गन्ने की कीमत बढ़ाने की मांग को लेकर किसानों ने दूसरे दिन भी जड़ा शुगर मिलों पर ताला!

हरियाणा सरकार ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र के अखिरी दिन प्रदेश में गन्ने के दाम बढ़ाने की विपक्ष की मांग को नहीं माना था. गन्ने के दाम में बढ़ोतरी न होने से प्रदेश के किसान आक्रोषित हैं. जिसको लेकर आज नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन चढूनी ने प्रदेश की सभी शुगरमिलों को बंद

पिछले कईं दिनों से किसानों ने गन्ने की छिलाई बंद कर रखी है और किसान नेताओं की ओर से जारी कार्यक्रम के तहत प्रदेशभर की शुगर मिलों पर तालाबंदी की गई है. किसानों ने पानीपत ,फफड़ाना ,करनाल ,भादसोंभाली आनंदपुर शुगर मिल व महम शुगर मिल पर भी सुबह 9 बजे ताला लगाते हुए धरना शुरू किया. साथ ही जो भी गन्ने की ट्राली मिल पर पहुंची, उन्हें वापस लौटा दिया. उन्होंने कहा कि जब तक सरकार किसानों की मांग पूरी नहीं करती, तब तक शुगर मिलों को बंद रखते हुए प्रदर्शन किया जाएगा.

किसानों ने अम्बाला में नारायणगढ़ शुगर मिल के बाहर धरना दिया. सोनीपत के गोहाना में आहुलाना शुगर मिल पर ताला जड़कर किसानों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की तो वहीं किसानों का शाहबाद शुगर मिल और करनाल शुगर मिल पर भी धरना जारी है.

किसान गन्ने के रेट को बढ़ाकर 450 रुपए करने की मांग कर रहे हैं. बता दें कि पंजाब में गन्ना किसानों को 380 रुपये प्रति किवंटल का रेट मिल रहा है.

दो दिन पहले किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने ट्वीट किया था, “आज रात के बाद कोई भी किसान भाई किसी भी शुगर मिल में अपना गन्ना लेकर ना जाए अगर कोई किसी नेता या अधिकारी का नजदीकी या कोई अपना निजी फायदा उठाने के लिए शुगर मिल में भाईचारे के फैसले के विरुद्ध गन्ना ले जाता है और कोई उसका नुकसान कर देता है तो वह अपने नुकसान का खुद जिम्मेदार होगा.”

किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने आज लिखा, “हरियाणा के सभी शुग़रमिल बंद करने पर सभी पदाधिकारियों व किसान साथियों का धन्यवाद, अगर सरकार 23 तारीख़ तक भाव नहीं बढ़ाती तो आगे की नीति 23 तारीख़ जाट धर्मशाला में बनायी जाएगी.”

सोनीपत गन्ना मिल के बाहर किसानों का प्रदर्शन.

सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए साल भर नेताओं और सरकारी बाबुओं से भिड़ते रहे किसान!

एक ओर राज्य सरकार साल भर किसानों की आय दोगुनी करने का दावा करते हुए कृषि क्षेत्र के विकास पर जोर देने की बात करती रही वहीं दूसरी ओर किसान खराब फसलों के मुआवजे, एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) और खड़े पानी की निकासी जैसे मुद्दों से जूझते रहे. इन सब दिक्कतों के चलते किसान अपनी आय बढ़ाने के प्रयास में नई खेती नहीं अपना सके और गेहूं-और धान चक्र से बाहर निकलने में भी सक्षम नहीं रहे.

हरियाणा सरकार की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट ने भी हरियाणा में कृषि के महत्व की ओर इशारा किया है. रिपोर्ट में कहा गया कि “हालांकि पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्रदेश की आर्थिक वृद्धि, उद्योग और सेवा क्षेत्रों की वृद्धि पर ज्यादा निर्भर हो गई है लेकिन हाल के अनुभव बताते हैं कि निरंतर और तीव्र कृषि विकास के बिना उच्च सकल राज्य मूल्य (जीएसवीए) विकास से राज्य में मुद्रास्फीति में तेजी आने की संभावना थी, जिससे बड़ी विकास प्रक्रिया खतरे में पड़ गई. आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021-22 के अग्रिम अनुमानों के अनुसार, कृषि क्षेत्र से जीएसवीए में 2.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी.

