केंद्र सरकार की SEED योजना विफल, विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू समुदायों तक नहीं पहुंचा कोई लाभ!

सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर बने संसदीय पैनल ने 260 से अधिक विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों को अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में वर्गीकृत करने की “बहुत धीमी” प्रक्रिया पर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. इस साल फरवरी में शुरू की गई SEED (स्कीम फॉर इकोनॉमिक एम्पावरमेंट ऑफ डीएनटी) योजना के तहत सरकार इस समुदाय के लोगों तक लाभ पहुंचाने में विफल रही है.

SEED (स्कीम फॉर इकोनॉमिक एम्पावरमेंट ऑफ डीएनटी) योजना केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री वीरेंद्र कुमार द्वारा विमुक्त घुमंतू समुदाय से जुड़े छात्रों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मुफ्त कोचिंग, स्वास्थ्य बीमा, आवास सहायता और आजीविका पहल प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी. इस योजना के लिए 200 करोड़ की राशि आवंटित की गई है जो वित्त वर्ष 2021-22 से वित्त वर्ष 2025-26 तक पाँच वर्षों में खर्च की जानी है.

अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ में छपी रिपोर्ट के अनुसार 26 दिसंबर तक, SEED योजना के तहत कुल 5,400 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए हैं, जिनमें से एक भी आवेदन को मंजूरी नहीं दी गई और न ही कोई राशि स्वीकृत की गई है. इस शीतकालीन सत्र में संसद में पेश की गई एक रिपोर्ट में सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर बने संसदीय पैनल ने कहा कि इसने पहले भी इन समुदायों के जल्द से जल्द और सटीक वर्गीकरण पर आवश्यक कार्रवाई करने बाबत विभाग की विफलता पर ध्यान दिलाया गया था.

वहीं सरकार के यह कहने के बाद कि काम चल रहा है और 2022 तक पूरा हो जाएगा, पैनल ने कहा कि प्रक्रिया अभी भी बहुत धीमी है. पैनल ने कहा कि,” घुमंतू जनजातियों के वर्गीकरण में देरी से उनकी परेशानियां और बढ़ेगी और वे उनके कल्याण के लिए चलाई गई योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाएंगे.” पैनल ने आगे कहा कि उसे उम्मीद है कि सरकार इस कवायद में तेजी लाएगी और इसे समयबद्ध तरीके से पूरा करेगी और इसके लिए विस्तृत समयसीमा मांगी है.

वहीं संसदीय पैनल की टिप्पणी पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग ने कहा, “भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण ने अब तक 48 डीएनटी समुदायों के वर्गीकरण पर रिपोर्ट प्रस्तुत की है. इसके अलावा, 267 समुदायों को अब तक वर्गीकृत नहीं किया गया है, एएनएसआई ने 24 समुदायों पर अध्ययन पूरा कर लिया है, जिनमें जनजातीय अनुसंधान संस्थान 12 समुदायों का अध्ययन कर रहे हैं. इसके अलावा, एएनएसआई 161 समुदायों पर अध्ययन को अंतिम रूप दे रहा है और 2022 के अंत तक शेष समुदायों (लगभग 70) का अध्ययन पूरा करने की उम्मीद है.”

देश में विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू समुदाय से जुड़ी 1,400 से अधिक जनजातियों वाले 10 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले इस समूह से इदते आयोग ने 1,262 समुदायों को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में वर्गीकृत किया था और 267 समुदायों को अवर्गीकृत छोड़ दिया गया था.

विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू समुदायों के विकास और कल्याण बोर्ड (DWBDNC) के अधिकारियों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि वे SEED योजना के लिए आवेदनों की प्रक्रिया तब तक शुरू नहीं कर सकते जब तक कि राज्य और जिला स्तर की समीक्षा पूरी नहीं हो जाती.

यह योजना ऑनलाइन आवेदन और लाइव स्थिति-ट्रैकिंग के लिए एक प्रणाली के साथ शुरू की गई थी. हालांकि विमुक्त, घुमंतू और अर्ध घुमंतू समुदाय से जुड़े अधिकतर लोग ऑनलाइन सिस्टम को नेविगेट करने में असमर्थ हैं. अधिकारियों ने कहा, मंत्रालय और डीडब्ल्यूबीडीएनसी के अधिकारी आवेदकों को वेब पोर्टल पर साइन अप करने में मदद करने के लिए समुदाय के नेताओं के साथ देश भर में शिविर आयोजित कर रहे हैं. लेकिन जब तक उनके सटीक वर्गीकरण की कवायद पूरी नहीं हो जाती, तब तक आवेदन पर कार्रवाई नहीं की जाएगी.

विमुक्त घुमंतू जनजातियों का ‘विमुक्ति दिवस’ और अखबारों की जीरो कवरेज!

31 अगस्त को विमुक्त घुमंतू एवं अर्ध घुमंतू जनजातियों (डिनोटिफाइड एंड नोमेडिक ट्राइब्स) ने अपना 71वां आजादी दिवस मनाया. इस अवसर पर आज के हिंदी और अंग्रेजी के सभी राष्ट्रीय और स्थानीय अखबारों से डीएनटी समुदाय के आजादी दिवस समारोह की कवरेज गायब रही. अंग्रेजी के किसी भी राष्ट्रीय अखबार ने 20 करोड़ की आबादी से जुड़े विमुक्ति दिवस को कवर करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. इसके साथ ही हिंदी के लगभग सभी अखबारों का भी यही हाल रहा. गांव-सवेरा की ओर से विमुक्त घुमंतू समुदाय की कवरेज को लेकर की गई पिछले साल की रिपोर्ट में भी यही स्थिति सामने आई थी.

31 अगस्त 1952 को इन समुदायों को क्रिमिनल ट्राईब एक्ट से आजादी मिली तो यह दिन विमुक्ति दिवस के रुप में मनाया जाने लगा. इस अवसर पर देश के विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रम भी किए गए, जिनमें नेताओं से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया. पर 1 सितंबर के अखबारों को टटोलने पर डीएनटी समुदाय के विमुक्ति समारोह से संबंधित कोई खबर नहीं दिखाई दी.

प्रगतिशील माने जान वाले अंग्रेजी के एक भी अखबार में न तो 31 अगस्त को कोई फीचर या आर्टीकल पढ़ने को नहीं मिला और न ही 1 सितंबर को विमुक्ती दिवस की कवरेज की गई. किसी भी अखबार में विमुक्त घुमंतू जनजातियों के आजादी दिवस समारोह को लेकर एक कॉलम तक की खबर नहीं है. अंग्रेजी के जिन अखबारों को हमने टटोला उनमें द हिंदू, द इंडियन एक्सप्रेस, द टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स अखबार शामिल रहें.

वहीं हिंदी के अखबारों का भी यही हाल रहा. जनसत्ता, दैनिक जागरण, अमर उजाला, हरि भूमि जैसे राष्ट्रीय दैनिक अखबारों का भी यही हाल रहा. दैनिक भास्कर के लॉकल एडिशन को छोड़ दें तो इसमें भी राष्ट्रीय स्तर पर विमुक्ति दिवस समारोह की कोई कवरेज नहीं की गई. 2011 की जनगणना के अनुसार देश में इन जनजातियों की कुल जनसख्यां 15 करोड़ रही यानी आज के हिसाब से करीबन 20 करोड़ की जनसंख्या के लिए भारतीय अखबारों में कोई जगह नहीं है.

