पंजाब: ‘अग्निपथ भर्ती’ को सहयोग न मिलने के कारण सेना अधिकारी ने दी भर्ती रद्द करने की चेतावनी!

जालंधर में सेना के जोनल भर्ती अधिकारी ने स्थानीय नागरिक प्रशासन का समर्थन नहीं मिलने का हवाला देते हुए पंजाब सरकार से कहा है कि राज्य में अग्निपथ योजना के तहत भर्ती रैलियों को या तो स्थगित किया जा सकता है या पड़ोसी राज्य में स्थानांतरित किया जा सकता है.

8 सितंबर को जालंधर के जोनल भर्ती अधिकारी मेजर जनरल शरद बिक्रम सिंह ने पंजाब के मुख्य सचिव को पत्र लिखते हुए कहा कि, “हम यह जानकारी आपके ध्यान लाना चाहते हैं कि हमें बिना किसी स्पष्टता के स्थानीय नागरिक प्रशासन का समर्थन नहीं मिल रहा है. स्थानीय प्रशासन आमतौर पर राज्य सरकार के निर्देश न होने और धन की कमी के कारण सहयोग न कर पाने की बत कह रहा है.”

अंग्रेजी अखबार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी रिपोर्ट के अनुसार पत्र में लिखा है कि, “कुछ जरूरी आवश्यकताएं हैं जिन्हें स्थानीय प्रशासन की ओर से भर्ती रैलियां आयोजित करने के लिए मुहैया किया जाना चाहिए. इनमें कानून-व्यवस्था के लिए पुलिस सहायता, सुरक्षा, भीड़ नियंत्रण, बैरिकेडिंग और उम्मीदवारों का सुगम प्रवेश सुनिश्चित करना शामिल हैं.”

सेना अधिकारी की ओर से लिखे पत्र में रैली के दौरान प्रशासन द्वारा चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए भी कहा गया है. इसके अलावा जिस स्थान पर रैली आयोजित होनी है, वहां प्रशासन द्वारा 14 दिन के लिए 3-4 हजार उम्मीदवारों के लिए खाना, पानी, शौचालय आदि सुविधाओं का प्रबंधन किए जाने की भी मांग की गई है.

पत्र में चेतावनी दी गई है कि जब तक इन व्यवस्थाओं के लिए स्पष्ट प्रतिबद्धता नहीं दिखाई जाती है, वे राज्य में भविष्य में होने वाली सभी भर्ती रैलियों और प्रक्रियाओं पर स्थगन के लिए सेना मुख्यालय के समक्ष मामला उठाएंगे या वैकल्पिक तौर पर पड़ोसी राज्यों में रैलियां आयोजित करेंगे.

वहीं इस मामले पर प्रमुख सचिव कुमार राहुल ने अंग्रेजी अखबार को बताया कि गुरदासपुर में कुछ समस्याएं सामने आई थीं, लेकिन उनमें कुछ भी गंभीर नहीं था. उन्होंने कहा, “मैंने जनरल से बात की है. उन्होंने मुझे गुरदासपुर की कुछ समस्याओं के बारे में बताया, लेकिन इनमें कुछ भी गंभीर नहीं है. सब कुछ ठीक है और रैलियों के सुचारू आयोजन के लिए सभी उपाय किए जा रहे हैं”

SYL मुद्दे पर हरियाणा-पंजाब बातचीत से हल निकालें- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों को सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के विवादास्पद मुद्दे का सौहार्दपूर्ण समाधान निकालने के लिए मिल-बैठकर बातचीत करने को कहा. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय से दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाने को कहा है. इस मुद्दे पर हुई ज्यादा जानकारी के साथ एक रिपोर्ट के साथ बेंच ने मामले को 15 जनवरी तक के लिए आगे बढ़ा दिया है.

न्यायमूर्ति कौल ने कहा, “पानी एक प्राकृतिक संसाधन है केवल व्यक्तिगत हितों को ध्यान में नहीं रखा जा सकता है.” वहीं जब बेंच ने दोनों राज्यों की बातचीत के लिए एक टेबल पर लाने के लिए केंद्र सरकार पर फटकार लगाई तो अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि केंद्र ने अप्रैल में पंजाब के नए मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई, 2020 को पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों से इस मुद्दे का बातचीत से समाधान निकालने का प्रयास करने को कहा था. हरियाणा सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान और अतिरिक्त महाधिवक्ता अनीश गुप्ता ने हरियाणा के पक्ष में फरमान लागू करने की मांग करते हुए कहा कि कई दौर की बातचीतविफल रही है.