हिसार क्षेत्र में किसानों ने बेमौसम बारिश और कपास में गुलाबी सुंडी के कारण खरीफ सीजन में हुए फसल के नुकसान के मुआवजे की मांग को लेकर आंदोलन का सहारा लिया. हालांकि कपास के उत्पादन में पिछले साल की तुलना में 30% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अभी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है.

चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के डिस्टेंस एजुकेशन के पूर्व निदेशक डॉ. राम कुमार ने अंग्रेजी अखबार दैनिक ट्रिब्यून के पत्रकार दिपेंद्र देसवाल को बताया कि सरकार की किसान के लाभ के लिए बनाई गई कई योजनाओं के बावजूद किसानों को बहुत कम लाभ मिल पा रहा है.

उन्होंने कहा कि प्रदेश में गुणवत्ता वाले बीजों की उपलब्धता एक मुख्य मुद्दा है. खेतों में जरूरत पड़ने पर किसानों को खाद उपलब्ध की जानी चाहिए. सरकार की सूक्ष्म सिंचाई योजना ठीक ढंग से लागू नहीं होने के कारण किसानों को फायदा नहीं पहुंचा सकी है. साथ ही हरियाणा के अगल-अलग क्षेत्रों में मौजूदा पानी के आवंटन को बेहतर तरीके से इस्तेमाल करने की जरूरत है. डॉ. राम कुमार ने कहा, “सरकारी संस्थान, किसानों को कपास और सरसों जैसी फसलों के अच्छे बीज उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं जिसके कारण, किसान निजी कंपनियों के शिकार हो रहे हैं. हरियाणा और पंजाब में ऐसे उदाहरण हैं जहां खराब गुणवत्ता वाले बीजों के कारण किसानों की फसल को भारी नुकसान हुआ है.”

वहीं अंग्रेजी अखबार दैनिक ट्रिब्यून के अनुसार करनाल के 153 किसान, बीमा कंपनियों पर खराब फसलों का मुआवजा नहीं देने के आरोप लगा रहे हैं. वहीं करनाल, कैथल और अंबाला के किसान गन्ने के रेट में बढ़ोतरी की मांग को लेकर प्रदर्शन करते नजर आए. इस तरह प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में किसान साल भर अपने मुआवजों को लेकर नेताओं और सरकारी अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर लगाते रह गए.

फरीदाबाद: खोरी गांव के विस्थापित परिवारों में से केवल 5.5 फीसदी को ही मिले मकान!

पिछले साल जून में फरीदाबाद के खोरी गांव में 10 हजार से ज्यादा लोगों के मकान गिराए गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने खोरी गांव की इस कॉलोनी में रहने वाले लोगों के मकानों को अवैध बताकर जमीन खाली करवाने का आदेश दिया था. जिसके बाद फरीदाबाद प्रशासन ने 10 हजार परिवारों के मकानों पर बुलडोजर चलाकर जमीन खाली करवा ली थी. इस विध्वंस के बाद विस्थापित हुए लगभग 10 हजार परिवारों में से केवल 550 परिवारों को ही पुनर्वास के लिए मकान दिए गए हैं.

खोरी गांव की करीबन 150 एकड़ से ज्यादा वन क्षेत्र को खाली करवाने के लिए फरीदाबाद नगर निगम द्वारा इन इन परिवारों का यहां से हटाने का अभियान चलाया गया था. विस्थापित परिवारों के पुनर्वास की प्रक्रिया पिछले साल जुलाई में शुरू की गई थी लेकिन सरकार की अनेक शर्तों और कठिन प्रक्रिया के चलते अबतक केवल 5.5 प्रतिशत प्रभावित परिवारों का पुनर्वास किया गया है.

