम करते हैं.
राहुल ने कहा, “देश के संस्थानों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और एनजीओ पर आक्रमण हो रहे हैं. विपक्ष के सामने जनता के बीच जाने के सिवाये कोई रास्ता नहीं बचा है. हमें अब सीधा जनता के पास जाना पड़ेगा. हम जनता के बीच जाकर देश की सच्चाई बताने का काम करेंगे.”
उन्होंने कहा, “अगर हम आज खड़े नहीं हुए तो यह देश नहीं बचेगा. यह देश हिंदुस्तान के गरीब लोगों का देश है यह दो उद्योगपतियों का देश नहीं है. मोदी की विचारधारा देश को बंटकर चंद लोगों को फायदा पहुंचाने की है इसके उलट हमारी विचारधारा गरीब, मजदूर तक मदद पहुंचाने की है. यूपीए ने अपने समय में किसानों को 70 हजार करोड़ दिया मोदी ने तीन काले कानून दिये. हमने मजदूरों को मनरेगा दिया मोदी ने नाम बदलकर नरेगा दिया. हम जमीन अधिग्रहण बिल लेकर आए. लाखों किसान करोड़पति बनाए लेकिन मोदी ने सत्ता में आते ही भूमि अधिग्रहण कानून खत्म करने की कोशिश की.”
राहुल ने कहा, “हमने 27 करोड़ लोगों को गरीबी से निकाला. भोजन का अधिकार दिया, शिक्षा का अधिकार दिया, रोजगार की गारंटी देकर 27 करोड़ लोगों को गरीबी से निकाला लेकिन मोदी ने सत्ता में आने के बाद 23 करोड़ लोगों को गरीबी में डाल दिया. मोदी देश को पीछे ले जा रहे हैं. देश में नफरत और डर फैला रहे हैं. पिछले 8 साल में मोदी ने देश को कमजोर करने का काम किया है पिछले 40 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है. हम नफरत मिटाते हैं जब नफरत कम होती है तो देश आगे बढ़ता है.”
आज से जीएसटी की नई दरें लागू हो गई हैं. पिछले महीने चंडीगढ़ में हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में जीएसटी दरें बढ़ाने का फैसला लिया गया था जिसके चलते हर रोज प्रयोग में आने वाले खाद्य पदार्थ मंहगे हो गए हैं. खाद्य पदार्थों की बढ़ी हुई कीमतें आज से लागू हो गई हैं. मंहगे होने वाले पदार्थों में दही, लस्सी, पनीर, आटा और चावल समेत कईं जरुरत की चीजें शामिल हैं.
दरअसल ये जरुरी खाद्य पदार्थ पहले जीएसटी के दायरे से बाहर थे लेकिन सरकार ने अब इन जरूरी चीजों पर भी पांच फीसदी जीएसटी (माल एवं सेवा कर) लगा दिया है जिसका सीधा असर जनता की जेब पर पड़ेगा.
GST काउंसिल की बैठक में दूध से बने सामान को पहली बार माल एवं सेवा कर के दायरे में शामिल किया गया था. टेट्रा पैक वाले दही, लस्सी और बटर मिल्क पर 5 फीसदी जीएसटी लगाने का फैसला किया गया है इतना ही नहीं अनब्रांडेड प्री-पैकेज्ड और प्री लेबल आटा और दाल पर भी 5% जीएसटी लगेगा.
प्रिंटिंग/राइटिंग या ड्रॉइंग इंक, एलईडी लाइट्स, एलईडी लैम्प पर 12 फीसद की जगह 18 फीसद जीएसटी देना होगा वहीं मैप, एटलस और ग्लोब पर 12 फीसद जीएसटी देना होगा.
ब्लेड, चाकू, पेंसिल शार्पनर, चम्मच, कांटे वाले चम्मच, स्किमर्स आदि पर जीएसटी 12% से बढ़ाकर 18% कर दिया गया है.
साथ ही होटल में रुकना और अस्पताल में ईलाज करवाना भी मंहगा हो गया है. अस्पताल में 5 हजार रुपए प्रतिदिन से अधिक का रूम पर 5% की दर से जीएसटी देना होगा. उदाहरण के तौर पर 5500 रुपये के रूम के लिए अब 5775 रुपये देने होंगे वहीं आईसीयू, आईसीसीयू रूम पर छूट जारी रहेगी. वहीं अब तक एक हजार से कम के होटल रूम पर GST नहीं लगता था, लेकिन अब एक हजार से कम किराये वाले रूम में रुकने के लिए भी 12% की दर से GST देना होगा.
