आयुष्मान भारत योजना में करोड़ों का घोटाला, CAG रिपोर्ट में खुलासा !

चुनावी मंचों से गरीबों को मुफ्त इलाज देने का डंका पीटने वाले पीएम मोदी की एक और योजना में बड़ा घोटाला सामने आया है. दरअसल गरीब परिवारों को 5 लाख तक का मुफ्त इलाज देने वाली आयुष्मान भारत योजना में करोड़ों का घोटाला हुआ है. यह घोटाला CAG ने उजागर किया है. CAG की ताजा रिपोर्ट में यह घोटाला सामने आया है

CAG की रिपोर्ट में समाने आया कि आयुष्मान भारत योजना में लाभार्थियों के पंजीकरण और सत्यापन में हुए घोटाले में करीब 7.5 लाख लाभार्थियों (क्रमांक संख्या- 1119 से 7,49,820) का रजिस्ट्रेशन एक ही मोबाइल नंबर- 9999999999 से किया गया है.

इतना ही नहीं इसके अलावा 1,39,300 लाभार्थियों का रजिस्ट्रेशन भी एक ही नंबर- 8888888888 से किया गया और 96,046 लाभार्थियों का रजिस्ट्रेशन इस नं- 9000000000 से किया गया है. CAG रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम 20 मोबाइल नंबर ऐसे भी हैं, जिनसे क्रमांक संख्या- 10,001 से 50,000 तक के लाभार्थी जुड़े हुए हैं.

इसएलके अलावा, CAG रिपोर्ट में एक और घालमेल पकड़ा गया जिसमें 26 राज्यों में सरकारों ने लगभग 2,103 लाभार्थियों को उनकी मृत्यु के बाद भी ₹2 करोड़ की पेंशन का भुगतान किया है. CAG ने साल 2017 से 2021 के दौरान इस गड़बड़ी की जांच की थी.

उप मुख्यमंत्री दुष्यत चौटाला के गांव के लोगों का सरकार के खिलाफ प्रदर्शन, पैदल मार्च करते हुए करनाल पहुंचे ग्रामीण!

पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल और प्रदेश के मौजूदा उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के गांव के लोग सड़कों पर पैदल मार्च करने को मजबूर हैं. सिरसा जिले के चौटाला गांव के ग्रामीणों ने गांव में खराब स्वास्थ्य सुविधाओं के खिलाफ करनाल में मुख्यमंत्री कैंप कार्यालय के बाहर धरना दिया.

बता दें कि चौटाला गांव से पांच विधायक ऐसे हैं, जो 2019 के विधानसभा चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. इनमें इनेलो के अभय चौटाला, उनके पूर्व भतीजे और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, दुष्यंत की मां नैना सिंह चौटाला, ऊर्जा मंत्री रंजीत चौटाला, जो इनेलो संरक्षक ओम प्रकाश चौटाला के भाई हैं, और कांग्रेस के अमित सिहाग शामिल हैं.

चौटाला गांव से करीबन 300 किमी पैदल चलकर करनाल पहुंचे ग्रामीणों ने सीएम कैंप कार्यालय के पास अपना विरोध प्रदर्शन किया. ग्रामीणों ने कैंप कार्यालय का घेराव करने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उन्हे आगे नहीं बढ़ने दिया. प्रदर्शनकारी ग्रामीणों ने कहा कि उन्होंने चौटाला में सीएचसी के बाहर लगभग तीन सप्ताह तक धरना दिया जिसपर कोई सुनवाई नहीं हुई जिसके बाद हम लोग अपने गांव से करनाल तक करीबन 300 किलोमीटर पैदल मार्च करने को मजबूर हुए हैं.

अंग्रेजी अखबार ‘दैनिक ट्रिब्यून’ में छपी खबर के अनुसार विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले राकेश कुमार ने कहा, “सीएचसी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में खराब स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण हाल के महीनों में चार नवजात शिशुओं की मौत हुई है. सीएचसी में विशेषज्ञ व पैरा मेडिकल स्टाफ के कई पद खाली पड़े हैं, जिसके कारण गांववासियों को उचित स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पा रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि सीएचसी केवल एक रेफरल सेंटर बन गया था क्योंकि वहां कोई रेडियोग्राफर, बाल रोग विशेषज्ञ और स्त्री रोग विशेषज्ञ नहीं था.”

उन्होंने कहा, “हमने सीएचसी के बाहर एक धरना दिया जिसमें समाज के सभी वर्गों ने अपना समर्थन दिया. जब जिले के किसी भी वरिष्ठ अधिकारी ने हमारी मांग पर ध्यान नहीं दिया, तो हमें 21 दिसंबर को करनाल में सीएम कैंप कार्यालय तक मार्च करना पड़ा.”

स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में खुलासा, खराब स्थिति में ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचा!

हाल ही में देश के स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडवीया ने ग्रामीण क्षेत्रों में हेल्थ ढ़ांचे की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की थी. रूरल हेल्थ स्टैटिसटिक्स के नाम से आई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश के कई जिलों में डॉक्टरों, अस्पतालों की बड़ी कमी है. इसका सबसे अधिक खामियाजा हाशिये पर खड़े लोगों को भुगतना पड़ रहा है.

लोगों के लिए हेल्थ सुविधा प्रदान करने का दारोमदार पीएचसी यानि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) पर है. लेकिन स्वास्थ्य मंत्री द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर अधिक बोझ है.

मार्च 2021 तक ग्राणीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या 25,140 और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या 5,481 थी. नियम के अनुसार एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के द्वारा 20 से 30 हजार लोगों को स्वास्थ्य सुविधा दी जानी चाहिए. वहीं जुलाई 2021 तक के आंकड़े बताते हैं कि एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर 35,602 लोग निर्भर थे. 

सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को लेकर भी यही हाल है. एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की क्षमता 80,000 से 1,20,000 लोगों की है जबकि जुलाई 2021 तक के आंकड़े बताते हैं कि एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर 1,63,298 लोग निर्भर हैं.

पहाड़ी और मरुस्थलीय इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए यह अनुपात अलग है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर निर्भर लोगों की अधिकतम संख्या 20,000 हो सकती है. जबकि रिपोर्ट में सामने आया है कि एक पीएचसी पर 25,507 लोग निर्भर हैं.

ऐसे ही चिंतित करने वाले आंकड़े सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को लेकर भी हैं. एक सीएचसी की अधिकतम क्षमता 80 हजार लोगों की है लेकिन इसपर 1,03,756 लोग निर्भर हैं. साल 2021 तक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए स्वीकृत हेल्थ असिस्टेंट के 64.2% पद खाली थे. वहीं डॉक्टरों के स्वीकृत पदों में से 21.1% पद खाली हैं.

सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर आम लोगों को विशेषज्ञों से इलाज लेने का मौका मिलता है. 31, मार्च 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक 72.3% सर्जन, 69.2% फिजिशियन, 64.2% स्त्री विशेषज्ञों की सीट खली थी. कुल मिलाकर सीएचसी पर विशेषज्ञों के 68% पद खली पड़े थे. अब किसी बने हुए अस्पताल में उपलब्ध सुविधा के नजरिये से देखें तो सीएचसी में 83.2% सर्जन, 74.2% स्त्री एवं प्रसूति विशेषज्ञ, 80.6% बच्चों के विशेषज्ञ के पद खाली पड़े थे. अगर अस्पताल में उपलब्ध सुविधा के आधार पर देखें तो 79.9% विशेषज्ञों के पद खली पड़े हैं.