बृजभूषण ने कहा, “पहलवानों के आंदोलन का खालिस्तानी और टुकड़े-टुकड़े गैंग के साथ कनेक्शन”

यौन शोषण के आरोपी कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण के खिलाफ जारी आंदलोन को एक महीना बीत चुका है. दोनों ओर से आरोप प्रत्यारोप के बीच बृजभूषण सिंह का एक और नया बयान आया है. बृजभूषण ने पहलवानों के आंदोलन को लेकर एक न्यूज चैनल को इंटरव्यू के दौरान पहलवानों के आंदोलन का खालिस्तानी कनेक्शन बताया है.

बृजभूषण ने अपने बयान में कहा, “पहलवानों का आंदोलन हाथ से निकल चुका है. पहलवान तो केवल मोहरा है अब यह पहलवानों का आंदोलन नहीं रहा है. पहलवानों के आंदोलन का खालिस्तानी, शाहिन बाग और टुकड़े-टुकड़े गैंग के साथ कनेक्शन है.”

बृजभूषण ने आगे कहा, “जो ताकतें किसान आंदोलन में सक्रिय थीं पहलवानों के आंदोलन के पीछे भी उन्हीं ताकतों का हाथ है. मुझे निशाना बनाना तो एक बहाना इनका असली निशाना पीएम मोदी है. खालिस्तानी ताकतें पहलवानों के कंधों का सहारा लेकर यह आंदोलन चला रही हैं.”

बता दें कि आंदोलन के एक महीना पूरा होने पर पहलवानों ने भी आंदोलन को अगले पड़ाव में ले जाने के लिए खाप का मदद से 28 मई को संसद भवन की नई बिल्डिंग के उद्धघाटन समारोह वाले दिन महिला पंचायत का आयोजन किया है. इस महापंचायत से जो फैसले लिए जाएंगे उन पर खाप और किसान नेता पहलवानों के साथ खड़े रहेंगे.      

HCS एग्जाम में 32 सवाल रिपीट, विपक्ष ने लगाये अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के आरोप!

एचपीएससी यानी हरियाणा लोकसेवा आयोग एक बार फिर सुर्खियों में है. इस बार विवाद 21 मई को हुए एचसीएस (हरियाणा सिविल सर्विस एंड एलाइड सर्विसिज) एग्जाम को लेकर हुआ है. इस एग्जाम के सीसेट पेपर में 32 सवाल पिछली बार हुई परीक्षा में से पूछे गए हैं. दरअसल, ये वे सवाल हैं, जो पिछली बार हुई परीक्षा में भी थे. वहीं विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इसको लेकर सरकार पर निशाना साधते हुए इसे एक भ्रष्टाचार का मामला बताया है.

बता दें कि एचसीएस चयन प्रक्रिया में आगे बढ़ने के लिए अभ्यर्थियों को सीटेट यानी सिविल सर्विस एप्टिट्यूट टेस्ट पास करना अनिवार्य है. सीटेट पास करने के लिए 33 अंक लेने अनिवार्य हैं ऐसे में 32 सवाल पुराने होने की वजह से विवाद गहरा गया है. विपक्ष ने आरोप लगाया कि जब 32 सवाल ही पुराने हैं तो फिर 33 अंक लेने में क्या परेशानी आएगी. कांग्रेस ने इसे साजिश करार देते हुए आरोप लगाया कि अपने चहेतों को पेपर पास करवाने के लिए आयोग ने यह काम किया है.

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के सिटिंग जज की देखरेख में इसकी उच्च स्तरीय जांच करवाने की मांग की है. सुरजेवाला ने कहा, “नौकरियों में भर्ती घोटालों के चलते आयोग पहले से चर्चाओं में रह चुका है. आयोग के डिप्टी सेक्रेटरी रहे अनिल नागर को विजिलेंस द्वारा पैसों के साथ गिरफ्तार किया जा चुका है. उनके कब्जे से ओएमआर शीट भी मिली थी. उन्होंने कहा कि पुरानी परीक्षा वाले सवाल पूछकर अपनों को एडजस्ट करने की कोशिश की है” सुरजेवाला ने कहा, “भाजपा-जजपा सरकार के चहेतों को सैट करने के मकसद से ‘सीसेट’ का पर्चा लीक करने का बड़ा ही बेशर्मीपूर्ण तरीका निकाला है. सीसेट’ के पेपर में 100 में से 32 प्रश्न पिछली बार की परीक्षा के पेपर से कॉमा-फुलस्टॉप तक बदले बिना यूं के यूं नकल करके दे दिए.”

वहीं हरियाणा में होने वाली सरकारी भर्तियों पर नजर रखने वालीं सामाजिक कार्यकर्ता स्वेता ढुल ने भी इसको एक पेपर लीक मामला बताते हुए ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की.

कर्नाटक जीत से उत्साहित कांग्रेस का बड़ा दांव, हुड्डा ने कर दिये ये बड़े वादे!

कर्नाटक में अपने पांच प्रमुख दावों के चलते एक तरफा बहुमत की सरकार बनाने वाली कांग्रेस के नेता अब अन्य राज्यों में होने जा रहे चुनावों में भी यही मॉडल अपनाने जा रहे हैं. कर्नाटक जीत का असर हरियाणा कांग्रेस के प्रमुख नेता पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर भी दिखाई दिया. दरअसल भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने गढ़ी-सांपला में एक जनसभा के दौरान कईं बड़े वादे किए.

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा अगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है तो बुढ़ापा पेंशन 6 हजार रुपये महीना की जाएगी. गरीब परिवारों को 100-100 गज के प्लॉट दिए जाएंगे. कौशल रोजगार निगम को खत्म करके युवाओं को पक्की नौकरी देने का वादा किया. वहीं बढ़ती मंहगाई से राहत देने के लिए एलपीजी गैस सिलेंडर केवल 500 रुपये में उपलब्ध करवाने की बात कही साथ ही युवाओं को रोजदार देने के लिए एक लाख 82 हजार रिक्त पदों को भरने का भी वादा किया. वहीं 300 यूनिट फ्री बिजली का वादा करने के साथ साथ पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने का भी वादा किया.