प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर करनाल भास्कर की कवरेज.

वहीं सामाजिक न्याय की बात करने वाले वैकल्पिक मीडिया के नाम पर खड़े हुए न्यू मीडिया के संस्थानों ने भी विमुक्ति दिवस पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. यू-ट्यूब से लेकर सोशल मीडिया के प्रगतिशील कहे जाने वाले संस्थान भी 20 करोड़ की आबादी पर एक शब्द नहीं बोल और लिख पाए.

डिनोटिफाइड ट्राइब्स के बीच काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता बालक राम ने पिछले साल मीडिया की कवरेज को लेकर भी यही बात कही थी और आज फिर उन्होंने अपनी बात को दोहराते हुए कहा, “मीडिया ने हमेशा से विमुक्त घुमंतू और अर्ध घुमंतू जनजातियों की अनदेखी की है. मीडिया से हमारे 20 करोड़ के समाज  को कोई उम्मीद नहीं है. मीडिया को केवल चटकारे वाली खबरों से मतलब है और हम चटकारे देने वाले मेटिरियल नहीं हैं. भारत के मीडिया को पीड़ित और हाशिए के समाज से कोई मतलब नहीं है इसके उलट मीडिया हमारी जनजातियों को निशाना बनाने की खबरें छापता है. यह बहुत दुख की बात है कि करीबन 20 करोड़ की आबादी की बात आती है तो इस देश के अखबारों की स्याही सूख जाती है.”

करनाल में 31 अगस्त को मनाया जाएगा विमुक्ति दिवस!

करनाल के मंगल सेन सभागार में अखिल भारतीय विमुक्त घुमंतू जनजाति वैलफेयर संघ, हरियाणा द्वारा एक प्रेसवार्ता आयोजित की गई. प्रेसवार्ता में संघ की ओर से 31 अगस्त को विमुक्ति दिवस मनाये जाने सम्बंधी जानकारी दी गई. संघ के अध्यक्ष मास्टर जिले सिंह ने बताया कि यह कार्यक्रम हमारे लिए एक त्योहार की तरह है और इस बार समस्त विमुक्त घुमंतू समाज की ओर से 71वां विमुक्ति दिवस 31 अगस्त को करनाल के मंगल सेन सभागार में धूमधाम से मनाया जाएगा.

अध्यक्ष ने बताया 31 अगस्त को विमुक्ति दिवस के मौके पर मुख्य अथिति के तौर पर करनाल से सांसद संजय भाटिया और अति वशिष्ट अतिथि के तौर पर कुरुक्षेत्र से सांसद नायब सैनी और राज्यसभा सांसद कृष्ण पंवार शिरकत करेंगे. वहीं साथ ही शाहबाद से विधायक रामकरण, घरौंडा से विधायक हरविंद्र सिंह कल्याण, विधायक लक्षमण नापा, रतिया, इंद्री से विधायक रामकुमार कश्यप, नीलोखेड़ी से विधायक धर्मपाल गोंदर, करनाल से मेयर रेणु बाला गुप्ता और डीएनटी बॉर्ड के चैयरमेन डॉ बलवान सिंह वशिष्ट अतिथि के तौर पर कार्यक्रम में शामिल होंगे.

वहीं अखिल भारतीय विमुक्त घुमंतू जनजाति वैलफेयर संघ के राष्ट्रीय महासचिव बालक राम ने इन विमुक्त घुमंतू जनजातियों का इतिहास बताते हुए कहा, गोरिल्ला युद्ध में निपुणता के चलते अंग्रेजों के खिलाफ अभियान छेड़ने वाली इन जनजातियों पर दबिश डालने के लिए 1871 में अंग्रेजी हुकूमत ने जैराइम पेशा काला कानून (क्रीमिनल ट्राइब एक्ट) लगा दिया. इन जनजातियों पर काला कानून लगाकर, समाज में इनके प्रति नफरत फैलाने के मकसद से अंग्रेजों ने इनकों जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया. कानून के तहत इन लोगों को गाँव व शहर से बाहर जाने के लिए स्थानीय मजिस्ट्रेट के यहां अपना नाम दर्ज करवाना अनिवार्य कर दिया गया था ताकि पता रहे कि ये लोग कहां, क्यों और कितने दिनों के लिए जा रहे हैं. सबसे पहले इस कानून को उत्तर भारत में लागू किया गया.

उसके बाद 1876 में क्रीमिनल ट्राइब एक्ट को बंगाल प्रांत पर भी लागू किया गया और 1924 तक आते-आते इस कानून को पूरे भारत में रहने वाली सभी करीबन 193 जनजातियों पर थोप दिया गया. 15 अगस्त 1947 को देश तो आजाद हो गया लेकिन ये लोग आजादी के पांच साल बाद तक भी गुलामी का दंश झेलते रहे और गांव के नंबरदार और पुलिस थाने में हाजिरी लगाने के लिए मजबूर रहे. आखिरकार 1948 में बैठाई गई क्रीमिनल ट्राइब एक्ट इन्क्वारी कमेटी ने 1949-50 में सरकार को रिपोर्ट सौंपी जिसमें देश की ऐसी 193 जातियों को है 31 अगस्त सन 1952 को संसद में बिल पास होने के बाद इस दंश से मुक्त किया गया. उस दिन से इन जनजातियों को विमुक्त जाति अर्थात डिनोटिफाइड ट्राइब्स के नाम से जाना जाता है. 1871 में क्रिमिनल ट्राइब एक्ट लगने से लेकर 31 अगस्त 1952 तक यानी करीबन 82 साल तक आजाद भारत में भी ये लोग गुलामी का दंश झेलते रहे. पूरे देश में विमुक्त घुमंतू जनजाति की आबादी करीबन 20 से 25 करोड़ है इनमें से अधिकतर लोग आज भी खुले आसमान, पुलों के नीचे, सीवरेज के पाइपों, तिरपालों में अपना जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं.

विमुक्त एवं घूमन्तु कर्मचारी वैलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष रोशन लाल माहला ने विमुक्त घुमंतू जनजाति के लोगों से विनम्र अपील की है कि अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए 31 अगस्त को अधिक से अधिक संख्यां में मुक्ति दिवस के महोत्सव में शामिल होकर अपने अधिकारों की लड़ाई में हिस्सा लें.

अंबाला: गोगा माड़ी का मेला देखने गए घुमंतू समुदाय के युवक की पिटाई, युवती से छेड़छाड़ के आरोप में भेजा जेल!

अंबाला कैंट के पास स्थित बब्याल में गोगा माड़ी पर भादवे के महीने में हर साल मेला लगता है. मेला देखने गए विमुक्त घुंमतू समुदाय के मंगता चमार समाज के युवक के साथ गोगा माड़ी कमेटी के लोगों ने मारपीट की और युवती छेड़ने का आरोप लगाकर जेल भिजवा दिया. गोगा माड़ी मुख्य तौर पर राजपूत समुदाय के लोग पूजा करते हैं. गूगा माड़ी के नाम पर एक कमेटी भी चलती है जिसमें अधितकर सदस्य राजपूत समुदाय से ही हैं. हर साल लगने वाले इस मेले में झूलों सहित दर्जनों दुकानें लगती हैं. आस-पास के लोग अपने बच्चों के साथ मेला देखने आते हैं. इस पूरे मेले का रखरखाव राजपूत समुदाय के लोग ही करते हैं.

