ट्रैक्टरों के साथ फिर दिल्ली जाएंगे किसान, बजट सत्र में करेंगे संसद मार्च!

26 जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर हरियाणा के जींद में हुई किसान महापंचायत में बड़ी संख्या में किसान जुटे किसानों ने इस किसान महापंचायत के जरिए मुख्य रूप से गन्ना किसानों के लिए गन्ने का रेट 450 रुपये करने की मांग की. वहीं संयुक्त किसान मोर्चा ने बजट सत्र के दौरान 15 से 22 मार्च के बीच मार्च टू पार्लियामेंट का आयोजन करने का प्रस्ताव पास किया. दिल्ली संसद मार्च की तारीख का एलान 9 फरवरी को कुरुक्षेत्र की मीटिंग में किया जाएगा.

वहीं किसान महापंचात में जुटे बड़े किसान नेताओं ने खेती किसानी से जुड़े मुख्य मुद्दों को हासिल करने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर आंदोलन तेज करने की बात कही. किसान महापंचायत में केंद्र की मोदी सरकार पर लिखित आश्वासन के बावजूद पीछे हटने का आरोप लगाया गया.

जींद में हुई किसान महापंचायत में किसान नेताओं ने मंच से किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी प्राप्त करने, लखीमपुर खीरी हत्याकांड के आरोपी राज्य मंत्री अजय मिश्रा को हटाने और उसके बेटे आशीष मिश्रा को सजा दिलाने, बिजली संशोधन विधेयक-2022 को वापस करवाने और कर्जमाफी जैसे मुद्दों पर कमर कसने का आह्वान किया. यह घोषणा की गई कि बजट सत्र के दौरान 15 से 22 मार्च के बीच मार्च टू पार्लियामेंट का आयोजन किया जाएगा. सटीक तिथि की घोषणा 9 फरवरी को कुरुक्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर की एसकेएम बैठक में की जाएगी.

गन्ने के रेट में 10 रुपये की बढ़ोतरी पर ही राजी हुए चढ़ूनी, आंदोलन खत्म करने का किया एलान!

हरियाणा सरकार की ओर से गन्ने के लिए एसएपी में 10 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी के एक दिन बाद, भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) ने गन्ने की कीमतों के लिए अपना विरोध बंद कर दिया है और चीनी मिलों की आपूर्ति फिर से शुरू करने का फैसला किया है. बुधवार को सीजन के लिए एसएपी बढ़ाकर 372 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया था,जबकि किसान 450 रुपये प्रति क्विंटल की मांग कर रहे थे. 20 जनवरी से आपूर्ति बंद कर दी गई थी, जिससे चीनी मिलों में कामकाज ठप हो गया था.

कृषि कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करने के बाद, बीकेयू (चढ़ूनी) के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा, “सरकार द्वारा बढ़ाया गया SAP अपर्याप्त था, लेकिन गन्ने को खेतों में खड़ा नहीं छोड़ा जा सकता है. किसानों को किसी तरह का आर्थिक नुकसान न हो, इसके लिए जनभावनाओं को देखते हुए चीनी मिलों को आपूर्ति फिर से शुरू करने का निर्णय लिया गया है. हालांकि, अगर एसकेएम गन्ने की कीमतों को लेकर आंदोलन का आह्वान करता है, तो यूनियन एसकेएम को अपना समर्थन देगी.”

वहीं बीकेयू (चढ़ूनी) द्वारा आंदोलन को वापस लेने का निर्णय भाजपा के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आया है क्योंकि किसानों ने इससे पहले 29 जनवरी को गोहाना में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रैली के दौरान विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान किया था.

गुरनाम चढ़ूनी ने कहा, “यह भी तय किया गया है कि अमित शाह की रैली के दौरान कोई प्रदर्शन नहीं किया जाएगा. लेकिन आने वाले चुनावों में बीजेपी का विरोध करने का भी सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया है.”

गन्ने के रेट में बढ़ोतरी को लेकर आंदोलन तेज, अमित शाह की रैली का विरोध करेंगे किसान!