हरियाणा कांग्रेस के ट्विटर हैंडल ने जारी किया वीडियो

यानी हरियाणा में भी कांग्रेस कर्नाटक की तर्ज पर अपने इन मुख्य वादों के साथ चुनाव लड़ने जा रही है. ऐसे में कांग्रेस के इन वादों के बीच प्रदेश में जेजेपी के सहयोग से सरकार चला रही बीजेपी के लिए आगामी विधानसभा चुनाव एक बड़ी चुनौती बन सकता है.

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़ ने कांग्रेस के वादों पर पलटवार करते हुए कहा. “कर्नाटक जीत के बाद जो कांग्रेस फूली नहीं समा रही है उसकी यह खुशफहमी कुछ ही दिनों की है, क्योंकि राजस्थान चुनाव जीतने के कुछ समय बाद ही कांग्रेस पार्टी ने हरेक चुनाव हारा था. अभी चुनावों में समय है और हम पूरी तरह आश्वसत हैं कि हमारी पार्टी प्रदेश में लोकसभा की दस की दस सीट जीतेगी और विधानसभा का चुनाव जीतकर प्रदेश में तीसरी बार सरकार बनाएगी.”

विपक्ष को हल्के में नहीं ले सकते: पीएम मोदी

2024 लोकसभा चुनाव और इस साल होने वाले 9 राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर बीजेपी कमर कसती दिखाई दे रही है. दिल्ली में बीजेपी की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी नेताओं को गलत बयानबाजी से बचने की नसीहत दी. मोदी ने पार्टी नेताओं को संबोधित करते हुए कहा कि हमें पसमांदा, बोहरा मुस्लिम और अन्य मुस्लिम समाज के लोगों के बीच जाकर उनसे संवाद करना चाहिए. हमें वोट की चाह के बिना समाज में हाशिये पर खड़े लोगों के बीच जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि “हमें सिख, ईसाई समुदाय के लोगों के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज करानी है. मोदी ने कहा चुनाव में केवल 400 दिन बचे हैं ऐसे में हमें समाज के कमजोर वर्गों के बीच जाकर काम करना होगा.

वहीं मोदी ने विपक्ष को हल्के में नहीं लेने और विपक्ष से सतर्क रहने की नसीहत देते हुए कहा कि 1998 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से सीख लेनी चाहिए कैसे हम कांग्रेस पार्टी की लहर नहीं होने के चलते भी चुनाव हार गए थे.

वहीं मोदी ने 18 से 25 साल के युवा वर्ग को भी साधने की बात पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि हमें 18 से 25 साल के युवा वर्ग तक पहुंच बनानी होगी इस युवा वर्ग को पिछली सरकार के भ्रष्ट्राचार और नाकामयाबियों के बारे में बताना होगा. साथ ही मोदी ने पार्टी के लोगों को अलग-अलग क्षेत्रों के पेशेवर लोगों से मिलने और उनसे जुड़ने के लिए विश्वविद्यालयों और चर्चों जैसे स्थानों पर भी जाने के लिए कहा.

महिला कोच से छेड़छाड़ के आरोपी मंत्री संदीप सिंह के बचाव में आए मुख्यमंत्री मनोहर लाल!

एडिशनल एडवोकेट जनरल दीपक सब्बरवाल का इस तरह से राज्य मंत्री संदीप सिंह की पैरवी के लिए चंडीगढ़ पुलिस के सामने खड़े होना सरासर गलत है. यह संदीप सिंह पर कोई सरकारी मामला नहीं है, जो सब्बरवाल खड़े हों. यह व्यक्तिगत मामला है. भले ही तकनीकी तौर पर सब्बरवाल संदीप सिंह की पैरवी कर सकते हों और नियम उनके हक में हों, लेकिन उनके ऐसा करने से हरियाणा में चल रही जांच प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती. संदीप सिंह के मामले में चंडीगढ़ पुलिस की केस फाइल में क्या कुछ है, यह वकील होने के नाते सब्बरवाल को पता चल जाएगा और यहां जो फैक्ट फाइंडिंग कमिटी काम कर रही है, उस पर उक्त जानकारी के आधार पर राज्य मंत्री संदीप सिंह के मार्फत दबाव डलवा सकते हैं. इस मामले के कई सारे लिंक हरियाणा से संबंध रखते हैं, इसलिए सब्बरवाल को न तो संदीप सिंह की वकालत करनी चाहिए और राज्य सरकार अगर सबकुछ निष्पक्ष चाहती है (हालांकि, मुझे नहीं लगता. क्योंकि मुख्यमंत्री खुद ही ऐसी-ऐसी बयानबाजी कर रहे हैं, जो उनके कद के हिसाब से शोभा नहीं देता. इस प्रकरण में एक-एक शब्द के मायने निकालें जाएं तो यह अत्यंत निंदनीय हैं. कोई विपक्षी ऐसा बयान दे देता तो अभी तक भाजपाई उसकी खाल खींच देते.) तो सब्बरवाल पर कार्रवाई करनी चाहिए.

