‘वन्यजीवों को नष्ट कर देंगे’- हरियाणा सरकार की महत्वाकांक्षी अरावली जंगल सफारी परियोजना को SC में चुनौती!

हरियाणा सरकार की प्रस्तावित अरावली जंगल सफारी को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभाव का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की गई है. विशेष रूप से पर्यावरण और वन मामलों से निपटने वाली एक विशेष पीठ के समक्ष दायर एक आवेदन में, याचिकाकर्ताओं – गुरुग्राम स्थित पर्यावरण कार्यकर्ता वैशाली राणा, विवेक कंबोज और रोमा जसवाल – ने कहा है कि अरावली एक विविध पारिस्थितिकी तंत्र का घर है जो इस कदम के कारण संभावित रूप से खतरे में पड़ सकता है.

याचिका में कहा गया है, “अरावली पहाड़ियां, जो पृथ्वी पर सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, पश्चिम भारतीय जलवायु और जैव विविधता को आकार देने वाली प्रमुख भू-आकृतियां हैं. अरावली अपने हरे-भरे जंगलों के साथ हरित अवरोधक के रूप में काम करती थी और मरुस्थलीकरण के खिलाफ एक प्रभावी ढाल के रूप में काम करती थी.” इसका उल्लेख याचिकाकर्ताओं के वकील गौरव बंसल ने बुधवार को पीठ के समक्ष किया था.

याचिका में कहा गया है कि हरियाणा सरकार ने जंगल सफारी के लिए एक जैव विविधता पार्क के विकास के लिए “रुचि” दिखाई है. इसका दायरा हरियाणा के गुरुग्राम और नूंह जिलों में फैली 10,000 एकड़ वन भूमि में है.

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली एससी पीठ ने याचिकाकर्ताओं से याचिका की एक प्रति अदालत द्वारा नियुक्त केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) को सौंपने के लिए कहा है, जो विशेषज्ञों का एक पैनल है जो पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों में परियोजनाओं पर विचार करता है और सिफारिशें करता है.

वकील गौरव बंसल ने दिप्रिंट को बताया कि आवेदन का उल्लेख तब किया गया था जब अदालत उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में जंगल सफारी पर एक अन्य याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

प्रस्तावित परियोजना को कानूनी चुनौती हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर द्वारा इसकी आधारशिला रखने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित करने के एक दिन बाद आई है. समारोह की तारीख अभी तय नहीं हुई है.

टिप्पणी के लिए संपर्क किए जाने पर, हरियाणा पर्यटन के प्रमुख सचिव एम.डी. सिन्हा ने कहा कि राज्य सरकार को अभी तक कोई नोटिस नहीं मिला है, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए आगे कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि मामला “न्यायाधीन” है. उन्होंने कहा, “हमें जो कुछ भी कहना है, हम अकेले अदालत में कहेंगे.”

हरियाणा सरकार प्रस्तावित अरावली जंगल सफारी को तीन चरणों में निष्पादित करने की योजना बना रही है.

प्रस्ताव के अनुसार, सफारी को एक जैव विविधता पार्क की तरह विकसित किया जाएगा और इसका लक्ष्य “स्थानीय/देशी वनस्पतियों और जीवों की स्थापना करना; पारिस्थितिकी को संरक्षित और समृद्ध करने के लिए समग्र मृदा जल व्यवस्था में सुधार करना; भूजल पुनर्भरण; वन्य जीवन के लिए आवास में सुधार; बफर-स्थानीय मौसम; CO2 और अन्य प्रदूषकों के लिए सिंक के रूप में कार्य करें; क्षेत्र की प्राकृतिक विरासत का संरक्षण करें; जनता और छात्रों के बीच पर्यावरण जागरूकता को बढ़ावा देना; एक जीवित प्रयोगशाला के रूप में काम और जनता को मनोरंजक मूल्य प्रदान करना” था. इसकी जानकारी द इंडियन एक्सप्रेस की 5 जुलाई की रिपोर्ट के अनुसार मिली.