पंजाब सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जेएस छाबड़ा ने शीर्ष अदालत को आश्वासन दिया कि वह समस्या का बातचीत से समाधान निकालने की ओर कदम बढाएगी. पंजाब, केंद्र की मदद से दोनों राज्यों के बीच बातचीत से समझौता करने की मांग कर रहा है, जबकि हरियाणा का कहना है कि उसके पक्ष में डिक्री होने के बावजूद उसे अनिश्चित काल तक इंतजार करने के लिए नहीं कहा जा सकता है.

वहीं इस मामले को लेकर केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की ओर से कई बैठकें बुलाई गई थी. बैठक में दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों ने भाग लिया था लेकिन बैठकों में कोई नतीजा नहीं निकला. सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही केंद्र, पंजाब और हरियाणा सरकार को अपनी बातचीत जितनी जल्दी हो सके समाप्त करने को कहा है वहीं ऐसा नहीं करने पर वह इस मामले पर फैसला करने के लिए आगे बढ़ेगा.   

पंजाब: आंगनवाड़ी केंद्रों की खाद्य सुरक्षा में धांधली, गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़!

पंजाब के 5 जिले फिरोजपुर, गुरदासपुर, फतेहगढ़ साहिब, रोपड़ और एसबीएस नगर में सप्लीमेंट्री न्यूट्रिशन प्रोग्राम के फंड में करोड़ों रुपए की धांधली सामने आई है. सामाजिक सुरक्षा और महिला एवं बाल विकास अधिकारियों द्वारा फंड को कथित तौर पर डाइवर्ट करने का मामला प्रकाश में आया है. जिसके चलते बच्चों में महिलाओं को हल्की गुणवत्ता वाले खाद्य कंटेनर से आहार दिया जा रहा था. मामले की जांच वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जारी है.

सामाजिक सुरक्षा और महिला एवं बाल विकास विभाग के निर्देशक अरविंद पाल संधू ने कहा कि विभागीय मामले की जांच वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा की जा रही है. जल्द ही मामले में आरोपियों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी. वहीं विभाग के प्रमुख सचिव कृपा शंकर सरोज ने कहा कि वह स्वयं इस मामले को देखेंगे. कंटेनर हल्की गुणवत्ता के थे और अधिक दरों पर खरीदे गए थे. 5 जिलो ने प्रति कंटेनर 100 किलोग्राम क्षमता वाले 30,085 कंटेनरों की खरीद पर 807.22 लाख रुपए खर्च किए. हालांकि विभिन्न जिलों में कंटेनरों की दरें अलग अलग थी.

जानें क्या है मामला

सप्लीमेंट्री न्यूट्रिशन प्रोग्राम भारत सरकार द्वारा बच्चों व महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने का एक जरिया है. जिसमें 2009 में महत्वपूर्ण परिवर्तन भी किए गए थे. एसएनपी का उद्देश्य 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को उनके स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति में सुधार के लिए आहार उपलब्ध करवाना है. लेकिन पंजाब के 5 जिलों में साल 2014 से 2017 तक एक विशेष ऑडिट में सीएजी ने खुलासा किया है कि करोड़ों रुपए की धनराशि से हल्की गुणवत्ता वाले खाद्य कंटेनर महंगी दरों पर खरीदने के लिए फंड के साथ छेड़छाड़ की गई है. 5 जिलों में दिशा-निर्देशों के विपरीत एसएनपी निधि से कंटेनर खरीदे गए. वहीं 9 जिलों में कंटेनर खरीदे गए लेकिन केवल 5 जिलों का ही ऑडिट किया गया. क्योंकि इन 5 जिलों में किया गया खर्च सबसे ज्यादा था. वही ऑडिट में यह भी सामने आया कि 1 क्विंटल खाद्यान्न की भंडारण क्षमता के अपेक्षा कंटेनर कम भंडारण क्षमता के थे. इस मामले के सामने आने से गरीब बच्चों व गर्भवती महिलाओं के पोषक आहार और खाद्य सुरक्षा पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है.

गुजरात की कंपनी ने नकली दवाई बेच कर किसानों के साथ की 37 करोड़ की ठगी!

पंजाब में मालवा के किसान बीटी कॉटन (नरमे) के बीज घोटाले में करोड़ों की ठगी का शिकार हो गए. किसानों को गुलाबी सूंडी का हमला न होने की गारंटी बता कर गुजरात के ब्रांड का घटिया बीटी कॉटन बीज बेच डाला. पंजाब के 25 से 30 एजेंटों ने गुजरात की कंपनी पिंक-73 4G, रोनक 4G व पिंक पेंथर-3 के नाम पर करीब 10 हजार किसानों को चूना लगाया दिया. गुजरात की कंपनी ने किसानों को 37 करोड़ रुपए के 2.5 लाख पैकेट बेच दिए. पंजाब में मालवा के किसान इससे पहले ढैंचा के बीज की ठगी के भी शिकार हुए थे.