क्योंकि, इससे पहले डिप्टी एडवोेकेट जनरल रहे गुरदास सिंह सलवारा को हरियाणा सरकार ने हटा दिया था. पंचकूला सीबीआई कोर्ट द्वारा गुरमीत सिंह को दुष्कर्म के मामले में सजा सुनाए जाने के बाद सलवारा उनके साथ खड़े नजर आए थे. इस मामले में भी राज्य मंत्री संदीप के मामले की तरह प्रोसिक्यूसन एजेंसी हरियाणा नहीं अलग थी. संदीप सिंह के मामले में चंडीगढ़ पुलिस प्रोसिक्यूसन एजेंसी है तो गुरमीत सिंह के मामले में सीबीआई थी. सलवारा ने गुरमीत सिंह की तरफ से पैरवी भी नहीं की थी, जबकि सब्बरवाल तो संदीप सिंह की पैरवी कर रहे हैं. जब हरियाणा सरकार सलवारा की मौजूदगी को लीगल Propriety का मामला मानते हुए हटाने का कदम उठा सकती है तो फिर सब्बरवाल पर कार्रवाई से क्यों बच रही है? क्या मुख्यमंत्री ने ही सब्बरवाल को संदीप सिंह का साथ देने के लिए भेजा है? अगर कार्रवाई नहीं होती है तो फिर यही समझा जाएगा कि जिस तरह से बयानबाजी में मुख्यमंत्री संदीप सिंह को क्लीन चिट देने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं, कानूनी तौर पर भी उसे बचाने की हद तक जाने को तैयार हैं. लेकिन, ये जनता है, सब समझती है.

आज के अखबारों में मुख्यमंत्री मनोहर लाल का लंबा-चौड़ा बयान पढ़ा. इसे पढ़ कर हंसी भी आई, पीड़ा भी हुई. हंसी की वजह यह रही कि महिला कोच से छेड़छाड़ के आरोपी राज्य मंत्री संदीप सिंह के पक्ष में मुख्यमंत्री कितनी मुखरता के साथ खड़े हो गए हैं. पीड़ा इस बात की हुई कि प्रदेश की राजनीति के सर्वोच्च ओहदे पर विराजमान मनोहर लाल ने ये शब्द कहे. यानी, वहां बैठे किसी भी शख्स के मुखारविंद से इस तरह की शब्दावली की उम्मीद कम से कम कोई भी कानून पसंद आम हरियाणवी तो कर ही नहीं सकता.

मुख्यमंत्री जी, आप भले ही छेड़छाड़ के मामले की गंभीरता को न समझते हों, लेकिन यह जरूर समझने का प्रयास करें कि किसी भी बेटी-महिला की अस्मिता से इस तरह किसी को भी छेड़छाड़ की खुली छूट कतई नहीं दी जा सकती. अभी तक मैं कितनी ही बार सोचता था, कहता भी था, कि मुख्यमंत्री भले आदमी हैं, लेकिन उनके चारों ओर कुछ ऐसे लोग हैं, जो समय-समय पर उन्हें गुमराह करते हैं. अपने निजी स्वार्थ में मुख्यमंत्री से कुछ न कुछ ऐसा करवा जाते हैं, जो कम से कम मुख्यमंत्री को नहीं कहना या करना चाहिए. लेकिन, इस बार जो बयान आपके पास से आया है, उसमें चारों ओर मौजूद जुंडली-मंडली का कोई अधिक रोल न मानते हुए मैं तो सीधे तौर पर आपको ही जिम्मेदार मानता हूं. आप बार-बार कहते हैं कि हरियाणा आपका परिवार है. हर हरियाणवी आपका भाई, बेटा, बहन, मां आदि आदि हैं. तो फिर अब क्या हो गया, जो बेटी को न्याय दिलाने की बजाए अपने राज्य मंत्री को हर तरीके से बचाने की भाषा बाेल रहे हैं? क्यों चंडीगढ़ पुलिस के सामने पैरवी करने के लिए हरियाणा सरकार के अडिशनल अटॉर्नी जनरल दीपक सब्बरवाल की अंदरखाने जिम्मेदारी तय की गई?

https://fb.watch/hYYrRke24b/

मुख्यमंत्री जी, आपके अनुसार अगर छेड़छाड का आरोपी अपने दफ्तर आकर राज्य मंत्री के तौर पर काम कर सकता है तो फिर पुलिस को कह दीजिए कि सैकड़ों छुटपुट मामलों के आरोपियों को पकड़ना बंद कर दे. क्यों लूट की योजना बनाते पकड़े गए युवाओं को गिरफ्तार कर जेल भेजा जाता है? जबकि, उन्होंने तो सिर्फ योजना बनाई थी, और तो कुछ किया ही नहीं. क्यों, चोरी के आरोपी को पकड़ कर जेल भेजा जाता है, क्योंकि मौके पर तो वह भी नहीं पकड़ा गया. क्यों, स्नैचिंग के आरोपी को पकड़ कर जेल भेजते हैं, जबकि मौके पर तो यह भी नहीं पकड़ा गया. क्यों, चाकू-कट्टे के साथ पकड़े गए आरोपी को अरेस्ट किया जाता है, जबकि कोई भी वारदात तो इन्होंने अभी तक की भी नहीं? बदलवा दीजिए नियम-कायदे. क्यों हजारों बेगुनाहों को आरोपी बनते ही अरेस्ट होना पड़ता है, क्यों तुरंत जेल जाना पड़ता है. इन्हें भी संदीप सिंह की तरह राहत दिलाने का प्रयास तो कीजिए. ले लीजिए इनका भी पक्ष. जितने न्याय प्रिय होकर आप राज्य मंत्री को बचाने की कोशिश में दिखाई दे रहे हैं, उतनी कोशिश इन बाकी के लिए भी करेंगे तो आपको तो अगले चुनाव में वोट मांगने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी. ये ही जितवा देंगे आपको चुनाव. तो बिना देरी किए आज ही जारी करवा दीजिए आदेश कि पुलिस अब हरियाणा में किसी भी आरोपी को दोष साबित होने तक अरेस्ट नहीं करेगी.

अजय दीप लाठर, लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं.