वहीं मेला स्थल यानी गोगा माड़ी से मजह सौ मीटर की दूरी पर सैनिक कॉलोनी में विमुक्त घुमंतू समुदाय से आने वाले मंगता चमार समाज के करीबन तीन सौ परिवार रहते हैं. आस-पास के लोग इस बस्ती को ‘डेहा बस्ती’ के नाम से बुलाते हैं. हालांकि इस कॉलोनी में डेहा समाज के लोग नहीं रहते हैं यहां अधिकतर मंगता चमार समाज से लोग रहते हैं.

वहीं 13 अगस्त को गोगा माड़ी कमेटी के लोगों ने मंगता चमार समाज के यहां रिश्तेदारी में आए एक 20 साल के युवक को युवती से छेड़छाड़ के आरोप में बुरी तरह पीट दिया. 20 साल के पत्रका के रिश्तेदारों ने बताया कि वह होशियारपुर से यहां कुछ दिन रहने के लिए आया था. मेले में गए पत्रका को राजपूत समुदाय के 10 से 12 लोगों ने मिलकर पिटा. उसका कसूर इतना था कि वह गोगा माड़ी में मेला देखने के लिए चला गया था. मेले में युवक की पिटाई के बाद मंगता चमार डेरे के लोग और गोगा माड़ी कमेटी के लोग आमने सामने हो गए. मंगता चमार समाज के लोगों ने आरोप लगाया कि जब हम युवक को पिटने से बचाने के लिए गोना माड़ी पहुंचे तो हमारी महिलाओं और पुरुषों के साथ भी मारपीट की गई और हमें जातिसूचक गालियां दी गई. इस भिड़ंत में दोनों पक्षों के करीब 15 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए और बचाव करने पहुंचे महेशनगर थाने के पुलिसकर्मी भी चोटिल हो गए.

मंगता चमार समाजी द्वारा लिखी शिकायत.

दरबार सिहं ने बताया, “इस मामले में थाने में शिकायत दर्ज करवाने गए मंगता चमार समुदाय के लोगों का मामला दर्ज नहीं किया गया. उलटा जो लोग अंबाला के महेशनगर थाने में शिकायत दर्ज करवाने के लिए गए थे पुलिस ने उनके खिलाफ ही मारपीट करने का आरोप लगाकर केस दर्ज करके लॉकअप में बंद कर दिया और अगले दिन कोर्ट में पेश कर रिमांड पर ले लिया. थाने में केस दर्ज करवाने के लिए गए ओम प्रकाश, दीप सिंह, जोरा सिंह और विकास चारों जेल में हैं.” जिस जोरा सिंह पर हमला किया गया जिसकी मेडिकल रिपोर्ट आप देख  सकते हैं उसको भी पुलिस ने गिरफ्तार कर के कोर्ट में पेश कर दिया.

जेल में बंद 24 वर्षीय जोरा सिंह की मेडिकल रिपोर्ट.

मंगता चमार डेरे के लोगों ने आरोप लगाया कि हमारी बस्ती के लोगों का गोगा माड़ी मेले में जाने की मनाही है. मंगता चमार डेरे के रहने वाले क्रांति ने बताया, “हमारे लोगों की गोगा माड़ी में जाने की मनाही है. हमारे डेरे के लोगों को गोगा माड़ी के मंदिर में प्रवेश नहीं जाने करने दिया जाता है. ये लोग हमें नीच समझते हैं और जातिसूचक गालियां तक देते हैं. पिछले कईं सालों से हमारे लोगों ने गोगा माड़ी के अंदर और मेले में जाना बंद कर दिया है. उन्होंने आगे बताया हमारे साथ मारपीट करने का यह पहला मौका नहीं है इससे पहले हमारी महिलाओं के साथ भी मारपीट की गई थी. तब हमारे डेरे की दो तीन महिलाएं सूखी लकड़ी इकट्ठा करने के लिए गोगा माड़ी के अंदर चली गईं थीं उन लोगों ने हमारे समाज की महिलाओं पर हाथ उठाया जब हमने पुलिस में शिकायत की तो उस वक्त भी हमारी कोई सुनवाई नहीं हुई थी.”  

वहीं गोगा माड़ी कमेटी की ओर से अनिल शिकायतकर्ता हैं. जिन्होंने 14 अगस्त को थाना महेशनगर में शिकायत दर्ज करवाई थी. शिकायतकर्ता अनिल ने अपनी शिकायत में बताया कि 13 अगस्त को गोगा माड़ी में मान सिंह, हरनेक सिंह, सुखदेव सिंह, नेक सिंह, क्रांति, रामबीर, जुगनु और 150 से 200 लोगों ने कमेटी के सदस्यों को जान से मारने की नीयत से हमला किया.

वहीं इस मामले पर जब ऑल इंडिया विमुक्त घुमंतू जनजाति वेलफेयर संघ के अध्यक्ष रविंद्र भांतू से बात की गई तो उन्होंने कहा, “अंबाला के विमुक्त घुमंतू समुदाय के लोगों के साथ यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई है. हैरानी होती है कि आजादी के 75 साल बाद भी जाति के नाम पर लोगों के साथ मारपीट और भेदभाव हो रहा है. हमारे संगठन द्वारा हरियाणा के तमाम अधिकारियों तक यह शिकायत पहुंचाई गई जिले के बड़े अधिकारियों से मैंने खुद फोन पर बात की लेकिन उसके बाद भी हमारी कोई सुनवाई नहीं हुई. अब पीड़ित लोगों पर ही समझौते का दबाव बनाया जा रहा है.”       

डीएनटी वेलफेयर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि राजपूत समुदाय की ओर से घुमंतू समाज के लोगों को परेशान करने वाले बीजेपी के नेता हैं जिनमें डिंपल राणा, अनिल राणा, सोमपाल राणा शामिल हैं.

वहीं गूमा माड़ी की ओर से पक्ष रखते हुए करीबन 27 साल के राजन ने बताया कि डेहा समाज के लोग परिवार रहते हैं जिनमें से अधिकतर ईसाई बन चुके हैं. ये लोग यहां दर्शन करने के लिए नहीं मेले में लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करने के लिए आते हैं. 13 अगस्त को भी डेहा समाज के एक लड़के ने एक लड़की के साथ छेड़छाड़ की थी जिसके बाद उसको पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया था.”

वहीं जब इस मामले में पुलिस अधिकारी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि मामले की जांच चल रही है. यानि घटना के एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी विमुक्त घुमंतू समाज के लोगों की शिकायत दर्ज नहीं की गई है.  

आजादी के 75 साल पूरे होने पर कहां खड़ा है विमुक्त घुमंतू समुदाय?

देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. सरकार ने करोड़ों रूपये खर्च करके पूरे जोरो शोरों से ‘हर घर तिरंगा’ अभियान चलाया. लेकिन सरकार ने यह अभियान चलाकर देश के उन लोगों की दुखती रग पर हाथ रखने का काम किया है जिनके पास अपने मकान नहीं है. देस में विमुक्त घुमंतू और अर्ध घुमंतू समुदाय की जनसंख्या 20 करोड़ के आस पास है. 2008 में आई रैनके कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार देश में विमुक्त घुमंतू समुदाय के 50 फीसदी लोग के पास अपने दस्तावेज अपने मकान नहीं है, मकान बनाने के लिए जमीन तक नहीं है.  

विमुक्त घुमंतू समुदाय की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी घुंमतू जीवन यापन करने को मजबूर है. देश के मौजूदा प्रधानमंत्री ने सत्ता में आने से पहले चुनाव में वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद सरकार 2022 तक बेघर परिवारों को पक्का मकान देने का काम करेगी लेकिन पक्का मकान देना तो दूर विमुक्त घुमंतू समुदाय के लोगों को जमीन तक नहीं मिल पाई है. 

राजस्थान में विमुक्त घुमंतू समुदाय से आने वाली स्पेरा, कालबेलिया और हरियाणा की जंगम जाति के लोगों को कईं गांवों में अंतिम संस्कार के लिए जगह तक नहीं दी गई है. हालंहि में हरियाणा के पानीपत जिले के अदियाना गांव में समाधि स्थल तक जाने के लिये रास्ता नहीं दिया गया था. जंगम समाज के लोग पिछले दो दशक से समाधि स्थल का रास्ता मांग रहे हैं लेकिन आज तक इन लोगों की कोई सुनवाई नहीं हुई.

डीएनटी समूह के उत्थान के लिए आजादी से लेकर अब तक कईं आयोग और कमेटियां बनाई गईं. सबसे पहले 1949 में अय्यंगर कमेटी बनी. केंद्र सरकार ने अय्यंगर कमेटी के कुछ सुझावों को मानते हुए कईं सफारिशें लागू की. अय्यंगर कमेटी की रिपोर्ट के बाद 31 अगस्त 1952 को इन जनजातियों को डिनोटिफाई किया गया तभी से इन जनजातियों को डीएनटी (डिनोटिफाइड नोमेडिक ट्राइब्स) के नाम से जाना जाता है. इन जनजातियों को डिनोटिफाई तो किया गया लेकिन साथ ही इनपर हेब्चुएल ऑफेंडर एक्ट यानी आदतन अपराधी एक्ट थोप दिया गया.

इसके बाद 1953 में काकासाहब कालेलकर की अध्यक्षता में बने पहले पिछड़े आयोग ने भी विमुक्त घुमंतू जनजातियों को लेकर अपनी रिपोर्ट में कुछ सिफारिशें की थी. कालेलकर आयोग ने इन जनजातियों पर लगे आपराधिकरण के ठप्पे को हटाने की बात पर जोर देते हुए रिपोर्ट में कहा, ‘इन जनजातियों के साथ क्रिमिनल ट्राइब और एक्स-क्रिमिनल जैसे शब्द नहीं जोड़े जाने चाहिए. साथ ही इन जनजातियों को शहरों और गांवों में बसाने पर जोर देना चाहिए ताकि ये लोग भी अन्य लोगों के साथ घुल-मिल सकें.’

इसके बाद 1967 में बीएन लोकूर की अध्यक्षता में लोकूर कमेटी का गठन किया गया. लोकूर कमेटी की रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए बनाई गई योजनाओं का लाभ विमुक्त घुमंतू जनजातियों तक नहीं पहुंच रहा है. विमुक्त घुमंतू जनजातियों को योजनाओं का लाभ न मिलने की मुख्य वजह थी इनकी कम आबादी और इनका एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमना. अंत में लोकूर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘इन जनजातियों को SC और ST से अलग करके एक विशेष समूह का दर्जा दिया जाना चाहिए और इन जनजातियों के उत्थान के लिए विशेष योजनाएं चलाई जानी चाहिए.’

2002 में जस्टिस वेंकेटेसलाह कमीशन ने रिपोर्ट में कहा, ‘इन जनजातियों पर अपराधी होने का ठप्पा लगाया गया है, वह गलत है. जस्टिस वेंकेटेसलाह कमीशन ने विमुक्त घुमंतू जनजातियों के लिए स्पेशल कमीशन बनाए जाने की सिफारिश की. 2002 की जस्टिस वेंकेटेसलाह कमीशन की सलाह पर 2015-16 में स्पेशल कमीशन का गठन किया गया. डीएनटी कमीशन के गठन के बाद कमीशन में नियुक्तियों को लेकर भी देरी की गई. वहीं कमीशन के गठन के 6 साल तक डीएनटी कमीशन और  डीएनटी जनजातियों की विकास येजनाओं के लिए केवल 45 करोड़ का बजट  दिया गया. इस बजट में से भी एक पैसा खर्च नहीं किया गया.

इसके बाद यूपीए सरकार में 2005 में रैनके कमीशन का गठन किया गया. बालकृष्णन रैनके को इस आयोग का अध्यक्ष बनाया गया. बालकृष्णन रैनके स्वयं विमुक्त घुमंतू जनजाति से आते हैं. रैनके कमीशन ने 2008 में अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी. रैनके आयोग की टीम ने तीन साल तक पूरे देश में घूम घूमकर इन जनजातियों से जुड़े आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक पहेलुओं पर सर्वे किए. विमुक्त घुमंतू जनजातियों से जुड़े अब तक के आयोग और कमेटियों में से रैनके आयोग ने बड़े स्तर पर सर्वे किए हैं. इन जनजातियों की राज्यवार संख्या बताने से लेकर अलग-अलग घुमंतू जनजातियों का रहन-सहन, जीविका के साधन, कला और संस्कृति पर भी काम किया है. रैनके कमीशन ने तीन साल में देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर वहां के इन जनजातियों के स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं से मिलकर रिपोर्ट तैयार की. 

रैनके कमीशन ने घुमंतू जनजातियों को अलग से 10 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की है. साथ ही शैक्षणिक उत्थान के लिए घुमंतू जनजातियों के बच्चों के लिए बॉर्डिंग स्कूल खोलने, विमुक्त घुमंतू परिवारों को जमीन देकर घर बनवाने और दस्तावेज बनाने की सिफारिश की है.

रैनके कमीशन ने अपने सर्वे में पाया कि विमुक्त घुमंतू जनजाति से जुड़े 90 फीसदी लोगों के पास अपने दस्तावेज और 58 फीसदी लोगों के पास रहने के लिए मकान तक नहीं हैं.  

सभी विमुक्त घुमंतू जनजातियों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग में सूचिबद्ध किया गया है जिसके चलते इन जनजातियों से जुड़े लोगों तक सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच रहा है. जिसके चलते रैनके कमीशन ने इन जनजातियों के लिए अलग से 10 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की थी.             

