किसानों को सस्ती बिजली, महिलाओं को मंडियों में जगह लेकिन गौमाता की उपेक्षा

शुक्रवार को हरियाणा के मुख्यमंत्री  मनोहर लाल खट्टर ने अपने दूसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश करते हुए खेती-किसानी से जुड़ी कई घोषणाएं की। खट्टर राज्य के वित्त मंत्री भी हैं। इस हैसियत से वित्त वर्ष 2020-21 का बजट पेश करते हुए उन्होंने किसानों को कृषि से जुड़ी आर्थिक गतिविधियों के लिए 4.75 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली देने का ऐलान किया है। अभी 7.50 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली बिल देना पड़ता है। इस तरह अब हरियाणा के किसानों को कृषि आधारित गतिविधियों जैसे फूड प्रोसेसिंग, पैकिंग, ग्रेडिंग, मधुमक्खी पालन, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन और एफपीओ द्वारा स्थापित कोल्ड स्टोरेज आदि के लिए प्रति यूनिट 2.75 रुपये सस्ती बिजली मिलेगी।

गत विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के उभार और भाजपा की सीटों में आई कमी को किसानों की नाराजगी से जोडकर देखा गया था। इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए बजट में बड़े ऐलान करेंगे। किसानों को सस्ती बिजली देकर मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने किसानों को साधाने का प्रयास जरूर किया है, लेकिन कृषि संकट दूर करने और खेती को फायदा का सौदा बनाने की कारगर तैयारी इस बजट में भी नहीं है।

1 लाख एकड़ में जैविक व प्राकृतिक खेती का लक्ष्य, मगर बजट का आंकड़ा नदारद  

जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए हरियाणा सरकार ने अगले तीन साल में 1 लाख एकड़ क्षेत्र में जैविक व प्राकृतिक खेती के विस्तार का लक्ष्य रखा है। लेकिन इसके लिए राज्य सरकार कितना पैसा खर्च करेगी, मुख्यमंत्री ने यह नहीं बताया। कहीं इस योजना का हश्र भी केंद्र सरकार की जीरो बजट खेती की तरह न हो जाए, जिसका जिक्र तो खूब हुआ लेकिन जमीन पर कुछ खास असर नहीं दिखा।

महिला किसानों को तवज्जो

हरियाणा के बजट में महिला किसानों के लिए दो अहम घोषणाएं की गई हैं। अब राज्य की सभी सब्जी मंडियों में महिला किसानों के लिए अलग से 10 फीसदी जगह आरक्षित होगी। इसके अलावा किसान कल्याण प्राधिकरण में विशेष महिला सेल की स्थापना की जाएगी। गौरतलब है कि यह प्रावधान सिर्फ सब्जी मंडियों में लागू होगा, ना कि प्रदेश की सभी कृषि उपज मंडियों में। 

बढ़ा ब्याज मुक्त कर्ज का दायरा, लेकिन शर्त भी अजीब

मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने ब्याज मुक्त कर्ज की सुविधा को सहकारी संस्थाओं के अलावा उन किसानों को भी देने का ऐलान किया है जो किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक या सहकारी बैंक से प्रति एकड़ 60 हजार रुपये का अधिकतम 3 लाख रुपये का फसली कर्ज लेते हैं। लेकिन यह सुविधा किसान को तभी मिलेगा, जब वह समय पर कर्ज अदा करेगा। इसके अलावा एक अजीब शर्त यह है कि किसान की फसल खरीद की पेमेंट सीधा उस बैंक के खाते में जाएगी जिस बैंक से कर्जा लिया है। यह शर्त पुराने साहूकारी सिस्टम की याद दिलाती है।

बागवानी पर भी जोर, अनुदान बढ़ाया

हरियाणा सरकार ने 2030 तक प्रदेश में बागवानी के क्षेत्र को दोगुना और बागवानी उत्पादन तीन गुना करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए किन्नू, अमरुद और आम के बागों की स्थापना के लिए मिलने वाले अनुदान को 16 हजार रुपये से बढ़ाकर 20 हजार रुपये प्रति एकड़ कर दिया है।

