सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की ओर से जारी बेरोजगारी दर के ताजा आंकड़ों में हरियाणा फिर से पहले स्थान पर रहा है. रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर के महीने में हरियाणा में बेरोजगारी की उच्चतम दर 37.4% रही, इसके बाद राजस्थान में 28.5 प्रतिशत, दिल्ली में 20.8 प्रतिशत बेरोजगारी दर्ज रही. वहीं बिहार में 19.1 प्रतिशत और झारखंड 18 प्रतिशत बेरोजगारी दर दर्ज की गई.
बेरोजगारी के मुद्दे पर हरियाणा में विपक्ष ने एक बार फिर मनोहर लाल और दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार पर तीखा हमला किया. सीएमआईई के आंकड़ों का हवाला देते हुए, विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली हरियाणा की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने राज्य सरकार पर राज्य में बेरोजगारी की बढ़ती दर को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया.
अंग्रेजी अखबार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी रिपोर्ट के अनुसार हुड्डा ने कहा, ‘महीने और साल में बदलाव से लोगों को कोई राहत नहीं मिल रही है क्योंकि हरियाणा देश में बेरोजगारी के मामले में नंबर वन बना हुआ है. यह बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत से 4.5 गुना ज्यादा है. पिछले महीने हरियाणा में बेरोजगारी दर 30.6 प्रतिशत थी और ऐसा लगता है कि हरियाणा हर बार बेरोजगारी के मामले में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ रहा है.
उन्होंने कहा, “एक तरफ रोजगार के अवसर हर महीने नए निचले स्तर पर गिर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार बेरोजगार युवाओं के भविष्य के साथ लगातार खिलवाड़ कर रही है. हरियाणा के सरकारी विभागों में करीब दो लाख पद खाली पड़े हैं. इन पदों पर स्थायी भर्ती करने के बजाय सरकार कौशल रोजगार निगम के माध्यम से कर्मचारियों को ठेके पर भर्ती करने की प्रथा को बढ़ावा दे रही है.
उन्होंने कहा, “सरकारी विभागों और पदों को लगातार खत्म किया जा रहा है. इस दिशा में एक और कदम आगे बढ़ाते हुए सरकार ने हिसार दूरदर्शन को बंद करने का आदेश जारी किया है, जो किसानों और समसामयिक मुद्दों पर जानकारीपूर्ण चर्चा और राज्य समाचार और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए बनाया गया था. इस फैसले से चैनल में काम करने वाले दर्जनों कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे और करोड़ों रुपये का इंफ्रास्ट्रक्चर बेकार हो जाएगा. हरियाणवी कलाकार और दूरदर्शन से जुड़े अन्य विशेषज्ञ अपनी कला का प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे और न ही लोगों के साथ अपनी विशेषज्ञता साझा कर पाएंगे.
इनेलो विधायक अभय चौटाला, जो पूर्व विपक्ष के नेता भी हैं, ने भी CMIE के बेरोजगारी दर के आंकड़ों पर राज्य सरकार की खिंचाई करते हुए कहा, “बेहद शर्मनाक है कि भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने 2014 से 2022 तक बेरोजगार युवाओं से पंजीकरण शुल्क के रूप में 206 करोड़ रुपये वसूले लेकिन युवाओं को स्थायी सरकारी नौकरी देने में विफल रही. यह और भी चिंताजनक है कि गठबंधन सरकार ऐसे कर्मचारियों को भी बाहर कर रही है जो कई वर्षों से काम कर रहे थे. राजस्थान की बेरोजगारी दर (28.5 प्रतिशत) का हवाला देते हुए, चौटाला ने कांग्रेस को “भाजपा से बेहतर नहीं” होने के लिए भी नारा दिया.”
हरियाणा विधानसभा के हाल ही में संपन्न शीतकालीन सत्र में विपक्ष ने हरियाणा में बढ़ती बेरोजगारी का मुद्दा उठाया था. विपक्ष की ओर से हरियाणा सरकार के हरियाणा कौशल रोजगार निगम पर भी सवाल उठाए गए, जिसके जरिए राज्य सरकार राज्य के बेरोजगारों को एक साल की अस्थायी नौकरी दे रही है.
हालांकि सत्र के दौरान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कई कारण बताए थे और कहा था, ‘एक सीमा से ज्यादा सरकारी नौकरी देना राज्य सरकार के लिए संभव नहीं है.” सीएम खट्टर ने घोषणा की थी, “सरकारी विभागों में आवश्यकता के अनुसार पदों को युक्तिसंगत बनाने के लिए राज्य में एक रेशनेलाइजेशन कमीशन का गठन किया जाएगा. यह कमीशन हर विभाग में पदों की संख्या को युक्तिसंगत बनाएगा ताकि रिक्त पदों को राजनीतिक कारणों से नहीं बल्कि विभाग विशेष की आवश्यकता के आधार पर भरा जाए.” आगे खट्टर ने कहा, “एक वर्ष में केवल 20 हजार सरकारी नौकरियां प्रदान करना संभव हो सकता है, इससे अधिक नहीं, हमने पिछले आठ वर्षों में 1 लाख नौकरियां दी हैं और अब आने वाले दिनों में अधिक से अधिक 50,000 कर्मचारियों की भर्ती करने का प्रयास किया जाएगा.”
प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए नए सर्वे में सामने आया है कि अमेरिका में अब युवा सोशल मीडिया से दूर रहने लगे हैं. बताया जा रहा है कि 1997 से 2012 के बीच में पैदा हुई पीढ़ी सोशल मीडिया पर उतनी एक्टिव नहीं है. फेसबुक के प्रयोग में हुई कमी का एक कारण सोशल साइट के प्रयोग से डाटा लीक, प्राइवेसी को खतरा रहा है.
सर्व में पाया गया कि अधिकतर युवा सोशल मीडिया की वजह से परेशान हैं. हर 10 में से तीसरा बच्चे डिप्रेशन, डर, चिंता काशिकार हैं. भारत में 73% बच्चे मोबाइल का प्रयोग करते हैं. जिनमें से अधिकतर युवाओं में आज वीडियोस का क्रेज है. हालांकि मेटा जैसी कंपनियां प्रतिदिन अपनी सोशल एप्स में गुणात्मक परिवर्तन करती हैं परंतु आज का युवा आसानी से ऊब जाता है.
युवाओं की सोच में परिवर्तन आने लगा है. सर्वे में एक ओर बात यह भी सामने आई कि युवा सोशल मीडिया के अनेक प्लेटफार्म को यूज करने लगा है. वह केवल एक एप्प का प्रयोग नहीं करता. बल्कि उसके पास सोशल मीडिया की अलग अलग एप्प होती हैं.रिसर्च में सामने आया कि युवा पुराने पहनावे और संगीत की ओर भी आकृषित हो रहा है.
वहीं युवाओं की सोशल मीडिया पर घटी सक्रियता का कारण डाटा लीक, प्राइवेसी, डिप्रेशन जैसे मुद्दे हैं. हालांकि सोशल मीडिया ने बहुत से युवाओं को रोजगार के नए अवसर प्रदान किए हैं. जिससे वे अच्छा खासा पैसा कमा रहे हैं. आज देश में बेरोजगारी ने युवाओं को सोशल मीडिया जैसे प्लेटफार्म की तरफ प्रोत्साहित किया है. जैसा कि भारत में 73% युवाओं में वीडियो का क्रेज है. और उससे रोजगार भी प्राप्त करता है.