वहीं फरीदाबाद नगर निगम का कहना है कि पात्र पाए गए 4,100 में से 1,009 आवेदकों को आवंटन पत्र जारी किए गए हैं जबकि उनमें से 550 को कब्जा मिल गया. पुनर्वास योजना के तहत पात्र आवेदकों को 20 साल के लिए 10 हजार रुपये की एकमुश्त राशि जमा करवानी होगी और 1,950 रुपये की मासिक किस्त का भुगतान करना होगा.

वहीं अधिकतर लोग दस हजार की एकमुश्त राशि जमा करवाने और अन्य खर्च का भुगतान करने में असमर्थ रहे तो कई परिवार दस्तावेजों की कमी के कारण पुनर्वास की प्रक्रिया से बाहर हो गए.

पंचकूला: माइनिंग कंपनी ने अधिकारियों की मिलीभगत से किया 35 करोड़ का खनन घोटाला!

हरियाणा में आए दिन माइनिंग माफियाओं द्वारा अवैध तरीके से खनन के मामले सामने आ रहे हैं इसी कड़ी में स्टेट विजीलेंस ब्यूरो ने पंचकूला में अवैध खनन के आरोप में एक माइनिंग फर्म, मालिकों और माइनिंग विभाग के अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है. स्टेट विजीलेंस ब्यूरो की जांच में 35 करोड़ के माइनिंग घोटाले की बात सामने आई है. माइनिंग अधिकारियों ने खनन फर्म के साथ मिलकर 35 करोड़ रुपए का घोटाला किया है.

विजीलेंस ब्यूरो ने हरियाणा स्पेस एपलिकेशन सेंटर की मदद से अवैध खनन के घोटाले को उजागर किया है. दरअसल तिरुपति रोडवेज नाम की फर्म को पंचकूला के रत्तेवाली गांव में खनन के लिए टेंडर जारी किया गया था. विजीलेंस ब्यूरो की टीम जब 11 मई, 2022 को साइट पर गई तो पाया कि 5 मई से 11 मई, 2022 के बीच माइनिंग साइट से रेत से भरे कुल 1,868 ट्रक निकाले गए जबकि एंट्री में केवल 518 ट्रकों के बिल दिखाए गए हैं.

वहीं हरियाणा स्पेस एपलिकेशन सेंटर की रिपोर्ट से पता चला कि पंचकूला के रत्तेवाली गांव की खदान से निकाली गई कुल मात्रा 47.66 LTPA थी. जबकि फर्म को माइनिंग साइट से केवल केवल 8.39 LTPA तक मेटिरियल निकालने की मंजूरी थी.
इस तरह खनन कंपनी ने एक साल के लिए तय क्षमता से छह गुना ज्यादा खनन कर करीबन 35 करोड़ के घोटाले को अंजाम दिया है.

स्टेट विजीलेंस ब्यूरो ने प्रदेश के मुख्य सचिव को मामले की सूचना देते हुए लिखा कि खनन विभाग के अधिकारियों ने प्राइवेट माइनिंग कंपनी के साथ मिलकर अवैध खनन और कर चोरी के घोटाले को अंजाम दिया है. इस बीच माइनिंग कंपनी और माइनिंग विभाग के अधिकारियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 379 (चोरी के लिए), और खान और खनिज अधिनियम 1957 के तहत मामला दर्ज किया गया है.

फसल अवशेष जलाने से रोकने के लिए खर्च किये 693 करोड़, कृषि विशेषज्ञों ने जताई घोटाले की आशंका!

हरियाणा सरकार द्वारा पिछले चार साल में फसल अवशेष प्रबंधन के नाम पर खेतों में लगाई जाने वाली आग को रोकने के लिए 693.25 करोड़ रुपये खर्च कर दिये हैं. सरकार ने फसल अवशेष प्रबंधन योजना के तहत किसानों को सब्सिडी देते हुए 31,466 कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) स्थापित करने और 41,331 किसानों को धान की पुआल के निपटान के लिए वैकल्पिक तरीके अपनाने के लिए मशीनरी देने का दावा किया है.