नोटबंदी को लेकर सरकार ने आरबीआई को कभी भी लूप में नहीं रखा: रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सोमवार को 4:1 के बहुमत से केंद्र सरकार द्वारा छह साल पहले लिए गए नोटबंदी के फैसले को वैध करार दिया, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में उच्चस्तरीय सूत्रों के हवाले से कहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के केंद्रीय बोर्ड को नोट वापसी के बारे में कभी भी लूप में नहीं लिया था.

निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा रहे एक अधिकारी ने इस ओर इशारा किया कि आरबीआई बोर्ड में इस मुद्दे पर उचित चर्चा नहीं हुई थी. उन्होंने कहा, ‘ऐसा कहा जाता है कि सरकार छह महीने तक आरबीआई के साथ परामर्श प्रक्रिया में थी. (आरबीआई) बोर्ड कभी लूप में नहीं था. शायद आरबीआई के एक-दो लोगों को पता होगा. अचानक आधे घंटे या एक घंटे के भीतर आप एक नोटिस जारी करते हैं और एजेंडे के बारे में बताए बिना बैठक बुलाते हैं.’

आरबीआई बोर्ड ने मई 2016 में नोटबंदी से छह महीने पहले 2,000 रुपये के नोटों को पेश करने की मंजूरी दे दी थी, लेकिन 2016 में जुलाई और अगस्त की बोर्ड बैठकों में 500 और 1,000 के नोटों को वापस लेने पर चर्चा नहीं की थी. इससे पहले इंडियन एक्सप्रेस द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी में आरबीआई ने कहा था कि केंद्रीय बोर्ड ने 19 मई, 2016 को 2000 रुपये के नोट पेश करने के प्रस्ताव पर चर्चा की और उसे मंजूरी दे दी.

हालांकि, आरबीआई ने पिछले साल कहा था कि मई 2016 में हुई बोर्ड बैठक में 500 और 1,000 रुपये के नोटों की कानूनी निविदा की संभावित वापसी पर कोई चर्चा नहीं हुई थी. आरबीआई ने कहा है कि इसके बाद 7 जुलाई और 11 अगस्त 2016 को हुई केंद्रीय बोर्ड की बैठक के दौरान भी इस पर कोई चर्चा नहीं हुई थी.

गौरतलब है कि जब उस साल मई में 2,000 रुपये के नए नोट पेश करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी, तब रघुराम राजन आरबीआई के गवर्नर थे. ज्ञात हो कि नोटबंदी का ऐलान 8 नवंबर 2016 को किया गया था. इस प्रश्न पर कि क्या आरबीआई केंद्रीय बोर्ड को सरकार से 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों को बंद करने का कोई प्रस्ताव मिला था, आरबीआई ने एक अन्य आरटीआई के जवाब में कहा था, ‘भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड ने 8 नवंबर 2016 को आयोजित अपनी बैठक में केंद्र सरकार को 500 और 1,000 रुपये के नोटों की कानूनी निविदा को वापस लेने के प्रस्ताव की सिफारिश की थी.’

हालांकि, आरबीआई ने 8 नवंबर 2016 को आयोजित केंद्रीय बोर्ड की बैठक के मिनट प्रदान करने से इनकार कर दिया और कहा था कि मांगी गई जानकारी आरटीआई अधिनियम-2005 की धारा 8(1)(ए) के तहत प्रकटीकरण से छूट प्राप्त है.

सूत्र ने कहा कि महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि क्या सभी गुण या दोष, पक्ष और विपक्ष पर विस्तार से चर्चा की गई.

गोपनीयता की शर्त पर सूत्र ने कहा, ‘संभवत: अदालत भविष्य के लिए कुछ टिप्पणी कर सकती थी कि जब एक स्वायत्त निकाय या विशेषज्ञ निकाय है, जिसे इस पहलू को देखना है तो इसके दृष्टिकोण को महत्व दिया जाना चाहिए था. यह पूछे जाने पर कि क्या नोटबंदी की प्रक्रिया ने आरबीआई की स्वायत्तता को कमजोर किया, आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर. गांधी ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि इस मामले में आरबीआई की स्वायत्तता से संबंधित कोई मौलिक प्रश्न है. सार्वजनिक नीति हमेशा विभिन्न हितधारकों के साथ चर्चा के माध्यम से बनती रही हैं, जिनमें सरकार भी शामिल है. सिर्फ इसलिए कि आरबीआई से स्वतंत्र निर्णय लेने की उम्मीद की जाती है, तो इसका मतलब यह नहीं कि उसे सरकार से बिल्कुल भी परामर्श नहीं करना चाहिए. यह इसकी व्याख्या का सही तरीका नहीं है.’

कुछ बैंकर इस बात से परेशान थे कि नोट निकासी की प्रक्रिया इतनी जल्दबाजी में की गई कि इससे लोगों और बैंकरों का नुकसान हुआ.इस संबंध में जानकारी रखने वाले एक अन्य व्यक्ति ने कहा, ‘एक घोषणा की गई थी कि एक विंडो प्रदान की जाएगी ताकि लोग रिजर्व बैंक में पुरानी मुद्राओं का आदान-प्रदान कर सकें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां सुप्रीम कोर्ट टिप्पणी कर सकता था.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (02 जनवरी 2023) को मोदी सरकार द्वारा 2016 में लिए गए नोटबंदी के निर्णय के खिलाफ कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सरकार के फैसले को वैध ठहराते हुए कहा था कि नोटबंदी का उद्देश्य कालाबाजारी, टेरर फंडिंग आदि को खत्म करना था, यह प्रासंगिक नहीं है कि इन उद्देश्यों को पाया गया या नहीं.

इस पीठ पीठ में जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन शामिल हैं. तीन न्यायाधीशों को छोड़कर जस्टिस बीवी नागरत्ना ने भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत केंद्र सरकार की शक्तियों के बिंदु पर असहमति वाला फैसला सुनाया था.

ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर करके दावा किया था कि नोटबंदी का फैसला आरबीआई से व्यापक विमर्श करने के बाद लिया गया एक ‘सुविचारित’ निर्णय था. हालांकि, द वायर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री द्वारा की गई फैसले की घोषणा से कुछ घंटे पहले आरबीआई के केंद्रीय निदेशक मंडल की बैठक के मिनट्स कुछ और ही कहानी कहते हैं.

वहीं, बीते दिनों द वायर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि काले धन से निपटने के लिए जो नोटबंदी का सुझाव दिया गया था, उसे आरबीआई ने खारिज कर दिया था. वहीं, जब रघुराम राजन आरबीआई के गवर्नर हुआ करते थे, तब इस केंद्रीय बैंक ने केंद्र सरकार के नोटबंदी के कदम को खारिज कर दिया था. हालांकि, राजन द्वारा 4 सितंबर 2016 को अपने पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद सरकार ने नोटबंदी की कार्रवाई को आगे बढ़ाया.

साभार- द वायर

भाजपा की जेजेपी में सेंधमारी, उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के विशेष सहायक समेत 200 कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल!

भाजपा ने जजपा में सेंधमारी करते हुए जजपा के कईं नेताओं समेत सैकड़ों कार्यकर्ताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़ ने उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के विशेष सहायक रहे रमेश चौहान समेत जजपा (जननायक जनता पार्टी) के करीबन 200 कार्यकर्ताओं को बीजेपी में शामिल करवाया है.

भाजपा ने अपनी सहयोगी जननायक जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को जिस तरह पार्टी में शामिल कराया है, संगठन के तौर पर दोनों पार्टियों के बीच तल्खी बढ़ती दिखाई दे रही है हालांकि उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की ओर से इस पूरे घटनाक्रम पर कोई बयान नहीं आया है. लेकिन बीजेपी की इस सेंधमारी से दोनों सहयोगी दलों के राजनीतिक रिश्तों पर असर पड़ना तय है.

वहीं बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़ ने अपने बयान में कहा कि बीजेपी की विचारधारा का सम्मान करने वाला कोई भी व्यक्ति बीजेपी में शामिल हो सकता है. धनखड़ ने कहा कि ऐसे कईं मौके आए, जब जेजेपी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराया है. इसलिए यदि जेजेपी का कोई कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल होता है तो इसमें कुछ गलत नहीं है.

वहीं इसपर जेजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अंनत राम तंवर ने कहा कि हमारे पहले भी कईं साथी बीजेपी में शामिल हुए थे लेकिन बीजेपी में जाने के बाद उन लोगों की कोई पूछ नहीं हो रही है.

करनाल: सरकार से जांच की अनुमति नहीं मिलने पर DTP घोटाले में सभी आरोपियों को मिली जमानत!

सीएम सीटी और सौ स्मार्ट शहरों की पहली लिस्ट में आने वाले करनाल में हुए चर्चित घोटोले के सभी आरोपियों को हाई कोर्ट से जमानत मिल गई है. मार्च 2022 में उजागर हुए डीटीपी घोटले में करनाल के डिस्ट्रिक्ट टाउन प्लानर और तहसीलदार को रंगे हाथों रिस्वत लेते हुए पकड़ा गया था लेकिन इस मामले में सरकार की ओर से जांच की अनुमति न मिलने के कारण हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों कोे जमानत दे दी है.

मार्च 2022 में सामने आए घोटाले के मामले में विजिलेंस ने डिस्ट्रिक्ट टाउन प्लानर को 20 लाख की रिश्ववत के साथ पकड़ा था. डीटीपी विक्रम के जरिये विजिलेंस करनाल के तहसीलदार राजबक्स को पकड़ने में भी कामयाब रही थी. विजिलेंस की टीम ने तहसीलदार के यहां छापेमारी करते हुए पांच लाख कैश बरामद किया था. दोनों अधिकारी मिलकर एनओसी और रजिस्ट्री के नाम पर रिश्वत लेते थे. डीटीपी विक्रम सिंह और तहसीलदार राजबक्स मिलकर घोटाला कर रहे थे.

दरअसल कॉलोनी काटने के नाम पर डिस्ट्रिक्ट टाउन प्लानर विक्रम सिंह द्वारा एक प्रोपर्टी डीलर से रिश्वत के तौर पर 20 लाख रुपये की मांग की गई थी. जिसके बाद डीलर ने विजिलेंस को इसकी जानकारी दी और विजिलेंस ने डीटीपी के ड्राइवर को रिश्वत की रकम समेत रंगेहाथों पकड़ लिया. वहीं जब डीटीपी के घर छापेमारी की गई तो कईं लाख रुपए का कैश बरामद हुआ और उनकी पत्नी के नाम अलग-अलग शहरों में महंगे प्लॉट के कागजाद भी बरामद हुए.

जमीन घोटाले से जुड़ा मामला हरियाणा विधानसभा में भी उठा था. जमीनों की रजिस्ट्री और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग द्वारा दी जाने वाली एनओसी में धांधली व कथित तौर पर रिश्वत लेने के मामले में विपक्ष ने मिलकर विधानसभा में सरकार को घेरा था. विपक्ष ने सीधे तौर पर आरोप लगाए थे कि पैसे लेकर एनओसी दी गई हैं. करनाल का डीटीपी और तहसीलदार ‘रिश्वत कांड’ भी सदन में सुर्खियां बना रहा. अभय सिंह चौटाला, निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू, किरण चौधरी ने इस मुद्दे पर चर्चा के दौरान सदन में सवाल खड़े किये थे. घोटाला सामने आने के बाद 64 हजार से अधिक रजिस्ट्री मामले में रेवन्यू अधिकारियों की जांच करने की बात कही गई थी लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई.

