कृषि सुधारों को लागू करने से पहले किसानों को भरोसे में लेना जरूरी
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कृषि क्षेत्र में मार्केटिंग सुधारों की जरूरत है क्योंकि देश की 50 फीसदी से अधिक आबादी के लिए खेती को फायदेमंद बनाना इन सुधारों के बिना संभव नहीं है। लेकिन सुधारों के लिए संबंधित पक्षों और खासतौर से किसानों की भागीदारी और विचार-विमर्श की लंबी और पारदर्शी प्रक्रिया की जरूरत है। सरकार ने पिछले साल जो कृषि सुधार किये हैं, उनके जरिये किसानों में जो संदेश गया, वह ठीक नहीं था। यही वजह है कि किसान तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ कई महीनों से आंदोलन कर रहे हैं। इसके साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का मुद्दा भी चर्चा का मुख्य बिंदु बन गया है।
किसानों की मांग है कि सभी फसलों के लिए एमएसपी पर खरीद की कानूनी गारंटी मिलनी चाहिए। किसान को कम से कम उसकी उपज का लागत मूल्य और उस पर उचित मुनाफा तो मिलना ही चाहिए। असल में कृषि बाजार की शर्तें किसानों के लिए प्रतिकूल हैं और उसमें बदलाव किये बिना किसानों और कृषि क्षेत्र की हालत को नहीं सुधारा जा सकता है। इसलिए सरकार को कृषि क्षेत्र के लिए एक व्यापक और समग्र नीति बनानी चाहिए।
ये विचार बिंदु सेंटर फॉर एग्रीकल्चर पॉलिसी (कैप) डायलॉग द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में सामने आए। इसमें शिरकत करने वाले लोगों में कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के पूर्व चेयरमैन डॉ. टी. हक, स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक प्रोफेसर अश्विनी महाजन, भारत कृषक समाज के चेयरमैन और पंजाब स्टेट फार्मर्स एंड फार्म वर्कर्स कमीशन के चेयरमैन अजय वीर जाखड़, भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश सिरोही, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बिश्वजीत धर, काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट (सीएसडी) के डायरेक्टर प्रोफेसर नित्या नंद, जनता दल (यूनाइटेड) के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्य सभा सांसद के.सी. त्यागी, राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) के पूर्व डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. डी.एन. ठाकुर समेत तमाम दूसरे कृषि विशेषज्ञ शामिल थे।
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कार्यक्रम की शुरुआत में कैप डायलॉग के चेयरमैन डॉ. टी. हक ने कहा कि देश के मौजूदा कृषि मार्केटिंग सिस्टम की तमाम खामियों को देखते हुए कृषि मार्केटिंग सुधारों की जरूरत महसूस की जाती रही है। नये केंद्रीय कृषि मार्केटिंग सुधार कानूनों का मकसद किसानों को उनके उत्पादों के बेहतर मूल्य दिलाने के लिए बाजार पहुंच बढ़ाने और मौजूदा खामियों को दूर करना रहा है। हालांकि इन कानूनों में सुधार की काफी गुंजाइश है। इसलिए बेहतर होगा कि सरकार को खुद ही सुधारों की जरूरत का संज्ञान लेते हुए इन कानूनों में बदलाव कर दे। सरकार का इस तरह का कदम इस समय देश में चल रहे किसान आंदोलन को समाप्त करने में मददगार साबित होगा। इन सुधारों के तहत देश भर में कृषि उत्पाद मंडी समिति कानून (एपीएमसी) तहत चलने वाली मंडियों और उसके बाहर ट्रेड एरिया दोनों के लिए एक समान नियामक व्यवस्था बनानी चाहिए। इसके साथ ही एक मजबूत नियामक प्रणाली बनाने की जरूरत जो विवाद निस्तारण के लिए प्रभावी साबित हो।
भारत कृषक समाज के चेयरमैन और पंजाब स्टेट फार्मर्स एंड फार्म वर्कर्स कमीशन के चेयरमैन अजय वीर जाखड़ ने कहा कि हमें कृषि नीतियां बनाने की प्रक्रिया की व्याख्या करने की जरूरत और उसमें व्यापक बदलाव की दरकार है, जिसमें सभी संबंधित पक्षों और खासतौर के किसानों की भागीदारी हो। संबंधित पक्षों की भागीदारी के बिना जो नीतियां बनेंगी उनको हमेशा शक की निगाह से देखा जाता है। तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का मौजूदा आंदोलन इसी वजह से खड़ा हुआ है क्योंकि इन कानूनों पर किसानों के साथ व्यापक विचार-विमर्श नहीं किया गया। इसके साथ जाखड़ का कहना है कि हमें एमएसपी के मुद्दे पर एक व्यापक विचार-विमर्श शुरू करने की जरूरत है। जिसके केंद्र में इसकी भावी व्यवस्था और किसानों के हितों के टिकाउपन को ध्यान में रखते हुए नीति निर्धारण किया जाए।
