कहीं भस्मासुरी वरदान में न बदल जाए सोलर प्लांट

 

किसी भी विकासशील देश की अर्थव्यवस्था में ऊर्जा एक महत्वपूर्ण घटक है. गत कुछ वर्षों में गहराते कोयला संकट ने हमें गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोतों की ओर मोड़ा है, जिनमें विशेषकर राजस्थान में सौर ऊर्जा  व पवन ऊर्जा मुख्य रूप से विकसित हो रही है. राजस्थान के पश्चिमी भाग में सौर ऊर्जा की प्रबल संभावनाएं तलाशी गई, जिसके तहत भादला, जोधपुर में 10,000 हेक्टेयर भूमि चिन्हित करते हुए विश्व का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा  पार्क निर्माणाधीन है. इसी क्रम में भारत सरकार के उपक्रम एनटीपीसी के साथ साथ विभिन्न राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय निजी कम्पनियों ने भी बीकानेर शहर के आस-पास सौर ऊर्जा में निवेश किया है.

जामसर, कोलायत, पूगल इत्यादि गांवों के भूमिधारको ने बड़े स्तर पर अपनी भूमि, लगभग 25 साल के लीज पर कम्पनियों को उपलब्ध करवाई है. घाटे का सौदा मानी जा चुकी कृषि से त्रास्त भूमिधारकों की आय में वृद्धि हुई व मूलभूत सुविधाओं सड़क, बिजली, पानी इत्यादि में भी सुधार देखा जा रहा है. ग्रामीण युवाओं को आशा है कि वायदें के मुताबिक गांव में रोजगार भी उपलब्ध होगा. किन्तु जिस प्रकार कृत्रिम प्रकाश में शहरों के लोगों को आकाश के तारे अब नहीं दिखते, उसी प्रकार सोलर पैनलों का समुंद्र, मरूस्थलीय पारिस्थितिकी को लीलता हुआ शायद नजर नहीं आ रहा है.

हमारा थार राजस्थान के 33 जिलों में से 12 जिले समेटे हुए, विश्व का सबसे आबाद मरूस्थल है. यहां विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तु, वृक्ष व झाड़ियां मनुष्य के साथ मरूस्थल साझा करते है. सेवण घास की विलुप्ति के साथ जिस प्रकार गोडावण पक्षी की प्रजाति विलुप्ति के कगार पर आ गई है, उसी प्रकार कई स्थानीय प्रजातियों पर संकट गहरा गया है. बीकानेर के रेगिस्तान में रेगिस्तानी लाल लोमड़ी, रेगिस्तानी जंगली बिल्ली, रेगिस्तानी बिच्छु, बांडी, नेवला 25 प्रकार के दुर्लभ सरीसर्प, जिनमें धामण सांप प्रमुख है, विभिन्न विलुप्त प्राय गिद्धों व चीला की प्रजातियां निवास करती है. यह जीव जन्तु सेवण, धामण, कैर, बैर, कण्टेली, नागफनी, धोकड़ा, रोहिड़ा, खेजड़ी, बबूल, फोग, खींप इत्यादि स्थानीय वनस्पतियों पर भोजन व आवास के लिए निर्भर है.

ऊर्जा प्राप्ति की हमारी आवश्यकता ने न सिर्फ इन वनस्पतियों को नष्ट करते हुए, अनेक प्रजातियों की विलुप्ति की ओर धकेल दिया है, बल्कि परम्परागत खाद्य व्यवस्था को भी प्रभावित किया है. भीषण गर्मी व सूखे के दिनों में भी रेगिस्तान कैर, सांगरी, बेर, फोग जैसी चीजों से आमजन की खाद्य आपूर्ति करता आया हैं सोलर प्लांटो को जमीन उपलब्ध करवाने की अंधी दौड़ में भूमिधारक तेजी से भूमि साफ करवाते जा रहे है, नजीजन कैर-सांगरी जैसी सूखी सब्जियों के भाव आसमान छूते जा रहे हैं और उत्पादन उतनी तेजी से गिरता जा रहा है. केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कम्पनियों को कई प्रकार की विशेष छूट दी गई है जिनमें पर्यावरण संबंधी शर्तों को भी हटाया गया है.