एक तरफ सरकार फसल के अवशेष को जलाने से रोकने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा कर रही थी वहीं कृषि विभाग के आंकड़े कुछ और ही तस्वीर बया कर रहे हैं. कृषि विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2021 में 14.63 लाख हेक्टेयर में हुई धान की खेती में से 3.54 लाख हेक्टेयर में फसल के जले हुए अवशेष की बात सामने आई है. इसके साथ ही फसल के अवशेष जलाने का क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है. पिछले चार वर्षों में फसल के अवशेष जलाए जाने का रकबा 2021 में सबसे ज्यादा रहा है. 2018 में 2.45 लाख हेक्टेयर, 2019 में 2.37 लाख हेक्टेयर और 2020 में 2.16 लाख हेक्टेयर में फसल के अवशेष जलाए गए थे.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से आरटीआई के माध्यम से प्राप्त जानकारी से पता चला है कि केंद्र ने 2018-19 में 137.84 करोड़ रुपये जारी किए, जिसमें से 132.86 करोड़ रुपये खर्च किये गए. इसी तरह, 2019-20 में 192.06 करोड़ रुपये जारी किए गए, जिसमें से 101.49 करोड़ रुपये खर्च किये गए. अगले साल 2020-21 में केंद्र ने 170 करोड़ रुपये जारी किए, जबकि 205.75 रुपये खर्च किए गए. 2021-22 में 193.35 करोड़ रुपये जारी किए गए और 151.39 करोड़ रुपये खर्च किए गए. 2018-19 में 132.86 करोड़, 2019-20 में 101.49 करोड़, 2020-21 में 205.75 करोड़ और 2021-22 में 151.39 करोड़ यानी पिछले चार साल में कुल 693 करोड़ रुपए खर्च किये जा चुके हैं. लेकिन जमीनी असर नहीं दिखाई दे रहा है.

वहीं कृषि विशेषज्ञों डॉ.राम कुमार ने पंजाब की तरह हरियाणा में भी घोटाले की आशंका जताई है. उन्होंने कहा कि इससे पहले पंजाब में फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सीएचसी को जारी की गई सब्सिडी के नाम पर बड़ा घोटाला सामने आया है. चौंकाने वाली बात यह है कि इन सीएचसी (कस्टम हायरिंग सेंटर) और सब्सिडी का कोई ऑडिट नहीं होता है. कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि पराली जलाना न केवल हरियाणा में बल्कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों के लिए भी चिंता का विषय है.

एयर क्वालिटी ट्रैकर: अंबाला-नंदेसरी सहित देश के पांच शहरों में खराब रही हवा, जानिए अन्य शहरों का हाल

यदि दिल्ली-एनसीआर की बात करें तो यहां की वायु गुणवत्ता ‘मध्यम’ श्रेणी में है। दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 113 दर्ज किया गया है। पिछले दिनों बारिश होने के कारण यहां की हवा की गुणवत्ता में सुधार हो गया था। दिल्ली के अलावा फरीदाबाद में एयर क्वालिटी इंडेक्स 131, गाजियाबाद में 112, गुरुग्राम में 103, नोएडा में 111 पर पहुंच गया है। 

देश के अन्य प्रमुख शहरों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो मुंबई में वायु गुणवत्ता सूचकांक 63 दर्ज किया गया, जो प्रदूषण के ‘संतोषजनक’ स्तर को दर्शाता है। जबकि कोलकाता में यह इंडेक्स 57, चेन्नई में 61, बैंगलोर में 46, हैदराबाद में 60, जयपुर में 105 और पटना में 86 दर्ज किया गया।  

