मुद्दा किसानों की जमीन पक्की करने का है, सिख या गैर-सिख का नहीं | वीएम सिंह

 

आपको याद होगा जून के दूसरे सप्ताह में सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार द्वारा 30 हजार सिखों को उनकी जमीन से हटाने की खबर तेजी से फैली। जिसने भी सुना वो हैरान था कि हजारों सिखों को उनकी जमीन से क्यों बेदखल किया जा रहा है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह, अकाली दल के नेताओं और आम आदमी पार्टी ने तुरंत इस मुद्दे पर बयान दिए और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बात करने की बात कही। मुझे देश-विदेश से लोगों के फोन आये क्योंकि उन्हें मालूम था कि पिछले 25 साल में जब भी किसानों को उजाड़ने की बात हुई है, हमने पहल कर शासन/प्रशासन या कोर्ट के माध्यम से उजाड़ने से रुकवाया।

सन 1996 में लिया गया हाईकोर्ट का आर्डर 15 साल से ज्यादा समय तक लोगों को जमीन से बेदखल होने से बचाता गया। साल 2018 में योगी सरकार नानक सागर डाम के बदले वाली भूमि पर बैठे किसानों को उजाड़ने आई थी, तब हाई कोर्ट में केस किया गया जो आज भी चल रहा है। इसलिए मुझे सोशल मीडिया की खबरों पर आश्चर्य हुआ कि हजारों सिख किसानों को उजाड़ने का मामला सही नहीं हो सकता।

लखीमपुर खीरी जिले के रननगर में जमीन पर कब्जा करने गए पुलिस बल के साथ किसानों का टकराव

हमने जमीनी हकीकत का पता लगाने के लिए तीन सदस्य समिति बिजनौर और रामपुर भेजी जिसके अध्यक्ष तेजिंदर सिंह विर्क (वर्किंग ग्रुप सदस्य-AIKSCC) थे। ऐसी ही एक दूसरी समिति प्रताप बहादुर जी की अध्यक्षता में पीलीभीत और खीरी भेजी गई। इस समिति को खासतौर से कहा गया कि रननगर की जांच में ज्यादा समय दें। दोनों टीमें 19 जून को जांच के लिए गई थी और पूरे मामले की पड़ताल के बाद दोनों समितियों ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।

दोनों जांच रिपोर्ट में साफ है कि सरकार किसानों को जमीनों से हटाने का जोर डाल रही है लेकिन किसी को भी हटाने में नाकामयाब रही है। रननगर में 3 जून को फोर्स ने जेसीबी के माध्यम से 10-12 एकड़ गन्ना उजाड़ दिया। किसानों को जैसे ही इसकी जानकारी मिली, उन्होंने विरोध किया और फोर्स को वापस लौटना पड़ा। अधिकारियों ने उसी दिन गांव वालों पर एफआईआर लिखवा दी। इससे पहले 2018 में जब फोर्स टाटरगंज, कंबोज नगर ओर टिल्ला के किसानों को उजाड़ने गई थी, तब भी नाकामयाब रही थी। क्योंकि किसानों ने पुलिस बल को वापस लौटने पर विवश कर दिया था।

अब देखने की बात है कि जब हमारे किसानों ने दोनों जगहों पर सरकारी फोर्स को भगा दिया तो क्या आज यह कहना सही होगा कि सरकार ने 30 हजार सिखों को उजाड़ दिया? अगर सही मैसेज जाता कि बिना देश के नेताओं/किसानों की सपोर्ट के गांव के किसानों ने फोर्स को भगा दिया और अगर ऐसा फिर हुआ तो पूरे देश के किसान उनके साथ खड़े रहेंगे तो सरकार पर दबाव बनता और वो किसी को उजाड़ने के पहले दो बार सोचती।

लेकिन सोशल मीडिया पर इस मामले को फैलाकर सरकार की नाकामयाबी को उनकी ताकत बना दिया और खुद सरकार से गुहार लगाने गए कि हमें मत उजाड़ो। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अकाली दल की टीम को 20 जून का टाइम दिया। लेकिन वहां किसी ने यह नहीं कहा कि 30 हजार उजड़े हुए लोगों को दोबारा बसाया जाए। उन्हें मालूम था कि सरकार उजाड़ने में नाकामयाब रही और जो 10-12 एकड़ गन्ना जो जोत दिया गया था उस पर भी किसानों ने फोर्स को भगाने के बाद धान लगा दिया है।

