सेब किसानों के आंदोलन के बीच अडानी ने फिर घटाए सेब के दाम!

एक ओर सेब किसान और बागवान सेब की कम कीमत मिलने के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. वहीं इस बीच अडानी की कंपनी एग्रोफ्रेस ने एक बार फिर सेब के दाम घटा दिए हैं. इस बार सेब के दाम में 2 रुपए प्रतिकिलो की कमी की गई है. पिछले एक माह से सेब बागवान विभिन्न मुद्दों को लेकर आंदोलनरत हैं. पहले बागवानों ने जीएसटी की दरों और पैकेजिंग मेटेरियल में बढ़ोतरी को लेकर सरकार के खिलाफ सचिवालय का घेराव किया था. इसके बाद बागवानों ने जेल भरो आंदोलन किया और उनपर एफआईआर तक भी हुई. इन सबके बीच में सरकार ने बागवानों के आंदोलन को देखते हुए सेब के दामों को तय करने के लिए एक हाई पावर कमेटी का गठन किया, लेकिन प्रदेश में सेब बागवानी से जुड़ी बड़ी कंपनी अडानी ने हाईपावर कमेटी के गठन वाले दिन ही सेब खरीद के दाम जारी कर दिए थे.

हिमाचल प्रदेश के किसान अलग-अलग मुद्दों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. कंपनी की ओर से जारी ताजा दामों में ईईएस (एक्स्ट्रा एक्स्ट्रा स्माल) श्रेणी के सेब का खरीद मूल्य 60 रुपये से घटाकर 58 रुपये प्रतिकिलो हो गया है. वहीं मंडियों में सेब के दाम 200 से 300 रुपये प्रति पेटी कम हुए हैं. कंपनियों की ओर से सेब के दाम मे गिरावट का कारण खराब मौसम बताया जा रहा है. सेब कीमतों में बढ़ोतरी की मांग के लिए आंदोलनरत संयुक्त किसान मंच ने दाम घटाने के फैसले पर नाराजगी जताई है.

पिछले हफ्ते शिमला फल मंडी में सेब का प्रति पेटी औसत रेट 1400 से 2000 रुपए था. इस हफ्ते के आखिर में दाम घटकर 1100 से 1800 रुपये पहुंच गए हैं. सेब की एक पेटी में 25 किलो सेब आता है. दूसरी ओर अदाणी कंपनी इससे पहले ईएल (एक्सट्रा लार्ज) और पित्तू (ग्रेड से छोटा आकार) के सेब का दाम भी दो रुपए प्रतिकिलो कम कर चुकी है. अदाणी कंपनी ने इस महीने 15 अगस्त से अपने तीन कंट्रोल्ड एटमोसफेयर स्टोरों पर सेब खरीद शुरू की थी. जिसके खिलाफ किसान आंदोलन कर रहे हैं.

शुरुआत में कंपनी ने एक्स्ट्रा लार्ज सेब के 52 रुपये, लार्ज मीडियम स्माल के 76, एक्स्ट्रा स्माल के 68, एक्स्ट्रा एक्स्ट्रा स्माल के 60 और पित्तू सेब के 52 रुपये प्रतिकिलो खरीद दाम तय किए थे. एक हफ्ते बाद कंपनी ने एक्स्ट्रा लार्ज और पित्तू आकार के सेब के रेट 52 से घटाकर 50 कर दिए. अब एक्स्ट्रा एक्स्ट्रा स्माल श्रेणी के सेब के दामों में भी दो रुपये की कटौती कर दी है. सेब के दामों मे कटौती से आदोलन कर रहे किसान बहुत रोष में है.

अडानी एग्रीफ्रेश के खिलाफ सड़कों पर उतरने को क्यों मजबूर हुए सेब किसान!

हिमाचल प्रदेश में इनदिनों सेब सीजन पीक पर है और पिछले एक माह से सेब बागवान विभिन्न मुद्दों को लेकर आंदोलनरत हैं. पहले बागवानों ने जीएसटी की दरों और पैकेजिंग मेटेरियल में बढ़ोतरी को लेकर सरकार के खिलाफ सचिवालय का घेराव किया. इसके बाद बागवानों ने जेल भरो आंदोलन किया और एफआईआर तक भी हुई. इन सबके बीच में सरकार ने बागवानों के आंदोलन को देखते हुए सेब के दामों को तय करने के लिए एक हाई पावर कमेटी का गठन किया, लेकिन प्रदेश में सेब बागवानी से जुड़ी बड़ी कंपनी अडानी ने हाईपावर कमेटी के गठन वाले दिन ही सेब खरीद के दाम जारी कर दिए.