प्यू सर्वे में पाया गया कि लंबे समय तक एक चीज से बंधे रहना युवाओं के ऊबाउ बनारहा है जिसके कारण वह नए अवसरों या प्रयोगों की खोज करने लगता है. भारत में भी युवाओं में बढ़ रहे डिप्रेशन जैसी बीमारियां सोशल मीडिया की वजह से ही है. किंतु भारत में बेरोजगारी के चलते सोशल मीडिया के प्लेटफार्म का ज्यादा इस्तेमाल होने लगा है. चाहे वह रोजगार प्राप्त करने के लिए हो या फिर बोरियत दूर करने के लिए इंटरटेन पर युवा की पहली पसंद सोशल मीडिया ही है.
हाल ही में देश के स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडवीया ने ग्रामीण क्षेत्रों में हेल्थ ढ़ांचे की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की थी. रूरल हेल्थ स्टैटिसटिक्स के नाम से आई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश के कई जिलों में डॉक्टरों, अस्पतालों की बड़ी कमी है. इसका सबसे अधिक खामियाजा हाशिये पर खड़े लोगों को भुगतना पड़ रहा है.
लोगों के लिए हेल्थ सुविधा प्रदान करने का दारोमदार पीएचसी यानि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) पर है. लेकिन स्वास्थ्य मंत्री द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर अधिक बोझ है.
मार्च 2021 तक ग्राणीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या 25,140 और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या 5,481 थी. नियम के अनुसार एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के द्वारा 20 से 30 हजार लोगों को स्वास्थ्य सुविधा दी जानी चाहिए. वहीं जुलाई 2021 तक के आंकड़े बताते हैं कि एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर 35,602 लोग निर्भर थे.
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को लेकर भी यही हाल है. एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की क्षमता 80,000 से 1,20,000 लोगों की है जबकि जुलाई 2021 तक के आंकड़े बताते हैं कि एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर 1,63,298 लोग निर्भर हैं.
पहाड़ी और मरुस्थलीय इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए यह अनुपात अलग है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर निर्भर लोगों की अधिकतम संख्या 20,000 हो सकती है. जबकि रिपोर्ट में सामने आया है कि एक पीएचसी पर 25,507 लोग निर्भर हैं.
ऐसे ही चिंतित करने वाले आंकड़े सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को लेकर भी हैं. एक सीएचसी की अधिकतम क्षमता 80 हजार लोगों की है लेकिन इसपर 1,03,756 लोग निर्भर हैं. साल 2021 तक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए स्वीकृत हेल्थ असिस्टेंट के 64.2% पद खाली थे. वहीं डॉक्टरों के स्वीकृत पदों में से 21.1% पद खाली हैं.
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर आम लोगों को विशेषज्ञों से इलाज लेने का मौका मिलता है. 31, मार्च 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक 72.3% सर्जन, 69.2% फिजिशियन, 64.2% स्त्री विशेषज्ञों की सीट खली थी. कुल मिलाकर सीएचसी पर विशेषज्ञों के 68% पद खली पड़े थे. अब किसी बने हुए अस्पताल में उपलब्ध सुविधा के नजरिये से देखें तो सीएचसी में 83.2% सर्जन, 74.2% स्त्री एवं प्रसूति विशेषज्ञ, 80.6% बच्चों के विशेषज्ञ के पद खाली पड़े थे. अगर अस्पताल में उपलब्ध सुविधा के आधार पर देखें तो 79.9% विशेषज्ञों के पद खली पड़े हैं.
पिछले 3 दिनों में मौसम के बदले मिजाज से उत्तर प्रदेश में गर्मी से झुलसते रोगों को राहत तो मिली, लेकिन केला और आम समेत कई फसलें उगाने वाले किसानों का भारी नुकसान हो गया। आंधी और बारिश के चलते प्रदेश कई जिलों में केले के पेड़़ टूट गए, घार टूट कर नीचे गिर गईं।
मौसम विभाग के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 23 से 24 मई तारीख की सुबह तक करीब सामान्य के 0.5 मिलीमीटर बारिश के मुकाबले 12.2 मिलीमीटर बारिश हुई जो सामान्य से 2324 फीसदी ज्यादा थी।
बाराबंकी जिले के सूरतगंज ब्लॉक दौलतपुर गांव के प्रगतिशील किसान अमरेंद्र सिंह के पास करीब 8 एकड केला है। सोमवार 23 मई 2022 को दिन में आई आंधी और बारिश में उनकी फसल को भारी नुकसान हुआ है। उनकी फसल अगले दो महीने में तैयार होने वाली थी, कुछ पौधों घार (फल) आ गए थे तो कुछ में आने वाले थे।
अमरेंद्र सिंह बताते हैं, “आंधी-तूफान में करीब 1500 पेड़़ पूरी तरह टूट गए हैं। केले की फसल को तेज हवा से काफी नुकसान होता है। हम लोग पेड़ बांधकर रखते हैं लेकिन आंधी में नुकसान हो ही जाता है।”
अमरेंद्र सिंह के पड़ोसी जिले बहराइच में रविवार (22 मई) की रात को भी भीषण आंधी आई थी। बहराइच जिले के किसान विष्णु प्रताप मिश्रा के पास करीब 3 एकड़ केला था, जिसमें करीब 3 लाख रुपए की लागत लग चुकी थी, फसल भी 2 महीने में तैयार होने वाली थी, लेकिन 22 मई की रात आई आंधी में उनका करीब 1 एकड़ खेत बर्बाद हो गया।
बहराइच जिले के फकरपुर ब्लॉक में भिलोरा बासु गांव के रहने वाले विष्णु प्रताप के बेटे अमरेंद्र मिश्रा डाउन टू अर्थ को बताते हैं, “आंधी रात को आई थी सुबह देखा तो कम से कम 3-4 बीघे (5 बीघा-1एकड) में पेड़़ पूरी तरह टूट कर गिर चुके थे।”
यूपी में उद्यान विभाग में बागवानी विभाग में उपनिदेशक वीरेंद्र सिंह बताते हैं, “यूपी में बाराबंकी, अयोध्या, गोंडा, बहराइच, सीतापुर, देवरिया, लखनऊ, लखीमपुरखीरी, कौशांबी, फतेहपुर, प्रयागराज, गोरखपुर और कुशीनगर में केले की बडे़ पैमाने पर नुकसान हुआ है। रविवार को आए तूफान से पूर्वांचल में ज्यादा नुकासन हुआ, जिसमें गोंडा बहराइच भी शामिल हैं जबकि सोमवार को आईं आधी में ज्यादा नुकसान की खबर आ रही है।” सीतापुर में एक हफ्ते में तीसरी बार आंधी आई है।
भारत दुनिया का सबसे ज्यादा केला उत्पादन करने वाला देश है। विश्व के कुल केला उत्पादन में भारत की करीब 25.88 फीसदी हिस्सेदारी है। देश में सबसे ज्यादा केला आंध्र प्रदेश में होता है, 72-73 हजार हेक्टेयर के रकबे के सात उत्तर प्रदेश पांचवें नंबर पर आता है।
यूपी में साल 2020-21 में 73.8 हजार हेक्टेयर में केले की खेती हुई थी। करीब 12-13 महीने की फसल केले को नगदी फसल माना जाता है। केला ऐसा फल है जो पूरे साल बिकता है। केले की एक एकड़ खेती में एक से डेढ़ लाख की औसत लागत आती है, अगर उत्पादन सही हुआ और भाव मिला तो डेढ़ से 2 लाख रुपए प्रति एकड़ तक का मुनाफा हो जाता है। लेकिन आंधी और जलभराव होने पर पेड़ गिर जाने का खतरा रहता है। समस्या ये भी है कि केले समेत कई बागवानी फसलों का बीमा कई जिलों में होता है तो कई जगह इसका फायदा किसानों को नहीं मिलता है।