फूड प्रोसेसिंग को बढ़ावा देने के लिए टमाटर, प्याज, आलू, किन्नू, अमरूद, मशरूम, स्ट्राबेरी, अदरक, गोभी, मिर्च, बेबीकॉर्न, स्टीवकॉर्न की प्रोसेसिंग के लिए प्रदेश में नई इकाइयां स्थापित की जाएंगी। खाद्य उत्पादों की पैकिंग और ब्रांडिंग के साथ बिक्री के लिए वीटा व हैफेड की तर्ज पर प्रदेश में 2 हजार आधुनिक सेंटर स्थापित किए जाएंगे।

बेसहारा गौवंश के लिए सिर्फ 50 करोड़ रुपये!

गौमाता को लेकर खूब राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी की हरियाणा सरकार ने गौशालाओं में बेसहारा पशुओं के नियंत्रण व आश्रय के लिए सिर्फ 50 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। पिछले साल तो इस मद में सिर्फ 30 करोड़ रुपये रखे गए थे। जबकि आवारा पशुओं की समस्या विकराल रूप ले चुकी है। लेकिन कृषि और किसान कल्याण के लिए आवंटित 6,481 करोड़ रुपये के बजट में से बेसहारा पशुओं के हिस्से में सिर्फ 50 करोड़ रुपये आए हैं, जो बजट का 1 फीसदी भी नहीं है।

 

मोदी और शाह ने सावरकर की टू नेशन थ्योरी पर अमल कर भारत को विभाजन की आग में झोंक दिया है

धर्म के आधार पर नागरिकता का प्रावधान संविधान की मूल आत्मा पर हमला है। पहली बार देश की सरकार ने अपने एक काले कानून को बचाने के लिए सफेद झूठ बोला कि कांग्रेस ने धर्म के आधार पर देश का विभाजन किया था।

टू नेशन थ्योरी सावरकर की थी। जिन्ना ने इस पर अमल किया। देश का धार्मिक आधार पर विभाजन जिन्ना ने कराया, अंग्रेजों ने उनकी मदद करके इसे हवा दी। जिन्ना से पहले हिन्दू कट्टरपंथियों ने ही आग लगाई थी कि भारत को हिन्दू राष्ट्र होना चाहिए। लेकिन हिन्दू कट्टरपंथी पूरे इतिहास में अंग्रेजों के मुखबिर से ज्यादा कोई भूमिका नहीं निभा सके। दंगा कराने में जरूर बढ़ चढ़ कर आगे रहे।

भारत सरकार एक ऐसा कानून बना रही है जिसके बारे में पहले से मालूम है कि यह असंवैधानिक है और कोर्ट इसे रद्द कर देगा. फिर भी सरकार संविधान के विरुद्ध यह काम क्यों कर रही है? भारत की सरकार, भारत के संविधान के ही विरुद्ध काम क्यों कर रही है?

क्योंकि यह बिल पास हुआ तो हिंदू मुस्लिम विभाजन का भाजपा सौ बरस पुराना एजेंडा कामयाब हो जाएगा. अगर बिल पास नहीं हुआ, या रद्द हो गया तो इसी आधार पर हिंदू मुस्लिम मुद्दे पर वे चुनाव लड़ेंगे. आखिर राम मंदिर का मुद्दा सुलझ गया. अर्थव्यवस्था ढह चुकी है और विकास का तेल निकल चुका है. अगला चुनाव किस मुद्दे पर लड़ेंगे? इनके चुनाव जीतने की कीमत आप चुकाएंगे. वे हिंदू मुस्लिम को आपस में लड़ाते रहे हैं, आगे भी लड़ाएंगे.