बीजेपी नेता सोनाली फौगाट की मौत से जुड़े अनसुलझे सवाल!

हरियाणवी कलाकार और बीजेपी नेता सोनाली फौगाट की 23 अगस्त को गोवा में मौत हो गई. सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहने वाली सोनाली फौगाट की हार्ट अटैक से मौत होने की खबर चल रही हैं लेकिन सोनाली के परिवार ने मौत के पीछे साजिश पर शक जताया है. जिसके चलते सोनाली फौगाट की मौत को लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं.

सोनाली फौगाट की मौत को शुरुआती तौर पर गोआ पुलिस ने भी संदिग्ध मानते हुए अप्राकृतिक मौत कहा है. इसी आधार पर पुलिस अपनी कार्रवाई कर रही है. आज 10:30 बजे डॉक्टरों का बोर्ड पोस्टमार्टम शुरू कर चुका है. शाम तक शव के हरियाणा पहुंचने और अंतिम संस्कार की उम्मीद जताई जा रही है. लेकिन, सोनाली से जुड़े कितने ही सवाल अभी भी अनसुलझे हैं.

इन सवालों का जवाब हर कोई जानना चाहता है. शायद इन सवालों का जवाब तो अंतिम यात्रा पर निकलने के दौरान सोनाली भी जानना चाहेगी, लेकिन लगता नहीं कि कभी भी इन सवालों के जवाब सार्वजनिक हो पाएंगे. क्योंकि, भाजपा नेत्री सोनाली की मौत के बाद न तो सीबीआई जांच का आदेश ही प्रदेश सरकार ने दिया है और न ही इस मौत की जांच पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के सिटिंग जज से कराने का कोई फैसला लिया गया है.

ऐसे में बड़ी साजिश से इंकार नहीं किया जा सकता और अगर इन सवालों के जवाब नहीं दिए गए तो फिर सोनाली की आत्मा को भी शायद ही कभी शांति मिल पाए और उसकी मासूम बेटी भी कभी न्याय हासिल कर पाए. हां, सोनाली की मौत के बाद पूर्व में भाजपा संगठन से जुड़े रहे नेताओं के अलावा प्रदेश सरकार में मौजूदा एक वरिष्ठ मंत्री समेत कई लोग राहत की सांस जरूर ले रहे हैं.

1- सोनाली की मौत की सूचना के लिए उनके घर वालों को 8 बजे कॉल आई और गोआ पुलिस को 9 बजे, ऐसा क्यों?

2- मौत 8 बजे से भी पहले हुई, ऐसे में इतने वक्त में गोआ में क्या-क्या मैनेज किया गया? वहां सोनाली के अलावा और कौन-कौन था?

3- कुछ नजदीकी लोग कल सोनाली के फार्म हाउस पहुंचे, जबकि उन्हें पहुंचना सोनाली के घर फतेहाबाद के भूथन कलां चाहिए था, ऐसा क्यों?

4- फार्म हाउस में पहुंचने पर इन लोगों ने वहां पर क्या-क्या मैनेज किया, क्या किसी सामान को खोजा? इसका कोई जिक्र क्यों नहीं हो रहा?

5- सुधीर सांगवान नाम का एक व्यक्ति जो विधानसभा चुनाव 2019 के दौरान सोनाली के सम्पर्क में आया, उससे पहले कहीं फ्रेम में नहीं था और फिर सारा कर्ता-धर्ता कैसे बन गया?

6- सुधीर ने आते ही सोनाली को एक बीएमडब्ल्यू गाड़ी दी. खुद को बड़ा कांट्रेक्टर बताया, जिसका विदेशों में भी कारोबार है, बाद में वह दिन-रात साथ रहने लगा और पब्लिकली जॉब टाइटल निजी सचिव का बताया जाने लगा, क्यों?

7- सुधीर सांगवान ने सोनाली के नजदीकी लोगों को उस से दूर करना क्यों शुरू किया?

8- सुधीर के ईशारे पर सोनाली के घर के केयरटेकर पर चोरी तक का मुकदमा दर्ज करवा कर उसकी पुलिस से छितर परेड क्यों करवाई गई?

9- सोनाली और निजी सचिव की शादी तक की बातें करीबी लोगों में आई, जिस पर बताया गया कि सोनाली के परिजन इस रिश्ते से राजी नहीं थे? क्यों?

10- सुधीर सांगवान का गोआ में सोनाली के साथ होना और मौत के बाद खुद का सार्वजनिक हो चुका फोन नंबर और सोनाली का पर्सनल फोन बंद क्यों किया गया? क्या छिपाने की साजिश थी?

11- सोनाली की बहनों ने भी सरेआम आरोप लगाया है कि उनके भाई को मात्र मौत की सूचना देते ही सुधीर ने फोन काट दिया, उसके बाद एक भी काल रिसीव नहीं की. क्यों?

12- सुधीर सांगवान खुद विवाहित हैं और उनके बच्चे भी हैं. ऐसा कौन सा कारण था कि लगभग 3 साल से वह अपने घर-परिवार, बच्चों से दूर सोनाली के ही चारों तरफ मंडरा रहा था और जैसा कि सुधीर ने शुरुआत में सोनाली को बताया था कि वह बड़ा कांट्रेक्टर है, वह काम धंधे छोड़कर उसका कारिंदा बनकर क्यों घूम रहा था?

13- क्या सुधीर का सोनाली के साथ हरदम रहना और उससे शादी तक के चर्चे सिर्फ सोनाली को ट्रैप करने तक सीमित था, या फिर यह कहें कि सुधीर को किन्ही शक्तियों ने वहां प्लांट किया था?

14- सोनाली फोगाट के सत्ता, संगठन और एडमिनिस्ट्रेशन के लोगों के साथ अति करीबी रिश्तो की चर्चाएं प्रदेश भर में हैं. क्या ये जांच में शामिल होंगे?