बाराबंकी के किसान अमरेंद्र सिंह बताते हैं, “साल 2019 में हमारे यहां आए आंधी-तूफान से किसानों का बहुत नुकसान हुआ था, जिसके बाद हम लोगों ने दौड़भाग करके अपने ब्लॉक को बीमा एरिया में शामिल कराया था, इसके बाद हमने 2020 में बीमा कराया तब कोई नुकसान नहीं हुआ तो 2021 में कराया नहीं, क्योंकि प्रति एकड़ करीब 7 हजार रुपए का प्रीमियम देना होता है।
वहीं बहराइच के अमरेंद्र मिश्रा के मुताबिक उनके यहां केले का बीमा कोई करता नहीं है। उन्होंने कहा, “हमारे यहां कच्ची फसलें (केला आदि) का बीमा कोई करता नहीं है। पिता जी ने किसान क्रेडिट कार्ड पर लोन लिया था तो धान-गेहूं का बीमा हुआ था।” वो आगे जोड़ते हैं कि हमारे यहां जब हुदहुद तूफान आया था तो बहुत नुकसान हुआ था, उस समय सर्वे हुआ था, लेकिन कोई मुआवजा नहीं मिला।”
डाउन टू अर्थ ने इस संबंध में यूपी में कार्यरत बीमा कंपनियों के अधिकारियों से भी बात की। बहराइच में कार्यरत बीमा कंपनी एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ़ इंडिया (एलटीडी) के जिला संयोजक मुकेश मिश्रा ने बताया कि जिले में केले का बीमा किया जाता है। हमारे हर ब्लॉक में मौसम मापी यंत्र लगे हैं, उसमें हवा, पानी या प्राकृतिक आपदाएं होती है, उसकी रिपोर्ट के आधार पर क्लेम दिया जाता है। इसमें न आवेदन किया जाता है, न सर्वे होता है।”
मुकेश ने आगे बताया, “इन फसलों का बीमा पुर्नगठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना के अंतर्गत होता है, जो हर जिले में फसल के अनुसार अलग-अलग हो सकती है। जैसे बहराइच में केला है, तो कहीं आम, तो कहीं पान भी दायरे में आता है। जबकि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत धान-गेहूं जैसी फसलें आती हैं।
मुकेश के मुताबिक अगर कोई किसान एक हेक्टेयर में केला लगाने के लिए लोन (केसीसी) लेता है उसमें स्केल ऑफ फाइनेंस के आधार पर 5 फीसदी तक प्रीमियम देना होता है। यानि अगर एक लाख रुपए का खर्च आया तो 5 हजार प्रीमियम देना होगा और अगर 100 फीसदी नुकसान हुआ तो पूरा पैसा दिया जाएगा।
वहीं सीतापुर और लखीमपुर जिलों में कार्यरत कंपनी यूनिवर्सन सोम्पो जनरल इंश्योरेंस प्रा. लिमिटेड के जिला कॉर्डिनेडर आशीष अवस्थी के मुताबिक उनके जिलों में भी आंधी बारिश से केले की फसल को नुकसान हुआ है। पिछले साल भी किसानों को नुकसान हुआ था, जिसका मुआवजा दिया गया था। इससाल भी बीमित किसानों को क्लेम दिया जाएगा।
आशीष बताते हैं, “फसल बीमा कंपनियों के हर ब्लॉक में 2-2 वेदर स्टेशन लगे हैं, जिनमें लगे 5 सेंसर के आधार पर क्लेम तय होते हैं। अगर 100 मिलीमीटर बारिश होने चाहिए और 200-300 मिलीमीटर हुई है तो कंपनी बीमा देगी। पिछले साल (2020) में हुए नुकसान के लिए हमारी कंपनी ने लखीमपुर के 55 किसानों को 72 लाख और सीतापुर के 35 किसानों को 45 लाख रुपए का बीमा हाल ही में दिया है। इस आंधी और बारिश जो नुकसान हुआ है उसका भी रिपोर्ट के मुताबिक क्लेम दिया जाएगा।”
सीतापुर में बडे़ पैमाने पर केले की खेती होती है लेकिन यहां पर गिनती के किसानों ने बीमा कराया है। आशीष कहते हैं, “सीतापुर में सिर्फ 71 किसानों ने इस साल बीमा कराया है। हम जिला उद्यान अधिकारी से बात कर रहे हैं कि कैसे किसानों को इस दायरे में लाया जाए। क्योंकि मौसम लगातार प्रतिकूल हो रहा है। कहीं ज्यादा गर्मी कहीं तेज आंधी तो कहीं सूखा पडा रहा है। ऐसे में किसानों के लिए बीमा जरुरी है।”
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) ने बुधवार को कहा कि पंजाब सरकार द्वारा एक छात्रवृत्ति योजना (Scholarship Scheme) के तहत करीब 2,000 करोड़ रुपये के बकाये का भुगतान नहीं करने के चलते अनुसूचित जाति (SC) कैटेगरी के करीब दो लाख छात्रों ने कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने मैट्रिक बाद दी जाने वाली छात्रवृत्ति योजना में कथित अनियमितता की व्यापक जांच के पिछले हफ्ते आदेश दिए थे। यह कथित अनियमितता राज्य में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के दौरान सामने आई थी।
पंजाब सरकार ने नहीं जमा की छात्रों की फीस
एनसीएससी के अध्यक्ष विजय सांपला ने पत्रकारों को बताया कि आयोग ने राज्य सरकार से इस बात पर स्पष्टीकरण मांगा है कि केंद्र द्वारा बकाये का भुगतान किए जाने के बावजूद कॉलेजों को पैसे का भुगतान क्यों नहीं किया गया है। उन्होंने कहा, “हमने मामले का स्वत: संज्ञान लिया है। इस तरह की कई शिकायतें हैं कि एससी समुदाय के छात्रों को कॉलेज में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि सरकार ने उनका शुल्क जमा नहीं किया है।” सांपला ने कहा, “करीब तीन लाख छात्र 2017 में योजना से लाभांवित हुए थे और यह संख्या 2020 में घटकर एक लाख से लेकर सवा लाख के बीच रह गई। हमने जब राज्य सरकार से पूछा तो उसने बताया कि इन छात्रों ने पढ़ाई बीच में छोड़ दी है।”
पंजाब सरकार से अगले बुधवार तक स्पष्टीकरण देने को कहा
सांपला ने बताया कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय और पंजाब सरकार के अधिकारियों के बीच सोमवार को इस विषय पर बैठक हुई थी। उन्होंने कहा, “बैठक में यह बात सामने आई कि केंद्र सरकार पर कुछ भी बकाया नहीं है जबकि राज्य सरकार को इन कॉलेजों को 2 हजार करोड़ रुपये का बकाया अदा करना है। जो रकम बकाया है, वह कहां गई?” सांपला ने बताया कि पंजाब सरकार से अगले बुधवार तक स्पष्टीकरण देने को कहा गया है।
2020-21 में भी सरकार ने नहीं किया भुगतान
आपको बता दें कि इससे पहले 2020-21 में भी सरकार ने छात्रों को स्पष्ट निर्देशों के अभाव में पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति राशि का कुछ हिस्सा छात्रों के खाते में वितरित किया था और छात्र उस राशि का भुगतान कॉलेजों को नहीं कर रहे थे। इतना ही नहीं 90 करोड़ पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप की भरपाई नहीं की गई थी जो विभिन्न तकनीकी पाठ्यक्रमों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए थी।
बीते कुछ दिन पहले केंद्र सरकार द्वारा अग्निपथ योजना की घोषणा के बाद देश भर के युवाओं में योजना के विरोध में रोष देखा गया. युवाओं का यह आन्दोलन कहीं पर उग्र रहा तो कहीं पर शांतिपूर्ण. अग्निपथ योजना के खिलाफ़ 20 जून सोमवार को हरियाणा में युवाओं ने प्रदेश में सभी टोल को फ्री करवा कर अपना विरोध दर्ज किया.