GST कलेक्शन जून में बढ़कर 1.45 लाख करोड़ रुपए हो गया. GST कलेक्शन में पिछले साल की तुलना में ये 56% की बढ़ोतरी है वहीं मई के महीने में GST कलेक्शन 1.41 लाख करोड़ रुपए रहा.
केंद्र सरकार बेशक से बढ़ती महंगाई के लिए रूस यूक्रेन युद्ध, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और सप्लाई चैन में बाधाएं जैसे वैश्विक कारणों को जिम्मेदार ठहरा रही हो, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार 27 मई 2022 को जारी की गई अपनी सालाना रिपोर्ट में बढ़ती महंगाई के पीछे इन वैश्विक कारणों का योगदान बहुत कम बताया है.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि थोक महंगाई दर एक साल से भी अधिक समय से लगातार दहाई अंकों में बनी हुई है. जिसका असर खुदरा महंगाई दर पर भी पड़ने का खतरा है.
थोक मूल्य सूचकांक (होलसेल प्राइस इंडेक्स) थोक पर वस्तुओं की औसत कीमतों में परिवर्तन को दर्शाता है. इस के अंतर्गत बड़ी कंपनियों और संस्थाओं में होने वाले व्यापारिक लेनदेन की गतिविधियों की गणना की जाती है. ऐसे में जब थोक महंगाई में इज़ाफा होगा तो जाहिर है खुदरा महंगाई पर भी इस का असर पड़ेगा.
रिज़र्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में बढ़ती महंगाई पर सेंसटिविटी एनालिसिस (संवेदनशील विश्लेषण) किया. इस विश्लेषण में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी (वस्तुओं) की कीमतों के बढ़ने का खुदरा महंगाई पर मामूली असर होता है. खुदरा महंगाई पर थोक महंगाई का असर ज्यादा है.
रिज़र्व बैंक की सेंसटिविटी एनालिसिस में अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी के दाम एक फ़ीसदी बढ़ते हैं तो खुदरा महंगाई दर पर उसका असर सिर्फ 0.02% ही होता है. वहीँ थोक महंगाई अगर एक फ़ीसदी बढ़ती है तो खुदरा महंगाई पर उसका असर 0.26 फ़ीसदी पड़ता है.
यह विश्लेषण बताता है कि खुदरा महंगाई पर अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में थोक महंगाई का असर अधिक होता है. यानी सप्लाई की दिक्कतें, टैक्स तथा अन्य स्थानीय कारण खुदरा बाजार में दाम बढ़ाने में ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
खुदरा महंगाई पिछले महीने आठ साल में सबसे ऊंचे स्तर 7.79% पर पहुंच गई थी. रिजर्व बैंक को खुदरा महंगाई 2% से 6% के बीच रखनी होती है लेकिन बीते चार महीने से यह लगातार 6% से ऊपर ही बनी हुई है. वहीँ अप्रैल में, ईंधन से लेकर सब्जी और खाना पकाने के तेल सभी की बढ़ती कीमतों की वजह से थोक महंगाई 15.08% के नए रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुंच गई थी.
रिज़र्व बैंक के इस विश्लेषण से यह साफ है कि सरकार सप्लाई की दिक्कतें दूर करने में नाकाम रही है जिसकी वजह से खुदरा महंगाई लगातार आसमान छू रही है.
लेकिन इन सब के बावजूद केंद्र सरकार महंगाई को नियंत्रित करने में वैश्विक कारणों को अधिक जिम्मेदार बताती है जबकि उनकी अपनी भूमिका को वह दरकिनार कर रही है.
याद हो तो लागत को नियंत्रण से बाहर होने से बचाने के लिए ही सरकार ने हाल ही में पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क कम कर दिया था. साथ ही स्टील और प्लास्टिक उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले कई कच्चे माल पर आयात शुल्क को माफ कर दिया गया था. इसके अलावा, आयरन ओर (लोह अयस्क) और आयरन पेलेट्स पर निर्यात शुल्क बढ़ाया गया, गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया, चीनी निर्यात को मुक्त से रेस्ट्रिक्टेड कैटेगरी में डाला गया और दो साल तक 20-20 लाख टन क्रूड सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल (सूरजमुखी तेल) आयात पर ड्यूटी न लगाने का फैसला किया है.