प्रदेश के गन्ना किसानों ने भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) के बैनर तले किसानों ने गन्ने के राज्य सलाहकार मूल्य (एसएपी) में बढ़ोतरी की मांग पूरी नहीं होने पर सरकार के खिलाफ अपना आंदोलन तेज करने की घोषणा की. किसानों ने राज्य भर में कई विरोध प्रदर्शनों की घोषणा की, जिसमें ट्रैक्टर मार्च, गन्ने की ‘होली’ जलाना और शर्ट उतारकर गृह मंत्री अमित शाह की रैली का विरोध करना शामिल है.

गन्ने के रेट में बढ़ोतरी की मांग को लेकर किसान बुधवार को ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे और मुख्यमंत्री का पुतला फुकेंगे.
26 जनवरी को सर छोटू राम की जयंती पर ‘गन्ने की होली’ जलाएंगे. 27 जनवरी को अनिश्चितकाल के लिए चीनी मिलों के बाहर सड़क जाम करेंगे. वहीं 29 जनवरी को गोहाना में गृह मंत्री अमित शाह की रैली में शामिल होंगे और उनके भाषण के दौरान शर्ट उतारकर अपनी नाराजगी जाहिर करेंगे.

एक बैठक के दौरान किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा, “किसान 25 जनवरी को अपनी चीनी मिलों से निकटतम शहर या कस्बे तक सीएम के पुतले के साथ ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे और बाद में चीनी मिलों पर पुतला फूंकेंगे. 26 जनवरी को सर छोटू राम की जयंती पर किसान “गन्ने की होली” जलाएंगे. उन्होंने कहा कि वे अपनी मांगों को लेकर दबाव बनाने के लिए 27 जनवरी को अनिश्चित काल के लिए चीनी मिलों के बाहर सड़कों को जाम करेंगे.

साथ ही गोहाना में 29 जनवरी को गृह मंत्री अमित शाह की रैली में बड़ी संख्या में किसान शामिल होंगे. वे शाह के भाषण के दौरान अपनी शर्ट उतारकर नाराजगी जाहिर करेंगे. उन्होंने कहा, ‘हम अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार हमें ये नहीं दे रही है.’

किसान नेता एसएपी को मौजूदा 362 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 450 रुपये करने की मांग को लेकर राज्य की 13 चीनी मिलों के बाहर अनिश्चितकालीन धरना दे रहे हैं. किसानों ने आरोप लगाया कि सरकार ने किसी भी तरह की बढ़ोतरी की घोषणा नहीं की है. और जब विपक्षी नेताओं ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे को उठाया, तो सीएम मनोहर लाल खट्टर ने एसएपी तय करने के लिए एक समिति गठित करने की घोषणा की थी. गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा, ‘हम चीनी मिलों के बाहर विरोध कर रहे हैं और अपनी मांगों को पूरा होने तक विरोध जारी रखेंगे.’

गन्ने की कीमत बढ़ाने की मांग को लेकर किसानों ने दूसरे दिन भी जड़ा शुगर मिलों पर ताला!

हरियाणा सरकार ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र के अखिरी दिन प्रदेश में गन्ने के दाम बढ़ाने की विपक्ष की मांग को नहीं माना था. गन्ने के दाम में बढ़ोतरी न होने से प्रदेश के किसान आक्रोषित हैं. जिसको लेकर आज नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन चढूनी ने प्रदेश की सभी शुगरमिलों को बंद

पिछले कईं दिनों से किसानों ने गन्ने की छिलाई बंद कर रखी है और किसान नेताओं की ओर से जारी कार्यक्रम के तहत प्रदेशभर की शुगर मिलों पर तालाबंदी की गई है. किसानों ने पानीपत ,फफड़ाना ,करनाल ,भादसोंभाली आनंदपुर शुगर मिल व महम शुगर मिल पर भी सुबह 9 बजे ताला लगाते हुए धरना शुरू किया. साथ ही जो भी गन्ने की ट्राली मिल पर पहुंची, उन्हें वापस लौटा दिया. उन्होंने कहा कि जब तक सरकार किसानों की मांग पूरी नहीं करती, तब तक शुगर मिलों को बंद रखते हुए प्रदर्शन किया जाएगा.