योजना के खिलाफ प्रदेश में युवाओं और ग्रामीणों के साथ साथ किसान संगठन भी टोल फ्री करने के इस आन्दोलन में सड़कों पर उतर गए. युवाओं को किसान नेताओं का साथ भी मिला. सोमवार को भारत बंद के दौरान किसान संगठनों ने हरियाणा के कई जिलों में टोल मुफ्त कराया.
हरियाणा में युवाओं, ग्रामीणों और किसान संगठनों का यह प्रदर्शन पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहा. संयुक्त छात्र बेरोज़गार संघर्ष मोर्चा के आवाह्न पर टोल मुफ्त कराने के इस आन्दोलन की योजना 18 जून को हरियाणा के महम में एक जनसभा में हुई थी, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया था.
संयुक्त छात्र बेरोज़गार संघर्ष मोर्चा के संयोजक और जमींदारा स्टूडेंट आर्गेनाईजेशन के जनरल सेक्रेटरी मीत मान ने गांव सवेरा को बताया कि हरियाणा में खटकड़ टोल प्लाज़ा और कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस वे को छोड़ कर पूरे प्रदेश में युवाओं और ग्रामीणों ने अग्निपथ योजना के विरोध में टोल मुफ्त करवाया. मीत मान ने कहा, “अग्निपथ के विरोध में प्रदेश के युवाओं ने बढ़ चढ़ कर बिना किसी हिंसा के आन्दोलन किया. 18 जून को धनकड़ खाप अध्यक्ष ओमप्रकाश धनकड़ की अध्यक्षता में हरियाणा महम में हुई मीटिंग में यह तय किया गया था कि इस योजना के विरोध में सांकेतिक प्रदर्शन के तौर पर 20 जून को दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक 3 घंटे के लिए प्रदेश में सभी टोल को मुफ्त कराया जाएगा. युवाओं का यह सांकेतिक प्रदर्शन सफल रहा.”
मीत मान ने बताया कि हरियाणा के हर टोल प्लाज़ा पर आन्दोलन के लिए हर समय 100 लोग मौजूद थे. “जहां कहीं पुलिस और प्रशासन ने जबरदस्ती करने की कोशिश की, वहां पर बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों ने और आस पास के शहरों के कॉलेज में पढ़ाई कर रहे युवाओं ने आन्दोलन में हिस्सा लिया और इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन को सफल बनाया. यह प्रदर्शन इतना शांतिप्रिय रहा कि पूरे प्रदेश में कहीं से भी कोई बुरी खबर नहीं मिली.”
अग्निपथ योजना के विरोध में उतरी भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के नेता गुरनाम सिंह चढूनी के आह्वान पर सोनीपत में नेशनल हाईवे 44 पर स्थित भिगान टोल को मुफ्त करा दिया गया.
गुरनाम सिंह चढूनी ने गांव सवेरा को बताया कि आज की शांतिपूर्ण सांकेतिक प्रदर्शन की सफलता के बाद 22 जून 2022, बुधवार को रोहतक जिले के संपला गांव में सर छोटू राम के स्मृति स्थल पर एक बड़ी सभा का आयोजन किया गया है जिसमें हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान में अग्निपथ योजना के खिलाफ़ सभी संगठनों के प्रतिनिधियों को बुलाया जाएगा और इस बैठक में आन्दोलन की आगामी रणनीति पर फैसला लिया जाएगा.
गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा, “फौजी भर्ती की जो योजना केंद्र सरकार ने बनाई है, वह देश की सुरक्षा और युवाओं दोनों के साथ एक बहुत बड़ा षड़यंत्र और धोखा है. 18 साल के युवा जो इस योजना के तहत 22 साल में रिटायर हो जाएंगे उससे तो 4 साल बाद देश में बेरोज़गारों की फ़ौज खड़ी हो जाएगी. ये ‘अग्निपथ योजना’ नहीं बल्कि ‘अग्निकुंड योजना’ है जिसमें देश की सुरक्षा और युवाओं दोनों को ही झोंका जा रहा है.”
उन्होंने कहा कि इस योजना के खिलाफ हरियाणा और देश के युवा तब तक आन्दोलन करेंगे जब तक इसे कृषि कानूनों की तरह वापस नहीं कर लिया जाता.
हरियाणा के हांसी से बांस गांव के युवा संगठन के प्रधान मंजीत मोर ने गांव सवेरा से कहा, “सरकार को उन सैनिकों के बारे में सोचना चाहिए जो माइनस 30 डिग्री तापमान में सरहद की रखवाली करते हैं लेकिन उन्होंने तो देश के सैनिकों को ठेके पर रख लिया है. इस योजना को लागू कर के सरकार उन लोगों का मनोबल तोड़ रही है जिनका बचपन से आर्मी में भर्ती हो कर देश की हिफाज़त करना सपना होता है.”
तीन साल पहले (2019) लगभग इन्हीं दिनों, मीडिया के कुछ क्षेत्रों में सावधानीपूर्वक तैयार की गई एक महत्वपूर्ण खबर जारी हुई थी जिसके तथ्यों के बारे में बाद में ज़्यादा पता नहीं चला. खबर यह थी कि आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) द्वारा अगले साल (2020) से एक आर्मी स्कूल प्रारम्भ किया जा रहा है जिसमें बच्चों को सशस्त्र सेनाओं में भर्ती के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा. खबर में यह भी बताया गया था कि संघ की शिक्षण शाखा ‘विद्या भारती’ द्वारा संचालित यह ‘रज्जू भैया सैनिक विद्या मंदिर’ उत्तर प्रदेश में बुलन्दशहर ज़िले के शिकारपुर में स्थापित होगा जहां पूर्व सरसंघचालक राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) का जन्म हुआ था.
जानकारी दी गई थी कि शिकारपुर के इस प्रथम प्रयोग के बाद उसे देश के अन्य स्थानों पर दोहराया जाएगा. ’विद्या भारती’ द्वारा संचालित स्कूलों की संख्या तब बीस हज़ार बताई गई थी. देश में कई स्थानों पर सरकारी सैनिक स्कूलों के होते हुए अलग से आर्मी स्कूल प्रारम्भ करने के पीछे संघ का मंतव्य क्या हो सकता था स्पष्ट नहीं हो पाया. चूँकि मामला उत्तर प्रदेश से जुड़ा था, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने आरोप लगाया था कि आर्मी स्कूल खोलने के पीछे संघ की राजनीतिक आकांक्षाएँ हो सकतीं हैं. अखिलेश ने इस विषय पर तब और भी काफ़ी कुछ कहा था.
पिछले तीन सालों के दौरान देश में घटनाक्रम इतनी तेज़ी से बदला है कि न तो मीडिया ने संघ के शिकारपुर आर्मी स्कूल की कोई सुध ली और न ही अखिलेश ने ही बाद में कुछ भी कहना उचित समझा. अब ‘अग्निपथ’ के अंतर्गत साढ़े सत्रह से इक्कीस (बढ़ाकर तेईस) साल के बीच की उम्र के बेरोज़गार युवाओं को ‘अग्निवीरों’ के रूप में सशस्त्र सेनाओं के द्वारा प्रशिक्षित करने की योजना ने संघ के आर्मी स्कूल प्रारम्भ किए जाने के विचार को बहस के लिए पुनर्जीवित कर दिया है.
