पंजाब: ‘जेहदा खेत, ओहदी रेत’ नीति पर बोले किसान – सिर्फ नारा है, हक नहीं!

पंजाब में बाढ़ के बाद खेतों में जमा रेत को किसानों की संपत्ति मानते हुए उन्हें हटाने की अनुमति देने की घोषणा की गई थी, पंजाब सरकार ने खेतों से रेत उठाने को लेकर कहा था कि “जेहदा खेत, ओहदी रेत” लेकिन कई जिलों में प्रशासन किसानों को रेत हटाने से रोक रहा है. किसानों का आरोप है कि उन्हें अपने ही खेत से रेत ले जाते समय खनन विभाग और स्थानीय प्रशासन द्वारा रोका जा रहा है, जबकि सरकार ने नीति लागू करने की बात कही थी. कई स्थानों पर रेत से भरे ट्रैक्टर जब्त कर लिए गए हैं.
सरकार ने स्पष्ट किया है कि रेत केवल उन्हीं खेतों से हटाई जा सकती है जो नदी के किनारे या खनन क्षेत्र में नहीं आते. लेकिन किसान संगठनों का कहना है कि यह नीति कागज़ों तक सीमित रह गई है और अवैध खनन माफिया अब भी खुलेआम सक्रिय है. अमृतसर जिले में सिर्फ 19 गांवों को ही रेत हटाने की अनुमति मिली है, बाकी क्षेत्रों के किसान अभी भी असमंजस में हैं. किसान नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार का यह कदम भ्रम फैलाने वाला है और निजी हितों को संरक्षण देने वाला प्रतीत होता है.
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि प्रक्रिया के तहत प्रत्येक खेत की जांच की जा रही है, ताकि यह तय किया जा सके कि वह क्षेत्र खनन के दायरे में तो नहीं आता. लेकिन किसानों का कहना है कि इससे न नीति का लाभ मिल पा रहा है, न ही खेती संभव हो पा रही है.किसानों की मांग है कि नीति को स्पष्ट रूप से लागू किया जाए, अनुमति प्रक्रिया को सरल बनाया जाए, और अवैध खनन पर सख़्त कार्रवाई की जाए.
किसान नेता सर्वन सिंह पंधेर ने कहा, “किसानों को परेशान किया जा रहा है ताकि रेत माफिया को फायदा पहुंचाया जा सके. सरकार की मंशा पहले दिन से ही साफ थी — किसानों को रेत नहीं बेचने देना. अब उन्हीं की शर्तों से यह साबित हो रहा है. सरकार इसे रेत माफिया को सौंपना चाहती है, लेकिन हम लड़ेंगे.”
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