किसानों ने अम्बाला में नारायणगढ़ शुगर मिल के बाहर धरना दिया. सोनीपत के गोहाना में आहुलाना शुगर मिल पर ताला जड़कर किसानों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की तो वहीं किसानों का शाहबाद शुगर मिल और करनाल शुगर मिल पर भी धरना जारी है.

किसान गन्ने के रेट को बढ़ाकर 450 रुपए करने की मांग कर रहे हैं. बता दें कि पंजाब में गन्ना किसानों को 380 रुपये प्रति किवंटल का रेट मिल रहा है.

दो दिन पहले किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने ट्वीट किया था, “आज रात के बाद कोई भी किसान भाई किसी भी शुगर मिल में अपना गन्ना लेकर ना जाए अगर कोई किसी नेता या अधिकारी का नजदीकी या कोई अपना निजी फायदा उठाने के लिए शुगर मिल में भाईचारे के फैसले के विरुद्ध गन्ना ले जाता है और कोई उसका नुकसान कर देता है तो वह अपने नुकसान का खुद जिम्मेदार होगा.”

किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने आज लिखा, “हरियाणा के सभी शुग़रमिल बंद करने पर सभी पदाधिकारियों व किसान साथियों का धन्यवाद, अगर सरकार 23 तारीख़ तक भाव नहीं बढ़ाती तो आगे की नीति 23 तारीख़ जाट धर्मशाला में बनायी जाएगी.”

सोनीपत गन्ना मिल के बाहर किसानों का प्रदर्शन.

आजमगढ़: जमीन अधिग्रहण के खिलाफ 100 दिन से किसानों का आंदोलन जारी!

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में संयुक्त किसान मोर्चा समेत कईं किसान संगठन पिछले 100 दिनों से आजमगढ़ मंडुरी हवाई अड्डे के विस्तार के लिए जमीन अधिग्रहण का विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा ने पूर्वी यूपी के सभी किसानों से आजमगढ़ के धरने में शामिल होने का आह्वान किया है. वहीं धरना स्थल पर मौजूद किसानों ने आरोप लगाया कि ‘मोदी सरकार निजीकरण के नाम पर लगातार सरकार और सार्वजनिक संस्थानों को पूंजीपतियों को बेच रही है, जिससे जनता का इस सरकार पर से विश्वास उठ गया है.’

किसान संगठनों का आरोप है कि हवाई पट्टी, मंडी, हाईवे, एक्सप्रेसवे के नाम पर नए सामंत, बड़े जमींदार बनाए जा रहे हैं. उनका कहना है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में किसानों और मजदूरों को सबसे सस्ता और लाचार मजदूर बना दिया गया है और अब तैयारी उनके सम्मान और स्वाभिमान को छीन कर उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की है.

धरना-प्रदर्शन कर रहे किसानों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के लिए जमीन और मकान नहीं छोड़ेंगे. किसानों कि मांग है कि हवाई अड्डे का मास्टर प्लान रदद् किया जाए. वहीं रविवार को एक बार फिर बड़े स्तर पर संयुक्त किसान मोर्चा पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसान नेता और किसान धरना स्थल पर जुटेंगे. वहीं इस बीच आजमगढ़ आंदोलन में जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे एक बुजुर्ग किसान का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है वीडियो में बुजुर्ग किसान जमीन छीन जाने के डर से रोते हुए नजर आ रहे हैं.

खेतों में जल भराव से परेशान किसानों ने किया हाइवे जाम!

खेतों में जल भराव की समस्या को लेकर हिसार के सिंघवा राघो गांव के किसानों ने करीब छह घंटे तक हांसी-बरवाला हाइवे जाम कर दिया. खेतों से पानी निकालने में विफल रहे अधिकारियों से नाराज किसानों ने हाइवे जामकर सरकार और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की.

