अनेक आयोग और समितियों के बाद भी ज्यों-की-त्यों है विमुक्त-घुमंतू जनजातियों की दशा !

 

अंग्रेजी हुकूमत के दौरान क्रिमिनल ट्राइब्स के नाम से पहचानी जाने वाली विमुक्त घुमंतू जनजातियां आजादी के सात दशक बाद भी अपने अस्तित्व और पहचान को लेकर संघर्ष कर रही हैं. 15 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाली विमुक्त-घुमंतू जनजातियों की अनदेखी का नतीजा है कि देशभर में डीएनटी समुदाय के 50 फीसदी से ज्यादा लोग बेघर और करीबन 90 फीसदी लोग बिना किसी दस्तावेज के रह रहे हैं.

सबसे पहले आजादी वर्ष 1947 में यूनाइटेड प्रोविंस के अंतर्गत ‘क्रमिनिल ट्राइब इन्कवायरी कमेटी’ बनाई गई. जिसमें इन सभी विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों को मुख्यधारा से जोड़ने की पहल पर विचार किया गया.       

डीएनटी समूह के उत्थान के लिए आजादी से लेकर अब तक कईं आयोग और कमेटियां बनाई गईं. सबसे पहले 1949 में अय्यंगर कमेटी बनी. केंद्र सरकार ने अय्यंगर कमेटी के कुछ सुझावों को मानते हुए कईं सफारिशें लागू की. अय्यंगर कमेटी की रिपोर्ट के बाद 31 अगस्त 1952 को इन जनजातियों को डिनोटिफाई किया गया तभी से इन जनजातियों को डीएनटी (डिनोटिफाइड नोमेडिक ट्राइब्स) के नाम से जाना जाता है. इन जनजातियों को डिनोटिफाई तो किया गया लेकिन साथ ही इनपर हेब्चुएल ऑफेंडर एक्ट यानी आदतन अपराधी एक्ट थोप दिया गया.

इसके बाद 1953 में काकासाहब कालेलकर की अध्यक्षता में बने पहले पिछड़े आयोग ने भी विमुक्त घुमंतू जनजातियों को लेकर अपनी रिपोर्ट में कुछ सिफारिशें की थी. कालेलकर आयोग ने इन जनजातियों पर लगे आपराधिकरण के ठप्पे को हटाने की बात पर जोर देते हुए रिपोर्ट में कहा, ‘इन जनजातियों के साथ क्रिमिनल ट्राइब और एक्स-क्रिमिनल जैसे शब्द नहीं जोड़े जाने चाहिए. साथ ही इन जनजातियों को शहरों और गांवों में बसाने पर जोर देना चाहिए ताकि ये लोग भी अन्य लोगों के साथ घुल-मिल सकें.’

इसके बाद 1967 में बीएन लोकूर की अध्यक्षता में लोकूर कमेटी का गठन किया गया. लोकूर कमेटी की रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए बनाई गई योजनाओं का लाभ विमुक्त घुमंतू जनजातियों तक नहीं पहुंच रहा है. विमुक्त घुमंतू जनजातियों को योजनाओं का लाभ न मिलने की मुख्य वजह थी इनकी कम आबादी और इनका एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमना. अंत में लोकूर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘इन जनजातियों को SC और ST से अलग करके एक विशेष समूह का दर्जा दिया जाना चाहिए और इन जनजातियों के उत्थान के लिए विशेष योजनाएं चलाई जानी चाहिए.’

2002 में जस्टिस वेंकेटेसलाह कमीशन ने रिपोर्ट में कहा, ‘इन जनजातियों पर अपराधी होने का ठप्पा लगाया गया है, वह गलत है. जस्टिस वेंकेटेसलाह कमीशन ने विमुक्त घुमंतू जनजातियों के लिए स्पेशल कमीशन बनाए जाने की सिफारिश की. 2002 की जस्टिस वेंकेटेसलाह कमीशन की सलाह पर 2015-16 में स्पेशल कमीशन का गठन किया गया. डीएनटी कमीशन के गठन के बाद कमीशन में नियुक्तियों को लेकर भी देरी की गई. वहीं कमीशन के गठन के 6 साल तक डीएनटी कमीशन और  डीएनटी जनजातियों की विकास येजनाओं के लिए केवल 45 करोड़ का बजट दिया गया. इस बजट में से भी एक पैसा खर्च नहीं किया गया.

