महाराष्ट्र: सूखाग्रस्त इलाका घोषित करने पर विपक्ष ने लगाए राजनीतिक भेदभाव के आरोप!

महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में 40 तहसीलों को सूखा घोषित किया है लेकिन विपक्षी दलों ने सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाया है. विपक्षी पार्टियों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि सरकार ने केवल सत्ता पक्ष के विधायकों की क्षेत्र को सूखाग्रस्त इलाका घोषित किया है और विपक्षी विधायकों के राजनीतिक क्षेत्र की अनदेखी की गई है. उनका दावा है कि सूखाग्रस्त इलाकों मे से 95 प्रतिशत केवल सत्ता पक्ष के विधायकों से जुड़ा है.

विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार के मुताबिक, “राज्य सरकार ने जिन 40 तहसीलों में सूखे की घोषणा की है, उनमें से 35 सत्ता पक्ष के विधायकों की हैं. केवल पांच तहसीलें ही विपक्षी विधायकों की हैं. ऐसा लगता है कि सरकार को किसानों की कम और अपने समर्थन करने वाले विधायकों की ज्यादा चिंता है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार सूखा घोषित करते समय राजनीति कर रही है.”

अंग्रेजी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबित कांग्रेस नेता ने कहा कि सूखा और किसानों के कल्याण जैसी कुछ चीजों को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए. “सांगली जिले में जाट तहसील सूखे के कारण राज्य में सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है. पूरी तहसील पानी के टैंकरों के भरोसे चल रही है. लेकिन राज्य सरकार ने इसे सूखा प्रभावित तहसीलों की सूची में शामिल नहीं किया है.”

विपक्षी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के विधायक रोहित पवार ने बताया कि राज्य सरकार ने सूखा घोषित करते समय केवल तकनीकी बिंदुओं का इस्तेमाल किया है. अहमदनगर, अकोला, परभणी, नांदेड़, वाशिम और अमरावती की एक भी तहसील को सूची में शामिल नहीं किया गया है.”

इस मानसून के दौरान, राज्य में सामान्य से 13.5 प्रतिशत कम बारिश हुई, जिसके परिणामस्वरूप खरीफ बुआई का रकबा 2.50 लाख हेक्टेयर कम हो गया. रबी सीज़न जो अभी शुरू हुआ है, अक्टूबर के अंत तक फसलों की बुआई की गति धीमी होकर केवल 12 प्रतिशत रह गई है. जिन तालुकों को गंभीर सूखे की चपेट में लिया गया है उनमें नंदुरबार, चालीसगांव, भोकरधन, जालना, बदनापुर, अंबाद, मंथा, छत्रपति संभाजीनगर, सोयगांव, मालेगांव, सिन्नार, येओला, पुरंदर-सासवड, बारामती, वडवानी, धारूर, अंबेजोगाई, रेनापुर, वाशी शामिल हैं.

महाराष्ट्र: 8 महीने में 1809 किसानों ने की आत्महत्या!

इस साल जनवरी से अगस्त के बीच 8 महीने के भीतर 1,809 किसानों की आत्महत्या करने के आंकड़े सामने आए हैं. इन आठ महीनों के दौरान हर दिन लगभग 7 किसानों ने आत्महत्या की है. वहीं पिछले साल इस अवधि के दौरान आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या और भी ज्यादा थी. पिछले साल किसानों की आत्महत्या के 1,948 मामले सामने आए थे.

वहीं मराठवाड़ा के सूखा ग्रस्त क्षेत्र में पिछले साल की तुलना में किसानों की ज्यादा आत्महत्या के मामले दर्ज किये गए हैं. अकेले मराठवाड़ा में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 2022 में 670 से बढ़कर 2023 में 685 हो गई. महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस के राजनीतिक क्षेत्र विदर्भ में भी किसानों की स्तिथि ठीक नहीं है. महाराष्ट्र के कुल 1,809 मामलों में से 50% मामले अकेले विदर्भ के कपास बेल्ट से हैं. विदर्भ में किसानों की आत्महत्या के 907 मामले सामने आए हैं.