समाचार पत्र दैनिक भास्कर में पत्रकार हरपाल रंधाव की छपी रिपोर्ट के अनुसार जब इस मामले की पड़ताल की तो पता चला कि इसमें गुजरात के भी 8 से 10 एजेंट व विक्रेता शामिल थे. यह बीज मालवा के बठिंडा और मानसा जिलों के गांवों में स्टाल लगा कर बेचा गया. यूनिवर्सिटी का बीटी कॉटन बीज 760 रुपए तक प्रति किलो में आता था, लेकिन बीज माफिया ने इसे गुलाबी व सफेद सूंडी के हमले का सामना करने वाला बताकर किसानों से दोगुने पैसे वसूले. किसानों को यह बीज 1300 से 1500 रुपए तक बेचा गया. सूंडी पर हमला भी ज्यादातर इसी बीज पर हुआ. दूसरी तरफ, किसान घटिया बीज की विजिलेंस जांच व खराब फसल की मुआवजे की मांग के लिए धरने पर हैं.

पत्रकार हरपाल रंधाव की रिपोर्ट के अऩुसार कृषि विभाग की 230 टीमों ने आनन फानन में 3 दिन में 757 जगह का निरीक्षण किया. लेकिन अभी तक यह भी पता नहीं चल पाया है कि गुजरात के इस बीज घपले का माफिया कौन है. इतना बीज बिना मंजूरी कैसे और किसकी मिलीभगत से बेचा गया.

वहीं किसानों पर इसकी दोहरी मार पड़ी है. किसानों ने जो कीटनाशक छिड़का वो भी एक्सपायरी निकला जिसके कारण किसानों की फसल खराब हो गई. यह खुलासा कृषि विभाग की टीम द्वारा दुकानों की चेकिंग के दौरान हुआ. कृषि विभाग ने 2500 लीटर एक्सपायरी कीटनाशक जब्त किया. 21 स्पेशल सैंपल लिए. विभाग ने 3 फर्मों की बिक्री बंद भी कर दी. कृषि विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर (कॉटन) हरिंदर सिंह ने कहा, “मालवा में लगभग 40 हजार एकड़ में किसानों ने गुजरात का बीज बीजा है. यह किसानों ने खुद उनसे खरीदा था. उनको गलत कहा गया कि इस बीज पर सूंडी का हमला नही होता है. ये कौन लोग थे, इसकी विभाग जांच कर रहा है. पता लगा कर कड़ी कार्रवाई करेंगे.”

गेहूं खरीद 187 लाख टन पर अटकी, सेंट्रल पूल में मई का स्टॉक 5 साल में सबसे कम

जैसा कि अनुमान व्यक्त किया जा रहा था, रबी मार्केटिंग सीजन में गेहूं की सरकारी खरीद संशोधित लक्ष्य तक भी नहीं पहुंच सकी. सेंट्रल फूडग्रेन्स प्रोक्योरमेंट पोर्टल (सीएफपीपी) पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस सीजन में 187 लाख टन से भी कम गेहूं की खरीद हुई है. सरकार का संशोधित लक्ष्य 195 लाख टन का था.

कम खरीद से मई में सेंट्रल पूल में गेहूं का स्टॉक पांच साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है. भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के मुताबिक इस वर्ष मई में गेहूं का स्टॉक 303.46 लाख टन था. मई में इससे कम स्टॉक 2017 में 296.41 लाख टन का था.

मई में सेंट्रल पूल में गेहूं का स्टॉक

2017296.41 लाख टन
2018353.45 लाख टन
2019331.60 लाख टन
2020357.70 लाख टन
2021525.65 लाख टन
2022303.46 लाख टन
(आंकड़े सिर्फ मई के, स्रोतः एफसीआई)

खरीद बढ़ाने के लिए सरकार ने 13 मई को गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था. तब माना जा रहा था कि किसान अपनी उपज बेचने मंडियों में आएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. निर्यात पर रोक के दिन तक 179.89 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी. आंकड़े देखकर लगता है कि उसके बाद सात लाख टन गेहूं की ही खरीद हुई है.