इसके बाद यूपीए सरकार में 2005 में रैनके कमीशन का गठन किया गया. बालकृष्णन रैनके को इस आयोग का अध्यक्ष बनाया गया. बालकृष्णन रैनके स्वयं विमुक्त घुमंतू जनजाति से आते हैं. रैनके कमीशन ने 2008 में अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी. रैनके आयोग की टीम ने तीन साल तक पूरे देश में घूम घूमकर इन जनजातियों से जुड़े आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक पहेलुओं पर सर्वे किए. विमुक्त घुमंतू जनजातियों से जुड़े अब तक के आयोग और कमेटियों में से रैनके आयोग ने बड़े स्तर पर सर्वे किए हैं. इन जनजातियों की राज्यवार संख्या बताने से लेकर अलग-अलग घुमंतू जनजातियों का रहन-सहन, जीविका के साधन, कला और संस्कृति पर भी काम किया है. रैनके कमीशन ने तीन साल में देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर वहां के इन जनजातियों के स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं से मिलकर रिपोर्ट तैयार की. 

रैनके कमीशन ने घुमंतू जनजातियों को अलग से 10 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की है. साथ ही शैक्षणिक उत्थान के लिए घुमंतू जनजातियों के बच्चों के लिए बॉर्डिंग स्कूल खोलने, विमुक्त घुमंतू परिवारों को जमीन देकर घर बनवाने और दस्तावेज बनाने की सिफारिश की है.

रैनके कमीशन ने अपने सर्वे में पाया कि विमुक्त घुमंतू जनजाति से जुड़े 98 फीसदी लोगों के पास अपने दस्तावेज और 58 फीसदी लोगों के पास रहने के लिए मकान तक नहीं हैं.  

सभी विमुक्त घुमंतू जनजातियों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग में सूचिबद्ध किया गया है जिसके चलते इन जनजातियों से जुड़े लोगों तक सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच रहा है. जिसके चलते रैनके कमीशन ने इन जनजातियों के लिए अलग से 10 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की थी.             

इसके बाद 2015 में एनडीए सरकार में इदाते कमीशन का गठन किया गया. भीखूराम इदाते को कमीशन का अध्यक्ष बनाया गया. भीखूराम इदाते आरएसएस के नेता हैं जो आरएसएस के जरिए महाराष्ट्र में विमुक्त घुमंतू जनजातियों के बीच काम करने का दावा करते हैं. इदाते कमीशन ने 2018 में केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी. इदाते कमीशन की रिपोर्ट में भी विमुक्त घुमंतू जनजातियों के विकास के लिए सिफारिशें की गईं लेकिन इसी बीच इदाते कमीशन के काम करने के तरीके पर भी सवाल खड़े हुए. कईं मीडिया रिपोर्ट्स में इदाते कमीशन पर आरोप लगे की कमीशन ने जनजातियों के बीच जाकर कम और अन्य रिपोर्ट्स के आधार पर रिपोर्ट तैयार की है.

इस बीच सबसे दिलचस्प बात ये है कि रैनके कमीशन द्वारा डीएनटी को अलग से दस फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश को इदाते कमीशन ने मानने से इनकार कर दिया और इदाते कमीशन की रिपोर्ट में इन जनजातियों के लिए दस फीसदी आरक्षण की मांग को आगे नहीं बढ़ाया गया है. एनडीए सरकार में गठिन इदाते आयोग की रिपोर्ट आए हुए चार साल से ज्यादा बीत चुका है लेकिन अब तक इस रिपोर्ट को चर्चा के लिए सदन में पेश नहीं किया गया है.

तमाम आयोग और कमेटियों के गठन और इनकी सिफारिशों के बाद भी विमुक्त घुमंतू जनजातियों के उत्थान के लिए कुछ काम नहीं हुआ.