हांसी-बरवाला हाइवे पर जाम लगाकर बैठे किसानोंं ने आरोप लगाया कि बारिश का पानी अभी भी उनके खेतों में खड़ा है, जिससे गांव के बाहरी इलाके में स्थित कुछ इलाकों की सड़कें पानी में डूब गई हैं, जिसके कारण गांव के लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

अंग्रेजी अखबार ‘द ट्रिब्यून’ की रिपोर्ट के अनुसार सितंबर में हुई भारी बारिश के कारण क्षेत्र के खेतों में पानी भर गया था. भारी जलभराव के कारण हिसार जिले के करीब 50 गांवों के किसान रबी की फसल नहीं बो पा रहे हैं.

रिपोर्ट के अनुसार धावर, बिठमारा, सिंघवा राघो, गुराना, सिंधार, लाडवा, पाटन, मिर्जापुर, चैनत, गढ़ी, भटोल जाटन, खैरी, भगाना, हरिता सबसे ज्यादा प्रभावित गांव हैं. वहीं मुख्य सचिव संजीव कौशल ने दिसंबर के पहले सप्ताह में उपायुक्तों को जलभराव वाले खेतों से पानी की निकासी के लिए तत्काल उपाय करने का निर्देश दिया था.

वहीं गांव के नरेश कुमार ने कहा कि पिछले साल सितंबर से लगभग 800 एकड़ में अभी भी बारिश का पानी भरा हुआ है. उन्होंने कहा कि पूरा क्षेत्र खेती योग्य है और इस रबी मौसम में बाढ़ के कारण बुवाई नहीं की जा सकती है. ऐसे कई किसान हैं जो अपने खेतों में एक दाना भी नहीं बो पाते हैं और इस प्रकार उन्हें अगले साल के लिए अनाज दूसरों से खरीदना पड़ता है.

एक अन्य ग्रामीण सुनील कुमार ने कहा कि उन्होंने कई बार जिला अधिकारियों और सिंचाई विभाग के अधिकारियों के साथ इस मामले को उठाया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. उन्होंने कहा, “अधिकारियों द्वारा हमारी सुनवाई नहीं करने के बाद हमें सड़क जाम करनी पड़ी है,” उन्होंने कहा, यहां तक कि कुछ घरों की नींव में पानी के रिसाव के कारण इमारतों में दरारें भी आ गई हैं.

सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने रुके हुए पानी को तेजी से निकालने के वादे पर ग्रामीणों को समझाने की कोशिश की. लेकिन ग्रामीणों ने उसकी एक न सुनी. इसके बाद तहसीलदार गांव पहुंचे और ग्रामीणों से लंबी चर्चा की. तहसीलदार ने सिंचाई विभाग के अधिकारियों को अपने जिला मुख्यालय से पाइप लाइन लाने और मोटर लगाकर पानी की निकासी शुरू करने का निर्देश दिया. उन्होंने गांवों से खेतों से पानी निकालने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा. ग्रामीणों ने समय सीमा पूरी नहीं होने पर फिर से सड़क जाम करने की चेतावनी दी है.

गन्ने का रेट नहीं बढ़ाया तो 20 जनवरी से सभी चीनी मील बंद करेंगे किसान!

भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू-चढूनी) के बैनर तले किसानों ने करनाल अनाज मंडी में गन्ने के (एसएपी) को मौजूदा 362 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 450 रुपये प्रति क्विंटल करने की मांग की. ‘किसान महापंचायत’ के दौरान बीकेयू अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा अगर हमारी मांग नहीं मानी गई तो हम अपनी फसल को आग लगा देंगे और हम 20 जनवरी से सभी चीनी मिलों को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर देंगे. वहीं साथ ही 16 जनवरी को एसएपी तय करने के लिए राज्य सरकार द्वारा गठित समिति के साथ हुई बैठक में उनकी मांगों को नहीं माना गया तो किसानों ने 17 जनवरी से गन्ने की छुलाई बंद करने और चीनी मिलों को फसल नहीं भेजने की घोषणा की.