मार्कंडेय काटजू ने ठीक कहा था कि भारत की 90 प्रतिशत जनता के दिमाग में भूसा भरा है. 6 साल की आर्थिक बर्बादी में देश 50 साल पीछे चला गया है लेकिन भक्त अभी भी नशे में हैं. यह देश गुलामी और विभाजन ही डिजर्व करता है, क्योंकि लोग अपनी प्रवृत्ति से गुलाम हैं.

इस विधेयक का विरोध क्यों जरूरी?

इस विधेयक का विरोध इसलिए नहीं करना चाहिए कि यह मुसलमानों के साथ अन्याय करता है. इस विधेयक का विरोध इसलिए करना चाहिए ​क्योंकि यह बिल 50 साल तक लड़ी गई आजादी की लड़ाई और 72 साल में निर्मित हुए देश के साथ गद्दारी करता है.

यह बिल महात्मा गांधी, भगत सिंह, अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे अमर योद्धाओं के साथ गद्दारी करता है. यह बिल उस बहादुरशाह जफर के साथ गद्दारी करता है जिसने अपनी आंखों के सामने अपने बेटों का सिर दे दिया था और खुद रंगून में दफन हो गया.

यह बिल बेगम हज़रत महल से लेकर बदरुद्दीन तैयबजी, नवाब बहादुर, दादा भाई नैरोजी, सैयद हसन इमाम, अब्दुल गफ्फार खान, मोहम्मद अली जौहर से लेकर गांधी, नेहरू, सुभाष और पटेल तक से गद्दारी करता है.

यह नेहरू और पटेल जैसे योद्धाओं के साथ धोखा है जिन्होंने अपनी लगभग जिंदगी अंग्रेजों से लड़ने में बिता दी और बची जिंदगी में अपनी मजबूत अस्थियां लगाकर भारत की ​बुनियाद रखी. यह पटेल के उस सपने पर हमला है जिसके तहत वे कहते थे कि ‘हम एक सच्चे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए प्रतिबद्ध हैं क्योंकि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र ही सभ्य हो सकता है. यह बिल उन हजारों लाखों हिंदुओं और मुसलमानों के साथ गद्दारी करता है जिन्होंने साथ में लड़कर इस देश को आजाद कराया. यह बिल हमारे पुरखों के सपनों के भारत को बदलना चाहता है.

यह बिल स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत के साथ, हमारे संविधान पर हमला करता है. यह बिल हमारे सेकुलर, लोकतांत्रिक गणराज्य को एक कठमुल्ला तंत्र में बदलने की घोषणा है. यह हमारी 140 करोड़ जनता को दो हिस्सों में बांटने का षडयंत्र रच रहा है. यह हमें स्वीकार नहीं करना चाहिए.

यह उनके द्वारा किया जा रहा है जिनपर गांधी को मार डालने का आरोप लगा. यह वे कर रहे हैं जिनपर भगत सिंह और उनके साथियों की शहादत का मजाक उड़ाने का आरोप है. यह वे कर रहे हैं जो भारत के संविधान और भारतीय तिरंगे के विरोध में थे. यह वे कर रहे हैं जो ​आजादी आंदोलन से दूर हिंदू राष्ट्र मांग रहे थे, जिन्ना की तारीफ कर रहे थे और भारतीय शहीदों के​ खिलाफ अंग्रेजों की मु​खबिरी कर रहे थे.

जब कुर्बानी देनी थी, तब मु​खबिरी कर रहे थे. जब कुर्बानी देनी थी तब हिंदू मुस्लिम कर रहे थे, गांधी की हत्या करवा के मिठाई बांट रहे थे. अब जब आजादी को 70 साल हो गए हैं तो संसद में जबरन कुर्बानी का पाठ पढ़ा रहे हैं और देश पर कुर्बान हुए लोगों का अपमान कर रहे हैं.

सबसे बड़ी बात है कि इनकी नीयत ठीक नहीं है. ये अब भी हिंदू राष्ट्र का राग अलाप रहे हैं, जो अंतत: हिंदुओं के लिए ही दु:स्वप्न साबित होगा.