15- सोनाली की ताकत का अंदाजा इस बात से लगा लिया जाए कि आए दिन कई बड़े चेहरे उनके दरवाजे पर हाजिरी लगाए बगैर इस क्षेत्र में प्रवास नहीं कर सकते थे. अपने इसी दबदबे के बलबूते नलवा विधानसभा में उनकी दावेदारी के बावजूद टिकट कटने पर आदमपुर जैसे एक नए विधानसभा की बची हुई टिकट सोनाली को देकर शांत करना पड़ा था, क्यों?

16- सूत्रों की अगर मानें तो सोनाली फौगाट को विधानसभा चुनाव लड़ाने में मजबूरन अहम भूमिका निभाने वाले संगठन के एक बड़े चेहरे को अपना बड़ा राजनीतिक करियर बर्बाद कर खुड्डे लाइन लगना पड़ा, क्यों?

17- पुख्ता सूत्रों से जानकारी यह भी आ रही है कि प्रदेश सरकार के एक कद्दावर मंत्री ने सोनाली को पिछले दिनों गुरुग्राम में एक फ्लैट दिलवाया. जिसकी बुकिंग के लिए कागजात तक मंत्री महोदय ने अपने खुद के व्हाट्सएप से बिल्डर को भेजे. ऐसी क्या मजबूरी थी?

18- निजी सचिव के क्रियाकलाप ही नहीं, बल्कि बहनों के आरोप तक उन्हें कटघरे में खड़ा कर रहे हैं. इसके बावजूद उनकी भूमिका का जिक्र कहीं पर क्यों दिखाई नहीं देता है. वह कौन सी शक्तियां हैं, जिन्होंने उसे वहां प्लांट किया और अब बचाने का प्रयास कर रहे हैं.

19- भजनलाल परिवार का नाता इससे पहले भी कुछ बड़े चर्चित कांड में रहा है. भजनलाल सरकार के दौरान एक शिक्षिका सुशीला की हत्या और उसका शव तक ना मिलना. उसके बाद अनुराधा बाली उर्फ फिजा की मौत और अब इशारा सोनाली फौगाट की तरफ भी आना, कुछ सिलसिलेवार तरीके से सवाल खड़े कर रहा है.

20- कुलदीप बिश्नोई के सोनाली फौगाट के आवास पर जाकर मुलाकात करने के मात्र 5 दिन बाद रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मौत होना, मौत से मात्र 4 दिन पहले अपने ही एक कार्यक्रम में सोनाली को बुलाकर बेइज्जत करते हुए वापस भेजना, खुद सोनाली फौगाट द्वारा इस बेइज्जती का अपने एक करीबी को बयां करना, काफी कुछ कहता है.

21- सोनाली फोगाट की मौत की सूचना मिलते ही आनन फानन में कुलदीप बिश्नोई का मुख्यमंत्री के साथ मुलाकात के लिए पहुंचना और मीडिया में इसे मानवीय संवेदनाओं से परे हलके की राजनीति पर चर्चा बताना कहां तक जायज था?

22- सोनाली फौगाट के पास कुछ बड़े चेहरों के सबूत होने की लगातार चर्चाएं रही हैं. अब सोनाली फौगाट की मौत के बाद वो सबूत किसके पास हैं या फिर कौन उन्हें नष्ट करने की कोशिश कर सकता है? क्या इन सबूतों को हासिल करने के लिए सोनाली की मौत का षड्यंत्र रचा गया?

23- जैसा की सोनाली ने एक पत्रकार को फोन पर बताया था कि हुड्डा साहब उन्हें कांग्रेस में लाना चाहते हैं और सर्वे के बाद टिकट की बात कह रहे हैं. तो क्या कांग्रेस उम्मीदवार बनने पर सोनाली फौगाट की वजह से कुलदीप अपना गढ़ हार जाते? कहीं यही भय तो सोनाली की मौत की वजह नहीं बना?

-अजय दीप लाठर, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं.


अंबाला: गोगा माड़ी का मेला देखने गए घुमंतू समुदाय के युवक की पिटाई, युवती से छेड़छाड़ के आरोप में भेजा जेल!

अंबाला कैंट के पास स्थित बब्याल में गोगा माड़ी पर भादवे के महीने में हर साल मेला लगता है. मेला देखने गए विमुक्त घुंमतू समुदाय के मंगता चमार समाज के युवक के साथ गोगा माड़ी कमेटी के लोगों ने मारपीट की और युवती छेड़ने का आरोप लगाकर जेल भिजवा दिया. गोगा माड़ी मुख्य तौर पर राजपूत समुदाय के लोग पूजा करते हैं. गूगा माड़ी के नाम पर एक कमेटी भी चलती है जिसमें अधितकर सदस्य राजपूत समुदाय से ही हैं. हर साल लगने वाले इस मेले में झूलों सहित दर्जनों दुकानें लगती हैं. आस-पास के लोग अपने बच्चों के साथ मेला देखने आते हैं. इस पूरे मेले का रखरखाव राजपूत समुदाय के लोग ही करते हैं.

वहीं मेला स्थल यानी गोगा माड़ी से मजह सौ मीटर की दूरी पर सैनिक कॉलोनी में विमुक्त घुमंतू समुदाय से आने वाले मंगता चमार समाज के करीबन तीन सौ परिवार रहते हैं. आस-पास के लोग इस बस्ती को ‘डेहा बस्ती’ के नाम से बुलाते हैं. हालांकि इस कॉलोनी में डेहा समाज के लोग नहीं रहते हैं यहां अधिकतर मंगता चमार समाज से लोग रहते हैं.