आम नागरिक कारण जानना चाहता है कि एक तरफ़ तो सरकार अरबों-खरबों के अत्याधुनिक लड़ाकू विमान और अस्त्र-शस्त्र आयात कर सशस्त्र सेनाओं को सीमा पर उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना चाहती है और दूसरी ओर आने वाले सालों में सेना की आधी संख्या अल्प-प्रशिक्षित ‘अग्निवीरों’ से भरना चाहती है. इसके पीछे उसका इरादा क्या केवल सेना में बढ़ते हुए पेंशन के आर्थिक बोझ को कम करने का है या कोई और वजह है? धर्म के आधार पर समाज को विभाजित करने के दुर्भाग्यपूर्ण दौर में योजना का उद्देश्य क्या नागरिक समाज का सैन्यकरण (या सेना का नागरिकीकरण) भी हो सकता है?
नागरिक समाज के सैन्यकरण का संदेह मूल योजना के इस प्रावधान से उपजता है कि साल-दर-साल भर्ती किए जाने वाले लगभग पचास हज़ार से एक लाख अग्निवीरों में से पचहत्तर प्रतिशत की चार साल की सैन्य-सेवा के बाद अन्य क्षेत्रों में नौकरी तलाश करने के लिए छुट्टी कर दी जाएगी. पच्चीस प्रतिशत अति योग्य ‘अग्निवीरों’ को ही सेना की सेवा में आगे जारी रखा जाएगा. चार साल सेना में बिताने वाले इन ‘अग्निवीरों’ को ही अगर बाद में निजी क्षेत्र और राज्य के पुलिस बलों में प्राथमिकता मिलने वाली है तो उन लाखों बेरोज़गार युवकों का क्या होगा जो वर्षों से सामान्य तरीक़ों से नौकरियां खुलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं? सवाल यह भी है कि वे पचहत्तर प्रतिशत जो हर पाँचवे साल सेना की सेवा से मुक्त होते रहेंगे वे अपनी उपस्थिति से देश के नागरिक और राजनीतिक वातावरण को किस तरह प्रभावित करने वाले हैं? यह चिंता अपनी जगह क़ायम है कि सालों की तैयारी और कड़ी स्पर्धाओं के ज़रिए सामान्य तरीक़ों से लम्बी अवधि के लिए सेना में प्रवेश करने वाले सैनिक इन ‘अग्निवीरों’ की उपस्थिति को अपने बीच किस रूप में स्वीकार करेंगे!
भाजपा के वरिष्ठ सांसद और (योजना के विरोध में झुलस रहे) बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने गर्व के साथ ट्वीट किया है ’नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अपने पहले सात साल में 6.98 लाख लोगों को सरकारी सेवा में बहाल किया है और अगले 18 माह में दस लाख को नियुक्त किया जाएगा.’ जिस देश में बेरोज़गारी पैंतालीस वर्षों के चरम पर हो वहाँ यह दावा किया जा रहा है कि हर साल एक लाख को नौकरी दी गई ! मोदी सरकार ने वादा तो यह किया था कि हर साल दो करोड़ लोगों को रोज़गार दिया जाएगा. देश में बेरोज़गारों की संख्या अगर दस करोड़ भी मान ली जाए तो आने वाले अठारह महीनों में प्रत्येक सौ में सिर्फ़ एक व्यक्ति को नौकरी प्राप्त होगी. इस बीच नए बेरोज़गारों की तादाद कितनी हो जाएगी कहा नहीं जा सकता.
‘अग्निपथ’ योजना राष्ट्र को समर्पित करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया था कि प्रत्येक बच्चा अपने जीवन काल में कम से कम एक बार तो सेना की वर्दी अवश्य धारण करने की आकांक्षा रखता है. बच्चा जबसे होश सम्भालता है उसके मन में यही भावना रहती है कि वह देश के काम आए. योजना को लेकर राजनाथ सिंह का दावा अगर सही है तो उन तमाम राज्यों में जहां भाजपा की ही सरकारें हैं वहीं इस महत्वाकांक्षी योजना का इतना हिंसक विरोध क्यों हो रहा है? दुनिया के तीस देशों में अगर इस तरह की योजना से युवाओं को रोज़गार मिल रहा है तो यह काम सरकार को 2014 में ही प्रारम्भ कर देना था. डेढ़ साल बाद होने वाले लोकसभा चुनावों के पहले बेरोज़गारी पर इस तरह से चिंता क्यों ज़ाहिर की जा रही है?
समझना मुश्किल है कि एक ऐसे समय जब सरकार हज़ारों समस्याओं से घिरी हुई है, राष्ट्रपति पद के चुनाव सिर पर हैं, नूपुर शर्मा द्वारा की गई विवादास्पद टिप्पणी के बाद से अल्पसंख्यक समुदाय में नाराज़गी और भय का माहौल है, सरकारी दावों के विपरीत देश की आर्थिक स्थिति ख़राब हालत में है, नोटबंदी और कृषि क़ानूनों जैसा ही एक और विवादास्पद निर्णय लेने की उसे ज़रूरत क्यों पड़ गई होगी! क्या कोई ऐसे कारण भी हो सकते हैं जिनका राष्ट्रीय हितों के मद्देनज़र खुलासा नहीं किया जा सकता? योजना के पक्ष में जिन मुल्कों के उदाहरण दिए जा रहे हैं वहाँ न तो हमारे यहाँ जैसी राजनीति और धार्मिक विभाजन है और न ही इतनी बेरोज़गारी और नागरिक असंतोष.
देश में जब धार्मिक हिंसा का माहौल निर्मित हो रहा हो, धर्माध्यक्षों द्वारा एक समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ शस्त्र धारण करने के आह्वान किए जा रहे हों, ऐसा वक्त बेरोज़गार युवाओं को सैन्य प्रशिक्षण प्रदान करने का क़तई नहीं हो सकता. नोटबंदी तो वापस नहीं ली जा सकती थी, विवादास्पद कृषि क़ानून ज़रूर सरकार को वापस लेने पड़े थे पर उसके लिए देश को लम्बे समय तक बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी थी. सरकार को चाहिए कि बजाय योजना में लगातार संशोधनों की घोषणा करने के, बिना प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाए तत्काल प्रभाव से उसे वापस ले लें हालाँकि उन्होंने ऐसा करने से साफ़ इनकार कर दिया है. योजना के पीछे मंशा अगर दूसरे मुल्कों की तरह प्रत्येक युवा नागरिक के लिए सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य करने की है तो फिर देश को स्पष्ट बता दिया जाना चाहिए.
लखनऊ:“मैं चार महीने की गर्भवती हूं. मुझे आंगनवाड़ी से हर महीने राशन मिलना चाहिए, लेकिन पिछले दो महीने में सिर्फ एक बार राशन मिला है. इतने में क्या होगा?,” लखनऊ के हबीबपुर गांव की रहने वाली रोशनी रावत (27) कहती हैं. रोशनी के दो बच्चे हैं, एक चार साल का और दूसरा एक साल का जो कि अतिकुपोषित है.
रोशनी को आंगनवाड़ी से हर महीने 1.5 किलो गेहूं दलिया, एक किलो चावल, एक किलो चना दाल और 500 मिलीलीटर खाद्य तेल मिलना चाहिए. हालांकि, रोशनी को अप्रैल के बाद जून में यह राशन मिल पाया, यानी दो महीने में एक बार. इसी तरह उनके एक साल के अतिकुपोषित बच्चे को भी दो महीने में एक बार राशन मिला है.
बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग के मानक के अनुसार अतिकुपोषित बच्चे को हर दिन 800 ग्राम कैलोरी और 20 से 25 ग्राम प्रोटीन मिलना चाहिए, लेकिन जब आंगनवाड़ी से अनुपूरक पुष्टाहार ही दो महीने में एक बार मिलेगा तो मानक कैसे पूरा होगा.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, भारत में 6 से 23 महीने के 89% बच्चों को पर्याप्त आहार नहीं मिलता. इस मामले में सबसे खराब स्थिति उत्तर प्रदेश (यूपी) और गुजरात की है. यूपी और गुजरात में सिर्फ 5.9% बच्चों को पर्याप्त आहार मिलता है.
उत्तर प्रदेश में कुपोषण दूर करने के उद्देश्य से आंगनवाड़ी के तहत सूखा राशन दिया जाता है, जिसे अनुपूरक पुष्टाहार कहते हैं. यह पुष्टाहार 6 महीने से 6 साल तक के बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं, कुपोषित बच्चों और 11 से 14 साल की किशोरियों को दिया जाता है. हालांकि प्रदेश में यह योजना अनियमितताओं की शिकार है. इंडियास्पेंड ने अलग-अलग जिलों की आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों से बात की तो जानकारी हुई कि लाभार्थियों की संख्या के मुकाबले राशन बहुत कम मात्रा में आता है और ऐसे में बहुत से लोग इससे वंचित रह जाते हैं.
डेटा इंट्री में लापरवाही का खामियाजा भुगत रहे लाभार्थी
यूपी में 1.89 लाख से ज्यादा आंगनवाड़ी केंद्र हैं. इंडियास्पेंड के पास उपलब्ध बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई 2021 में इन आंगनवाड़ी केंद्रों से करीब 1.59 करोड़ लाभार्थियों को सूखा राशन दिया जाता था. यह आंकड़ा हर कुछ महीने में कम-ज्यादा होता है. ऐसे में हर तीन महीने में नए लाभार्थी जोड़ने और अपात्रों को हटाने का काम किया जाता है और यहीं से दिक्कत शुरू होती है.
इस दिक्कत के बारे में यूपी के बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की निदेशक डॉ. सारिका मोहन इंडियास्पेंड से कहती हैं, “राशन की कमी नहीं है. हर तीन माह पर हम अपनी जरूरत का आंकलन करते हैं और सप्लायर को लाभार्थियों का आंकड़ा भेजते हैं. यह देखने में आता है कि कई जिला कार्यक्रम अधिकारी डेटा इंट्री पर ध्यान नहीं देते, इसलिए दिक्क्त आती है. हमने ऐसे जिलों को लिखित में कहा है कि एमपीआर (मासिक प्रगति रिपोर्ट) को अपडेट रखना है, क्योंकि राशन उसी हिसाब से मिलेगा. बार बार कहने के बावजूद भी कुछ जिले ऐसे हैं जो पूरी डेटा इंट्री नहीं करते, वहीं दिक्कत होती है.”
आंगनवाड़ी केंद्र से बंटने वाला अनुपूरक पुष्टाहार. फोटो: रणविजय सिंह
डॉ. सारिका मोहन की बात से जाहिर है कि अनुपूरक पुष्टाहार (सूखा राशन) की सप्लाई और लाभार्थियों की संख्या में अंतर होता है, इसलिए बहुत से लाभार्थी इससे छूट जाते हैं. बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की ओर से अलग-अलग वर्ग के हिसाब से राशन का वितरण किया जाता है, जिसका विवरण निम्नलिखित है.
6 माह से 6 साल के अतिकुपोषित बच्चे: 1.5 किलो गेहूं दलिया, 1.5 किलो चावल, 2 किलो चना दाल, 500 मिलीलीटर खाद्य तेल
6 माह से 3 साल के बच्चे: 1 किलो गेहूं दलिया, 1 किलो चावल, 1 किलो चना दाल, 500 मिलीलीटर खाद्य तेल
3 से 6 साल के बच्चे: 500 ग्राम गेहूं दलिया, 500 ग्राम चावल, 500 ग्राम चना दाल
गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं: 1.5 किलो गेहूं दलिया, 1 किलो चावल, 1 किलो चना दाल, 500 मिलीलीटर खाद्य तेल
11 से 14 साल की किशोरियां: 1.5 किलो गेहूं दलिया, 1 किलो चावल, 1 किलो चना दाल, 500 मिलीलीटर खाद्य तेल
अनुपूरक पुष्टाहार का यह मानक बच्चों और महिलाओं में प्रतिदिन की कैलोरी और प्रोटीन की जरूरतों को देखते हुए तय किया गया है. बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की ओर से कैलोरी और प्रोटीन का प्रतिदिन का तय मानक निम्नलिखित है.
6 माह से 6 साल तक के अतिकुपोषित बच्चे:800 ग्राम कैलोरी और 20-25 ग्राम प्रोटीन
6 माह से 3 साल के बच्चे:500 ग्राम कैलोरी और 12-15 ग्राम प्रोटीन
3 से 6 साल के बच्चे: 200 ग्राम कैलोरी और 6 ग्राम प्रोटीन
गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं: 600 ग्राम कैलोरी और 18-25 ग्राम प्रोटीन
11 से 14 साल की किशोरियां: 600 ग्राम कैलोरी और 18-25 ग्राम प्रोटीन
पर्याप्त पुष्टाहार की कमी से जूझते लाभार्थी
यूपी के आंगनवाड़ी केंद्रों पर इन्हीं मानक के अनुसार राशन दिया जाता है. हालांकि इंडियास्पेंडको व्यापक तौर पर यह समस्या देखने को मिली कि आंगनवाड़ी केंद्र पर जितने लाभार्थी हैं, उससे कम राशन पहुंच रहा है. इसका सीधा असर लाभार्थियों पर देखने को मिलता है.
लखनऊ के हबीबपुर गांव की रहने वाली रोमा यादव (23) को आठ महीने पहले बच्ची हुई, जिसका नाम सृष्टि है. जन्म के वक्त सृष्टी का वजन सिर्फ 1.5 किलो था, जो कि जन्म के वक्त कम वजन (लो बर्थ वेट) माना जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जन्म के वक्त बच्चे का वजन 2.5 किलो से कम होने पर उसे लो बर्थ वेट के तौर पर देखा जाता है. गांव की आंगनवाड़ी कार्यकत्री ने सृष्टी का कम वजन देखते हुए उसे अतिकुपोषित की श्रेणी में रखा. आंगनवाड़ी के अनुपूरक पुष्टाहार के मानक के अनुसार सृष्टी को हर महीने 1.5 किलो गेहूं दलिया, 1.5 किलो चावल, 2 किलो चना दाल, 500 ग्राम खाद्य तेल मिलना चाहिए. इंडियास्पेंड की टीम जब सृष्टी के घर पहुंची तो उसकी मां रोमा ने बताया, “पिछले दो महीने में एक बार राशन मिला है. मई और जून का मिलाकर एक बार. आंगनवाड़ी दीदी कहती हैं कि ऊपर से राशन कम आ रहा है, पता नहीं क्या सच है.
लखनऊ के हबीबपुर गांव की रोमा यादव अपनी बच्ची के साथ. फोटो: रणविजय सिंह
रोमा की बात से साफ है कि सृष्टी को तय मानक के अनुसार जितना पुष्टाहार मिलना चाहिए वो नहीं मिल रहा, यानी सृष्टी को पर्याप्त आहार नहीं मिल पा रहा. सृष्टी की तरह भारत में 6 से 23 महीने के 89% बच्चों को पर्याप्त आहार नहीं मिलता.