इसके बाद 2015 में एनडीए सरकार में इदाते कमीशन का गठन किया गया. भीखूराम इदाते को कमीशन का अध्यक्ष बनाया गया. भीखूराम इदाते आरएसएस के नेता हैं जो आरएसएस के जरिए महाराष्ट्र में विमुक्त घुमंतू जनजातियों के बीच काम करने का दावा करते हैं. इदाते कमीशन ने 2018 में केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी. इदाते कमीशन की रिपोर्ट में भी विमुक्त घुमंतू जनजातियों के विकास के लिए सिफारिशें की गईं लेकिन इसी बीच इदाते कमीशन के काम करने के तरीके पर भी सवाल खड़े हुए. कईं मीडिया रिपोर्ट्स में इदाते कमीशन पर आरोप लगे की कमीशन ने जनजातियों के बीच जाकर कम और अन्य रिपोर्ट्स के आधार पर रिपोर्ट तैयार की है.

इस बीच सबसे दिलचस्प बात ये है कि रैनके कमीशन द्वारा डीएनटी को अलग से दस फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश को इदाते कमीशन ने मानने से इनकार कर दिया और इदाते कमीशन की रिपोर्ट में इन जनजातियों के लिए दस फीसदी आरक्षण की मांग को आगे नहीं बढ़ाया गया है. एनडीए सरकार में गठिन इदाते आयोग की रिपोर्ट आए हुए चार साल से ज्यादा बीत चुका है लेकिन अब तक इस रिपोर्ट को चर्चा के लिए सदन में पेश नहीं किया गया है.

तमाम आयोग और कमेटियों के गठन और इनकी सिफारिशों के बाद भी विमुक्त घुमंतू जनजातियों के उत्थान के लिए कुछ काम नहीं हुआ.

सीकर: जमीन खाली करवाने के नाम पर घुमंतू परिवारों पर हमला, एक महीने बाद भी नहीं हुई शिकायत दर्ज!

राजस्थान के सीकर में विमुक्त घुमंतू समूह की बनबावरी (बावरिया) जाति के परिवारों पर जमीन खाली करवाने के नाम पर जुल्म ढहाया जा रहा है. गांव के कुछ दबंगों ने बावरिया समाज के घरों में घुसकर तोड़फोड़ की और परिवार के सदस्यों के साथ मारपीट की. पिछले कईं दशक से सीकर जिले की बातारामगढ़ तहसील के भीमा गांव में रह रहे डीएनटी परिवारों को गांव के लोगों द्वारा ही लंबे समय से परेशान किया जा रहा है.

पीड़ित परिवारों ने आरोप लगाया कि गांव का सरपंच अन्य लोगों के साथ मिलकर जमीन पर कब्जा करना चाहता है. जमीन खाली करवाने के लिए हम लोगों को डराया दमकाया जा रहा है और जमीन खाली करने का दबाव बनाया जा रहा है. 

पीड़ित परिवार ने बताया, “गांव के कुछ लोगों ने 6 जुलाई को रात करीबन 11 बजे हमारे घरों पर हमला कर दिया. हमले के दौरान एक बकरी को पीट-पीटकर मार दिया साथ ही महिलाओं के साथ भी मारपीट की.”

पीड़ित के परिवार की ओर से सीकर जिले के लोसल थाने में शिकायत दर्ज करने के लिए लिखी रिपोर्ट के अनुसार इस हमले के दौरान बावरिया डेरे की एक गर्भवती महिला को भी घसीटकर पीटा गया. जिसके बाद गर्भवती महिला की ब्लिंडिग शुरू हो गई और उसे सीकर के राजकीय श्री कल्याण अस्पताल में भर्ती करवाया गया.

विमुक्त घुमंतू समुदाय के इऩ परिवारों को कई सालों से जमीन खाली करने के लिए डराया-दमकाया जा रहा है लेकिन इस बार जमीन खाली न करने पर दबंगों ने घुमंतू परिवारों के घरों में घुसकर तोड़फोड़ की और महिलाओं के साथ भी मारपीट की घटना को अंजाम दिया. वहीं इस मामले में अब तक पुलिस द्वारा पीड़ित परिवारों की शिकायत तक दर्ज नहीं की है. पीड़ित परिवारों ने आरोपियों के साथ पुलिस की मिलीभगत होने का आरोप लगाया और कहा कि पुलिस की मिलीभगत के चलते शिकायत दर्ज नहीं की गई. 

55 साल वर्षीय पीड़ित शयोनाथ बावरिया ने फोन पर बात करते हुए गांव-सवेरा को बताया,”हम एक महीने से शिकायत दर्ज करवाने के लिए पुलिस थाने के चक्कर काटते रहे लेकिन कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई. पुलिस वाले उलटा हमें ही जेल में बंद करने की दमकी देते रहे. आखिर में एसपी के सामने पेश हुए एपपी साहब ने आश्वासन दिया है कि हमें न्याय दिलाया जाएगा”

पीड़ित परिवार द्वारा लिखी गई शिकायत की कॉपी

शयोनाथ बावरिया ने बताया, “इन लोगों ने गांव के लोगों को साथ मिलकर हमारा सामाजिक बहिष्कार कर दिया इस दौरान हमारे लोगों को आसपास की किसी दुकानों से राशन नहीं लेने दिया गया और न ही पानी तक भरने दिया गया.”

राजस्थान में घुमंतू समुदाय के लोगों पर होने वाला यह कोई पहला मामला नहीं है राजस्थान में आए दिन विमुक्त घुमंतू समाज प्रशासन और समाज की ज्यादतियों का शिकार होता आ रहा है. हाल ही में जयपुर में 1 जून को कालबेलिया समाज के लोगों की बस्ती में आग लगा दी गई थी आरोपियों की आज तक गिरफ्तारी नहीं हुई है. 

खट्टर सरकार ने छीनी विमुक्त घुमंतू समुदाय के 40 लोगों की सरकारी नौकरी!

हरियाणा सरकार ने डिनोटिफाइड ट्राइब्स यानी विमुक्त घुमंतू जनजाति के अभ्यर्थियों को सरकारी नौकरियों में मिलने वाले पांच अतिरिक्त अंकों का लाभ पहले ही बंद कर दिया है अब इससे आगे बढ़ते हुए सरकार ने विमुक्त घुमंतू समुदाय के अभ्यर्थियों को एक ओर झटका दिया है. सरकार ने 2020 से पहले विमुक्त घुमंतू समुदाय के जिन अभर्थियों को सरकारी नौकरियों में अतिरिक्त पांच अंकों का लाभ दिया था उसको वापस लेते हुए विमुक्त घुमंतू समुदाय के बच्चों को सरकारी नौकरी से हटाकर घर बैठा दिया है. 

मामला 2019 की विज्ञापन संख्या 05/2019 से जुड़ी क्लर्क भर्ती का है. क्लर्क भर्ती में चयनित हुए उम्मीदवारों को सितंबर 2020 में जोइनिंग करवाई गई थी. इस भर्ती में पांच अंकों का अतिरिक्त लाभ लेकर भर्ती हुए विमुक्त घुमंतू समुदाय के भी कुछ उम्मीदवार थे. ये लोग पिछले करीबन दो साल से राज्य के अलग-अलग सरकारी विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे थे लेकिन सरकार ने भर्ती को रिवाइज करने के नाम पर डीएनटी समुदाय से आने वाले अभ्यर्थियों को दिए गए पांच अंक वापस लेकर चयनित उम्मीदवारों को नौकरी से हटा दिया है.