वहीं 13 अगस्त को गोगा माड़ी कमेटी के लोगों ने मंगता चमार समाज के यहां रिश्तेदारी में आए एक 20 साल के युवक को युवती से छेड़छाड़ के आरोप में बुरी तरह पीट दिया. 20 साल के पत्रका के रिश्तेदारों ने बताया कि वह होशियारपुर से यहां कुछ दिन रहने के लिए आया था. मेले में गए पत्रका को राजपूत समुदाय के 10 से 12 लोगों ने मिलकर पिटा. उसका कसूर इतना था कि वह गोगा माड़ी में मेला देखने के लिए चला गया था. मेले में युवक की पिटाई के बाद मंगता चमार डेरे के लोग और गोगा माड़ी कमेटी के लोग आमने सामने हो गए. मंगता चमार समाज के लोगों ने आरोप लगाया कि जब हम युवक को पिटने से बचाने के लिए गोना माड़ी पहुंचे तो हमारी महिलाओं और पुरुषों के साथ भी मारपीट की गई और हमें जातिसूचक गालियां दी गई. इस भिड़ंत में दोनों पक्षों के करीब 15 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए और बचाव करने पहुंचे महेशनगर थाने के पुलिसकर्मी भी चोटिल हो गए.

मंगता चमार समाजी द्वारा लिखी शिकायत.

दरबार सिहं ने बताया, “इस मामले में थाने में शिकायत दर्ज करवाने गए मंगता चमार समुदाय के लोगों का मामला दर्ज नहीं किया गया. उलटा जो लोग अंबाला के महेशनगर थाने में शिकायत दर्ज करवाने के लिए गए थे पुलिस ने उनके खिलाफ ही मारपीट करने का आरोप लगाकर केस दर्ज करके लॉकअप में बंद कर दिया और अगले दिन कोर्ट में पेश कर रिमांड पर ले लिया. थाने में केस दर्ज करवाने के लिए गए ओम प्रकाश, दीप सिंह, जोरा सिंह और विकास चारों जेल में हैं.” जिस जोरा सिंह पर हमला किया गया जिसकी मेडिकल रिपोर्ट आप देख  सकते हैं उसको भी पुलिस ने गिरफ्तार कर के कोर्ट में पेश कर दिया.

जेल में बंद 24 वर्षीय जोरा सिंह की मेडिकल रिपोर्ट.

मंगता चमार डेरे के लोगों ने आरोप लगाया कि हमारी बस्ती के लोगों का गोगा माड़ी मेले में जाने की मनाही है. मंगता चमार डेरे के रहने वाले क्रांति ने बताया, “हमारे लोगों की गोगा माड़ी में जाने की मनाही है. हमारे डेरे के लोगों को गोगा माड़ी के मंदिर में प्रवेश नहीं जाने करने दिया जाता है. ये लोग हमें नीच समझते हैं और जातिसूचक गालियां तक देते हैं. पिछले कईं सालों से हमारे लोगों ने गोगा माड़ी के अंदर और मेले में जाना बंद कर दिया है. उन्होंने आगे बताया हमारे साथ मारपीट करने का यह पहला मौका नहीं है इससे पहले हमारी महिलाओं के साथ भी मारपीट की गई थी. तब हमारे डेरे की दो तीन महिलाएं सूखी लकड़ी इकट्ठा करने के लिए गोगा माड़ी के अंदर चली गईं थीं उन लोगों ने हमारे समाज की महिलाओं पर हाथ उठाया जब हमने पुलिस में शिकायत की तो उस वक्त भी हमारी कोई सुनवाई नहीं हुई थी.”  

वहीं गोगा माड़ी कमेटी की ओर से अनिल शिकायतकर्ता हैं. जिन्होंने 14 अगस्त को थाना महेशनगर में शिकायत दर्ज करवाई थी. शिकायतकर्ता अनिल ने अपनी शिकायत में बताया कि 13 अगस्त को गोगा माड़ी में मान सिंह, हरनेक सिंह, सुखदेव सिंह, नेक सिंह, क्रांति, रामबीर, जुगनु और 150 से 200 लोगों ने कमेटी के सदस्यों को जान से मारने की नीयत से हमला किया.

वहीं इस मामले पर जब ऑल इंडिया विमुक्त घुमंतू जनजाति वेलफेयर संघ के अध्यक्ष रविंद्र भांतू से बात की गई तो उन्होंने कहा, “अंबाला के विमुक्त घुमंतू समुदाय के लोगों के साथ यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई है. हैरानी होती है कि आजादी के 75 साल बाद भी जाति के नाम पर लोगों के साथ मारपीट और भेदभाव हो रहा है. हमारे संगठन द्वारा हरियाणा के तमाम अधिकारियों तक यह शिकायत पहुंचाई गई जिले के बड़े अधिकारियों से मैंने खुद फोन पर बात की लेकिन उसके बाद भी हमारी कोई सुनवाई नहीं हुई. अब पीड़ित लोगों पर ही समझौते का दबाव बनाया जा रहा है.”       

डीएनटी वेलफेयर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि राजपूत समुदाय की ओर से घुमंतू समाज के लोगों को परेशान करने वाले बीजेपी के नेता हैं जिनमें डिंपल राणा, अनिल राणा, सोमपाल राणा शामिल हैं.

वहीं गूमा माड़ी की ओर से पक्ष रखते हुए करीबन 27 साल के राजन ने बताया कि डेहा समाज के लोग परिवार रहते हैं जिनमें से अधिकतर ईसाई बन चुके हैं. ये लोग यहां दर्शन करने के लिए नहीं मेले में लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करने के लिए आते हैं. 13 अगस्त को भी डेहा समाज के एक लड़के ने एक लड़की के साथ छेड़छाड़ की थी जिसके बाद उसको पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया था.”

वहीं जब इस मामले में पुलिस अधिकारी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि मामले की जांच चल रही है. यानि घटना के एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी विमुक्त घुमंतू समाज के लोगों की शिकायत दर्ज नहीं की गई है.