साभार- दि प्रिंट, हिंदी

अरावली की 50 हजार एकड़ जमीन प्राइवेट कंपनियों के हाथों में देने की तैयारी!

सरकार की ओर से पेश किए गए वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 को राज्य के जंगलों के लिए आत्मघाती बताते हुए पर्यावरणविदों ने इसे वापस लेने की मांग की है. लोकसभा की संयुक्त संसदीय समिति को भेजी गई जानकारी में इस बात का खुलासा हुआ है कि नये विधेयक के जरिये अरावली की 50 हजार एकड़ जमीन का कमर्शियल यूज के लिए रास्ता खोलने की तैयारी है.

वहीं पर्यावरणविदों ने हरियाणा में वनों के लिए एक्ट को प्रभावी बनाने के लिए इसमें बड़े बदलाव की मांग की है. राज्य का कुल वन क्षेत्र करीबन 3.62 प्रतिशत है इसमें से प्रभावी संरक्षित वन क्षेत्र केवल 2 प्रतिशत है. फॉरेस्ट एक्ट 1980 में संशोधन करने के लिए 29 मार्च को लोकसभा में पेश किया गया विधेयक कथित रूप से  जंगल की जमीन के बड़े इलाके और गतिविधियों के लिए वन विभाग की मंजूरी की आवश्यकताओं को कम करने और वनों की सुरक्षा से जुड़ी शक्तियों को कम करता है.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा जारी ‘द डेजर्टिफिकेशन एंड लैंड डिग्रेडेशन एटलस-2021’ के निष्कर्षों पर प्रकाश डालते हुए, प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 3.6 लाख हेक्टेयर (8.2 प्रतिशत) खराब हो गया था ऐसे में नये वन कानून में वनों के संरक्षण के लिए एक मजबूत कानून बनाने की बजाये प्राइवेट हाथों में हजारों एकड़ जमीन देने की कोशिश हो रही है.

अंग्रेजी अखबार द ट्रिब्यून में छपी एर रिपोर्ट के अनुसार गुरुग्राम और नूंह में 10 हजार एकड़ से अधिक अरावली क्षेत्र पहले से ही असुरक्षित हैं और जल्द ही नष्ट हो सकता है.

अरावली बचाओ नागरिक आंदोलन की सह-संस्थापक नीलम अहलूवालिया के अनुसार, “हरियाणा में देश में सबसे कम वन क्षेत्र हैं और जिसके कारण सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण है. एफसीए संशोधन विधेयक, 2023, रियल एस्टेट विकास और व्यावसायीकरण के लिए अरावली जंगलों की 50 हजार एकड़ भूमि को खोल देगा क्योंकि इन जंगलों को अभी तक “डीम्ड वन” के रूप में संरक्षित नहीं किया गया है”

गुरुग्राम की ‘बंजारा मार्केट’ को हटाने पर अड़ी सरकार, हजारों घुमंतू परिवारों के रोजगार पर लटकी तलवार!

गुरुग्राम के सेक्टर-53 में बड़ी इमारतों से घिरी बीस एकड़ जमीन पर बनीं करीबन तीन सौ झुग्गियां और बांस-तिरपाल से बनी पांच सौ से ज्यादा झोपड़ीनुमा दुकानें लंबे समय से सरकार की आँख की किरकिरी बनी हुई हैं. गुरुग्राम रेपिड मेट्रो स्टेशन-54 से महज 500 मीटर की दूरी पर बांजारा मार्केट चलाने वाले करीबन तीन सौ परिवारों को अपने रोजगार पर प्रशासन का पीला पंजा चलने का डर सता रहा है. दो किलोमीटर लंबी बंजारा मार्केट में लकड़ी, लौहे और अन्य धातुओं से बना डेकोरेशन का सामान मिलता है.