देश के इन शहरों की हवा रही सबसे साफ

देश के जिन 38 शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 50 या उससे नीचे यानी ‘बेहतर’ रहा, उनमें आगरा 46, आइजोल 24, अमरावती 38, बागलकोट 43, बेंगलुरु 46, बेतिया 42, ब्रजराजनगर 49, चामराजनगर 37, चिकबलपुर 41, चिक्कामगलुरु 31, कोयंबटूर 32, दमोह 30, दावनगेरे 26, एर्नाकुलम 49, गडग 40, गांधीनगर 46, गंगटोक 20, गुवाहाटी 43, हसन 25, झांसी 48, कानपुर 46, मदिकेरी 22, मैहर 29, मंडीखेड़ा 34, मैसूर 45, नारनौल 48, पंचकुला 36, पानीपत 46, पुदुचेरी 40, राजमहेंद्रवरम 35, सासाराम 49, शिलांग 22, शिवमोगा 42, श्रीनगर 38, तिरुवनंतपुरम 36, थूथुकुडी 38, तिरुपति 41 और वाराणसी 36 आदि शामिल रहे।

वहीं अगरतला, अहमदाबाद, अलवर, अमृतसर, अंकलेश्वर, अररिया, आरा, आसनसोल, औरंगाबाद (बिहार), औरंगाबाद (महाराष्ट्र), बागपत, बल्लभगढ़, बरेली, बठिंडा, बेगूसराय, बेलगाम, भागलपुर, भिवानी, भोपाल, बिहारशरीफ, बिलासपुर, चंडीगढ़, चंद्रपुर, चरखी दादरी, चेन्नई, देवास, एलूर, फतेहाबाद, फिरोजाबाद, गया, गोरखपुर, हाजीपुर, हल्दिया, हापुड़, हावेरी, हिसार, हावड़ा, हुबली, हैदराबाद, इंफाल, इंदौर, जबलपुर, जालंधर, जींद, कैथल, कल्याण, कन्नूर, करनाल, कटनी, खन्ना, किशनगंज, कोलकाता, कोल्लम, कोप्पल, कोटा, कोझिकोड, कुरुक्षेत्र, लखनऊ, लुधियाना, मंडीदीप, मानेसर, मैंगलोर, मुरादाबाद, मोतिहारी, मुंबई, मुजफ्फरनगर, मुजफ्फरपुर, नागपुर, नवी मुंबई, पाली, पलवल, पटियाला, पटना, पीथमपुर, प्रयागराज, रायचुर, राजगीर, रतलाम, रूपनगर, सागर, सतना, सिलीगुड़ी, सिंगरौली, सिरसा, सोलापुर, सोनीपत, तालचेर, ठाणे, उज्जैन, वातवा, विशाखापत्तनम और वृंदावन आदि 92 शहरों में हवा की गुणवत्ता संतोषजनक रही, जहां सूचकांक 51 से 100 के बीच दर्ज किया गया। 

क्या दर्शाता है यह वायु गुणवत्ता सूचकांक, इसे कैसे जा सकता है समझा?

देश में वायु प्रदूषण के स्तर और वायु गुणवत्ता की स्थिति को आप इस सूचकांक से समझ सकते हैं जिसके अनुसार यदि हवा साफ है तो उसे इंडेक्स में 0 से 50 के बीच दर्शाया जाता है। इसके बाद वायु गुणवत्ता के संतोषजनक होने की स्थिति तब होती है जब सूचकांक 51 से 100 के बीच होती है। इसी तरह 101-200 का मतलब है कि वायु प्रदूषण का स्तर माध्यम श्रेणी का है, जबकि 201 से 300 की बीच की स्थिति वायु गुणवत्ता की खराब स्थिति को दर्शाती है।

वहीं यदि सूचकांक 301 से 400 के बीच दर्ज किया जाता है जैसा दिल्ली में अक्सर होता है तो वायु गुणवत्ता को बेहद खराब की श्रेणी में रखा जाता है। यह वो स्थिति है जब वायु प्रदूषण का यह स्तर स्वास्थ्य को गंभीर और लम्बे समय के लिए नुकसान पहुंचा सकता है।

इसके बाद 401 से 500 की केटेगरी आती है जिसमें वायु गुणवत्ता की स्थिति गंभीर बन जाती है। ऐसी स्थिति होने पर वायु गुणवत्ता इतनी खराब हो जाती है कि वो स्वस्थ इंसान को भी नुकसान पहुंचा सकती है, जबकि पहले से ही बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए तो यह जानलेवा हो सकती है।

साभार: डाउन टू अर्थ

पौधारोपण के लिए हर साल 40-50 करोड़ रूपए खर्च करने के बाद भी घटा वनक्षेत्र!

