विमुक्त घुमंतू जनजातियों का ‘विमुक्ति दिवस’ और अखबारों की जीरो कवरेज!

 

31 अगस्त को विमुक्त घुमंतू एवं अर्ध घुमंतू जनजातियों (डिनोटिफाइड एंड नोमेडिक ट्राइब्स) ने अपना 71वां आजादी दिवस मनाया. इस अवसर पर आज के हिंदी और अंग्रेजी के सभी राष्ट्रीय और स्थानीय अखबारों से डीएनटी समुदाय के आजादी दिवस समारोह की कवरेज गायब रही. अंग्रेजी के किसी भी राष्ट्रीय अखबार ने 20 करोड़ की आबादी से जुड़े विमुक्ति दिवस को कवर करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. इसके साथ ही हिंदी के लगभग सभी अखबारों का भी यही हाल रहा. गांव-सवेरा की ओर से विमुक्त घुमंतू समुदाय की कवरेज को लेकर की गई पिछले साल की रिपोर्ट में भी यही स्थिति सामने आई थी.

31 अगस्त 1952 को इन समुदायों को क्रिमिनल ट्राईब एक्ट से आजादी मिली तो यह दिन विमुक्ति दिवस के रुप में मनाया जाने लगा. इस अवसर पर देश के विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रम भी किए गए, जिनमें नेताओं से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया. पर 1 सितंबर के अखबारों को टटोलने पर डीएनटी समुदाय के विमुक्ति समारोह से संबंधित कोई खबर नहीं दिखाई दी.

प्रगतिशील माने जान वाले अंग्रेजी के एक भी अखबार में न तो 31 अगस्त को कोई फीचर या आर्टीकल पढ़ने को नहीं मिला और न ही 1 सितंबर को विमुक्ती दिवस की कवरेज की गई. किसी भी अखबार में विमुक्त घुमंतू जनजातियों के आजादी दिवस समारोह को लेकर एक कॉलम तक की खबर नहीं है. अंग्रेजी के जिन अखबारों को हमने टटोला उनमें द हिंदू, द इंडियन एक्सप्रेस, द टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स अखबार शामिल रहें.

वहीं हिंदी के अखबारों का भी यही हाल रहा. जनसत्ता, दैनिक जागरण, अमर उजाला, हरि भूमि जैसे राष्ट्रीय दैनिक अखबारों का भी यही हाल रहा. दैनिक भास्कर के लॉकल एडिशन को छोड़ दें तो इसमें भी राष्ट्रीय स्तर पर विमुक्ति दिवस समारोह की कोई कवरेज नहीं की गई. 2011 की जनगणना के अनुसार देश में इन जनजातियों की कुल जनसख्यां 15 करोड़ रही यानी आज के हिसाब से करीबन 20 करोड़ की जनसंख्या के लिए भारतीय अखबारों में कोई जगह नहीं है.

प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर करनाल भास्कर की कवरेज.

वहीं सामाजिक न्याय की बात करने वाले वैकल्पिक मीडिया के नाम पर खड़े हुए न्यू मीडिया के संस्थानों ने भी विमुक्ति दिवस पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. यू-ट्यूब से लेकर सोशल मीडिया के प्रगतिशील कहे जाने वाले संस्थान भी 20 करोड़ की आबादी पर एक शब्द नहीं बोल और लिख पाए.

डिनोटिफाइड ट्राइब्स के बीच काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता बालक राम ने पिछले साल मीडिया की कवरेज को लेकर भी यही बात कही थी और आज फिर उन्होंने अपनी बात को दोहराते हुए कहा, “मीडिया ने हमेशा से विमुक्त घुमंतू और अर्ध घुमंतू जनजातियों की अनदेखी की है. मीडिया से हमारे 20 करोड़ के समाज  को कोई उम्मीद नहीं है. मीडिया को केवल चटकारे वाली खबरों से मतलब है और हम चटकारे देने वाले मेटिरियल नहीं हैं. भारत के मीडिया को पीड़ित और हाशिए के समाज से कोई मतलब नहीं है इसके उलट मीडिया हमारी जनजातियों को निशाना बनाने की खबरें छापता है. यह बहुत दुख की बात है कि करीबन 20 करोड़ की आबादी की बात आती है तो इस देश के अखबारों की स्याही सूख जाती है.”