कई शहरों में प्याज की खुदरा कीमतें अब भी 120 रुपये प्रति किलोग्राम के ऊपर चल रही हैं। सरकार ने प्याज की जमाखोरी पर अंकुश लगाने के लिए व्यापारियों पर छापेमारी के अलावा, थोक व्यापारियों की भंडारण सीमा (स्टॉक लिमिट) 500 से घटाकर 250 क्विंटल और खुदरा विक्रेताओं की सीमा 100 से घटाकर 20 क्विंटल कर दी है। पिछले दिनों केंद्रीय खाद्य मंत्री ने प्याज की बढ़ी कीमतों को काबू करने में विवशता भी जाहिर की थी।
केंद्रीय कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में प्याज उत्पादक राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ इस विषय पर चर्चा कर निर्णय लिए जा रहे हैं। केंद्र सरकार ने कीमतों को काबू करने के लिए 1.2 लाख टन प्याज आयात करने का निर्णय लिया है। इसमें से मिस्र, तुर्की आदि देशों से लगभग 50 हजार टन प्याज आयात के सौदे किए जा चुके हैं। यह प्याज धीरे-धीरे देश में आ रही है, परन्तु देश की लगभग 60 हजार टन प्रति दिन की मांग के सापेक्ष यह बहुत कम है। प्याज की कम आवक, जरूरत से कम आयात और इसमें देरी के कारण प्याज के दाम बेकाबू हैं। इस विषय में कृषि मंत्री ने भी संसद को बताया कि देश में खरीफ की प्याज का उत्पादन आशा से लगभग 16 लाख टन कम रहा हैं।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष नवंबर में खुदरा महंगाई दर 5.54 प्रतिशत पर पहुंच गई जो पिछले 40 महीनों का सबसे उच्चतम स्तर है। इसका मूल कारण खाद्य पदार्थों विशेषकर सब्ज़ियों की महंगाई दर बढ़ना बताया गया है। इसी साल कुछ माह पहले इन सब्जियों को किसान कम कीमत मिलने के कारण सड़कों पर फेंकने की लिए मजबूर हुए थे।
प्याज उत्पादक राज्यों में विलंब से आये मानसून और फिर अत्यधिक बारिश के कारण देश में खरीफ की प्याज का रकबा भी पिछले साल के लगभग तीन लाख हेक्टेयर के मुकाबले इस साल लगभग 2.60 लाख हेक्टेयर रह गया। खरीफ की प्याज का उत्पादन भी पिछले साल के 70 लाख टन के मुकाबले 53 लाख टन रहने का अनुमान है। देश में सबसे ज्यादा, लगभग एक-तिहाई प्याज का उत्पादन करने वाले राज्य महाराष्ट्र में नवंबर में प्याज की आवक पिछले साल के 41 लाख टन के मुकाबले घटकर 24 लाख टन रह गई। इस कारण अब प्याज की कीमतें नई फसल आने पर जनवरी में ही कुछ कम हो पाएंगी।
तमाम कोशिशों के बावजूद आखिर सरकार सब्जियों की कीमतों को नियंत्रित रखने और उपभोक्ताओं के साथ-साथ किसानों के हितों की रक्षा करने में बार-बार नाकाम क्यों होती है? 2018-19 में देश में 18.6 करोड़ टन सब्जी उत्पादन हुआ है। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के मोदी सरकार के लक्ष्य में बागवानी फसलों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इन फसलों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने अपने बजट में भी कई योजनाएं शुरू की हैं। सब्जियों में मात्रा के लिहाज से आधा उत्पादन आलू, प्याज और टमाटर का ही होता है और ये सबसे ज़्यादा उपयोग की जाने वाली सब्ज़ियाँ हैं। सब्ज़ियों में आलू सबसे बड़ी फसल है, जिसका 2108-19 में 530 लाख टन उत्पादन हुआ। इसी तरह प्याज का उत्पादन इस वर्ष 235 लाख टन और टमाटर का उत्पादन 194 लाख टन रहा।
इन तीनों फसलों का ही देश की घरेलू मांग से ज्यादा उत्पादन हो रहा है और हम इन फसलों के निर्यात की स्थिति में हैं। गत वर्ष प्याज का 22 लाख टन निर्यात कर हम विश्व के सबसे बड़े प्याज निर्यातक थे। तो ऐसा क्या हुआ कि अब उसी प्याज को देश मंहगे दामों पर आयात करने के लिए मजबूर है। आलू, प्याज और टमाटर की कीमतों के स्थिरकरण हेतु सरकार ने पिछले साल 500 करोड़ रुपये की ‘ऑपरेशन ग्रीन्स टॉप’ (टोमैटो, अनियन, पोटैटो) योजना भी शुरू की थी। इसका मूल उद्देश्य एक तरफ उपभोक्ताओं को इन सब्जियों की उचित मूल्य पर साल भर आपूर्ति सुनिश्चित करना और दूसरी तरफ किसानों को लाभकारी मूल्य दिलाना था।