पिछले साल 434 लाख टन खरीद को देखते हुए केंद्र सरकार ने इस वर्ष 444 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा था. लेकिन बाद में उसे संशोधित कर आधे से भी कम, 195 लाख टन किया गया. इस वर्ष 17.26 लाख किसानों ने केंद्रीय पूल के लिए गेहूं बेचा है. उनमें से अभी तक 15.12 लाख किसानों को 33,168.74 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है.

खरीद कम होने के दो प्रमुख कारण माने जा रहे हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की सप्लाई कम हो गई और दाम काफी बढ़ गए हैं. शुरू में भारत ने भी गेहूं निर्यात में तेजी दिखाई, सरकार भी इस पर जोर दे रही थी. लेकिन तभी पता चला कि मार्च से ही मौसम का तापमान बढ़ने के कारण गेहूं की फसल को नुकसान हुआ और दाने सिकुड़ गए. खास कर उत्तरी राज्यों में ऐसा देखने को मिला जिससे कुल उत्पादन में गिरावट आई. खरीद बढ़ाने के लिए सरकार ने 15 मई को नियमों में भी ढील दी थी और कहा था कि 18 फीसदी तक सिकुड़े दाने बिना दाम में कटौती के खरीदे जाएंगे. इसके बावजूद खरीद में तेजी नहीं आई.

पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसानों ने तो 15 से 20 फीसदी तक कम उत्पादन की बात रूरल वॉयस को बताई थी. ऐसे में देश में गेहूं की उपलब्धता बरकरार रखने के लिए सरकार को इसके निर्यात पर पाबंदी लगानी पड़ी. हालांकि सरकार ने अपनी तरफ से गेहूं उत्पादन के अनुमान में अभी तक ज्यादा कटौती नहीं की है. पहले 11.13 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान था, जिसे घटाकर 10.6 करोड़ टन किया गया है. 2020-21 में 10.96 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था.

सेंट्रल फूडग्रेन्स प्रोक्योरमेंट पोर्टल (सीएफपीपी) के अनुसार निर्यात पर रोक के बाद पंजाब में गेहूं की खरीद ना के बराबर ही हुई. अंतिम तारीख बढ़ाने के बावजूद राज्य में खरीद का आंकड़ा 97 लाख टन तक भी नहीं पहुंच सका. अन्य प्रमुख उत्पादक राज्यों मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी निर्यात पर रोक के बाद खरीद बहुत कम हुई. जानकार इसकी एक और वजह यह मान रहे हैं कि संभव है किसान आगे बेहतर कीमत मिलने की उम्मीद में अभी अपनी उपज नहीं बेचना चाहते. इससे यह संकेत भी मिलता है कि आने वाले दिनों में कीमतों में ज्यादा गिरावट की गुंजाइश कम है.

साभार – Rural Voice

पंजाब के खेत मजदूरों को अपने मुख्यमंत्री से मिलने के लिए करना पड़ा दो दिन प्रदर्शन

पंजाब के संगरूर और मानसा जिले के लगभग 3000 खेत मजदूरों ने 29 मई को संगरूर में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के घर का घेराव किया. मजदूर अपनी मांगों को लेकर मुख्यमंत्री से मिलने के लिए आए थे. क्रांतिकारी पेंडु(देहाति) मजदूर यूनियन के आह्वान पर मजदूरों ने 29 मई को सुबह ही मुख्यमंत्री के घर के बाहर नारेबाजी शुरू कर दी. जब कोई मिलने नहीं आया तो 12 बजे मुख्यमंत्री के घर के बाहर ही स्टेज लगाकर अपना कार्यक्रम शुरू कर दिया.

स्थाई मोर्चा लगता देख करीब 4 बजे अधिकारी, मजदूरों से मिलने स्टेज पर ही आए. मुख्यमंत्री से मुलाक़ात करवाने का आश्वासन मजदूर नेताओं को दिया. एक सरकारी चिट्ठी भी दी जिसमें लिखा हुआ था कि 13 जून को मजदूर नेताओं की मुख्यमंत्री से मुलाक़ात कारवाई जाएगी. इस आश्वासन पर मजदूरों ने धरना खत्म कर दिया.

मुख्यमंत्री से मिलने के लिए पास की जरूरत होती है. 30 मई को जब मजदूर नेता पास लेने के लिए दोबारा अधिकारियों से मिले. अधिकारी मुख्यमंत्री से मिलवाने वाली बात से मुकर गए. मजदूर नेताओं को लगा कि उनके साथ धोखा हुआ है. उसी समय आस पास के मजदूरों को संगरूर पहुंचने का आह्वान नेताओं की ओर से किया गया. इसके बाद मजदूरों ने शाम को 6 बजे ही फिर से धरना शुरू कर दिया. इस दौरान उनकी वहां मौजूद पुलिस से हाथापाई भी हुई. करीब 6 घंटे चले इस संघर्ष के बाद रात को 12 बजे अधिकारी मजदूरों से फिर मिले. इस बार मुख्यमंत्री से मिलने का पास मजदूर नेताओं को दिया. मजदूर नेताओं की मुख्यमंत्री से मुलाक़ात 7 जून को होगी.