बच्चों को पर्याप्त आहार न मिलना कुपोषण के स्तर को बढ़ाने का एक कारक हो सकता है. यूपी में पहले ही कुपोषण का स्तर बहुत ज्यादा है. पांचवे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक, यूपी में पांच साल से कम उम्र के 39.7% बच्चे ठिगनापन, 17.3% बच्चे दुबलापन और 32.1% बच्चे अल्पवजन के हैं. ठिगनेपन के मामले में यूपी देश के उन 10 राज्यों में शामिल है जहां सबसे खराब स्थिति है. इस मामले में यूपी सिर्फ मेघालय और बिहार से बेहतर स्थिति में है.
कार्यकत्रियों के लिए चुनौती भरा राशन बांटना
आंगनवाड़ी केंद्रों पर राशन कम आने से आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. कम राशन और ज्यादा लाभार्थियों के बीच संतुलन बैठाने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकत्रियां अलग-अलग तरीके आजमा रही हैं. इसके अलावा गांव वालों की नाराजगी भी झेल रही हैं.
“गांव में लोग सीधा आरोप लगाते हैं कि उनका राशन हम खा रहे हैं, लेकिन यह सच नहीं है. हमें जितना राशन मिलता है, हम बांट रहे हैं,” लखनऊ के हबीबपुर गांव की आंगनवाड़ी कार्यकत्री उर्मिला मौर्य कहती हैं. “मुझे मई महीने में 66 लोगों का राशन मिला, जबकि मेरे यहां 6 माह से 3 साल के 74 बच्चे, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली 22 महिलाएं और अतिकुपोषित 4 बच्चे हैं. कुल 100 लाभार्थी हैं. अब इसमें से किसे राशन दें और किसे न दें,” उर्मिला बताती हैं.
यूपी में कुपोषण दूर करने के उद्देश्य से आंगनवाड़ी के तहत सूखा राशन दिया जाता है।
आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों का कहना है कि लाभार्थियों की संख्या के मुकाबले राशन बहुत कम आता है।
कम राशन और ज्यादा लाभार्थियों के बीच संतुलन बैठाने को कार्यकत्रियां अलग-अलग तरीके आजमा रही हैं। pic.twitter.com/TXWo4707dy
आंगनवाड़ी के सभी लाभार्थियों को एक साथ राशन मिल जाये इसलिए उर्मिला ने मई और जून में मिले राशन को एक साथ वितरित किया. इससे उर्मिला ने गांव वालों से विवाद की संभावना को खत्म किया लेकिन लाभार्थियों को दो महीने में एक बार राशन मिल पाया है. लाभार्थियों के पूछने पर अब उर्मिला ऊपर से कम राशन आने की दुहाई दे रही हैं.
उर्मिला की तरह गोरखपुर जिले के छितौनी गांव की आंगनवाड़ी कार्यकत्री गीता पांडेय भी जैसे तैसे पुष्टाहार वितरण को संभाल रही हैं. गीता पांडेय ने बताया कि उनके आंगनवाड़ी केंद्र पर 12 गर्भवती हैं जिसमें से सिर्फ 6 के लिए राशन आ रहा है. इसी तरह 6 माह से 3 साल के 60 बच्चे हैं, लेकिन 30 बच्चों का राशन आ रहा है. 3 साल से 6 साल के 48 बच्चे हैं, लेकिन 16 बच्चों का ही राशन आ रहा है.
गीता कहती हैं, “हम लोगों को गांव में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. हमें यह तय करना पड़ रहा है कि अबकी बार अगर किसी गर्भवती को राशन दे रहे हैं तो अगली बार किसी दूसरे को दिया जाए. इसके साथ सभी लोगों से यह बताना पड़ रहा है कि सरकार से कम राशन आया है.”
धीमी गति से चल रहा पोषाहार यूनिट बनाने का काम
यूपी में आंगनवाड़ी के तहत सूखा राशन बांटने की योजना ज्यादा पुरानी नहीं है. दरअसल, पहले आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों को पुष्टाहार के रूप में अनाजों का मिश्रण देते थे, जिसे ‘पंजीरी’ कहा जाता है. इस पुष्टाहार के उत्पादन और वितरण में अनियमितताओं की शिकायतों के चलते प्रदेश के बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग ने पंजीरी की आपूर्ति करने वाली कंपनियों का करीब 29 साल का एकाधिकार खत्म करते हुए सितंबर 2020 में यह काम स्वयं सहायता समूह की महिलाओं से कराने का फैसला लिया.
नई व्यवस्था के तहत जिलों में पोषाहार यूनिट लगने थे, लेकिन इसमें करीब 2 साल का लंबा वक्त लगने वाला था. इसलिए विभाग ने इस दौरान आंगनवाड़ी केंद्रों के लाभार्थियों को सूखा राशन देने का फैसला किया.
बात करें पोषाहार यूनिट की तो इसकी प्रगति भी बहुत अच्छी नहीं है. योजना के तहत यूपी के 43 जिलों में 204 यूनिट लगनी हैं, जिसकी जिम्मेदारी ‘यूपी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन’ को दी गई है. इंडियास्पेंडने सितंबर 2021 में रिपोर्ट किया कि योजना शुरू होने के एक साल बीतने के बाद इन 204 यूनिट में से सिर्फ दो यूनिट लग पाई हैं. यह दो यूनिट भी संयुक्त राष्ट्र के यूएन वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने अपने खर्च पर लगवाई हैं.
पोषाहार यूनिट को लेकर डॉ. सारिका मोहन ने उस वक़्त (सितंबर 2021 में) बताया था कि उनको मिली जानकारी के अनुसार सभी 43 जिलों में पोषाहार उत्पादन तीन से चार महीने में शुरू हो जाना चाहिए. लेकिन इस बार इस विषय पर बात करने पर उन्होंने कहा, “यूपी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने जो हमें रिपोर्ट दी है उसके हिसाब से जून के आखिर तक 34 पोषाहार यूनिट शुरू हो जाएगी.” वहीं, राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन की ओर से बताया गया कि फिलहाल फतेहपुर और उन्नाव जिले में दो यूनिट लग पाई हैं. यह वही यूनिट हैं जिन्हें यूएन वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने अपने खर्च पर लगवाया है. बाकी जगह यूनिट लगाने का काम चल रहा है.
कोरोना महामारी का देश में रोजगार और अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है. कोरोना की पहली लहर की वजह से 25 मार्च, 2020 को पूरे देश में लॉकडाउन किया गया. जिसकी वजह से लगभग सभी उद्योग और व्यापार अचानक ठप हो गए. कुछ ही हफ्तों में देश भर में अनुमानित 10 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरी खो दी. साथ ही बड़ी संख्या में मजदूरों को गांव लौटना पड़ा. इस दौरान बड़ी संख्या में महिला कर्मचारियों का भी काम छुट गया.
हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था में कामकाजी महिलाओं की संख्या में भारी गिरावट देखने को मिली है. विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के कार्यबल में कामकाजी महिलाओं का अनुपात 2010 में जहां 26% था, वहीं 2020 में यह घट कर 19% से भी कम हो गया.
यही नहीं महामारी ने हालातों को और भी ज्यादा बिगाड़ दिया. देश में पहले से ही गिरती अर्थव्यवस्था के ग्राफ को महामारी ने और भी ज्यादा गिरा दिया. ब्लूमबर्ग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार साल 2022 में अर्थव्यवस्था में कामकाजी महिलाओं की संख्या 19% से घट कर मात्र 9% ही रह गई है. रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में, महामारी के दौरान पुरुषों की तुलना में महिलाओं की नौकरी जाने की संभावना अधिक थी, और उनकी रिकवरी अभी भी धीमी रही है.
