फसल बीमा के लिए ड्रोन उड़ाने की अनुमति, लेकिन क्यों लगे 5 साल?

 

पांच साल पहले 2016 में जब प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू हुई तो इस योजना में ड्रोन के इस्तेमाल पर काफी जोर दिया गया था। कई वर्षों तक ड्रोन के इस्तेमाल को योजना की खूबियों में गिनाया गया। लेकिन ताज्जुब की बात है कि इस योजना के लिए ड्रोन के इस्तेमाल की अनुमति कृषि मंत्रालय को 18 फरवरी, 2021 को यानी पांच साल बाद मिली है। यह स्थिति तब है, जबकि अनुमति देने वाला और अनुमति लेने वाला मंत्रालय केंद्र सरकार के तहत काम करता है। इससे ड्रोन के उपयोग में आ रही कानूनी बाधाओं का अंदाजा लगाया जा सकता है।

नागर विमानन मंत्रालय की ओर से जारी आदेश के अनुसार, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत ड्रोन के जरिये देश के 100 जिलों में ग्राम पंचायत स्तर पर उपज अनुमान के आंकड़े जुटाने के लिए एयरक्राफ्ट रूल्स, 1937 से सशर्त छूट दी गई है। इससे पहले 29 जनवरी को नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने कृषि मंत्रालय को फसल बीमा योजना के लिए सुदूर संचालित विमान प्रणाली (आरपीएएस) यानी ड्रोन के उपयोग की अनुमति दी थी। यह अनुमति फिलहाल एक साल के लिए और कई तरह की पाबंदियों के साथ दी गई है।

इस बारे में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने ट्वीट किया था कि गेहूं और धान उत्पादक 100 जिलों में ड्रोन उड़ाने की अनुमति मिलने से फसल बीमा केे दावों का समय से निस्तारण सुनिश्चित होगा। इसमें कोई दोराय नहीं है कि कृषि में ड्रोन के उपयोग की कई संभावनाएं हैं। लेकिन सवाल यह है कि फिलहाल कृषि में ड्रोन का कितना उपयोग हो रहा है और इससे उत्पादकता और किसानों की आय पर क्या असर पड़ा है।

क्या होता है ड्रोन?

वास्तव में ड्रोन एक रिमोट संचालित एयक्राफ्ट सिस्टम (आरपीएएस) है जिसे अन्मैन्ड एरियल सिस्टम (यूएएस) भी कहते हैं। इसका उपयोग कई वर्षों से डिफेंस, पुलिस और आपदा प्रबंंधन समेत क्षेत्रों में किया जा रहा है। इस तकनीक को कृषि के भविष्य के तौर पर देखा जा रहा है। कई स्टार्ट-अप कृषि में ड्रोन की संभावनाओं तलाश रहे हैं। इस लिहाज से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में ड्रोन के इस्तेमाल की छूट मिलना एक अच्छी पहल है।

फसल बीमा योजना में ड्रोन का इस्तेमाल

सवाल यह है कि जिस योजना में पहले दिन से ड्रोन के इस्तेमाल की बात कही जा रही है, उसे हरी झंडी मिलने में पांच साल क्यों लग गये। कृषि मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव डॉ. आशीष कुमार भूटानी ने बताया कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सेटैलाइट डेटा का इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन खराब मौसम में सेटैलाइट की बजाय ड्रोन ज्यादा कारगर साबित हो सकते हैं, इसलिए 100 जिलों में ड्रोन के जरिये उपज उत्पादन और फसलों के नुकसान संबंधी आंकड़े जुटाए जाएंगे। कृषि मंत्रालय ने कुछ महीने पहले डीजीसीए को आवेदन किया था। इस प्रक्रिया में करीब तीन महीने का समय लगा है। क्योंकि नागर विमानन मंत्रालय और डीजीसीए के दिशानिर्देशों के अनुसार प्रस्ताव तैयार करना था।

नागर विमानन मंत्रालय में संयुक्त सचिव अंबर दुबे ने बताया कि सरकार कृषि, इन्फ्रास्ट्रक्चर, रूरल डेवलपमेंट और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में ड्रोन के इस्तेमाल को प्रोत्साहन दे रही है। कृषि से जुड़ी कई परियोजनाओं में ड्रोन के उपयोग की अनुमति दी गई है। गत वर्ष टिड्डी नियंत्रण में ड्रोन का बखूबी इस्तेमाल हुआ था। कृषि मंत्रालय का प्रस्ताव 100 जिलों से संबंधित था, फिर भी इसे प्राथमिकता के आधार पर मंजूरी दी गई है। अंबर दुबे का कहना है कि ड्रोन से जुड़े अप्रूवल में लोगों की सुरक्षा के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा को भी ध्यान में रखना पड़ता है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में ड्रोन के इस्तेमाल के लिए कृषि मंत्रालय ने 6 नवंबर, 2020 को डीजीसीए को पत्र लिखा था। मतलब, फसल बीमा योजना भले ही 2016 में लांच हुई, लेकिन ड्रोन के प्रयोग के लिए मंत्रालय 2019-20 में जाकर सक्रिय हुआ। कृषि मंत्रालय ने 2019 में फसल बीमा योजना में रिमोट सेंसिंग डेटा के उपयोग के लिए देश के 64 जिलों में एक पायलट स्टडी करायी थी। इसके आधार पर ही 100 जिलों में रिमोट सेंसिंग डेटा और ड्रोन तकनीक की मदद लेना का फैसला लिया गया। हालांकि, इस दौरान कुछ फसल बीमा कंपनियों ने अपने स्तर पर ड्रोन के इस्तेमाल के प्रयास भी किये हैैं।