किसानों की आत्महत्या के मामले में मराठवाड़ा दूसरे स्थान पर है. उसके बाद उत्तरी महाराष्ट्र जहां 200 मामले थे. हैरानी की बात है कि किसानों के आत्महत्या के 1,809 मामलों में से केवल 928 यानी 51% को ही राज्य सरकार के मुआवजे के लिए पात्र माना गया है. सरकार केवल उन मामलों में मुआवजा देती है जो कर्ज से जुड़े होते हैं. सरकार की ओर से पीड़ित परिवार को केवल 1 लाख रुपये की धनराशि दी जाती है.

महाराष्ट्र: मराठवाडा में गहराया कृषि संकट, 8 महीने में 600 किसानों ने की आत्महत्या!

आए दिन किसानों की आत्महत्या कि खबर पढ़ने और सुनने को मिलती है. तमाम प्रयासों और कोशिशों के बाद भी किसानों की आत्महत्या की सिलसिला नहीं रुक रहा है. 8 महीने में करीब 600 किसानों ने की आत्महत्या क्या मराठवाडा कृषि संकट का सामना कर रहा है. किसान संगठन में काम करने वाले कार्यकर्ताओं का मानना है कि मौसम की घटनाओं की बजाय किसानों की स्थिति के लिए सरकार की नीतियां ज्यादा जिम्मेदार हैं.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र के मराठवाडा क्षेत्र में 1 जनवरी 2022 और मध्य अगस्त के बीच लगभग 600 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. संभागीय आयुक्त कार्यालय औरंगाबाद से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 1 जनवरी से जुलाई तक लगभग 547 किसानों ने आत्महत्या की. तालुका कार्यालयों के अनुसार अकेले अगस्त में 37 मौतें दर्ज की गई. औरंगाबाद डिवीजन जिसमें अधिकांश मराठवाड़ा क्षेत्र शामिल है ने 2021 में 12 महीनों में 805 किसानों की आत्महत्या दर्ज की थी.

किसानों की आत्महत्या की एक वजह जुलाई में हुई बारिश के कारण लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि को पहुंचे नुकसान को भी माना जा रहा है. 11 और 12 जुलाई को हुई ज्यादा बारिश ने मराठवाड़ा के 24 जिलों में एक लाख से अधिक किसानों को प्रभावित किया. जिससे मक्का, सोयाबीन धान, कपास और केले की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा.

डाउन-टू-अर्थ में छपी रिपोर्ट के अनुसार नांदेड़ जिले के टांडा गांव के अंकुश राठौड़ ने 5 अगस्त 2022 की रात करीब 10:30 बजे अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. वहीं अंकुश के रिश्तेदार मधुकर जाधव ने बताया, “मेरे जीजा के पास 4.5 एकड़ जमीन थी और उन्होंने इस मानसून में कपास की बुवाई की थी. ज्यादा बारिश से फसल को भारी नुकसान हुआ जिसके बाद 28 वर्षीय अंकुश तनाव में चला गया इस बीच उसने कई बार अपनी जीवन लीला समाप्त करने की बात कही क्योंकि वह बुवाई का खर्च वहन नहीं कर सकता था. अंकुश पर पहले से ही 2 लाख रुपए का कर्ज था और वह इस बात को जानता था कि वह यह कर्ज चुकाने में असमर्थ है.” साथ ही जाधव ने बताया, “मंहगाई के कारण लगातार बढ़ रही खाद्य कीमतों और खेती की लागत ने उनका मनोबल गिर गया था. अंकुश अपने परिवार को खिलाने के लिए चिंतित था क्योंकि उसके पास आय का कोई अन्य साधन नहीं था. इसलिए उन्होंने यह कदम उठाया.”