लोकसभा में विमुक्त घुमंतू जनजातियों से जुड़े सवालों पर सरकार के रटे रटाये जवाब!

 

कर्नाटक के दावनगिरी से लोकसभा सांसद जी एम सिद्धेश्वर ने विमुक्त घुमंतू जनजाति यानी डिनोटिफाइड ट्राइब्स से जुड़े पांच सवाल पूछे. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से सवालों के लिखित जवाब दिए गए. 

लोकसभा में विमुक्त घुमंतू जनजाति से जुड़े पूछे गए सवाल

क्या सरकार की ओर से विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग स्थापित करने संबंधी कोई प्रस्ताव लाया गया है?

अगर सरकार द्वारा इस तरह का कल्याणकारी प्रस्ताव तैयार किया गया है तो उसकी जानकारी दिजिए?

डीएनटी और एनसीडीएनटी राष्ट्रीय आयोग द्वारा की गईं सिफारिशों को लागू करने के लिए सरकार ने कौन से कदम उठाए?

क्या पिछड़ा वर्ग की तर्ज पर डीएनटी और एनसीडीएनटी को भी कल्याणकारी सुविधाएं देने का प्रस्ताव है?

डीएनटी के विकास के लिए कौन-कौन सी योजनाएं बनाई गईं हैं? योजनाएं कब तक पूरी होंगी?

27 जुलाई को राज्य मंत्री प्रतिमा भौमिक ने सवालों के लिखित जवाब दिए. आयोग की स्थापना को लेकर पूछे सवाल पर जवाब दिया कि डीएनटी और एनसीडीएनटी आयोग का गठन 2014 में कर दिया गया था. 

डीएनटी और एनसीडीएनटी आयोग सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत आता है. आयोग के गठन को करीबन सात साल हो चुके हैं लेकिन आज तक आयोग की अपनी वेबसाइट नहीं बन पाई है. समाजिक न्याय मंत्रालय की वेबसाइट पर डीएनटी और एनसीडीएनटी आयोग की वेबसाइट का लिंक तो दिया गया है लेकिन लिंक खुलता नहीं हैं. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार इन जनजातियों को लेकर कितनी गंभीर है. 

डीएनटी आयोग की वेबसाइट का हाल

दूसरे सवाल के जबाव में कहा गया कि सरकार द्वारा इन जनजातियों के कल्याण के लिए कईं योजनाएं शुरू की गईं हैं.

जिसमें मंत्रालय ने डीएनटी से जुड़े छात्रों के लिए डॉ अंबेडकर प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप देने की बात कही. साथ ही नानाजी देशमुख के नाम से इन जनजातियों के छात्रों के लिए होस्टल की योजना का भी जिक्र किया गया है. 

अब सबसे बड़ा खेल इन जनजातियों के वर्गीकरण को लेकर हो रहा है डीएनटी और एनसीडीएनटी में आने वालीं सभी जातियां अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग में आती हैं. ऐसे में जब डीएनटी के छात्रों को स्कॉलरशिप और होस्टल देने की बात आती है तो उसमें सरकार द्वारा एक शर्त रखी गई है. शर्त है कि सम्बंधित योजना का लाभ लेने वाला उम्मीदवार एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग में नहीं होना चाहिए. ऐसे में सवाल उठता है कि इन योजनाओं का लाभ कौन लेगा क्योंकि डीएनटी और एनसीडीएनटी में आने वाली सभी जनजातियां तो एससी, एसटी या फिर ओबीसी वर्ग में वर्गीकृत हैं.     

 

उदाहरण के तौर पर हरियाणा में नट, सपेरा, भेड़कुट, ओड, सिकलीगर, गाड़िया लौहार, सांसी समेत कईं अन्य डीएनटी जातियां अनुसूचित जाति में वर्गीकृत हैं. ऐसे में डीएनटी से होते हुए भी इन जातियों के छात्र इस स्कॉलरशिप और हॉस्टल की सुविधा का लाभ नहीं ले पाएंगे. वहीं गांव-सवेरा की एक रिपोर्ट में डीएनटी छात्रों के लिए होस्टल की पड़ताल की गई है. पड़ताल करने पर पता चला कि हरियाणा में डीएनटी छात्रों के लिए कोई हॉस्टल नहीं चलाया जा रहा है.

वहीं डीएनटी और एनसीडीएनटी राष्ट्रीय आयोग द्वारा की गईं सिफारिशों को लागू करने के सवाल पर सरकार ने जवाब दिया कि डीएनटी जनजातियों के विकास के लिए डीएनटी विकास बोर्ड का गठन किया गया है. विकास बोर्ड का गठन तो किया गया लेकिन विकास बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति में भी देरी की गई. साथ ही सवाल में विमुक्त घुमंतू जनजातियों के सर्वे की भी बात कही गई लेकिन अब तक आयोग की ओर से इस तरह का कोई सर्वे नहीं किया गया है. हरियाणा सरकार ने डीएनटी से जुड़ी जनजातियों को लेकर राजीव जैन कमेटी बनाई थी जिसकी रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई है.   

वहीं डीएनटी समुदाय के आर्थिक विकास संबंधी योजनाओं की जानकारी देते हुए जवाब दिया गया कि डीएनटी छात्रों के लिए कॉचिंग की व्यवस्था, डीएनटी समुदाय से जुड़े परिवारों के लिए स्वास्थ्य सुविधा और मकान बनाने के लिए आर्थिक मदद करने की बात कही गई. लेकिन असल हकीकत यह है कि डीेएनटी परिवारों तक इऩ योजनाओं का कोई लाभ नहीं पहुंचा है

अंतिम सवाल जिसमें डीएनटी समुदाय के लिए बनाई गई योजनाओं के खत्म होने का समय पूछा गय़ा है. सरकार द्वारा योजनाओं के खत्म होने के समय का जवाब नहीं दिया गया है. अंतिम सवाल का जवाब न देने के पीछे का कारण है कि जब योजनाएं शुरू ही नहीं हुई हैं तो योजनाओं के खत्म होने का समय कैसे बताया जाए.      

बता दें कि 2005 में यूपीए की सरकार में डीएनटी समुदाय के विकास के लिए रैनके कमीशन का गठन किया गया था. रैनके कमीशन ने 2008 में अपनी रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट के अनुसार डीएनटी समुदाय के 50 फीसदी लोगों के पास खुद के दस्तावेज तक नहीं है. वहीं 98 फीसदी लोगों के पास अपनी जमीन और मकान नहीं है. रैनके कमीशन ने डीएनटी समुदाय के विकास के लिए अलग से 10 फीसदी आरक्षण की भी सिफारिश की.  

वहीं 2015 में एनडीए सरकार ने भी डीएनटी के विकास के लिए इदाते कमीशन का गठन किया गया. इदाते कमीशन ने फरवरी 2018 में अपनी रिपोर्ट पेश की. इदाते कमीशन ने 10 फीसदी आरक्षण देने की सिरारिश से किनारा कर लिया. इस बीच इन दोनों में से किसी भी रिपोर्ट को आज तक चर्चा के लिए सदन के पटल पर नहीं रखा गया है.