भारत की हर चार महिला में से तीन के पास काम नहीं है

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सरकारें अक्सर यह दावा करती हैं कि महिलाओं की सशक्तिकरण के लिए बहुत काम किए गए हैं। हर सरकार यह कहती है कि उसके लिए महिलाओं का उत्थान और कार्यबल में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना प्राथमिकता का काम है। सरकारें ये भी कहती हैं कि महिलाओं के साथ किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं हो, यह भी सुनिश्चित किया जाएगा।

लेकिन जमीनी हकीकत अब भी इन दावों से काफी दूर है। यह बात लगातार कई रिपोर्ट साबित कर रहे हैं। हाल ही में दुनिया की प्रतिष्ठित गैर सरकारी संस्था ऑक्सफैम ने एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें बताया गया है कि श्रम बल में भागीदारी से लेकर भुगतान तक के मामले में महिलाओं की स्थिति बेहद बुरी है।

भारत में रोजगार के संदर्भ में अगर बात की जाए तो महिलाओं के लिए पहली मुसीबत तो यह है कि उन्हें कहीं रोजगार मिले। अगर कहीं उन्हें काम मिल भी जाता है तो फिर समस्या यह आती है कि उन्हें पुरुषों के मुकाबले कम पैसे मिलते हैं।

ऑक्सफैम की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पुरुषों और महिलाओं द्वारा किए जा रहे एक ही काम के बदले महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले 34 फीसदी कम पैसे मिलते हैं। ऑक्सफैम ने अपने इस अध्ययन के लिए 2011-12 के राष्ट्रीय नमून सर्वेक्षण संगठन के आंकड़ों को आधार बनाया है। इसके बाद उस सर्वेक्षण के आंकड़ों को 2018 की अपनी असमानता रिपोर्ट के आंकड़ों के साथ जोड़ा है।

ऑक्सफैम ने इन आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर यह निष्कर्ष भी निकाला है कि उच्च पदों पर काम करने वाली महिलाओं को भी अपने पुरुष समकक्षों के मुकाबले कम पैसे मिल रहे हैं। लेकिन इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यहां यह अंतर सिर्फ एक फीसदी का है। क्योंकि उच्च पदों पर काम करने वाली महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं।

दैनिक आधार पर मजदूरी करने वाले पुरुषों और महिलाओं के मजदूरी भुगतान का फर्क सबसे अधिक है। इसमें भी यह बताया गया है कि जो नियमित श्रमिक हैं, उनमें यह अंतर कम है ओर जो कैजुअल यानी ठेके के मजदूर हैं, उनमें यह फर्क अधिक है।

इस रिपोर्ट में एक अच्छी बात यह है कि रोजगार के स्तर पर भले ही गैरबराबरी बढ़ी हो लेकिन शिक्षा के स्तर पर लड़कों और लड़कियों के बीच का अंतर कम हुआ है। लेकिन रोजगार के अवसरों में कमी और रोजगार हासिल करने से लेकर पगार पाने तक में हो रहे भेदभावों की वजह से शिक्षा के स्तर पर हुई प्रगति का खास लाभ महिलाओं को नहीं मिल पा रहा है।

इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पूरे कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भारती की स्थिति पूरी दुनिया में सबसे खराब है। देश की कुल आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी आधी है लेकिन कार्यबल में उनकी हिस्सेदारी एक चैथाई से भी कम ही है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत की चार महिलाओं में से तीन के पास कोई काम नहीं है।

इन आंकड़ों के आधार पर रिपोर्ट में यह सवाल उठाया गया है कि भारत के आर्थिक विकास की यात्रा में क्या देश ने महिलाओं को भुला दिया है? क्योंकि अगर उनका ध्यान रखा जाता तो आज यह स्थिति नहीं होती। देश के कुल कार्यबल में हिस्सेदारी के मामले में महिलाओं की स्थिति थोड़ी बेहतर होती और इससे पूरी अर्थव्यवस्था का लाभ होता।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी के मामले में स्थिति थोड़ी बेहतर है। ग्रामीण महिलाओं की कुल संख्या में से 75 फीसदी महिलाएं किसी ने किसी रूप में खेतों में काम कर रही हैं।

हालांकि, रिपोर्ट में भी यह भी कहा गया है कि कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी थोड़ी बढ़ी हुई इसलिए भी दिख रही है क्योंकि पुरुष रोजगार के बेहतर अवसरों की तलाश में शहरों का रुख कर रहे हैं। वहीं दूसरी वजह यह बताई गई है कि आज भी जीवनयापन के स्रोतों की उपलब्धता के मामले में कृषि क्षेत्र ही सबसे आगे है।

ऑक्सफैम की यह रिपोर्ट हकीकत से वाकिफ कराने वाली है। सरकारों को ऐसी जानकारियों को आधार बनाकर स्थितियों में बदलाव की दिशा में परिणामकारी कदम उठाने चाहिए।