यह किसी हिंदू और मुसलमान का मुद्दा नहीं है. यह एक उदार लोकतंत्र को बचाने का मामला है. अगर बीजेपी यह बिल लाने में सफल हुई तो यह हर भारतीय की हार होगी. इसका खामियाजा आने वाली पीढ़ियां भुगतेंगी.

असम में बीजेपी नेताओं को जनता ने दौड़ाकर पीटा

अब यही होना बाकी था कि विधायक और सांसद को जनता दौड़ाकर पीटे. गुवाहाटी में नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में प्रदर्शन हो रहा है. बीजेपी के असम अध्यक्ष रंजीत दास जा रहे थे. उनके काफिले में मंत्री नाबा कुमार और सिद्धार्थ भट्टाचार्य भी थे. एक फ्लाईओवर पर पहुंचे थे, कि प्रदर्शनकारी पब्लिक ने दौड़ा लिया. उनके काफिले पर ईंट पत्थरों और डंडों से हमला कर दिया और प्रदर्शनकारियों ने काफिले को वापस लौटा दिया.

थोड़ी देर बाद उसी रास्ते पर विधायक रमाकांत देवरी गुजरे. पब्लिक उनके लिए रामाधीर सिंह बन गई. जैसे रामाधीर सिंह ने अपने विधायक बेटे को कूट दिया था, उसी तरह पब्लिक ने विधायक जी को वापस ही नहीं लौटाया, इलाके से बाहर खदेड़ दिया. खबर है कि गुवाहाटी के पुलिस कमिश्नर मुकेश अग्रवाल के काफिले पर भी पब्लिक ने अटैक कर दिया.

यह कोई मजा लेने की बात नहीं है. सांसद, विधायक, पुलिस अधिकारी वे लोग होते हैं, जनता जिनके नाम से डरती है. अब आपने जनता को इतना डरा दिया कि उसके मन से डर निकल गया है. अगर किसी की नागरिकता पर ही संकट हो, तब उसके पास खोने के लिए क्या बचा है सरकार? अब भी वक्त है, समझ जाइए.

देश की जनता को विभाजन की आग में झोंकेंगे तो हाथ तो आपके भी झुलसेंगे. हो सकता है ​कि झुलसता हुआ पीड़ित अपने को बचाने के लिए छटपटाते हुए सामने पाकर आपसे और हमसे लिपट जाए, तब हम आप पूरा स्वाहा हो जाएंगे.

असम बंद

पूरा असम बंद है. स्कूल, कॉलेज, दुकानें, बाजार सब बंद हैं. परीक्षाएं रद्द कर दी गई ​हैं. जगह जगह प्रदर्शनों में आगजनी की घटनाएं हुई हैं. रेलवे ट्रैक जाम कर दिए गए हैं. ट्रेनें रोक दी गई हैं. गुवाहाटी विश्वविद्यालय, कॉटन यूनिवर्सिटी और असम कृषि विश्वविद्यालय के छात्र सड़कों पर हैं. जगह जगह प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों में झड़पें हुई हैं.

पूर्वोत्तर के सभी राज्यों से प्रदर्शन की खबरें हैं. डिब्रूगढ़, गुवाहाटी, जोरहाट में आगजनी के साथ हिंसक प्रदर्शन की खबरें हैं. त्रिपुरा से भी हिंसक प्रदर्शन और आगजनी की खबरें हैं. अगरतला में लोग सड़कों पर उतरे हैं. पूर्वोत्तर के लोग कह रहे हैं कि हमारी जमीनें शरणार्थियों के लिए नहीं हैं.

समस्या थी स्थानीय लोगों के संसाधनों में बाहर से आए लोगों की दावेदारी. लेकिन सरकार नागरिकों की समस्या से अलग अपनी सांप्रदायिक कुंठा को देश पर थोप रही है. पूरे देश को हिंदू मुस्लिम विभाजन में धकेला जा रहा है.