जागरूकता के अभाव का लाभ देते हुए दलालो ने छोटे भूमि धारको से जमीन खरीद कर बड़े बड़े क्षेत्राफलों का निर्माण किया है व अब कम्पनियों को महंगी दरों पर लीज़ पर दिया जा रहा है. अर्थशास्त्री शायद इसे आर्थिक विकास मानेंगे पर समाजशास्त्रियों के लिए यह मंथन का विषय है. इस तत्काल प्राप्त सफलता से इलाके में नशा, हिंसा, महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में भी बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है. वे भूमिधारक, जिन्होंने अपनी भूमि कंपनी या दलालों को बेच दी है वे या तो रोजगार की तलाश में शहर का रूख कर चुके हैं या सोलर कंपनियों में रोजगार की आस लगाये हुए हैं. क्या हमारे शहर इस जनसंख्या की रोटी, कपड़ा व मकान की आवश्यकता को पूरा कर पायेंगे?

बीकानेर अपने बरखान रेत के टिब्बों के लिए जाना जाता है जो आंधियों के माध्यम से अपना स्थान बदलते रहते हैं. जब साधारण हवा का झोंका भी रेजे़ की एक मोटी परत बिछा जाता है, तब ऐसी पारिस्थितिकी से सोलर पैनल्स को साफ रख पाना एक मुश्किल काम है, जिसे इंदिरा गांधी नहर से उपलब्ध पानी से किया जा रहा है. पिछले एक महिने की नहरबंदी ने हमे जल का महत्व याद दिलाया है परन्तु बदले वैश्विक तापमान से फ्रिज, एसी, कूलर इत्यादि को भी हमारी आवश्यकताओं में शामिल कर दिया है. ऐसे में ऊर्जा संकट और जल संकट में से चुनाव कर पाना शायद संभव नहीं है पर आशा की जा सकती है कि हमारे उपलब्ध पेयजल का संवहनीय इस्तेमाल किया जायेगा.

विशेषज्ञों का मत है कि भूमि अवक्रमण को रोकने व पारिस्थितिकी की रक्षा करते हुए सौर ऊर्जा निर्माण किया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर गुजरात में नर्मदा नदी की तर्ज पर इन्दिरा गांधी नहर परियोजना के ऊपर सोलर पैनल लगाये जा सकते हैं. इससे जहां एक तरफ पानी का वाष्पीकरण कम किया जा सकता है वहीं दूसरी तरफ सोलर प्लांट को जल आपूर्ति भी आसानी से की जा सकती है. नहर के दोनों किनारों पर आमतौर पर पेड़ व झाड़ समय समय पर साफ करवाए जाते है ताकि जड़े नहर को नुकसान न पहुंचाये. सोलर प्लांट इस स्थिति का लाभ उठा सकते हैं. भारतमाला परियोजना के बड़े क्षेत्राफल पर भी काफी मात्रा में सोलर पैनल लगवाये जा सकते हैं जिससे व्यवस्था को आय व ऊर्जा दोनों प्राप्त हो सकते है.

इन सभी विषयों के साथ हमें भविष्य में खराब व अनुपयोगी होने वाले सोलर पैनल्स के निस्तारण व्यवस्था के बारें में भी पुनर्विचार करना होगा. हमारी कचरा प्रबंधन नीतियां व व्यवस्थायें किसी से छुपी नहीं है. आज से 20-25 साल बाद का हमारा रेगिस्तान कैसा होगा? जिस प्रकार जैसलमेर, बाड़मेर में पवन ऊर्जा संयत्रा स्थापित करने के लिए भूमि के ह्रदय में बड़ी मात्रा में सीमेन्ट व कन्क्रीट इंजेक्ट कर दी गई है, उसी प्रकार सोलर प्लांट स्थापित करने के लिए भी सीमेंट व कन्क्रीट की आवश्यकता होती है. सोलर प्लांट की सफलता के लिए बार बार उग आने वाले झाड़ व पौद्यों को लगातार साफ किया जाता रहेगा, तो प्रकृति भी कब तक संघर्ष करेगी और हम बड़ी संकट भूमि निर्माण करेंगे. आज गैर कृषित भूमि से उडायी जा रही ये रेत कृषित व उपजाऊ भूमि की ओर धीरे धीरे पैर पसारती जा रही है. क्या हम भविष्य में बंजर हो चुके रेगिस्तान में एक बड़े कूड़ेदान का निर्माण करेंगे?

जलवायु परिवर्तन के वैश्विक संकंट में हमें ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधनों की ओर निश्चित तौर पर बढ़ना होगा, जिसमें सौर ऊर्जा एक बेहतरीन विकल्प बना है, परन्तु पूंजीवादी व्यवस्था में यह वरदान भस्मासुरी रूप लेता हुआ प्रतीत हो रहा है. ग्रीन एनर्जी की ओर कदम बढ़ाने के साथ हमें पर्यावरण संरक्षण भी करना होगा तभी हम एक बेहतर कल का निर्माण कर सकेंगे.