इससे बागवान भड़क गए और उन्होंने अब कंपनी के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया है. सेब बागवानों ने अब 25 अगस्त को अडानी एग्रोफ्रेश के शिमला के तीन स्थानों मेंदहली, बीथल और सैंज के स्टोर्स का घेराव करने का फैसला लिया है. सेब बागवानी से जुडे़ 30 संगठनों को मिलाकर बने संयुक्त किसान मंच के अध्यक्ष हरीश चौहान ने डाउन टू अर्थ को बताया कि कंपनियां बागवानों और सरकार को गुमराह कर रही हैं.

उन्होंने कहा कि अडानी एग्रोफ्रेश हिमाचल प्रदेश में सेब की सबसे अधिक खरीद करने वाली कंपनियों में से एक है और अडानी की ओर से जारी किए गए दामों का बाजार में चल रहे दामों पर गहरा असर पड़ता है.

सरकार की ओर से सेब के दामों को तय करने के लिए कमेटी का गठन किया गया था, लेकिन अडानी कंपनी ने अपने दाम बिना कमेटी की अप्रुवल के जारी कर दिए. इसके अलावा कमेटी की ओर से बुलाई गई बैठक में भी अडानी कंपनी के बड़े अधिकारी चर्चा के लिए नहीं आए और वे सरकार को हल्के में ले रहे हैं.

यंग एडं यूनाईटेड प्रोग्रेसिव ऐसोसिएशन के महासचिव प्रशांत सेहटा ने बताया कि अडानी कंपनी फल के रंग और आकार के अनुसार उन्हें कई ग्रेड्स में बांटकर अलग-अलग रेट्स पर खरीदता है. इस बार भी अडानी एग्री फ्रेश ने राज्य के सेब बागवानों से करीब पच्चीस हजार मीट्रिक टन सेब खरीदने का लक्ष्य रखा है.

उन्होंने कहा कि इस साल अडानी एग्री फ्रेश ने जो सेब के रेट्स खोले हैं वह बीते साल की तुलना में 12 से पंद्रह फीसदी कम है. पिछले साल कंपनी ने 85 रुपए प्रति किलो तक उच्चतम दाम रखे थे, वहीं इस बार यह रेट 76 रुपए है. जबकि बीते बरस की तुलना में इस बार सेब उत्पादन लागत में लगभग 30 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी हुई है.

आंदोलन कर रहे बागवानों की मानें तो इस बार मौसमी बेरुखी की वजह से फसल के रंग और आकार में अन्य वर्षों की तुलना में कमी रह रही है. जिसका अर्थ है कि बागवानों के पास छोटा आकार और कम रंगत का सेब अधिक है. ऐसे में अडानी जो रंग के आधार पर सेब खरीदता है तो उसके कम दाम मिलना तय है.

प्रशांत सेहटा कहते हैं कि अब अगर हम ओपन मार्केट की बात करें तो सबसे पहले 60 से 100 फीसदी रंग वाले सेब की 25 किलो की पेटी लार्ज से लेकर पिट्टू आकार तक रेट में 1700 से 2300 तक बिक रही है. जिसका औसत मूल्य 68 रुपए से 92 रुपए रह रहा है. अगर पैकिंग का खर्चा हटा दिया जाए तब भी औसत रेट 62 से 85 रुपए तक मिल रहा है. इसी आधार पर अगर हम अडानी एग्री फ्रेश के रेट का औसत लें तो यह दोनो ग्रेड्स को मिलाकर 60 से 70 रुपए के आस पास रह रहा है.

सेब बहुल इलाके रतनाड़ी के सेब बागवान आशुतोष चौहान कहते हैं कि अडानी कंपनी के रेट खुलने से मार्केट पर बहुत बुरा असर होता है. जैसे ही कंपनी ने इस बार 13 अगस्त को रेट खोले उसके अगले दिन से मार्केट में सेब के दामों 400 से 500 रुपए गिर गए. जबकि पिछले वर्ष यह गिरावट 1 हजार रुपए तक थी. उन्होंने कहा कि सेब के दामों में एकरूपता होनी चाहिए और प्राइवेट कंपनियों की ओर से तय किए जा रहे मनमाने दामों को सरकार की ओर से रेग्युलेट किया जाना चाहिए.