यह भारत की अर्थव्यवस्था, युवा महिलाएं और लड़कियों के लिए के लिए विनाशकारी खबर है, जिसे बिलकुल भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए. अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, भारत में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के वर्कफोर्स में लौटने की संभावना कम है.
ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स विश्लेषण के अनुसार, देश में पुरुषों और महिलाओं के बीच रोजगार का अंतर 58 फीसदी है, जिसे अगर जल्द ही खत्म किया जाता है तो 2050 तक भारत की अर्थव्यवस्था लगभग एक-तिहाई तक बढ़ सकती है.
दूसरी ओर, यदि कुछ नहीं किया जाता तो वैश्विक बाजार के लिए भारत का प्रतिस्पर्धी उत्पादक बनने का लक्ष्य और सपना पटरी से उतरने का जोखिम होगा.
रिपोर्ट के मुताबिक महिलाएं भारत की कुल जनसंख्या का 48% हैं लेकिन देश के सकल घरेलू उत्पाद जिसे अंग्रेजी में जीडीपी कहते हैं, में उनका योगदान केवल 17% ही है. वहीं दुसरी ओर दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश चीन की जीडीपी में महिलाओं का योगदान 40% तक है.
रिपोर्ट के अनुसार लैंगिक असमानता को खत्म करके कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ाने से 2050 तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 20 ट्रिलियन (लगभग 1,552 लाख करोड़ रुपये) जोड़ने में मदद मिलेगी.
रिपोर्ट के अनुसार अर्थशास्त्रियों का मानना है कि महामारी से पहले ही भारत की आर्थिक वृद्धि धीमी हो गई थी. कार्यबल में कामकाजी महिलाओं की गिरावट चिंताजनक है. दूसरी ओर, सरकार ने कामकाजी महिलाओं के लिए काम करने की स्थिति में सुधार के लिए बहुत ही कम प्रयास किया है. विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं.
भारतीय जॉब मार्किट में महिलाओं के साथ साथ पुरुषों के भी हालात कुछ खास ठीक नहीं है. स्थिति इतनी खराब हो गई है कि भारत में रोज़गार की उम्र वाले लोगों में से आधे लोगों ने अब किसी रोज़गार की तलाश ही छोड़ दी है और घर बैठने का निश्चय किया है. और इन लोगों की संख्या में लगातार इज़ाफा भी हो रहा है. अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाली संस्था सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमईआई) के जारी नए आंकड़ों के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था में भाग लेने वाले कामगारों का हिस्सा 2016 के मुकाबले 15% और अधिक कम हो गया है.
दुनिया भर में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन की दर करीब 60 फीसदी है, यानी काम करने वाले उम्र के सभी लोगों में 60 फीसदी या तो काम कर रहे हैं या फिर काम ढूंढ़ रहे हैं. जबकि भारत में पिछले दस सालों में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन की दर गिरते-गिरते दिसंबर, 2021 में 40 फीसदी पर जा पहुंची है. जबकि पांच साल पहले यह 47 फीसदी थी.
दिल्ली-एनसीआर में दक्षिणी दिल्ली की हौज़ ख़ास पुलिस ने बुधवार को बेघर और जरूरतमंद लोगों को किडनी बेचने का लालच देकर अवैध रूप से ट्रांसप्लांट करने वाले एक गिरोह का भंडाफोड़ किया.
आरोपियों की पहचान डॉ सौरभ मित्तल, सर्वजीत, शैलेश पटेल, विकास, मोहम्मद लतीफ, रंजीत गुप्ता, डॉ सोनू रोहिल्ला, कुलदीप राय विश्वकर्मा, ओम प्रकाश शर्मा और मनोज तिवारी के रूप में हुई है. इस गिरोह का एक अन्य आरोपी विपिन फरार है.
हौज़ ख़ास पुलिस स्टेशन की थानाप्रभारी शिवानी सिंह ने गांव सवेरा से बात करते हुए बताया कि इस गिरोह के सदस्य बाहर सड़कों पर सो रहे गरीब, बेघर और कमजोर वर्ग के लोगों की तलाश में अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंडों और धार्मिक स्थलों पर जाते थे और फिर उन्हें अपनी किडनी बेचने का लालच देते थे.
कथित तौर पर यह मामला तब सामने आया जब कुछ आरोपियों को दिल्ली के एक अस्पताल के बाहर बेघर लोगों को पैसे की पेशकश करते हुए देखा गया. इसके बाद अस्पताल ने हौज खास पुलिस को सूचना दी.
थानाप्रभारी शिवानी सिंह ने कहा कि आरोपी डॉक्टर (सौरभ मित्तल) ने सोनीपत के गोहाना में एक अस्पताल स्थापित किया था, जहां यह गिरोह पीड़ितों की किडनी निकालने का काम किया करते थे.
इस गिरोह में मुख्य आरोपी की पहचान ऑपरेशन थिएटर टेकनीशियन कुलदीप राय विश्वकर्मा के रूप में हुई है. वही लोगों को इस अवैध काम के लिए प्रेरित करता था. वह इस रैकेट में शामिल लोगों को उनके रोल के हिसाब से पैसे देता था. बीते 6-7 महीने में यह गैंग गोहाना में 12 से 14 अवैध तरीके से ट्रांसप्लांट कर चुका था. ज्यादातर इस गैंग के निशाने पर 20 से 30 साल की उम्र के नौजवान युवक होते थे, जिन्हें रुपयों की जरूरत होती थी.
अन्य आरोपियों में सर्वजीत (37) और शैलेश पटेल (23) शामिल हैं, जो पीड़ितों को मुख्य आरोपी के पास ले जाते थे. 24 वर्षीय मो. लतीफ हौजखास स्थित इमेजिंग सेंटर में फील्ड बॉय के तौर पर काम करता था, जो पीड़ितों के प्री टेस्ट में मदद करता था।. बिकास (24) जो कि सोनीपत गोहाना में पीड़ितों को रहने की जगह देता था.
43 वर्षीय डॉक्टर रंजीत गोहाना में बनाए गए सेटअप का मालिक है. दिल्ली का रहने वाला 37 वर्षीय डॉ सोनू रोहिल्ला, पीड़ितों की किडनी निकालने और अपने अन्य ग्राहकों के शरीर में उन्हें ट्रांसप्लांट करने का काम करता था. इस के अलावा पेशे से एनेस्थेसियोलॉजिस्ट डॉ सौरभ मित्तल, ऑपरेशन थिएटर टेकनीशियन कुलदीप राय, ओम प्रकाश शर्मा और मनोज तिवारी इस गिरोह में मौजूद अन्य आरोपी हैं.
मामले में पकड़े गए सभी आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 419, 420, 468, 471, 120बी, 34 और 18,19, 20 मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है.
इस मामले में बात करते हुए दक्षिणी दिल्ली डीसीपी बेनिता मेरी जेकर ने कहा कि यह गिरोह बेघर लोगों को अपना निशाना बनाते थे और उन्हें ₹30,000 से ₹40,000 के बीच भुगतान करते थे. गिरोह में शामिल सभी 10 आरोपियों ने अब तक 20 से अधिक अवैध ट्रांसप्लांट किए हैं. किडनी निकलने और ट्रांसप्लांट का काम उन्होंने सोनीपत के गोहाना स्थित श्रीरामचंद्र अस्पताल में किया.
पुलिस को अब तक की जांच में 5 पीड़ित मिले हैं, जो गुजरात, पश्चिम बंगाल, केरल, गुवाहाटी और दिल्ली से ताल्लुख रखते हैं.