सरकार की ओर से हर साल करोड़ों पौधे लगाने का दावा किय जाता है. पौधारोपण के लिए करोड़ों का बजट जारी किया जाता है. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. हर साल लगाए जाने वाले पौधों का रखरखाव नहीं किया जाता है. जिन पौधों को पेड़ों में बदलने के लिए हर साल करोड़ों रुपये बहाए जा रहे हैं उसका परिणाम सीफर नजर आता है.

आईएएफएस की 2021 कि रिपोर्ट के बाद हरियाणा विधानसभा में पेश की गई पब्लिक अकाउंट कमेटी (पीएसी) ने भी वन विभाग के पौधारोपण सिस्टम को लेकर सवाल उठाए हैं. हरियाणा में हर साल करोड़ों पौधें लगाए जाते हैं. इंडिया स्टेट ऑफ फारेस्ट सर्वे की 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में 2 साल के भीतर 140 स्क्वायर किलोमीटर ट्री कवर घटा है, जबकि पौधारोपण के लिए सालाना 40 से 50 करोड़ रूपए खर्च किये जाते रहे हैं.

अभी वन और ट्री-कवर हरियाणा के 44 हजार 212 स्क्वेयर किलोमीटर के क्षेत्र में 2,990 स्क्वेयर किलोमीटर क्षेत्र ट्री कवर क्षेत्र है. 1425 स्क्वेयर किलोमीटर में वन है. आईएएसएफ की 2021 कि रिपोर्ट के अनुसार 2019 में 1565 स्क्वेयर किलोमीटर क्षेत्र में ट्री-कवर घटकर 2021 में 1425 स्क्वेयर किलोमीटर हो गया है.

आईएएसएफ की रिपोर्ट के बाद पीएसी ने वन विभाग से पौधारोपण को लेकर ब्यौरा मांगा है जिसमें पौधारोपण पर होने वाले खर्च को लेकर जानकारी की बात की गई है. इस रिपोर्ट से यह पता चलेगा की आखिर पेड़ों की वृद्धि क्यों नहीं हो रही है. वहीं पौधे ना बढ़ने के दो कारण है. पहला देखरेख में कमी, पौधे लगा तो दिये जाते है लेकिन उनकी देखरेख उचित ढंग से नहीं कि जाती है, जिसके कारण पेड़ बढ़ने से पहले ही खत्म हो जाते हैं. दूसरा करण है कि कही पौधे लगाए ही नहीं जाते हैं.

वहीं हिंदी अखबार दैनिक भास्कर में छपि एक रिपोर्ट के अनुसार वन विभाग का कहना है कि लगाए गए पौधों में से यदि 60 फीसदी पौधे भी जीवित रहते हैं तो यह हमारे लिए अच्छा है, लेकिन असल में ऐसा नहीं होता है. जीवित पौधों की संख्या 60 फीसदी से भी बहुत कम रह पाती है. वन विभाग ने इस साल के लिए भी 2 करोड़ पौधों का लक्ष्य रखा है. साथ ही वन विभाग के मंत्री कंवर पाल गुर्जर भी मंचों से कईं दफा यह एलान कर चुके हैं कि हरियाणा में वन क्षेत्र 7 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी करने का लक्ष्य रखा गया है. ऐसे एक ओर से वन क्षेत्र घटता जा रहा है वहीं मंत्री जी 20 फीसदी का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं.

दिल्ली: दिल्ली पुलिस की रोक-टोक के बाद भी किसान महापंचायत में जुटे हजारों किसान!