यूनियन के प्रवक्ता प्रगट कला झार ने बताया कि वो 7 जून को मुख्यमंत्री से मिलकर मजदूरों की समस्याओं के बारे में बात करेंगे.

यह हैं मजदूरों की मुख्य मांग

  1. धान की लवाई 6 हजार रुपए प्रति एकड़ की जाए.
  2. मजदूर की दिहाड़ी 700 रुपए की जाए.
  3. गांव के मजदूरों के सामाजिक बहिष्कार के प्रस्ताव पारित करने वाले चौधरियों के खिलाफ SC/ST एक्ट के तहत केस दर्ज किया जाए.
  4. धान की सीधी बिजाइ से मजदूरों के खत्म हुए रोजगार की भरपाई की जाए.
  5. पंचायती जमीन के तीसरे हिस्से को दलित मजदूरों को कम रेट पर देना यकीनी (पुख्ता) बनाया जाए. डमी बोली लेने और देने वाले पर कार्यवाही की जाए और रिजर्व कोटे वाली जमीन की बोली दलित चौपाल में लगवाई जाए.
  6. भूमि सुधार कानून लागू करके बची हुई जमीन बेजमीने किसान और खेत मजदूरों को दी जाए.
  7. जरूरतमंद मजदूर परिवारों को 10-10 मरले के प्लाट, घर बनाने के लिए 5 लाख रुपए और कूड़ा डालने की जगह दी जाए.
  8. नजूल ज़मीनों का मालकाना हक मजदूरों को दिया जाए.
  9. बेजमीने मजदूरों पर चढ़े माइक्रोफ़ाइनेंस, सरकारी और गैर सरकारी कंपनियों के कर्जों को माफ किया जाए, मजदूरों को बैंकों से कम ब्याज दर पर और लंबे समय के लिए बिना गारंटी का कर्ज दिया जाए.
  10. डीपो सिस्टम को सुचारु बनाया जाए और जरूरत की सारी चीज़ें सस्ते रेट पर दी जाए.
  11. बेजमीने खेत मजदूरों को सहकारी समितियों का सदस्य बनाया जाए और सब्सिडी के तहत कर्ज दिए जाए.
  12. मोदी सरकार द्वारा किए गए श्रम कानूनों में संशोधन को रद्द करवाने के लिए विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया जाए.
  13. मनरेगा के तहत पूरे परिवार को पूरे साल काम दिया जाए, दिहाड़ी 600 रुपए की जाए और धांधली करने वाले अधिकारियों पर जरूरी कार्यवाही की जाए.
  14. बेजमीने मजदूरों के लिए पक्के रोजगार का प्रबंध किया जाए और सरकारी संस्थानों का निजीकरण बंद किया जाए.
  15. खेत मजदूरों के बकाया बिजली के बिल माफ किए जाए और बकाया बिल की वजह से उखाड़े गए बिजली के मीटर वापस लगाए जाए.
  16. विधवा, बुढ़ापा और विकलांग पेंशन 5000 रुपए की जाए और बुढ़ापा पेंशन की उम्र महिलाओं की 55 और पुरुषों की 58 साल की जाए.
  17. संघर्षों के दौरान मजदूरों और किसानों पर दर्ज किए गए केस वापस लिए जाए.
    नोट : नजूल जमीन: जो जमीन 1956 में दलितों को दी गई, जिसमें बरानी, सरप्लस, खाली पड़ी जमीन और जिनके मालिक माइग्रेट कर गए थे, उसको नजूल कहा गया.

पंजाब के नये मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का MC से CM बनने तक का सफर!

चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के 17वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेकर 33 फीसदी दलित आबादी वाले सूबे के पहले दलित मुख्यमंत्री बन गए हैं. पंजाब के नये मुख्यमंत्री को लेकर कई दिनों से चली आ रही अटकलों पर उस वक्त विराम लगा जब पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत ने हाईकमान के आदेश के बाद सोमवार शाम 5 बजकर 36 मिनट पर ट्विट करते हुए चरणजीत सिंह चन्नी के पंजाब के नये मुख्यमंत्री बनने की जानकारी साझा की.