मार्केट की शुरुआती दुकानों में से सड़क के एक ओर बनी पटरी पर अपने दो छोटे बच्चों के साथ चीनी-मिट्टी के बर्तन बेचने के लिये बैठीं गीता ने बताया,“हमें यहां से हटाने की बात चल रही है कुछ दिन पहले सरकारी लोग आए थे उन्होंने हमारी कईं दुकानें तोड़ दीं.”

बंजारा मार्केट के दुकानदार उत्तर प्रदेश और राजस्थान के अलग-अलग शहरों से लकड़ी, लौहे और अन्य धातुओँ से बना सामान लेकर आते हैं. गीता ने बताया, “सामान लेकर आने में बहुत किराया लग जाता है. कईं बार सामान रास्ते में टूट भी जाता है. टूटा हुआ सामान हमारे किसी काम का नहीं रहता और पूरा नुकसान झेलना पड़ता है.

शानिवार और रविवार को बंजारा मार्केट में गुरुग्राम, दिल्ली और आसपास के लोग बड़ी संख्या में खरीददारी करने के लिए आते हैं. बंजारा मार्केट में अधिकतर दुकानदार गाड़िया-लौहार जनजाति से हैं. ये लोग पहले लौहे का सामान बनाकर बेचते थे लेकिन अब बना-बनाया सामान बेचते हैं.

गीता से बातचीत करते देख करीबन 55 बरस के लंबी और सफेद दाढ़ी मूंछ वाले व्यक्ति ने दूर से ही आवाज लगाते हुए कहा, “यो नेट वालो सो, बीडियो बणा की नेट पर बेची दिये थो”

बंजारा मार्केट में गीता अपने दो बच्चों के साथ

मामला समझाने पर उस व्यक्ति ने भी बातचीत की और बताया,”बंजारा मार्केट इस सामान की सबसे बड़ी मार्केट बन गई है. पहले आस-पास जो इस तरह का सामान बेचते थे अब वो भी यहां आकर सामान बेचते हैं. साई धाम, सोहना रोड़, सेक्टर 42, सुभाष चौक पर जो दुकानें लगाते थे अब वो भी बंजारा मार्केट में आकर सामान बेचते हैं. अगर हमें यहां से हटाया तो हमारे सामने रोजी-रोटी का बड़ा संकट खड़ा हो जायेगा. एक तो कोरोना की वजह से पूरा साल बिना काम के निकल गया ऊपर से अब सरकार हमें यहां से हटाना चाहती है. यह हम लोगों पर दोहरी मार हो जाएगी”

वहीं दोनों बाजुओं पर टैटू गुदवाए पास में बैठे करीबन 25 साल के दीपक ने बताया, कोई भी तोड़-फोड़ करने से पहले सरकार का कोई ऑर्डर आता हैं. लेकिन हमें कोई ऑर्डर नहीं दिया गया. आते ही हमारी झुग्गी तोड़ दी. उसके बाद कहा कि दो दिन बाद आएंगे और तब तक सामान हटाने को बोल गए. इससे अच्छा तो पहले बोल देते कि सामान हटाओं कम-से-कम हमारा सामान तो न टूटता. बताओ ये कहां कि बात हुई की पहले सामान तोड़ दो और फिर बोले की सामान हटाओ.”

बंजारा मार्केट में सामान बेचने वाले अधिकतर लोग मार्केट के पीछे बनी झुग्गियों में रहते हैं वहीं कुछ ऐसे भी दुकानदार हैं जो कईं किलोमीटर दूर से आकर दुकान लगाते हैं. ऐसे ही एक  दुकानदार ने बताया कि वह सोहना रोड़ से यहां दुकान चलाने के लिए आते हैं. घर से आने जाने में हर रोज सौ रुपये से ज्यादा का किराया लग जाता है. अगर यहां से मार्केट हटा दी तो पता नहीं सामान बेचने के लिए कितनी दूर जाना होगा.” 