इससे एक तरफ 30 हजार सिख किसानों को उजाड़ने की गलत खबर से हमारी कमजोरी दिखाई दी और दूसरी तरफ जात-बिरादरी छोड़ देश के किसानों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने की मुहिम को कमजोर करने की कोशिश दिख रही है। सिख किसानों के मालिकाना हक की बात पहले भी बहुत मुख्यमंत्रियों ने की पर ऐसे उजाड़ने का प्रयास तो किसी ने नहीं किया। क्या सिखों को उजाड़ने कि झूठी बात सोशल मीडिया पर वायरल करना मुख्यमंत्री से अकालियों के साथ मिलने की सुनियोजित रणनीति थी?

मुख्यमंत्री ने 4 जांच कमेटियां बनाई हैं जो मालिकाना हक दिलवाने का काम करेंगी। वहीं उस वार्ता के कुछ दिन बाद उसी निघासन तहसील के सिंघाई थाने में सिखों पर सरकारी जमीन पर कब्जा करने के आरोप में 10 गंभीर धाराओं लगते हुए एफआईआर दर्ज करवाई गई।

हकीकत है कि पिछले 50-60 सालों से बैठे किसानों को बीजेपी सरकार ने उखाड़ने की कोशिश की है। मंगल ढिल्लों जी ने पीलीभीत में सिखों (सुरजीत कौर आदि) की विरासत जिला अधिकारी द्वारा पलटने की बात कही! यह मामला 1997-98 में भाजपा सरकार का है आज का नहीं। यह मामला 20-22 किसानों का है और आज ये मामला कमिश्नरी से वापस चकबंदी अफसर के पास पहुंचा है। केवल मामला उछालने की बजाय हम अगर उन परिवारों की अच्छे वकीलों के द्वारा मदद करे तो बेहतर होगा।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें हर बिरादरी के किसानों को जमीन का मालिकाना हक दिलवाने की कोशिश करनी है। नानक सागर डाम और रामपुर जिले का मामला कोर्ट में है। सरकार हल निकाल दे तो सोने पर सुहागा, अगर कमेटी की सिफारिशों का इंतज़ार कर रही है तो कम से कम गन्ने का सट्टा तो आने वाले सर्वे में चालू करवा दें, जिससे उनका कब्जा तो बरकरार रहेगा। किसान 50-60 साल से अपनी जमीन पर काबिज हैं। कुछ सरकारों ने उसकी जमीन की मलकियत देने की बात कही पर आज तक दोनों मुद्दों पर सरकारें नाकामयाब रही हैं।

पिछले 25 सालों में मैंने अपना फर्ज निभाया। किसानों का सट्टा दिलवाने का काम भी किया। अब अकाली दल और बीजेपी के माध्यम से अगर किसानों को मलकियत मिलती है तो उससे बड़ी बात कोई नहीं हो सकती। हाई कोर्ट में जो हमसे होगा हम करेंगे। मैं उम्मीद करता हूं कि अगले 6 महीने में इन कमेटी की प्रक्रिया समाप्त होकर किसानों को मलकियत मिलेगी।

मुझे मालूम है कि उत्तराखंड में बीजेपी सरकार द्वारा खटीमा में हाल ही में 106 एकड़ गेहूं उजाड़ दी गई और बाजपुर में प्रशासन द्वारा 20 हजार किसानों की 5,838 एकड़ पर संकट के बादल छाए हुए हैं। जैसे दिल्ली में कोरोना कम होता है और उत्तराखंड में जाने की अनुमति मिलती है, तब मैं खटीमा और बाजपुर आऊंगा। पर इसी बीच में उत्तर प्रदेश/उत्तराखंड सिख संगठन और अकाली दल के नेताओं से कहना चाहूंगा कि आपकी सहयोगी बीजेपी सरकार से इन मामलों का भी हल निकलवाने की कोशिश करें। बाजपुर और खटीमा में सिखों के साथ-साथ अन्य बिरादरियों के किसान भी हैं। सिख पहले श्रेणी की खेती करता है, देश का पेट भरता है। उसकी बात किसान के रूप में कि जाए तो बेहतर होगा। जब हमारे गुरु ने जात बिरादरी में फर्क ना रखते हुए एक धर्म को बचाने के लिए सब कुछ किया तो कुछ लोग सिख किसान और गैर सिख किसान की दरार क्यों पैदा कर रहे हैं?

(लेखक राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के राष्ट्रीय संयोजक हैं)