हरियाणा में डीएपी खाद की भारी किल्लत, खरीद केंद्रों के बाहर लगी किसानों की लंबी कतार!

किसानों को आए साल डीएपी खाद की किल्लत का सामना करना पड़ता है. इस बार भी इसी तरह की तस्वीरें सामने आई हैं जिसमें किसान डीएपी खाद के लिए खरीद केंद्र से बाहर हजारों की संख्यां में खड़े दिखाई दिए. नारनौल अनाज मंडी में कोऑपरेटिव सोसायटी के दफ्तर के बाहर किसान पिछले तीन दिनों से डीएपी खाद की खरीद के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वहीं नांगल चौधरी में खाद न मिलने से परेशान कोटपूतली रोड पर किसानों ने जाम लगा दिया.

प्रदेश में धान कटाई सीजन के बीच में ही रबी की फसलों के लिए डीएपी खाद की मांग शुरू हो गई है. आपूर्ति कम होने के कारण प्रदेश सरकार के स्टॉक में इस समय केवल 40 हजार मीट्रिक टन डीएपी उपलब्ध है, जबकि सीजन में तीन लाख मीट्रिक टन डीएपी की जरूरत रहती है.

नारनौल के नसीबपुर में डीएपी खरीद केंद्र के बाहर सुबह 4 बजे ही किसानों की लंबी लाइन लग गई.

खाद के लिए सुबह 4 बजे ही लाइन में लगे किसान
नारनौल के गांव खटोटी कला में खाद के लिए जुटे किसान

एमपी में यूरिया के लिए मारामारी, थाने से मिल रहे हैं टोकन

मध्य प्रदेश की जिस चंबल नदी के नाम पर देश की प्रमुख फर्टीलाइजर कंपनी का नाम पड़ा, उसी राज्य में यूरिया के लिए ऐसी मारामारी मची है कि किसानों को पुलिस थाने से टोकन बांटे जा रहे हैं। यूरिया के लिए पुलिस के डंडे खाते किसानों का एक वीडियो भी सामने आया है।

रबी की बुवाई के दौरान यूरिया की किल्लत ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। एक-दो बोरी यूरिया के लिए भी किसानों को सुबह 4-5 बजे से लाइनों में खड़ा होना पड़ रहा है। इसके बावजूद मुश्किल से 2-4 बोरी यूरिया मिल पा रहा है। यह सब उस सरकार कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में हो रहा है जो किसानों के मुद्दों पर सत्ता में आई है।

यूरिया की किल्लत के चलते हरदा, होशंगाबाद, रायसेन, विदिशा, गुना, सागर, नीमच समेत कई जिलों से कालाबाजारी की खबरें भी आने लगी हैं। कहीं 267 रुपये में मिलने वाली  यूरिया की बोरी 350-400 रुपये में मिल रही है तो कहीं किसानों को यूरिया के साथ 1,200 रुपये की डीएपी की बोरी लेने को मजबूर किया जा रहा है। राज्य सरकार और कृषि विभाग की ओर से पर्याप्त यूरिया होने के दावे तो जरूर किए जा रहे हैं मगर जमीन हालात अलग हैं।

इस यूरिया संकट के लिए मांग के अनुरुप आपूर्ति न होने को वजह माना जा रहा है। कई जिलों में अभी तक जरूरत के मुकाबले 50-60 फीसदी यूरिया ही पहुंचा है। जिसके चलते रबी की बुवाई में देरी हो रही है और बुवाई कर चुके किसानों को दुकानदारों से महंगा यूरिया खरीदना पड़ रहा है। इस साल अच्छी बारिश और गेहूं का रकबा बढ़ने की वजह से यूरिया की मांग बढ़ी है। इससे भी यूरिया की किल्लत बढ़ी है।

पिछले साल भी मध्य प्रदेश और राजस्थान में यूरिया को लेकर इसी तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा था। तब विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने तत्कालीन भाजपा सरकारों को इस मुद्दे पर खूब घेरा था। अब सरकारें बदल चुकी हैं लेकिन हालत नहीं बदले।

रबी बुवाई के दौरान यूरिया संकट को लेकर किसान संगठनों ने कमलनाथ सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। आम किसान यूनियन के समस्या का समाधान नहीं होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है।

भाजपा का किसान मोर्चा राज्य सरकार को इस मुद्दे पर घेरने में जुटा है तो मध्य प्रदेश किसान कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष केदार सिरोही ने भी कृषि विभाग पर सवाल खड़े किए हैं। सिरोही का कहना है कि एमपी में यूरिया की किल्लत होती तो 400 रुपये में यूरिया कैसे मिल पा रहा है। यानी कृषि विभाग की नीयत और मैनेजमेंट ठीक नहीं है। विभाग को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी। यूरिया की लाइनें खत्म होनी चाहिए।

इस यूरिया संकट के पीछे सरकार की बदइंतजामी के अलावा यूरिया की किल्लत के बहाने डीएपी बेचने की फर्टिलाइजर कंपनियों और डीलरों की कारगुजारी का भी बड़ा हाथ माना जा रहा है। पिछले एक सप्ताह में कालाबाजारी करने वाले कई खाद विक्रेताओं पर छापेमारी हुई है।