किसान संगठनों द्वारा दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक दिवसीय किसान महापंचायत बुलाई गई है. यह किसान महापंचायत लखीमपुर हत्याकांड के मुख्यारोपी राज्य मंत्री अजय मिश्र के बेटे आशीष मिश्र को सजा दिलाने और मंत्री के इस्तीफे की मांग को लेकर बुलाई गई है. किसानों को दिल्ली आने से रोकने के लिए सरकार के इशारों पर दिल्ली पुलिस किसानों का रास्ता रोकने में जुटी थी. सड़क के रास्ते को रोका गया तो किसान रेल के रास्ते दिल्ली पहुंच गए.

दिल्ली पहुंचे किसानों ने गांव-सवेरा के पत्रकार मनदीप पुनिया को बताया कि दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद भी पुलिस ने हमारा रास्ता रोकने की कोशिश की. पुलिस ने हमें अपनी बसों में बैठने को कहा लेकिन हम लोगों ने पुलिस की बसों में बैठने से मना कर दिया. पुलिस ने जंतर-मंतर की ओर जाने वाले रास्तों पर भारी बैरिकेडिंग कर रखी है.

वहीं पंजाब के मानसा से दिल्ली पहुंची 70 साल की बुजुर्ग माता ने कहा हम लखीमपुर में मारे गए किसानों को न्याय दिलाने के लिए पहुंचे हैं. साथ ही बिजली संशोधन बिल-2022 वापिस होना चाहिए.

संयुक्त किसान मोर्चा अराजनैतिक की ओर से जारी प्रेस रिलीज में किसान महापंचायत की प्रमुख मांगें.
1). लखीमपुर खीरी नरसंहार के पीड़ित किसान परिवारों को इंसाफ, जेलों में बंद किसानों की रिहाई व नरसंहार के मुख्य दोषी केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी की गिरफ्तारी की जाए.
2). स्वामीनाथन आयोग के C2+50% फॉर्मूले के अनुसार एमएसपी की गारंटी का कानून बनाया जाए.
3). देश के सभी किसानों को कर्जमुक्त किया जाए.
4). बिजली संशोधन बिल-2022 रद्द किया जाए.
5). गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाया जाए और गन्ने की बकाया राशि का भुगतान तुरन्त किया जाए.
6). भारत WTO से बाहर आये और सभी मुक्त व्यापार समझौतों को रद्द किया जाए.
7). किसान आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए सभी मुकदमे वापस लिए जाएं.
8). प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों के बकाया मुआवज़े का भुगतान तुरन्त किया जाए.
9). अग्निपथ योजना वापिस ली जाए.

22 अगस्त को जंतर-मंतर पर किसान पंचायत, रोड़े अटकाने में जुटी दिल्ली पुलिस!

संयुक्त किसान मोर्चा ने एसएसपी यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य, अग्निपथ योजना और लखीमपुर हिंसा के मुद्दों पर केंद्र सरकार के विरोध में 22 अगस्त को दिल्ली के जंतर-मंतर पर पंचायत की कॉल दी है. जंतर-मंतर पर पंचायत के बाद किसान अपनी सभी मांगों को लेकर राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सैंपेंगे. वहीं कोई भी राजनीतिक संगठन इस कार्यक्रम का हिस्सा नहीं होगा.

दिल्ली के जंतर-मंतर पर होने वाली पंचायत में जहां एक ओर किसान भारी संख्या में पहुंच रहे हैं, वहीं दूसरी ओर दिल्ली पुलिस किसानों को जंतर-मंतर पर पहुंचने से रोकने के लिए पहले की तरह बैरिकेडिंग करने में जुट गई है. जंतर-मंतर पर होने जा रही किसान पंचायत के एक दिन पहले ही दिल्ली में प्रवेश करने वाले सभी वाहनों की चैकिंग की जा रही है खासकर किसानी झंड़े लगे वाहनों को रोका जा रहा है. खबर है कि दिल्ली पुलिस द्वारा टिकरी बॉर्डर पर बड़े-बड़े पत्थर रखने के साथ सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. इसके साथ ही दिल्ली में प्रवेश करने वाले हर रास्ते पर नाके लगाकर चैकिंग की जा रही है.