दरअसल इस भर्ती के अंतिम परिणाम को रिवाइज करने का सिलसिला परीक्षापत्र की आंसर-की पर उठे सवाल से शुरू हुआ था. हरियाणा स्टाफ स्लेक्शन कमीशन की ओर से क्लर्क भर्ती की परीक्षापत्र की आंसर-की में तीन सवालों के जवाब गलत दिए गए थे जिसको लेकर कुछ अभ्यर्थी कोर्ट चले गए और कोर्ट ने भर्ती के परिणाम को दोबारा रिवाइज करने का आदेश दिया था.

कोर्ट ने अपने आदेश में विमुक्त घुमंतू समूह के अभ्यर्थियों को दिए गए पांच अतिरिक्त अंकों के लाभ पर कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन इसके बावजूद हरियाणा सरकार ने डीएनटी समूह के अभ्यर्थियों को दिए गए पांच नंबर वापस लेकर करीबन 40 अभ्यर्थियों को नौकरी से हटा दिया है. 

नौकरी से भारमुक्त किये जाने का नोटिस

इसको लेकर नौकरी से हटाए गये सभी क्लर्क मानसिक तनाव में हैं. नाम न बताने की शर्त पर एक कर्मी ने बताया, “कईं ऐसे भी कर्मचारी हैं जिन्होंने अन्य नौकरी छोड़कर क्लर्क की नौकरी ज्वाइन की थी. साथ ही कुछ ऐसे भी साथी हैं जिनके पूरे परिवार की जीविका का साधन केवल यह नौकरी ही थी और कुछ ऐसे भी साथी हैं जिनके पूरे परिवार में पहली सरकारी नौकरी लगी थी.”

वहीं क्लर्क की नौकरी से हटाए गए एक और अभ्यर्थी ने बताया, “समाज के सबसे नीचने पायदान पर खड़े विमुक्त घुमंतू समाज के बच्चों को सरकारी नौकरियों में लाने की सरकार की एक अच्छी पहल थी लेकिन यह हमारे साथ धोखा हुआ है. एक तो सरकार ने विमुक्त घुमंतू समाज के बच्चों को आने वाली भर्तियों में मिलने वाले पांच अतिरिक्त अंक बंद कर दिये हैं ऊपर से हमारी लगी लगाई पक्की नौकरी छीन ली. सरकार ने हमारे डीएनटी समाज के साथ धोखा किया है.”

डीएनटी समूह के अभर्थियों को दिये गए 5 नंबर

हरियाणा में करीबन 20 लाख की आबादी वाले डीएनटी समूह को लेकर सरकार ने इससे पहले भी अनेक वादे किये हैं लेकिन आज तक एक भी वाद पूरा नहीं किया गया है. वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने विमुक्त घुमंतू जातियों के बीच सरकारी नौकरियों में अतिरिक्त पांच अंकों का लाभ देने के वादे के साथ प्रचार-प्रसार किया था लेकिन चुनाव के बाद स्थिति यह है कि इसी समुदाय के करीबन 40 बच्चों को नौकरी से हटाकर घर बैठा दिया है.

वहीं इस मामले को लीड कर रहे और नौकरी से हटाए गए कर्मी ने बताया, “कोर्ट की ओर से क्लर्क भर्ती की रि-इवेल्युएशन के आदेश थे न कि भर्ती की एक्सरसाइज के लेकिन सरकार की ओर से इस पूरी भर्ती प्रक्रिया की रि-इवेल्युएशन करने की बजाए री-एक्सरसाइज कर दी गई है.” 

हरियाणा सरकार द्वारा डीएनटी बोर्ड बनाया गया है. डीएनटी बोर्ड के अध्यक्ष डॉ बलवान सिंह ने इस मामले पर कहा, “यह मामला हमारे संज्ञान में है और हम इस मसले पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मुलाकात करके अपनी बात रखेंगे.”

पानीपत: नहर किनारे रह रहे घुमंतू परिवारों पर जान का खतरा!

औद्योगिक शहर पानीपत के असन्ध रोड पर नहर किनारे करीबन सौ घुमंतू परिवार झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं. चारों और से ट्रैफिक के शोर-गुल और धूल-मिट्टी से घिरे इस महौल में सैकड़ों बचपन बीत रहे हैं. नहर की कच्ची पटरी के किनारे रह रहे इन परिवारों के लिए हर दिन एक नई चुनौती बनकर आता है. नहर किनारे होने के कारण इन झोपड़ियों में आये दिन सांप के काटने का खतरा बना रहता है. आजादी के सात दशक बाद भी देश की एक बड़ी आबादी मकान और जीवन की मूलभूत जरुरतों के बिना रहने को मजबूर हैं.   

दोपहर के करीबन एक बजे हैं. बांस और तिरपाल से बनी सौ परिवारों की बस्ती में से तीसरी झोपडी बसंती की है. दोपहर के खाने के बाद बसंती अपने परिवार के सदस्यों के साथ बैठीं हैं. बुढ़ापा पेंशन के सवाल पर करीबन 62 साल की बसंती ने बताया, “इन सौ विमुक्त घुमंतू परिवारों में 20 से 25 बुजुर्ग ऐसे हैं जिनकी बुढ़ापा पेंशन नहीं बन पाई है. मेरे पास आधार कार्ड और वोटर कार्ड भी है. बुढ़ापा पेंशन के लिए कईं बार सरकारी दफ्तर के चक्कर लगाए लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.” बच्चों की पढ़ाई के सवाल पर बसंती ने बताया, “पहले एक मैडम यहां पढ़ाने आती थीं लेकिन पिछले कुछ महीनों से वो भी नहीं आ रहीं हैं.

आज से करीबन 65 साल पहले घुमंतू जीवनयापन करते हुए राजस्थान से निकले मूँगा बावरिया समाज के घुमंतू परिवार पानीपत शहर के होकर रह गए. इन 65 सालों के सफर में ये लोग शहर की अलग-अलग जगहों से हटाये गये. बावरिया समाज के घुमंतू परिवार एक जगह से हटाए जाने के बाद दूसरी जगह डेरा डालते गए. इतना लंबा अरसा बीत जाने के बाद भी इस शहर ने इन लोगों को नहीं अपनाया.

शहर की विकास की दौड़ के सामने मूंगा बावरिया समाज के घुमंतू परिवार बहुत पीछे छूट चुके हैं. स्तिथि ये आन बनी है कि विकास की दौड़ ने 65 साल से शहर में रह रहे इन लोगों को शहर से बाहर कर दिया है. अब ये लोग पानीपत-असन्ध बाईपास पर रह रहे हैं.

शनि मंदिर चौक की झुग्गियों में रहने वाले मूँगा बावरिया समाज के अधिकतर लोग गांव-गांव जाकर फेरी का काम करते हैं. ये लोग क्रॉकरी और प्लास्टिक का बना सामान बेचने के बदले पुराने या नये कपड़े लेते हैं। फेरी का काम करने वाले करीबन 25 साल के एक युवा ने बताया कि आज कल गर्मी बहुत है ऐसे में लोग सामान खरीदने के लिए बाहर नहीं निकलते हैं जिसकी वजह से हमारा काम मंदा चल रहा है.