सेब के दामों को तय करने के लिए बीते मंगलवार को नौणी विश्वविद्यालय के कुलपति की अध्यक्षता में बनी हाई पावर कमेटी की बैठक हुई. इस बैठक में प्रदेश में बड़े स्तर पर सेब की खरीद करने वाली 18 कंपनियों को बुलाया गया था लेकिन इसमें 18 में से केवल 8 कंपनियां ही आई.

संयुक्त किसान मंच के सह संयोजक संजय चौहान ने कहा कि कंपनियां इस कमेटी और सरकार के निर्देशों को गंभीरता से नहीं देखती है। इसलिए इसमें ज्यादातर कंपनियों के प्रतिनिधि नहीं आए. बैठक के दौरान जब अडानी जैसी बड़ी कंपनियों के साथ किए गए करार और नियम व शर्ताें को मांगा गया तो न ही तो सरकार और न ही कंपनियों की ओर से कोई एमओयू नहीं दिखाया गया. उन्होंने कहा कि कोई नियम कानून न होने की वजह से कंपनियां अपनी मनमर्जी कर रही है. अब हम लोग कंपनियों की मनमर्जी को नहीं मानेंगे और अपने आंदोलन को और अधिक तेज करेंगे.

सेब के दाम तय करने को लेकर बनाई गई कमेटी के अध्यक्ष प्रो राजेश्वर सिंह चंदेल का कहना है कि बैठक में न आने वाली कंपनियों और उच्च अधिकारियों के न आने को लेकर कंपनियों से जवाब मांगा जाएगा. इसके अलावा अडानी कंपनी से सेब के रेट खोलने को लेकर भी जवाब मांगा जाएगा. इसके अलावा किसानों की मांगों पर कमेटी की ओर से विचार किया जा रहा है.

साभार- डाउन-टू-अर्थ

25 अगस्त को अडानी के गोदामों का घेराव करेंगे हिमाचल के सेब किसान!

हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादक अपने घटते लाभ मार्जिन को लेकर राजधानी शिमला में आंदोलित हैं. सरकार द्वारा उनकी मांगों को अनसुना किए जाने के कारण, उन्होंने 25 अगस्त को अडानी के स्वामित्व वाले तीन सेब गोदामों का घेराव करने का फैसला किया है. इसके अलावा, उत्पादकों ने सरकार के खिलाफ कानूनी मोर्चा खोलने का भी फैसला किया है और संयुक्त किसान मंच ने एपीएमसी अधिनियम को लागू करने के लिए अदालत में जाने की घोषणा की है.

सेब उत्पादकों ने अपना एक संयुक्त ब्यान जारी करते हुए कहा है, “सरकार सोच रही है कि समय के साथ अपने आप विरोध कम हो जाएगा, तो वह बहुत बड़ी गलती कर रही है।. जब तक सरकार हमारी मांगें नहीं मानती तब तक धरना जारी रहेगा. अपने अगले कदम में हम 25 अगस्त को अडानी के स्वामित्व वाले सेब गोदामों पर धरना देंगे.”

अडानी के पास तीन गोदाम हैं और कुछ अन्य निजी सीए स्टोर अगस्त के मध्य से सीजन खत्म होने तक सेब खरीदते हैं. कटाई का मौसम समाप्त होने के बाद गोदाम इस सेब को बाजार में अधिक कीमत पर बेचते हैं. फिलहाल, कुल सेब कारोबार में अडानी और अन्य छोटे निजी खिलाड़ी हैं. राज्य में उत्पादित कुल 5-7 लाख मीट्रिक टन सेब में से, अडानी के तीन गोदाम लगभग 18,000-20,000 मीट्रिक टन की खरीद करते हैं, जो कुल बिक्री का लगभग दो से तीन प्रतिशत है.

सेब उत्पादकों के नेता हरीश चौहान ने बताया, “अडानी स्टोर बहुत अधिक खरीद नहीं कर रहे हैं, लेकिन उनकी खरीद दरें खुले बाजार को प्रभावित करती हैं. अक्सर अडानी स्टोर्स द्वारा अपनी खरीद कीमतों की घोषणा के बाद बाजार में गिरावट आती है. अडानी के गोदाम लगभग 75-85 रुपये में जो प्रीमियम सेब खरीदते हैं, उन्हें बाद में बहुत अधिक लाभ मार्जिन पर बेचा जाता है. दूसरी ओर, उत्पादकों का लाभ तेजी से बढ़ती इनपुट लागत के कारण दिन-ब-दिन घट रहा है. इसलिए, हम सभी मांग कर रहे हैं कि ये गोदाम हमें बेहतर कीमतें दें, क्योंकि उनका खुद का लाभ मार्जिन इतना अधिक है.”