ड्रोन के सामने नियमन की बाधाएं

दरअसल, ड्रोन रेगुलेशन और नियमन प्रक्रिया में देरी की वजह से 2014 से 2018 तक इस क्षेत्र की प्रगति काफी धीमी रही है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में ड्रोन की मदद लेने में समय लगने के पीछे यह भी एक वजह है। इसके अलावा ड्रोन के मामले में नागर विमानन मंत्रालय, गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय की एप्रोच में भी अंतर है। कई बार इस वजह से भी मंजूरी मिलने में समय लगता है।

ड्रोन इंडस्ट्री भारत में कई साल से नियम-कायदों और पाबंदियों में उलझी रही है। जबकि दूसरी तरफ ड्रोन का गैर-कानूनी इस्तेमाल भी तेजी से बढ़ रहा है। ड्रोन को लेकर कई साल तक नीतिगत अस्पष्टता भी रही है। साल 2014 में भारत सरकार ने ड्रोन के गैर-सरकारी इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक लगा दी थी। हालांकि, इसके बावजूद चीन से आयातित हल्के ड्रोन की खरीद-बिक्री जारी रही। एक अनुमान के मुताबिक, देश में छोटे-बड़े करीब छह लाख ड्रोन हैं।

नए रेगुलेशन आने में कई साल बीते

2014 में ड्रोन पर पाबंदी लगने के बाद ड्रोन संबंधी रेगुलेशन जारी करने में सरकार को चार साल लगे। 27 अगस्त, 2018 रिमोट संचालित एयरक्राफ्ट सिस्टम (आरपीएएस) के लिए सिविल एविएशन रेगुलेशन (सीएपी) बने। इसके तहत 250 ग्राम से कम वजन के नैनो ड्रोन उड़ाने की छूट दी गई, जबकि 250 ग्राम से ज्यादा वजनी ड्रोन पर “नो परमिशन-नो टेक ऑफ” की नीति लागू कर दी। एक दिसंबर, 2018 से ड्रोन संचालन के लिए डिजिटल स्काई प्लेटफार्म पर रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है।

डिजिटल स्काई पोर्टल पर ड्रोन ऑपरेटर और डिवाइस दोनों का रजिस्ट्रेशन होता है। हरेक उड़ान से पहले ऑपरेटर को फ्लाइट प्लान देना पड़ता है। सुरक्षा के लिहाज से विभिन्न क्षेत्रों को ग्रीन, येलो और रेड जोन में बांटा गया है। ग्रीन जोन में सिर्फ उड़ान की सूचना पोर्टल पर देनी होती है जबकि येलो जोन में उड़ान के लिए अनुमति लेनी पड़ती है। रेड जोन में ड्रोन उड़ाने की अनुमति नहीं है। इसके अलावा ड्रोन के हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और संचालन संबंधी कई बाध्यताएं हैं।

कोरोना काल में काम आया ड्रोन

हालांकि, पिछले दो वर्षों में नागर विमानन मंत्रालय ने ड्रोन से जुड़े कई नीतिगत बदलाव किये हैं। डिजिटल स्काई पोर्टल के जरिये ड्रोन के रजिस्ट्रेशन और उड़ान अनुमति की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने की कोशिश की गई है। कोरोना संकट के दौरान राहत कार्यों के लिए सरकारी विभागों खासतौर पर पुलिस ने ड्रोन का खूब इस्तेमाल किया। ड्रोन के लिए मार्च, 2020 में डीजीसीए में भी एक गाइडेंस मैन्युअल जारी किया था। जिसके बाद जून में अन्मैन्ड एयरक्राफ्ट सिस्टम रूल्स, 2020 जारी किये गये। फिलहाल देश में ड्रोन का संचालन इन्हीं नियमों के तहत होता है।

ड्रोन और इससे जुड़ी सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनी आईओटेकवर्ल्ड एविगेशन प्राइवेट लिमिटेड के तकनीकी निदेशक अनूप कुमार उपध्याय का कहना है कि नागर विमानन मंत्रालय ड्रोन से जुड़े रेगुलेशन को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहा है। जिस तेजी से ड्रोन इंडस्ट्री बढ़ रही है, उसे देखते हुए सरकार को अनुकूल माहौल बनाने की जरूरत है। अन्यथा ड्रोन का गैर-कानूनी इस्तेमाल बढ़ेगा।

कृषि में ड्रोन का इस्तेमाल

खेती में ड्रोन का इस्तेमाल फसलों की मॉनिटरिंग, फसल की तैयारी, उपज के अनुमान, आपदा प्रबंधन, कीट नियंत्रण और फसलों पर छिड़काव के लिए किया जाता है। सेंसर, कैमरा, स्प्रेयर और मानवरहित उड़ान भरने की क्षमता के चलते बहुत से कामों में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

महाराष्ट्र समेत कई राज्य सरकारों ने कृषि में ड्रोन के इस्तेमाल के लिए प्रयास कर रही हैं। भारत सरकार ने हैदराबाद स्थित अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (इक्रीसेट) को ड्रोन के उपयोग की अनुमति दी है। स्काईमैट जैसी कई कंपनियां भी फसल और मौसम पूर्वानुमान के लिए ड्रोन की मदद ले रही हैं।

विशेष परिस्थितियों को छोड़कर भारत में ड्रोन के जरिये कीटनाशकों के छिड़काव की अनुमति नहीं है। यह कृषि के लिहाज से बड़ी बाधा है। इसके अलावा सख्त नियम-कायदे, महंगी कीमत, हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और ट्रेनिंग संबंधी कई तरह की बाधाएं भी हैं। अब देखना है कि इन बाधाओं को पार कर कृषि क्षेत्र में ड्रोन कितने कारगर साबित हो पाते हैं।