कमरतोड़ महंगाई की वजह खुदरा महंगाई है, न की वैश्विक कारण – आरबीआई रिपोर्ट

 

केंद्र सरकार बेशक से बढ़ती महंगाई के लिए रूस यूक्रेन युद्ध, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और सप्लाई चैन में बाधाएं जैसे वैश्विक कारणों को जिम्मेदार ठहरा रही हो, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार 27 मई 2022 को जारी की गई अपनी सालाना रिपोर्ट में बढ़ती महंगाई के पीछे इन वैश्विक कारणों का योगदान बहुत कम बताया है.

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि थोक महंगाई दर एक साल से भी अधिक समय से लगातार दहाई अंकों में बनी हुई है. जिसका असर खुदरा महंगाई दर पर भी पड़ने का खतरा है.

थोक मूल्य सूचकांक (होलसेल प्राइस इंडेक्स) थोक पर वस्तुओं की औसत कीमतों में परिवर्तन को दर्शाता है. इस के अंतर्गत बड़ी कंपनियों और संस्थाओं में होने वाले व्यापारिक लेनदेन की गतिविधियों की गणना की जाती है. ऐसे में जब थोक महंगाई में इज़ाफा होगा तो जाहिर है खुदरा महंगाई पर भी इस का असर पड़ेगा.

रिज़र्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में बढ़ती महंगाई पर सेंसटिविटी एनालिसिस (संवेदनशील विश्लेषण) किया. इस विश्लेषण में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी (वस्तुओं) की कीमतों के बढ़ने का खुदरा महंगाई पर मामूली असर होता है.  खुदरा महंगाई पर थोक महंगाई का असर ज्यादा है.

रिज़र्व बैंक की सेंसटिविटी एनालिसिस में अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी के दाम एक फ़ीसदी बढ़ते हैं तो खुदरा महंगाई दर पर उसका असर सिर्फ 0.02% ही होता है. वहीँ थोक महंगाई अगर एक फ़ीसदी बढ़ती है तो खुदरा महंगाई पर उसका असर 0.26 फ़ीसदी पड़ता है.

यह विश्लेषण बताता है कि खुदरा महंगाई पर अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में थोक महंगाई का असर अधिक होता है. यानी सप्लाई की दिक्कतें, टैक्स तथा अन्य स्थानीय कारण खुदरा बाजार में दाम बढ़ाने में ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

खुदरा महंगाई पिछले महीने आठ साल में सबसे ऊंचे स्तर 7.79% पर पहुंच गई थी. रिजर्व बैंक को खुदरा महंगाई 2% से 6% के बीच रखनी होती है लेकिन बीते चार महीने से यह लगातार 6% से ऊपर ही बनी हुई है. वहीँ अप्रैल में, ईंधन से लेकर सब्जी और खाना पकाने के तेल सभी की बढ़ती कीमतों की वजह से थोक महंगाई 15.08% के नए रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुंच गई थी.

रिज़र्व बैंक के इस विश्लेषण से यह साफ है कि सरकार सप्लाई की दिक्कतें दूर करने में नाकाम रही है जिसकी वजह से खुदरा महंगाई लगातार आसमान छू रही है.

लेकिन इन सब के बावजूद केंद्र सरकार महंगाई को नियंत्रित करने में वैश्विक कारणों को अधिक जिम्मेदार बताती है जबकि उनकी अपनी भूमिका को वह दरकिनार कर रही है.

याद हो तो लागत को नियंत्रण से बाहर होने से बचाने के लिए ही सरकार ने हाल ही में पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क कम कर दिया था. साथ ही स्टील और प्लास्टिक उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले कई कच्चे माल पर आयात शुल्क को माफ कर दिया गया था. इसके अलावा, आयरन ओर (लोह अयस्क) और आयरन पेलेट्स पर निर्यात शुल्क बढ़ाया गया, गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया, चीनी निर्यात को मुक्त से रेस्ट्रिक्टेड कैटेगरी में डाला गया और दो साल तक 20-20 लाख टन क्रूड सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल (सूरजमुखी तेल) आयात पर ड्यूटी न लगाने का फैसला किया है.