चरणजीत सिंह के नाम की घोषणा से पहले दिल्ली में राहुल गांधी और सोनिया गांधी के बीच करीबन आधा घंटा बैठक चली. बैठक के बाद दिल्ली से पंजाब संदेश भेजा गया और फिर एक ऐसे नाम की घोषणा हुई जिसकी मीडिया में कोई चर्चा नहीं थी.

मीडिया में पिछले कई दिनों से पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ और सुखजिंदर रंधावा के नाम की चर्चा चलती रही. कांग्रेस आलाकमान के सिवाये किसी के जहन में यह बात नहीं थी कि कांग्रेस दलित चेहरे के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बना सकती है. चरणजीत सिंह चन्नी को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है.    

दो अप्रैल 1972 को चमकौर साहिब के मकरोना कलां गांव में जन्मे चरणजीत सिंह चन्नी रामदासिया सिख समुदाय से आते हैं. चंडीगढ़ के गुरु गोविंद सिंह कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ से कानून की पढ़ाई की. इसके बाद एमबीए और अब पंजाब यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे हैं.

ग्लोबल पंजाब टीवी को दिए अपने एक इंटरव्यू में चरणजीत सिंह चन्नी बताते हैं, “मेरा जन्म एक बेहद साधारण और गरीब परिवार में हुआ है. मिट्टी से बने कच्चे मकान में बचपन बीता है. मां को कच्चे घर में गारे का पोछा लगाते देखा है.”

चरणजीत सिंह को राजनीति में आगे बढ़ने की प्रेरणा देने वाले पिता हर्ष सिंह शुरुआती दिनों में टेंट की दुकान चलाते थे और बाद में गांव के सरपंच बने. पिता के कहने पर ही चरणजीत सिंह ने 1998 में पार्षद का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इस जीत के बाद चरणजीत सिंह चन्नी को अपने राजनीतिक सफर में कभी हार का सामना नहीं करना पड़ा. तीन बार पार्षद और दो बार खरड़ म्यूनिसपल काउंसिल के चेयरमैन रहे. 2007 तक आते-आते चरणजीत सिंह चन्नी राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी बन चुके थे.

2007 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट न मिलने पर हताश चरणजीत सिहं ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. लेकिन पिता की बेटे को पंजाब विधानसभा भेजने की जिद्द से सामने चरणजीत सिंह की नहीं चली. चुनाव न लड़ने की बात कहने पर पिता ने खुद चुनाव मैदान में उतरने की बात कही. इसके बाद चरणजीत सिंह ने रूपनगर जिले की चमकौर साहिब विधानसभा सीट से आजाद उम्मीदवार के तौर पर ताल ठोक दी.

चरणजीत सिंह चन्नी, अकाली दल से लगातार दो बार विधायक रहे सतवंत कौर संधू को 1,758 मतों से मात देकर पहली बार चमकौर साहिब विधानसभा सीट से पंजाब विधानसभा पहुंचे. आजाद उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल करने के बाद पहले अकाली दल फिर मनप्रीत सिंह बादल और बाद में कैप्टन अमरिंदर की टीम में शामिल हुए.  

चरणजीत सिंह ने एक इंटरव्यू के दौरान 2007 विधानसभा चुनाव का किस्सा सुनाते हुए कहा. “वोटिंग से दो दिन पहले मैंने एक रैली में कहा, “मुझे अमीरों का वोट नहीं चाहिए मुझे केवल गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों का वोट चाहिए. मैं अमीरों की नुमाइंदगी नहीं कर सकता. अमीरों की नुमाइंदगी करने के लिए बादल परिवार है.”  

2012 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीतकर दूसरी बार पंजाब विधानसभा पहुंचे और 2015-16 में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी निभाई. 2017 विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को 12 हजार वोट के बड़े अंतर से शिकस्त देकर चमकौर साहिब सीट से तीसरी दफे पंजाब विधानसभा पहुंचे.   

कैप्टन अमरिंदर सिंह के मंत्रीमंडल में तकनीकि शिक्षा मंत्री रहते 2018 में तब विवादों में आए जब सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ. वीडियो में चरणजीत सिंह सिक्का उछाल कर दो लेक्चररों के बीच पोस्टिंग विवाद निबटाने के लिए टॉस करते हुए दिखाई दिए थे. 

साथ ही 2018 में महिला आईएएस अधिकारी को अव्यवहारिक संदेश भेजने के मामले में भी चरणजीत सिंह चन्नी विवादों में रहे थे. हालांकि महिला अधिकारी ने चरणजीत सिंह के खिलाफ किसी तरह कि शिकायत दर्ज नहीं करवाई थी.