वहीं बसंती की पास वाली झोपड़ी में रहने वाले कबीर बावरिया अपने परिवार के साथ बैठे हुए हैं। कबीर के परिवार में उन्की पत्नी, बेटा, बहू और एक करीबन दसेक साल का पौत्र है. कबीर ने बताया, “बड़ी मुश्किल से घर का गुजारा हो रहा है। फेरी का काम-धन्धा ठप्प पड़ा है. हम प्लास्टिक का सामान बेचने का काम करते हैं, पहले लोग हमारा सामन खरीद लेते थे लेकिन अब बाजार में नये-नये डिजाइन और बड़ी कम्पनियों के सामान आ गए हैं ऐसे में हमारे सामान की बिक्री पहले से बहुत कम हो गई है.”  

इन घुमंतू परिवारों तक सरकारी योजनाओं का कोई लाभ नहीं पहुँच रहा है। वहीं करीबन 65 साल के बंसी ने बताया कि मेरी भी बुढ़ापा पेंशन नहीं बनी है. राशन डिपो वाले हमें राशन देने में आनाकानी करते हैं. हम झुग्गियों वालों को केवल आट्टा देते हैं कोई दाल-चना, चावल, चीनी कुछ नहीं देते.”   

अपने जवान बेटे के साथ झोपड़ी में बैठीं रत्नी देवी ने बताया, “ रोजगार खत्म हो चुका है. शनि मंदिर के बाहर मांगकर खाने को मजबूर हैं. सरकार को सोचना चाहिये हम भी इसी देश के वासी हैं हमें भी प्लॉट मिलना चाहिये. हमें बना बनाया घर नहीं चाहिये हमें बस खाली प्लॉट दे दिया जाए मकान हम अपनी मेहनत से बना लेंगे.”

नहर की कच्ची पटरी पर रह रहे इन लोगों के लिये जान का खतरा बना रहता है. बंसी ने बताया, “बारिश के मौसम में यहां सांप आते हैं. सांप हमारी झोपड़ियों में घुस जाते हैं और कईं बार हमारे लोगों को नुकसान भी पहुंचा चुके हैं.

DNT समाज से आने वाले इन समुदायो की 70 सालों से अनदेखी हो रही है.  केंद्र सरकार की ओर से अगले पांच साल के लिये 200 करोड़ का बजट तय किया गया है लेकिन बीते वित्त वर्ष में डीएनटी बजट का एक पैसा भी इन समुदायों के लिए खर्च नहीं किया गया है.  

रैनके कमीशन-2008 की रिपोर्ट के अनुसार घुमंतू समुदाय के करीबन 90 फीसदी लोगों के पास अपने मकान और 50 फीसदी लोगों के पास पहचान पत्र तक नहीं हैं। विमुक्त घुमंतू एवं अर्धघुमंतू समुदाय को लेकर एनडीए सरकार में गठिन इदाते आयोग की रिपोर्ट आए हुए चार साल और यूपीए सरकार में आई रेनके कमीशन की रिपोर्ट को 14 साल होने को हैं लेकिन दोनों में से किसी भी रिपोर्ट को चर्चा के लिए सदन में पेश नहीं किया गया है. तमाम आयोग और कमेटियों के गठन और इनकी सिफारिशों के बाद भी विमुक्त घुमंतू जनजातियों के उत्थान के लिए कोई काम नहीं हुआ. 

अनेक आयोग और समितियों के बाद भी ज्यों-की-त्यों है विमुक्त-घुमंतू जनजातियों की दशा !

अंग्रेजी हुकूमत के दौरान क्रिमिनल ट्राइब्स के नाम से पहचानी जाने वाली विमुक्त घुमंतू जनजातियां आजादी के सात दशक बाद भी अपने अस्तित्व और पहचान को लेकर संघर्ष कर रही हैं. 15 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाली विमुक्त-घुमंतू जनजातियों की अनदेखी का नतीजा है कि देशभर में डीएनटी समुदाय के 50 फीसदी से ज्यादा लोग बेघर और करीबन 90 फीसदी लोग बिना किसी दस्तावेज के रह रहे हैं.

सबसे पहले आजादी वर्ष 1947 में यूनाइटेड प्रोविंस के अंतर्गत ‘क्रमिनिल ट्राइब इन्कवायरी कमेटी’ बनाई गई. जिसमें इन सभी विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों को मुख्यधारा से जोड़ने की पहल पर विचार किया गया.       

डीएनटी समूह के उत्थान के लिए आजादी से लेकर अब तक कईं आयोग और कमेटियां बनाई गईं. सबसे पहले 1949 में अय्यंगर कमेटी बनी. केंद्र सरकार ने अय्यंगर कमेटी के कुछ सुझावों को मानते हुए कईं सफारिशें लागू की. अय्यंगर कमेटी की रिपोर्ट के बाद 31 अगस्त 1952 को इन जनजातियों को डिनोटिफाई किया गया तभी से इन जनजातियों को डीएनटी (डिनोटिफाइड नोमेडिक ट्राइब्स) के नाम से जाना जाता है. इन जनजातियों को डिनोटिफाई तो किया गया लेकिन साथ ही इनपर हेब्चुएल ऑफेंडर एक्ट यानी आदतन अपराधी एक्ट थोप दिया गया.

इसके बाद 1953 में काकासाहब कालेलकर की अध्यक्षता में बने पहले पिछड़े आयोग ने भी विमुक्त घुमंतू जनजातियों को लेकर अपनी रिपोर्ट में कुछ सिफारिशें की थी. कालेलकर आयोग ने इन जनजातियों पर लगे आपराधिकरण के ठप्पे को हटाने की बात पर जोर देते हुए रिपोर्ट में कहा, ‘इन जनजातियों के साथ क्रिमिनल ट्राइब और एक्स-क्रिमिनल जैसे शब्द नहीं जोड़े जाने चाहिए. साथ ही इन जनजातियों को शहरों और गांवों में बसाने पर जोर देना चाहिए ताकि ये लोग भी अन्य लोगों के साथ घुल-मिल सकें.’

इसके बाद 1967 में बीएन लोकूर की अध्यक्षता में लोकूर कमेटी का गठन किया गया. लोकूर कमेटी की रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए बनाई गई योजनाओं का लाभ विमुक्त घुमंतू जनजातियों तक नहीं पहुंच रहा है. विमुक्त घुमंतू जनजातियों को योजनाओं का लाभ न मिलने की मुख्य वजह थी इनकी कम आबादी और इनका एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमना. अंत में लोकूर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘इन जनजातियों को SC और ST से अलग करके एक विशेष समूह का दर्जा दिया जाना चाहिए और इन जनजातियों के उत्थान के लिए विशेष योजनाएं चलाई जानी चाहिए.’

