हनुमानगढ़ में इथेनॉल संयंत्र के विरोध में किसानों पर पुलिस कार्रवाई, 16 घायल, 40 से ज्यादा गिरफ्तार!
राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में निर्माणाधीन इथेनॉल संयंत्र के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन पर शनिवार (10 दिसंबर) को पुलिस की सख्त कार्रवाई के बाद इलाके में तनाव बढ़ गया है. टिब्बी तहसील के राठीखेड़ा और आसपास के गांवों में हुई झड़पों में कम से कम 16 किसान घायल हो गए, जबकि 40 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किए जाने की सूचना है.
यह आंदोलन अप्रैल 2024 से जारी है, लेकिन शनिवार को तब उग्र हो गया जब करीब 15 गांवों के हजारों किसान महापंचायत के लिए जुटे. किसानों की मांग है कि 2 से 4 फसली उपजाऊ कृषि भूमि पर बन रहे इथेनॉल संयंत्र के निर्माण को तुरंत रोका जाए.
‘कॉरपोरेट हितों के लिए किसानों को दबाया जा रहा है’
संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने शुक्रवार को जारी बयान में पुलिस कार्रवाई को “किसानों पर योजनाबद्ध हिंसा” करार दिया. मोर्चा ने आरोप लगाया कि राज्य की भाजपा सरकार कॉरपोरेट हितों को साधने के लिए किसानों की जमीन और आजीविका पर हमला कर रही है. एसकेएम ने कहा कि लोकतांत्रिक विरोधों को दबाना और कृषि से जुड़े गंभीर मुद्दों की अनदेखी करना भाजपा शासित सरकारों की कार्यशैली बन चुकी है.
पानी, मिट्टी और हवा के प्रदूषण का डर!
जिस संयंत्र का किसान लंबे समय से विरोध कर रहे हैं, वह ड्यून इथेनॉल प्राइवेट लिमिटेड द्वारा 40 एकड़ भूमि पर विकसित किया जा रहा है. इस परियोजना को वर्ष 2021 में पर्यावरण मंत्रालय से 1320 किलोलीटर प्रतिदिन क्षमता वाले अनाज-आधारित इथेनॉल संयंत्र और 40 मेगावाट सह-उत्पादन विद्युत परियोजना की मंजूरी मिली थी.
किसानों का आरोप है कि संयंत्र से पानी की खपत कई गुना बढ़ जाएगी, जिससे पहले से सीमित जल संसाधनों पर दबाव पड़ेगा। उनका कहना है कि इथेनॉल उत्पादन के दौरान निकलने वाला डिस्टिलरी स्लज जहरीला होता है, जिसमें माइकोटॉक्सिन, भारी धातुएं, कार्बनिक अम्ल और कीटनाशकों के अवशेष हो सकते हैं। किसानों को आशंका है कि यह अपशिष्ट भूमिगत जल में रिसकर पीने के पानी, मिट्टी और फसलों को स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है.
पराली जलाने और राख से खेती पर असर का आरोप
किसानों ने संयंत्र से जुड़ी 40 मेगावाट की विद्युत परियोजना पर भी सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि इसमें पराली जलाने की योजना है, जिससे प्रतिदिन 220 क्विंटल से अधिक राख निकलेगी. इस राख के सुरक्षित निस्तारण की कोई ठोस योजना न होने से मिट्टी के विषाक्त होने और खेती प्रभावित होने का खतरा है.
‘रोजगार’ के नाम पर ली गई उपजाऊ जमीन!
किसानों के अनुसार, सरकार और कंपनी ने शुरुआत में स्थानीय लोगों को रोजगार देने का वादा किया था। वर्ष 2020 में अधिग्रहित की गई यह भूमि चार फसली रही है और घग्घर नदी के बेसिन क्षेत्र में आती है, जिसे राजस्थान के अपेक्षाकृत हरे-भरे इलाकों में गिना जाता है। किसानों का कहना है कि संयंत्र बनने से खेती, पशुपालन और पेयजल—तीनों पर गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा।
10 दिसंबर की महापंचायत के दौरान किसानों का आरोप है कि पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया। घटना के बाद कांग्रेस नेताओं ने भी सरकार पर निशाना साधा है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने पुलिस कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा कि किसानों की सहमति के बिना औद्योगिक परियोजनाएं थोपना अलोकतांत्रिक है।
एसकेएम की मांगें
संयुक्त किसान मोर्चा ने राज्य सरकार से तीन प्रमुख मांगें रखी हैं—
- गिरफ्तार किसानों की तत्काल रिहाई।
- घायलों को मुआवजा और बेहतर चिकित्सा सुविधा।
- किसान प्रतिनिधियों के साथ औपचारिक बातचीत कर समाधान निकालना।
एसकेएम ने चेतावनी दी है कि यदि उपजाऊ कृषि भूमि पर उद्योग लगाने की योजना वापस नहीं ली गई और किसानों की मांगों पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया, तो आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर तेज किया जाएगा.
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