अंधविश्वास के चलते कई बार मीडिया में सुर्खियां बटोर चुके चरणजीत सिंह चन्नी ने 2017 में कैबिनेट मंत्री बनते ही एक ज्योतिष के कहने पर चंड़ीगढ़ सेक्टर-2 के अपने घर के एंट्री गेट की दिशा बदलवा दी थी. चन्नी यहीं नहीं रुके इसके बाद फिर से ज्योतिष के कहने पर अपने घर के लॉन में हाथी की सवारी करते हुए नजर आए थे.

शेरो-शायरी और गायकी का शौक रखने वाले मुख्यमंत्री चरणजीत सिहं चन्नी को पार्टी की अंतरकलह से लेकर प्रदेश की अनेक समस्याओं को पार करने की चुनौतियां का सामना करना होगा.

गेहूं खरीद में मध्यप्रदेश नंबर वन, पंजाब को पीछे छोड़ा

मध्य प्रदेश ने चालू रबी सीजन में 127.67 लाख टन गेहूं की खरीद कर पंजाब को पीछे छोड़ दिया है। अब मध्यप्रदेश देश में सबसे ज्यादा गेहूं खरीद करने वाला राज्य बन गया है। पंजाब में इस साल 127.62 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है। बरसों से सबसे ज्यादा गेहूं खरीद पंजाब की उपलब्धि रही है। लेकिन इस बार एमपी ने बाजी मार ली।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस उपलब्धि के लिए प्रदेश के किसानों और मंडी अधिकारियों को बधाई दी है।

मध्यप्रदेश की यह उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि राज्य में पिछले साल के मुकाबले 74 फीसदी ज्यादा गेहूं खरीद हुई, जो देश की कुल गेहूं खरीद का करीब एक तिहाई है। गेहूं खरीद के मामले में पंजाब का प्रदर्शन भी काबिलेतारीफ है। लेकिन देश के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में सिर्फ 27.5 लाख टन गेहूं खरीदा गया है, जो तय लक्ष्य का सिर्फ 50 फीसदी है। राजस्थान और गुजरात से भी गेहूं की बहुत कम खरीद हुई है।

गेहूं की सरकारी खरीद के चलते किसानों को उपज का सही दाम मिलना संभव हुआ है। लॉकडाउन के दौरान जहां तमाम काम-धंधे ठप पड़ गए थे, वहीं कृषि मंडियों और सरकारी खरीद की व्यवस्था ने गेहूं किसानों को नुकसान पहुंचने से बचाया है। प्याज-टमाटर जैसी जिन फसलों में एमएसपी और सरकारी खरीद की व्यवस्था नहीं है, वहां फसलें कौड़ियों के भाव बिक रही हैं।

इस साल देश में कुल 386 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है। यानी इतनी उपज पैदा करने वाले किसान लॉकडाउन के बावजूद समर्थन मूल्य पर फसल बेचने में कामयाब रहे हैं। चालू रबी के दौरान देश में 407 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य तय किया गया था, जबकि पिछले रबी सीजन में 341.32 लाख टन गेहूं खरीद हुई थी।

मध्यप्रदेश में गेहूं की खरीद बढ़ने के पीछे सरकारी प्रयासों का बड़ा हाथ है। इस बार राज्य में खरीद केंद्रों की संख्या 3545 से बढ़ाकर 4529 की गई थी। रिकॉर्ड गेहूं खरीद के चलते राज्य में 14 लाख किसानों के खाते में करीब 20 हजार करोड़ रुपये की धनराशि पहुंच चुकी है।

 

 

गेहूं खरीद में पंजाब सबसे आगे, लॉकडाउन में भी 77% खरीद पूरी

पूरी दुनिया कोरोना संकट से जूझ रही है। महामारी की रोकथाम के लिए लागू हुए लॉकडाउन ने काम-धंधे ठप कर दिए हैं। लेकिन ऐसी विकट परिस्थतियों में खेती और ग्रामीण अर्थव्यवस्था लोगों को सहारा दे रही है। देश के खाद्यान्न भंडार भरे पड़े हैं। यह संभव हो पाया है 60 के दशक में सुधरनी शुरू हुई सरकारी वितरण और खरीद प्रणाली के बूते।

लोगों को सस्ती दरों पर अनाज मुहैया कराने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की एजेंसियां किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर गेहूं व धान जैसी कई फसलों की खरीद करती हैं। इससे किसानों को फसल का उचित दाम और देश को खाद्य सुरक्षा मिलती है। इसमें राज्यों के साथ-साथ केंद्र सरकार की भी इसमें बड़ी भूमिका है।