पूर्वोत्तर के राज्यों के अलावा दिल्ली, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक आदि हर राज्य में छोटे मोटे प्रदर्शन हो रहे हैं. लेकिन सरकार नागरिकों को सुने बगैर अपनी सनक में आगे बढ़ रही है. मीडिया इस सनक को ‘मास्टरस्ट्रोक’ बोलकर हवा दे रहा है.

देश की भावना वह है जो सड़कों पर दिख रही है. देश की इकॉनमी वैसे भी डूब रही है. लोटा थारी बिकने के कगार पर है. खजाना चोरों, लुटेरों ने मिलकर खाली कर दिया है. बीजेपी से अपील है कि इस देश को हिंदू मुस्लिम झोंकने की जगह जितना लूट सकें लूट लें और चलते बनें. देश को दशकों के लिए आग में झोंक कर उन्हें क्या मिलेगा?

भारत धर्म के नाम पर नहीं बना था

“मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं. मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी.”

स्वामी विवेकानंद जब अपने शिकागो भाषण में यह बात बोल रहे थे, तब उन्हें यह नहीं पता था कि एक दिन जब देश आजाद हो जाएगा, उनके नाम का झंडा उठाने वाले लोग ही उनसे यह गर्व छीन लेंगे। ​फर्जी फकीरों और स्वामियों के दौर में विवेकानंद को अपनी इस महान भारतीयता पर शर्मिंदा ही होना था. विवेकानंद की आत्मा शर्मिंदा है।

भारत धर्म के नाम पर नहीं बना था। धर्म के नाम पर जो देश बना उसका नाम पाकिस्तान था जो मात्र 24 साल के अंदर फिर से टूट गया, वह भी भाषा के आधार पर। भारत के बारे में पूरी अंग्रेजी कौम कहती रही कि यह देश नहीं चल पाएगा। लेकिन भारत सलामत रहा और दुनिया के प्रतिष्ठित लोकतंत्रों में शुमार हुआ। आज भारत महाशक्ति का सपना देख रहा है तो उसकी एक वजह यह भी है कि भारत एक उदार और समावेशी लोकतंत्र बना।

आज़ाद भारत में आज यह जो हो रहा है, यह जरूर भारत को धर्म के सहारे विभाजित करने की कोशिश है। इससे अंग्रेजों की वह मनहूस भविष्यवाणी भी सच हो सकती है।

इस निकृष्ट विधेयक से पहले पाकिस्तान से आये तमाम हिंदुओं को ऑर्डिनेंस के जरिये भारत की नागरिकता दी गई है। पड़ोसी देशों से आये हिन्दू और सिखों को संरक्षण देने के लिए भारत के संविधान को कठमुल्लों की पोथी बनाने की जरूरत नहीं है, न ही भारत का संविधान किसी घुसपैठिये को संरक्षण देता है, न घुसपैठियों को बाहर भेजने से रोकता है।

यह बिल हिन्दू मुस्लिम में विभाजन करने के लिए लाया गया है। यह स्पष्ट तौर पर भारत देश पर हमला है। मंशा भी स्पष्ट है कि यह क्यों किया गया। सेकुलरिज्म पर जिस तरह संगठित हमला किया जा रहा है, जैसे साम्प्रदायिकता और नफरत कोई नियामत हो। यह दुनिया की अकेली पार्टी और अकेली सरकार है जो सेकुलरिज्म, सौहार्द, विविधता को बुरा कहती है और नफरत को महान विचार बताती है।
भाजपा भारत के एक सदी के संघर्ष को लीप रही है और आने वाली पीढ़ियों को नफरत और विभाजन की आग में झोंक रही है।

बजट घटाकर कैसे दोगुनी होगी किसानों की आय?

एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2020-21 का बजट संसद में पेश किया। इस बार भी दोहराया गया कि सरकार 2022 तक किसानों की आय को दोगुनी करने के लक्ष्य को लेकर चल रही है। इस दृष्टि से गांव, कृषि और किसानों के लिए वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में 16 सूत्रीय योजनाओं की घोषणा भी की। इन योजनाओं के लिए किये गए धनराशि आवंटन का आंकलन अति आवश्यक है।

वर्ष 2019-20 का देश का कुल बजट लगभग 27.86 लाख करोड़ रुपये था, परन्तु संशोधित अनुमान के अनुसार इसे कम करके 26.98 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया। वित्त वर्ष 2020-21 का कुल बजट लगभग 30.42 लाख करोड़ रुपये है जो इससे पिछले वर्ष के मुकाबले लगभग नौ प्रतिशत ज्यादा है। इस बजट में ग्रामीण भारत को क्या मिला और इससे किसानों की आय दोगुनी करने में कितनी मदद मिलेगी इसका विश्लेषण करते हैं।

2019-20 में कृषि मंत्रालय का बजट 138,564 करोड़ रुपये था, परन्तु इसे संशोधित बजट में कम करके 109,750 करोड़ रुपये कर दिया गया। इसका मुख्य कारण यह रहा कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) के तहत 75,000 करोड़ रुपये के बजट में से केवल 54,370 करोड़ रुपये ही खर्च किये गए। इसका कारण पात्र किसानों का धीमी गति से सत्यापन होना बताया गया है।

अब तक इस योजना में कुल लक्षित लगभग 14.5 करोड़ किसानों में से केवल 9.5 करोड़ किसानों का ही पंजीकरण हुआ है। जिनमें से अभी तक केवल 7.5 करोड़ किसानों का ही सत्यापन हो पाया है। बंगाल जैसे कुछ राज्यों ने राजनीतिक कारणों से अभी तक अपने एक भी किसान का पंजीकरण इस योजना में नहीं करवाया है, जो वहां के किसानों के साथ एक अन्याय है। परन्तु खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए इस वर्ष के बजट में इस योजना के अंतर्गत दी जाने वाली राशि को 6,000 रुपये से बढ़ाकर कम से कम 24,000 रुपये प्रति किसान प्रति वर्ष किया जाना चाहिए था। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में तुरन्त क्रय-शक्ति बढ़ती, खर्च बढ़ने से मांग बढ़ती और अर्थव्यवस्था की गाड़ी तेजी से आगे बढ़ जाती। परन्तु अफसोस है कि सरकार ने इस महत्वपूर्ण योजना का बजट इस वर्ष की तरह अगले वित्त वर्ष में भी 75,000 करोड़ रुपये ही रखा है।

2020-21 के लिए कृषि मंत्रालय का बजट मामूली सा बढ़ाकर 142,762 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इस वर्ष कृषि मंत्रालय के अंतर्गत कृषि अनुसंधान एव शिक्षा विभाग का बजट 8,362 करोड़ रुपये है। कृषि अनुसंधान और विस्तार पर हम बहुत कम खर्च कर रहे हैं। भविष्य में पर्यावरण बदलाव और बढ़ते तापमान से होने वाले फसलों के नुकसान से बचने, बढ़ती आबादी के लिए भोजन उपलब्ध कराने, कृषि उत्पादकता बढ़ाने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि अनुसंधान के बजट में भारी वृद्धि करने की आवश्यकता है। 2020-21 में कृषि ऋण का लक्ष्य 15 लाख करोड़ रुपये रखा गया है जो स्वागत योग्य कदम है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय का बजट 122,398 करोड़ रुपये है। इसमें ग्रामीण रोजगार उपलब्ध कराने की मनरेगा योजना के लिए 61,500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जबकि इस योजना में इस वर्ष 71,000 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। इस योजना में होने वाले अपव्यय को रोकने के लिए इसको खेती किसानी से जोड़ने की आवश्यकता है ताकि किसानों की कृषि-श्रम लागत कम हो और इस योजना में गैर उत्पादक कार्यों में होने वाली धन की बर्बादी को रोका जा सके। इस मंत्रालय के अंतर्गत पीएम ग्राम सड़क योजना का बजट 19,500 करोड़ रुपये, तो प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) का बजट भी 19,500 करोड़ रुपये ही प्रस्तावित है। ग्रामीण भारत के लिए ये दोनों योजनाएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, अतः इनके बजट को बढ़ाने की आवश्यकता है।