शिमला में प्रदर्शन करने आए सेब किसान अजय ठाकुर ने बताया, “अडानी ने 2020 में 88 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर सेब खरीदे थे, लेकिन 2022 में वे सिर्फ 76 रुपये प्रति किलोग्राम की पेशकश कर रहे हैं, जबकि हम उत्पादकों की इनपुट लागत बहुत ज्यादा बढ़ गई है. यह कैसे जायज है?”

विभिन्न स्थानों पर विरोध प्रदर्शन के अलावा, एसकेएम ने कानूनी रूप से भी सरकार को घेरने का फैसला किया है. एसकेएम के एक सदस्य दीपक सिंघा ने बताया, “हम जल्द ही एपीएमसी अधिनियम को लागू नहीं करने के लिए सरकार के खिलाफ अदालत का रुख करेंगे. सरकार को अदालत में जवाब देना होगा कि वह अधिनियम को लागू करने और उत्पादकों को अधिनियम में अनिवार्य सभी सुविधाएं प्रदान करने में अपनी रुचि क्यों नहीं दिखा रही है.”

सड़कों पर उतरे हिमाचल के सेब किसान

हिमाचल के किसानों को अदानी का झटका, कंपनी ने घटाए सेब के दाम!

एक ओर दिल्ली की सीमाओं पर किसान पिछले नौ महीने से तीन नये कृषि कानूनों और कॉर्पोरेट की मनमानी के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर हिमाचल में किसानों के साथ कॉर्पोरेट कंपनी की मनमर्जी जारी है. हिमाचल में प्राइवेट कंपनियां बागवानी किसानों की फसल के मनमाफिक दाम तय कर रही हैं. दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल में अदानी एग्री फ्रेश कंपनी ने सेब खरीद मूल्य सार्वजिनक किया है. किसानों के अनुसार अदानी कंपनी ने सेब के दाम बहुत कम तय किए हैं. कंपनी ने 80 से 100 फीसदी रंग वाले सबसे बड़े आकार के सेब का दाम 52 रुपये प्रति किलो जबकि बड़े, मीडियम और छोटे आकार के सेब का दाम 72 रुपये प्रति किलो तय किया है.  

सेब खरीदने वाली अदानी एग्री फ्रेश कंपनी ने सेब किसानों को झटका दिया है. कंपनी ने जो दाम तय किए हैं, उन्हें सुनकर बागवानों में निराशा है. पिछले साल की तुलना में इस बार प्रतिकिलो के हिसाब से 16 रुपये कम दाम तय किए हैं.

26 अगस्त से सेब की खरीद शुरू करने से पहले कंपनी ने सेब खरीद मूल्य सार्वजनिक किये हैं. कपनी अस्सी से 100 फीसदी रंग वाला एक्स्ट्रा लार्ज सेब 52 रुपये प्रति किलो जबकि लार्ज, मीडियम और स्मॉल सेब 72 रुपये प्रति किलो की दर पर खरीदेगी. 

वहीं पिछले साल सबसे बड़े आकार का सेब 68 रुपये जबकि मीडियम और छोटे आकार का सेब 88 रुपये प्रति किलो बिका था. कंपनी ने इस सीजन में 60 से 80 फीसदी रंग वाला सबसे बड़े आकार के सेब की कीमत 37 रुपये किलो जबकि मीडियम और छोटे आकार के सेब की कीमत 57 रुपये प्रति किलो तय की है. वहीं 60 फीसदी से कम रंग वाले सेब की खरीद 15 रुपये प्रति किलो की कीमत पर होगी जबकि पिछले साल ऐसा सेब 20 रुपये किलो खरीदा गया था.

अदानी कंपनी के सेब बेचने के लिए किसानों को सेब क्रेटों में भरकर अदानी के कलेक्शन सेंटर तक लाना होता है. कंपनी ने 26 से 29 अगस्त तक के लिए दाम तय किए हैं. 29 अगस्त के बाद फिर से सेब के दाम में बदलाव किया जाएगा. अदानी एग्री फ्रेश के टर्मिनल मैनेजर पंकज मिश्रा ने अखबार को बताया, “मंडियों के मुकाबले अदानी ने अच्छे रेट खोले हैं. मार्केट का फीडबैक लेने के बाद ही रेट तय किए गए हैं. 29 अगस्त के बाद मार्केट की स्थिति के अनुसार भी रेट में बदलाव किया जाएगा.”