उन्होंने 20 जनवरी से अनिश्चितकाल के लिए राज्य की सभी चीनी मिलों को बंद करने की भी घोषणा की. बता दें कि राज्य सरकार ने गन्ने की कीमतों को देखने और 15 दिनों में एक रिपोर्ट देने के लिए एक समिति गठित की थी.

किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल 16 जनवरी को पंचकूला में समिति से मुलाकात करेगा. किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा, ‘हम समिति के सदस्यों से मिलेंगे और अपनी मांग उठाएंगे. हम हर तरह की कुर्बानी के लिए तैयार हैं. अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो हम अपनी फसलों को आग लगा देंगे.’ आगे उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने का आश्वासन दिया था, लेकिन लागत बढ़ रही है और हमारी आय कम हो रही है.’

हम अपनी मांगों की पूर्ति तक अपना संघर्ष जारी रखेंगे. हमारे निर्णय के अनुसार किसान 16 जनवरी से गन्ने की छुलाई नहीं करेंगे और अपनी फसल चीनी मिलों को नहीं भेजेंगे. अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो हम 20 जनवरी से सभी चीनी मिलों को अनिश्चित काल के लिए बंद कर देंगे. उन्होंने कहा, किसान पिछले आठ दिनों से मिलों में धरना दे रहे हैं, लेकिन सरकार ने हमारी मांगों पर विचार नहीं किया, इसलिए हमने यह किसान महापंचायत की है.

एक्सप्रेस-वे पर रास्ते की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे एक किसान की ठंड से मौत!

नूंह में बनने वाले दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे पर अपने गांव के पास सड़क के रास्ते की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन कर रहे किसानों में से एक किसान की ठंड के कारण मौत हो गई. मृतक किसान राम खिलाड़ी नूंह ब्लॉक के मंडोकला गांव के रहने वाले थे. वह गांव के अन्य किसानों के साथ, दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे पर अपने गांव के पास सड़क से कटने वाले रास्ते की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे.

गांव के किसान एक जनवरी से धरने पर बैठे हैं जिनमे से सोमवार तड़के एक किसान की मौत हो गई. ग्रामीणों ने मांग पूरी होने तक शव का अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया है. ग्रामीणों का दावा है कि उनके खेत तीन तरफ से हाइवे से घिरे हुए हैं और उनके पास अपनी जमीन तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है. उन्हें सड़क पार अपने खेतों तक पहुंचने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. किसानों ने सितंबर में भी विरोध किया था और उन्हें कार्रवाई का आश्वासन दिया गया था.

प्रदर्शन कर रहे किसानों में से एक किसान ने बताया, “निर्माण कंपनी ने वादा नहीं निभाया और रास्ते के लिए कोई प्रावधान नहीं किया. हम अपनी मांग पूरी होने तक विरोध करेंगे.”

करनाल: गन्ने के दाम नहीं बढ़ाने से आक्रोषित किसान सीएम आवास का घेराव करेंगे!

हरियाणा सरकार ने विधानसभा सत्र के अखिरी दिन प्रदेश में गन्ने के दाम बढ़ाने की विपक्ष की मांग को नहीं माना है. गन्ने के दाम में बढ़ोतरी न होने से प्रदेश के किसान आक्रोषित हैं. जिसको लेकर आज नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन चढूनी करनाल में मुख्यमंत्री आवास का घेराव कर दो घंटे तक धरना देगी.

इस दौरान किसान, मुख्यमंत्री मनोहर लाल का पुतला भी फूकेंगें. बता दें कि विधानसभा में विपक्ष की मांग को नकारते हुए सरकार ने गन्ने के पुराने दाम 362 रुपए प्रति क्विंटल के आधार पर ही गन्ना खरीदने की अधिसूचना जारी की है. इस अधिसूचना के बाद किसानों के रोष बढ़ता जा रहा है. किसान गन्ने के रेट को बढ़ाकर 450 रुपए करने की मांग कर रहे हैं. बता दें कि पंजाब में गन्ना किसानों को 380 रुपये प्रति किवंटल का रेट मिल रहा है.