जाहिर है कि सरकार को इसके लिए और कदम भी उठाने होंगे। सबसे पहले तो हमें इन फसलों के उचित मात्रा में खरीद, भंडारण एवं वितरण हेतु शीतगृहों तथा अन्य आधारभूत आधुनिक संरचना (इंफ्रास्ट्रक्चर) का इंतज़ाम करना होगा। हमारे देश में लगभग 8 हजार शीतगृह हैं, परंतु इनमें से 90 प्रतिशत में आलू का ही भंडारण किया जाता है। यही कारण है कि आलू की कीमतों में कभी भी अप्रत्याशित उछाल नहीं आता।
टमाटर का लंबे समय तक भंडारण संभव नहीं है परन्तु अच्छी मात्रा में प्रसंस्करण अवश्य हो सकता है। प्याज के भंडारण को भी बड़े पैमाने पर बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के हितों को संरक्षित किया जा सके। जब फसल आती है उस वक्त सरकार इन सब्जियों को खरीद कर एक बफर स्टॉक भी तैयार कर सकती है ताकि बाज़ार में इनकी आपूर्ति पूरे साल उचित मूल्यों पर बनाई रखी जा सके और किसान स्तर पर कीमतें अचानक ना गिरें।
केंद्र सरकार ने इस साल प्याज का 57 हजार टन का बफर स्टॉक तो बनाया था परन्तु यह स्टॉक देश की केवल एक दिन की मांग के बराबर ही था। इसमें से भी आधे से ज्यादा प्याज खराब हो गई। हर साल प्याज की आसमान छूती कीमतों की समस्या से देश जूझता है, अतः मांग के सापेक्ष हमें प्याज का कम से कम 10 लाख टन का बफर बनाना होगा।
दूसरा, इन तीनों सब्ज़ियों का बड़े पैमाने पर प्रसंस्करण करने हेतु उद्योग स्थापित करने होंगे। अभी आलू की फसल का केवल 7 प्रतिशत, प्याज का 3 प्रतिशत और टमाटर का मात्र 1 प्रतिशत प्रसंस्करण हो पा रहा है। उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के लिए इनके मूल्यों को स्थिर रखने, ऑफ-सीजन में उपलब्धता सुनिश्चित करने और निर्यात बढ़ाने के लिए इन फसलों का कम से कम 20 प्रतिशत प्रसंस्करण करने का लक्ष्य होना चाहिए। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए इनके उत्पादों पर जीएसटी का शुल्क भी कम लगना चाहिए।
तीसरा, घरेलू मांग से ज्यादा उत्पादन की सूरत में हमें एक भरोसेमंद निर्यातक देश के रूप में भी अपने आप को स्थापित करना होगा। अभी इन फसलों का लगभग 5500 करोड़ रुपये मूल्य का ही निर्यात हो पा रहा है, जिसे तीन-चार गुना बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिए उपरोक्त भंडारण और प्रसंस्करण संबंधी दोनों कदम काफी कारगर होंगे। बार-बार न्यूनतम निर्यात मूल्य या स्टॉक लिमिट लगाने से भी व्यापारी भंडारण, प्रसंस्करण और निर्यात की व्यवस्था में निवेश करने से पीछे हट जाते हैं। अतः इन विषयों में स्थिर सरकारी नीतियों तथा आवश्यक वस्तु अधिनियम जैसे कानूनों में सुधार करने की आवश्यकता है।
नाबार्ड के एक अध्ययन के अनुसार आलू, प्याज, टमाटर की फसलों में उपभोक्ता द्वारा चुकाए गए मूल्य का 25-30 प्रतिशत ही किसानों तक पहुंच पाता है। अतः हमें इन फसलों में ‘अमूल मॉडल’ को लागू करना होगा, जहां दूध के उपभोक्ता-मूल्य का 75-80 प्रतिशत किसानों को मिलता है। कृषि उत्पाद बाज़ार समिति अधिनियम में सुधार कर बिचौलियों की भूमिका को भी सीमित करना होगा। ऐसी संस्थाएं स्थापित करनी होंगी जो किसानों से सीधे खरीदकर उपभोक्ताओं तक इन सब्जियों को बिचौलियों के हस्तक्षेप के बिना पहुंचाने का काम करें।
इन फसलों की खेती में लगे करोड़ों किसानों की मांग है कि इन तीनों फसलों को एमएसपी व्यवस्था के अंतर्गत लाकर इनकी उचित खरीद, भंडारण और प्रसंस्करण की व्यवस्था सरकार करे। जिससे एक तरफ इन फसलों को फेंकने की नौबत ना आये तो दूसरी तरफ आम आदमी की जेब भी ना कटे।
(लेखक कृषि मामलों के जानकार और किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष हैं)