बंजारा मार्केट के पीछे दुकानदारों की झुग्गियां

वहीं बंजारा मार्केट के पीछे बनी झुग्गी में जन्मे विष्णू भी अपनी दुकान चलाते हैं. परिवार के साथ दुकान पर बैठे विष्णु ने बताया कि इससे पहले हम लौहे के बर्तन बनाने का काम करते थे. अगर हम लोगों को यहां से हटाया गया तो हमारा सारा रोजगार चौपट हो जायेगा. हम चाहते हैं कि हमारी अगली पीढ़ी हमारी तरह अनपढ़ न रहे और हमारे बच्चे पढ़ाई करें लेकिन यहां तो सरकार हमें काम करने से भी रोक रही है. हमारी सरकार से एक ही प्रार्थना है कि हम लोगों को यहां काम करने दिया जाए या हमें कोई दूसरी जगह दी जाए जहां हम अपनी रोजी-रोटी चला सकें.”    

अपनी पारंपरिकर वेशभूषा पहने हुए करीबन 40 साल की बंजारा मार्केट की प्रधान सुशीला ने बताया, “केवल यहां की बात नहीं है. हमें कहीं भी रहने नहीं दिया जाता है. हम जहां भी जाते हैं वहीं से सरकार के लोग हटाने आ जाते हैं. पीढ़ियों से हमारे पूर्वज भी ऐसे ही भटकने पर मजबूर रहे हैं. हमारे कईं लोगों ने ब्याज पर पैसे लेकर काम शुरू किया है. आज भी कईं लोग कर्जदार हैं. हम लोगों को यहीं रहने दिया जाए अगर हटाना ही है तो पहले हमें कोई दूसरी जगह दी जाए जहां हम अपना काम कर सकें. हमने कईं बार प्रशासन के लोगों से भी मिलने की कोशिश की लेकिन कोई नहीं मिलने देता. यहां गरीब लोगों की कोई सुनवाई नहीं होती. जब मन करता है आते हैं हमारा सामान तोड़ कर चले जाते हैं. सरकार हमें सुविधाएं देने की बजाए उलटा हमारे जीवन में संकट क्यों लाना चाहती है. हमारे लिए यहां न पीने के पानी की सुविधा है न औरतों के लिए शौचालय हैं.”       

बंजारा मार्केट की प्रधान सुशीला

दिल्ली से  परिवार के साथ बंजारा मार्केट में खरीददारी करने के लिये आईं एक महिला ने बताया, “बंजारा मार्केट बंद होने से लोगों को भी काफी परेशानी होगी क्योंकि यहां, एक ही जगह पर अलग-अलग तरह का सामान मिल जाता है और साथ ही बड़ी दुकानों से थोड़ा सस्ता भी पड़ता है. सरकार अगर बंजारा मार्केट को हटा रही है तो इन लोगों के लिए कोई दूसरी जगह देनी चाहिए.”

इस मुद्दे पर हरियाणा विमुक्त घुमंतू जनजाती बोर्ड के चेयरमैन बलवान सिंह से गांव-सवेरा ने फोन पर बात की तो उन्होंने बताया, “गुरुग्राम की बांजरा मार्किट को हटाने का मामला मेरे संज्ञान में आया है. हमनें गुरुग्राम कमिश्नर से इस विषय में बात की है उन्होने आश्वासन दिया है कि जब इन लोगों को दूसरी जगह नहीं दी जाती तब तक बंजारा मार्केट को नहीं हटाया जायेगा.”

वहीं इस मामले पर हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के अधिकारी ने कहा, “इससे पहले भी बंजारा मार्केट को हटाने की कोशिश की गई है. लेकिन हर बार फिर से दुकानें शुरू कर दी जाती हैं. मार्केट के आस-पास के लोगों की शिकायत मिलीं है कि मार्केट में भीड़ होने की वजह से सड़कों पर जाम लगा रहता. केवल बंजारा मार्केट का सवाल नहीं है शहर में अन्य जगहों पर भी अतिक्रमण हटाया जा रहा है. सरकारी जमीन को हर तरह के अतिक्रमण मुक्त किया जा रहा है.” सरकार बंजारा मार्केट और यहां बनी झुग्गियों को हटाकर जगह की नीलामी की योजना बना रही है.”