2002 में जस्टिस वेंकेटेसलाह कमीशन ने रिपोर्ट में कहा, ‘इन जनजातियों पर अपराधी होने का ठप्पा लगाया गया है, वह गलत है. जस्टिस वेंकेटेसलाह कमीशन ने विमुक्त घुमंतू जनजातियों के लिए स्पेशल कमीशन बनाए जाने की सिफारिश की. 2002 की जस्टिस वेंकेटेसलाह कमीशन की सलाह पर 2015-16 में स्पेशल कमीशन का गठन किया गया. डीएनटी कमीशन के गठन के बाद कमीशन में नियुक्तियों को लेकर भी देरी की गई. वहीं कमीशन के गठन के 6 साल तक डीएनटी कमीशन और  डीएनटी जनजातियों की विकास येजनाओं के लिए केवल 45 करोड़ का बजट दिया गया. इस बजट में से भी एक पैसा खर्च नहीं किया गया.

इसके बाद यूपीए सरकार में 2005 में रैनके कमीशन का गठन किया गया. बालकृष्णन रैनके को इस आयोग का अध्यक्ष बनाया गया. बालकृष्णन रैनके स्वयं विमुक्त घुमंतू जनजाति से आते हैं. रैनके कमीशन ने 2008 में अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी. रैनके आयोग की टीम ने तीन साल तक पूरे देश में घूम घूमकर इन जनजातियों से जुड़े आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक पहेलुओं पर सर्वे किए. विमुक्त घुमंतू जनजातियों से जुड़े अब तक के आयोग और कमेटियों में से रैनके आयोग ने बड़े स्तर पर सर्वे किए हैं. इन जनजातियों की राज्यवार संख्या बताने से लेकर अलग-अलग घुमंतू जनजातियों का रहन-सहन, जीविका के साधन, कला और संस्कृति पर भी काम किया है. रैनके कमीशन ने तीन साल में देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर वहां के इन जनजातियों के स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं से मिलकर रिपोर्ट तैयार की. 

रैनके कमीशन ने घुमंतू जनजातियों को अलग से 10 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की है. साथ ही शैक्षणिक उत्थान के लिए घुमंतू जनजातियों के बच्चों के लिए बॉर्डिंग स्कूल खोलने, विमुक्त घुमंतू परिवारों को जमीन देकर घर बनवाने और दस्तावेज बनाने की सिफारिश की है.

रैनके कमीशन ने अपने सर्वे में पाया कि विमुक्त घुमंतू जनजाति से जुड़े 98 फीसदी लोगों के पास अपने दस्तावेज और 58 फीसदी लोगों के पास रहने के लिए मकान तक नहीं हैं.  

सभी विमुक्त घुमंतू जनजातियों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग में सूचिबद्ध किया गया है जिसके चलते इन जनजातियों से जुड़े लोगों तक सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच रहा है. जिसके चलते रैनके कमीशन ने इन जनजातियों के लिए अलग से 10 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की थी.             

इसके बाद 2015 में एनडीए सरकार में इदाते कमीशन का गठन किया गया. भीखूराम इदाते को कमीशन का अध्यक्ष बनाया गया. भीखूराम इदाते आरएसएस के नेता हैं जो आरएसएस के जरिए महाराष्ट्र में विमुक्त घुमंतू जनजातियों के बीच काम करने का दावा करते हैं. इदाते कमीशन ने 2018 में केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी. इदाते कमीशन की रिपोर्ट में भी विमुक्त घुमंतू जनजातियों के विकास के लिए सिफारिशें की गईं लेकिन इसी बीच इदाते कमीशन के काम करने के तरीके पर भी सवाल खड़े हुए. कईं मीडिया रिपोर्ट्स में इदाते कमीशन पर आरोप लगे की कमीशन ने जनजातियों के बीच जाकर कम और अन्य रिपोर्ट्स के आधार पर रिपोर्ट तैयार की है.

इस बीच सबसे दिलचस्प बात ये है कि रैनके कमीशन द्वारा डीएनटी को अलग से दस फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश को इदाते कमीशन ने मानने से इनकार कर दिया और इदाते कमीशन की रिपोर्ट में इन जनजातियों के लिए दस फीसदी आरक्षण की मांग को आगे नहीं बढ़ाया गया है. एनडीए सरकार में गठिन इदाते आयोग की रिपोर्ट आए हुए चार साल से ज्यादा बीत चुका है लेकिन अब तक इस रिपोर्ट को चर्चा के लिए सदन में पेश नहीं किया गया है.

तमाम आयोग और कमेटियों के गठन और इनकी सिफारिशों के बाद भी विमुक्त घुमंतू जनजातियों के उत्थान के लिए कुछ काम नहीं हुआ.

विमुक्त घुमंतू जनजातियों को लेकर राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग ने फिर जारी किया योगी सरकार को नोटिस!

उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा विमुक्त घुमंतू और अर्धघुमंतू जनजातियों को सरकारी योजनाओं से वंचित रखने की शिकायत पर संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उत्तरप्रदेश की योगी सरकार को एक बार फिर नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. इससे पहले अगस्त 2021 में राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग ने विमुक्त घुमंतू और अर्धघुमंतू जनजातियों संबंधी शिकायत पर संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर मामले में कार्रवाई न करने पर कानूनी दंढ भुगतने की चेतावनी जारी की थी. 

इस मामले में उत्तर प्रदेश के सामाजिक कार्यकर्ता मोहित तंवर ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को यूपी सरकार के खिलाफ शिकायत की है. मोहित तंवर ने अपनी शिकायत में सरकार द्वारा विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुंचाने का आरोप लगाया है.

दरअसल उत्तर प्रदेश में 29 जातियों को विमुक्त घुमंतू जनजाति का दर्जा प्राप्त है. फिलहाल ये जनजातियां अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग में शामिल हैं. जिसके चलते इन जातियों को डीएनटी (डिनोटिफाईड ट्राईब्स)  को मिलने वाली योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

इन जनजातियों को अब तक विमुक्त घुमंतू जाति के प्रमाणपत्र भी जारी नहीं किये गए हैं. जाति प्रमाण पत्र न होने के कारण इन जनजातियों को सरकारी योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल रहा है.  

इन जातियों को न केवल उत्तर प्रदेश सरकार की योजनाओं का बल्कि केंद्र सरकार की योजनाओं का भी लाभ नहीं मिल पा रहा है. डीएनटी प्रमाण पत्र बनाने की मांग को लेकर कईं सामाजिक संगठन लगातार मांग कर रहे हैं.

दरअसल उत्तर प्रदेश सरकार ने विमुक्त जातियों को मिलने वाली योजनाओं के लाभ को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के साथ मिला रखा है. ऐसे में अगर विमुक्त घुमंतू जनजाति का कोई अभ्यर्थी दावेदार नहीं मिलता है तो उनके बजट का पूरा लाभ अपने आप अनुसूचित जातियों के खाते में ट्रांसफर हो जाता है. विमुक्त जाति के प्रमाण पत्र के अभाव में विमुक्त जाति के छात्र और अभ्यर्थी अपने हक का दावा नहीं कर पा रहे  हैं.

इससे पहले भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव से इस मामले में दो हफ्ते के भीतर विमुक्त जातियों को जाति प्रमाण पत्र जारी करने का कड़ा निर्देश देते हुए फटकार लगाई थी लेकिन कोई कर्रवाई नहीं हुई. एक बार फिर से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने यूपी सरकार को चार सप्ताह के भीतर विमुक्त घुमंतू समुदाय संबधी शिकायत दूर करने के निर्देश दिए हैं.