इस साल जब महामारी फैलनी शुरू हुई तब गेहूं, धान व सरसों जैसे रबी फसलों की कटाई जोरों पर थी। लॉकडाउन के चलते सरकारी खरीद देर से शुरू हुई। हालांकि, कृषि और मंडी से जुड़े कामों को छूट दी गई थी। लेकिन जब सब कुछ बंद था तो फसल कटाई और सरकारी खरीद में भी कई अड़चनें आईं। फिर सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल भी रखना था।

आधी से ज्यादा गेहूं खरीद पूरी 

किसानों के साथ-साथ सरकारी खरीद तंत्र और मंडी व्यापारियों की तारीफ करनी होगी, जिनकी मदद से लॉकडाउन के बावजूद गेहूं खरीद का 56 फीसदी लक्ष्य पूरा हो चुका है। वह भी तब जबकि पूरा देश महामारी के खौफ, लॉकडाउन की मार और लेबर की किल्लत से जूझ रहा है।

चालू रबी सीजन के दौरान देश में 407 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें से 227 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है। इसमें सबसे बड़ा योगदान पंजाब और हरियाणा का है। अब तक हुई गेहूं खरीद में इन दो राज्यों ने 70% योगदान किया है, जबकि देश के कुल गेहूं उत्पादन में इनकी हिस्सेदारी करीब 30% है।

लॉकडाउन के बावजूद पंजाब में 104 लाख टन गेहूं खरीदा गया है जो 185 करोड़ टन के अनुमानित उत्पादन का करीब 56% और 135 लाख टन के खरीद लक्ष्य का 77% है।

5 दिन बाद खरीद शुरू करने वाले हरियाणा में करीब 56 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है, जो 115 लाख टन के अनुमानित उत्पादन का करीब 49% और 95 लाख टन के खरीद लक्ष्य का 59% है।

दरअसल, पंजाब-हरियाणा की मजबूत खरीद प्रणाली और मंडी व्यवस्था ही इन्हें इस मामले में बाकी राज्यों से अलग करती है। यह इन राज्यों में किसानों के लंबे संघर्ष का नतीजा है। सरकारी खरीद की वजह से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ मिल पाता है। ऐसे समय जब किसान अपनी उपज कौड़ियों के भाव बेचने को मजबूर है, सरकारी खरीद प्रणाली पर दारोमदार बढ़ जाता है।

यूपी पिछड़ा, बिहार जीरो  

देश में सबसे ज्यादा गेहूं पैदा करने वाले उत्तर प्रदेश में अब तक 11 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है जो राज्य के कुल उत्पादन का महज 3% और 55 लाख टन के खरीद लक्ष्य का करीब 20% है। इससे भी बुरा हाल बिहार का है जहां गेहूं की खरीद जीरो है।

यूपी में जूट बोरियों की कमी को खरीद पिछड़ने की वजह बतायाा जा रहा है। इस वजह को नजरअंदाज भी कर दें तो इस साल उत्तर प्रदेश ने 55 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा है जो अनुमानित उत्पादन का सिर्फ 15% है। जबकि पंजाब में उत्पादन के मुकाबले 73% और हरियाणा में 83% गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा गया है। गेहूं खरीद के मामले में यूपी मध्य प्रदेश से भी पीछे है। 

मध्य प्रदेश में करीब 45 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है जो 190 लाख टन के अनुमानित उत्पादन का 24% और 100 लाख टन के खरीद लक्ष्य का 45% है। उधर, राजस्थान में अभी तक केवल 2.5 लाख टन गेहूं खरीदा गया है जबकि इस साल राज्य में करीब 100 लाख टन गेहूं के उत्पादन का अनुमान है। राजस्थान में उत्पादन के मुकाबले सिर्फ 17% गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा गया और अब तक 3% गेहूं की खरीद भी नहीं हुई है।

सरकारी खरीद पर अंकुश के प्रयास 

पिछले कई वर्षों से सरकारी खरीद पर अंकुश लगाने की कोशिशें जारी है। साल 2015-16 से 2019-20 के बीच देश में गेहूं खरीद केंद्रोंं की संंख्या करीब 25% घटी है। जबकि इस दौरान गेहूं का उत्पादन बढ़ा है। सरकारी खजाने पर बोझ घटाने के लिए केंद्र सरकार राज्यों को गेहूं व धान पर बोनस देने से भी रोकती रही है।

मौजूदा आपदा ने सरकारी खरीद पर अंकुल लगाने की नीति को गलत साबित कर दिया है। सोचिए, अगर अनाज भंडार भरे न होते तो मास्क और सैनिटाइजर की तरह खाद्यान्न की कालाबाजारी भी शुरू हो जाती।