रसायन और उर्वरक मंत्रालय द्वारा कृषि में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक उर्वरकों के लिए दी जाने वाली सब्सिडी को पिछले वर्ष के 80,035 करोड़ से घटाकर 71,345 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसके पीछे ज़ीरो बजट खेती, जैविक खेती और परंपरागत कृषि को प्रोत्साहन देने की सोच है। यूरिया खाद पर अत्यधिक सब्सिडी के कारण इस खाद का ज़रूरत से ज्यादा प्रयोग हो रहा है जिससे ज़मीन और पर्यावरण दोनों का क्षरण हो रहा है। सरकार का मानना है कि आने वाले समय में खाद सब्सिडी को भी सीधे पीएम-किसान योजना की तरह किसानों के खातों में नकद प्रति एकड़ के हिसाब से भेजा जाए तो खाद सब्सिडी में भारी बचत भी होगी और खाद का अत्यधिक मात्रा में दुरुपयोग भी नहीं होगा।

मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय का बजट 3,737 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 4,114 करोड़ रुपये कर दिया गया है। पशुपालन और दुग्ध उत्पादन कृषि का अभिन्न अंग है और कृषि जीडीपी में इसकी लगभग 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है। मत्स्य उत्पादन और दुग्ध प्रसंस्करण के लिए घोषित महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को देखते हुए यह बहुत कम आवंटन है।

ग्रामीण क्षेत्र में अमूल, इफको जैसी किसानों की अपनी सहकारी संस्थाएं काम कर रही हैं। पिछले साल सरकार ने घरेलू कंपनियों के आयकर की दर को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत कर दिया था, परन्तु इन सहकारी संस्थाओं पर आयकर पहले की तरह 30 प्रतिशत की दर से ही लग रहा था। इस विसंगति को इस बजट में दूर कर दिया गया है जो स्वागत योग्य है। परन्तु 2005-06 तक इन सहकारी संस्थाओं पर कंपनियों के मुकाबले पांच प्रतिशत कम दर से आयकर लगता था। आशा है अगले बजट में इसे 2005-06 से पहले वाली व्यवस्था के अनुरूप यानी 17 प्रतिशत कर दिया जायेगा।

किसानों और ग्रामीण भारत से सरोकार रखने वाले कृषि मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, रसायन और उर्वरक मंत्रालय के उर्वरक विभाग तथा मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय का 2019-20 वित्त वर्ष का संयुक्त कुल बजट लगभग 342,000 करोड़ रुपये था जो सम्पूर्ण बजट का लगभग 12 प्रतिशत था। इस वर्ष उपरोक्त मंत्रालयों का कुल बजट 340,600 करोड़ रुपये है जो सम्पूर्ण बजट का मात्र 11 प्रतिशत है। 2020-21 के सम्पूर्ण बजट में की गई बढ़ोतरी की तरह ग्रामीण भारत के बजट में भी यदि नौ प्रतिशत की बढ़ोतरी की जाती तो यह 371,000 करोड़ रुपये होता।

कुल मिलाकर बड़ी-बड़ी घोषणाओं के बावजूद ग्रामीण भारत के बजट में वास्तव में कटौती कर दी गई है। ग्रामीण भारत में बसने वाली 70 प्रतिशत आबादी के लिए केवल 11 प्रतिशत बजट कितना उपयुक्त है, और क्या सरकार इतनी कम धनराशि आवंटन से 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर पाएगी, यह चिंतन का विषय है।

(लेखक किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष हैं)