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स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक प्रोफेसर अश्विनी महाजन ने कहा कि जहां तक नये कानूनों की बात है तो उनके बिना भी और अब उनके आने से भी कोई बड़ा फर्क कृषि और किसानों पर नहीं पड़ रहा है। हमें इस बात पर जोर देने की जरूरत है कि किसानों को उनके उत्पादों का बेहतर दाम कैसे मिले। इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को कैसे बेहतर किया जाए। वहीं तकनीक का उपयोग कर किसानों को कैसे बेहतर दाम सुनिश्चित किया जा सकता है। इसके लिए बीमा, तनीक और वेयरहाउस रसीद जैसे विकल्पों पर गौर करना चाहिए। जिस तरह से स्टॉक मार्केट में शेयरों पर अपर और लोअर सर्किट लगता है क्या इस तरह की व्यवस्था कृषि उत्पादों के मामले में लागू नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा कि हर तरफ तकनीक की बात हो रही है लेकिन तीनों नये कृषि कानूनों में कहीं भी टेक्नोलॉजी का जिक्र नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश सिरोही का कहना था कि मौजूदा किसान आंदोलन पिछले लंबे समय से किसानों के वित्तीय संकट में फंसे होने और व्यापार की शर्तों के कृषि के प्रतिकूल होने के कारण किसानों की बढ़ती तकलीफ का नतीजा है। इसलिए सरकार को किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी देने के साथ ही इसे तय करने के लिए लागत पर 50 फीसदी मुनाफे को शामिल करना चाहिए। ऐसा करने से ही मौजूदा किसान आंदोलन का हल निकल सकता है।
प्रोफेसर बिश्वजीत धर ने कहा कि दुनिया के तमाम देश और खासतौर से अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के देश किसानों की वित्तीय मदद करते हैं। भारत जैसे देश में जहां 50 फीसदी से ज्यादा आबादी कृषि पर निर्भर है वहां और अधिक मदद की जरूरत है। केवल मार्केटिंग सुधारों से किसानों के संकट का हल नहीं है और यह समस्या के केवल एक हिस्से को छूता है। हमें एक समग्र और व्यापक कृषि नीति की जरूरत और उसी के अनुरूप सुधारों को लागू किया जाना चाहिए। अमेरिका जैसे देश में हर चार साल में 500 पेज के दस्तावेज के रूप में कृषि नीति आती है जबकि वहां केवल दो फीसदी आबादी ही खेती पर निर्भर करती है। ऐसे में हमें इसकी कितनी जरूरत है उसे समझा जा सकता है।
डॉ डी.एन. ठाकुर ने किसानों के संगठन खड़े कर उनको मजबूत करने पर जोर देतु हुए कहा कि देश में कृषि क्षेत्र और किसानों के संकट को हल करने का यह सबसे बेहतर विकल्प है। हमें स्वायत्त सहकारी समितियों के गठन को बढ़ावा देना चाहिए जो संगठित रूप में किसानों के लिए मार्केट हासिल करने और उनके उत्पादों के बेहतर दाम सुनिश्चित करने का कारगर तरीका है। इन संगठनों को किसी भी रूप में सरकार और राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहिए और इनका संचालन कुशल पेशेवरों के जरिये होना चाहिए।
रुरल वॉयस के संपादक हरवीर सिंह ने कहा कि किसानों को उनके उत्पादों के एमएसपी की कानूनी गारंटी मिलनी चाहिए और इसके लिए कारपेरेट जगत को भी आगे आना चाहिए। खाद्य उत्पादों का कारोबार करने वाली कंपनियों को उपभोक्ता मूल्य का बड़ा हिस्सा किसानों के साथ साझा करना चाहिए। डेयरी क्षेत्र में काम करने वाली सहकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियां उपभोक्ता मूल्य का 70 फीसदी तक की हिस्सेदारी किसानो के साथ साझा करती हैं। यह काम दूसरी खाद्य उत्पाद कंपनियां क्यों नहीं कर सकती हैं, यह खुद एक बड़ा सवाल है।
हरवीर सिंह का कहना था कि किसानों को एमएसपी का गारंटी का मतलब यह नहीं कि सरकार को अपने संसाधनों के जरिये खुद बाजार में आने वाले सरप्लस कृषि उत्पादों को खरीदना होगा। इस धारणा को बदलने की जरूरत है क्योंकि खाद्य उत्पादों के बड़े हिस्से पर निजी कारोबार का कब्जा है और उसे बाजार में अपनी भागीदारी बढ़ानी होगी। कृषि को मुनाफे में लाने की नीतियों पर काम करने की जरूरत है। ऐसा होने से अर्थव्यस्था के दूसरे क्षेत्रों को भी फायदा होगा क्योंकि कृषि क्षेत्र खुद में एक बड़ा बाजार है तो दूसरे क्षेत्रों की वृद्धि दर को बढ़ाने का काम करता है। इसके एक व्यवहारिक और समग्र कृषि नीति बनाकर उसे अमल में लाने की जरूरत है। केवल मार्केटिंग सुधारों को लागू करने से कृषि संकट को हल करना संभव नहीं है।
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