वहीं सरकार ने इस मुद्दे पर विधानसभा में गन्ना कमेटी बनाने का फैसला लिया है. दाम न बढ़ाए जाने के विरोध में नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा सदन से वॉक आउट कर गए थे.


सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए साल भर नेताओं और सरकारी बाबुओं से भिड़ते रहे किसान!

एक ओर राज्य सरकार साल भर किसानों की आय दोगुनी करने का दावा करते हुए कृषि क्षेत्र के विकास पर जोर देने की बात करती रही वहीं दूसरी ओर किसान खराब फसलों के मुआवजे, एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) और खड़े पानी की निकासी जैसे मुद्दों से जूझते रहे. इन सब दिक्कतों के चलते किसान अपनी आय बढ़ाने के प्रयास में नई खेती नहीं अपना सके और गेहूं-और धान चक्र से बाहर निकलने में भी सक्षम नहीं रहे.

हरियाणा सरकार की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट ने भी हरियाणा में कृषि के महत्व की ओर इशारा किया है. रिपोर्ट में कहा गया कि “हालांकि पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्रदेश की आर्थिक वृद्धि, उद्योग और सेवा क्षेत्रों की वृद्धि पर ज्यादा निर्भर हो गई है लेकिन हाल के अनुभव बताते हैं कि निरंतर और तीव्र कृषि विकास के बिना उच्च सकल राज्य मूल्य (जीएसवीए) विकास से राज्य में मुद्रास्फीति में तेजी आने की संभावना थी, जिससे बड़ी विकास प्रक्रिया खतरे में पड़ गई. आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021-22 के अग्रिम अनुमानों के अनुसार, कृषि क्षेत्र से जीएसवीए में 2.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी.

हिसार क्षेत्र में किसानों ने बेमौसम बारिश और कपास में गुलाबी सुंडी के कारण खरीफ सीजन में हुए फसल के नुकसान के मुआवजे की मांग को लेकर आंदोलन का सहारा लिया. हालांकि कपास के उत्पादन में पिछले साल की तुलना में 30% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अभी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है.

चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के डिस्टेंस एजुकेशन के पूर्व निदेशक डॉ. राम कुमार ने अंग्रेजी अखबार दैनिक ट्रिब्यून के पत्रकार दिपेंद्र देसवाल को बताया कि सरकार की किसान के लाभ के लिए बनाई गई कई योजनाओं के बावजूद किसानों को बहुत कम लाभ मिल पा रहा है.

उन्होंने कहा कि प्रदेश में गुणवत्ता वाले बीजों की उपलब्धता एक मुख्य मुद्दा है. खेतों में जरूरत पड़ने पर किसानों को खाद उपलब्ध की जानी चाहिए. सरकार की सूक्ष्म सिंचाई योजना ठीक ढंग से लागू नहीं होने के कारण किसानों को फायदा नहीं पहुंचा सकी है. साथ ही हरियाणा के अगल-अलग क्षेत्रों में मौजूदा पानी के आवंटन को बेहतर तरीके से इस्तेमाल करने की जरूरत है. डॉ. राम कुमार ने कहा, “सरकारी संस्थान, किसानों को कपास और सरसों जैसी फसलों के अच्छे बीज उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं जिसके कारण, किसान निजी कंपनियों के शिकार हो रहे हैं. हरियाणा और पंजाब में ऐसे उदाहरण हैं जहां खराब गुणवत्ता वाले बीजों के कारण किसानों की फसल को भारी नुकसान हुआ है.”

वहीं अंग्रेजी अखबार दैनिक ट्रिब्यून के अनुसार करनाल के 153 किसान, बीमा कंपनियों पर खराब फसलों का मुआवजा नहीं देने के आरोप लगा रहे हैं. वहीं करनाल, कैथल और अंबाला के किसान गन्ने के रेट में बढ़ोतरी की मांग को लेकर प्रदर्शन करते नजर आए. इस तरह प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में किसान साल भर अपने मुआवजों को लेकर नेताओं और सरकारी अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर लगाते रह गए.