करीबन एक साल तक दिल्ली के बॉर्डरों पर धरना देने वाले किसान सरकार के वादों से संतुष्ट नहीं हैं. सरकार ने हालंहि में बिलजी संशोधन बिल-2022 पेश कर दिया है जिसको लेकर देशभर के किसान रोष व्यक्त कर चुके हैं. वहीं किसानों पर दर्ज केस अब तक वापस नहीं लिए गए हैं जिसके चलते किसान सरकार से नाखुश हैं. साथ ही सरकार ने एमएसपी गारंटी को लेकर भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. सरकार पर दबाव बनाने के लिए किसानों जंतर-मंतर पर किसान पंचायत करने जा रहे हैं.

पंजाब: आंगनवाड़ी केंद्रों की खाद्य सुरक्षा में धांधली, गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़!

पंजाब के 5 जिले फिरोजपुर, गुरदासपुर, फतेहगढ़ साहिब, रोपड़ और एसबीएस नगर में सप्लीमेंट्री न्यूट्रिशन प्रोग्राम के फंड में करोड़ों रुपए की धांधली सामने आई है. सामाजिक सुरक्षा और महिला एवं बाल विकास अधिकारियों द्वारा फंड को कथित तौर पर डाइवर्ट करने का मामला प्रकाश में आया है. जिसके चलते बच्चों में महिलाओं को हल्की गुणवत्ता वाले खाद्य कंटेनर से आहार दिया जा रहा था. मामले की जांच वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जारी है.

सामाजिक सुरक्षा और महिला एवं बाल विकास विभाग के निर्देशक अरविंद पाल संधू ने कहा कि विभागीय मामले की जांच वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा की जा रही है. जल्द ही मामले में आरोपियों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी. वहीं विभाग के प्रमुख सचिव कृपा शंकर सरोज ने कहा कि वह स्वयं इस मामले को देखेंगे. कंटेनर हल्की गुणवत्ता के थे और अधिक दरों पर खरीदे गए थे. 5 जिलो ने प्रति कंटेनर 100 किलोग्राम क्षमता वाले 30,085 कंटेनरों की खरीद पर 807.22 लाख रुपए खर्च किए. हालांकि विभिन्न जिलों में कंटेनरों की दरें अलग अलग थी.

जानें क्या है मामला

सप्लीमेंट्री न्यूट्रिशन प्रोग्राम भारत सरकार द्वारा बच्चों व महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने का एक जरिया है. जिसमें 2009 में महत्वपूर्ण परिवर्तन भी किए गए थे. एसएनपी का उद्देश्य 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को उनके स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति में सुधार के लिए आहार उपलब्ध करवाना है. लेकिन पंजाब के 5 जिलों में साल 2014 से 2017 तक एक विशेष ऑडिट में सीएजी ने खुलासा किया है कि करोड़ों रुपए की धनराशि से हल्की गुणवत्ता वाले खाद्य कंटेनर महंगी दरों पर खरीदने के लिए फंड के साथ छेड़छाड़ की गई है. 5 जिलों में दिशा-निर्देशों के विपरीत एसएनपी निधि से कंटेनर खरीदे गए. वहीं 9 जिलों में कंटेनर खरीदे गए लेकिन केवल 5 जिलों का ही ऑडिट किया गया. क्योंकि इन 5 जिलों में किया गया खर्च सबसे ज्यादा था. वही ऑडिट में यह भी सामने आया कि 1 क्विंटल खाद्यान्न की भंडारण क्षमता के अपेक्षा कंटेनर कम भंडारण क्षमता के थे. इस मामले के सामने आने से गरीब बच्चों व गर्भवती महिलाओं के पोषक आहार और खाद्य सुरक्षा पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है.