हरियाणा पंचायत चुनाव में अति पिछड़ा वर्ग(बीसी-A) आरक्षण का पूरा मामला क्या है?

 

हरियाणा सरकार द्वारा पंचायती राज एक्ट में संशोधन कर 7 दिसम्बर 2020 को नोटिफिकेशन जारी किया गया. इस नोटिफिकेशन के तहत ग्राम पंचायत, ब्लॉक समिति, और जिला परिषद में अति पिछड़ा वर्ग(बीसी-A) को 8 % आरक्षण देना सुनिश्चित किया गया और 29 नवम्बर 2020 को कोरोना काल में हिसार के गवर्नमेंट कॉलेज के मैदान में एक वर्चुअल रैली के माध्यम से हरियाणा के डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा की अध्यक्षता में इस 8 % आरक्षण की घोषणा की गई. भाजपा और जजपा सरकार ने इस कानून के नाम पर खूब वाहवाही लूटी खुद को पिछड़ों के सच्चे हितैषी के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया. अति पिछड़ों में भी एक उम्मीद जगी की अब पंचायती राज में उनकी भी भागीदारी होगी. हरियाणा में कुल 6443 गांव हैं और इस नोटिफिकेशन की वजह से 500 के करीब सरपंच अति पिछड़ा वर्ग(बीसी-A) से बनते भी.

लेकिन इसके कुछ समय बाद इस कानून को हाई कोर्ट में चुनौती दे दी गई और कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी. अब हरियाणा के पंचायत चुनाव अति पिछड़ों को आरक्षण दिए बिना करवाए जाएंगे.

कोर्ट में किस पहलू पर चुनौती दी गई थी?

रेवाड़ी से याचिकाकर्ता राम किशन द्वारा इस संशोधन के खिलाफ याचिका दायर की गई. चीफ जस्टिस ऑफ हाई कोर्ट श्री रवि शंकर झा और जस्टिस अरुण पल्ली की बेंच पर इस केस की सुनवाई चल रही है. याचिकाकर्ता के वकील द्वारा इस संशोधित अधिनियम को संविधान का उल्लंघन बताया.

उन्होंने सवाल किया कि बिना पिछड़े वर्ग की जनगणना के किस आधार पर पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का प्रावधान किया गया?

पिछड़ा वर्ग आयोग के पास पिछड़ा वर्ग के आंकड़े ही नहीं हैं. 2011 की जनगणना में शेड्यूल कास्ट और सामान्य श्रेणी के आंकड़े तो लिए गए लेकिन पिछड़े वर्ग के आंकड़े ही नहीं लिए गए. तो ऐसा कौनसा पैमाना अपनाया गया जिसके आधार पर पिछड़ा वर्ग को 8 % आरक्षण का प्रावधान किया गया. इसी को केस का आधार बना कर हरियाणा सरकार के इस नोटिफिकेशन को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी.

कोर्ट ने क्या फैसला दिया है?

हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस श्री रवि शंकर झा और अरुण पल्ली की बेंच ने याचिकाकर्ता के आधार को सही माना. 10 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने सुरेश महाजन बनाम मध्यप्रदेश सरकार वाले केस में फैसला दिया था. जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने पिछड़ा वर्ग को मध्य प्रदेश में नगर पालिका के चुनावों में आरक्षण के प्रावधान पर रोक लगाते हुए कहा था कि कोई भी राज्य बिना ट्रिपल टेस्ट के राजनीति में आरक्षण का प्रावधान नही कर सकता है. जबकि नौकरियों और एडमिशन प्रक्रिया में मंडल कमीशन के तहत आरक्षण का प्रावधान निर्धारित है.

इसी फैसले को आधार बना कर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में अंतरिम राहत देते हुए हरियाणा सरकार को निर्देश दिया गया के मौजूदा पंचायत चुनाव बिना आरक्षण के कराया जाए.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई के अपने फैसले को बदलते हुए 19 मई को मध्यप्रदेश के फैसले को सही मानते हुए आरक्षण के तहत चुनाव करवाने की सहमति दे दी है. लेकिन अभी तक हरियाणा सरकार की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के इस नए फैसले को आधार बनाते हुए उच्च न्यायालय में कोई पुनर्विचार याचिका नहीं डाली गई है.

ट्रिपल टेस्ट क्या है?

किसी भी राज्य में किसी भी आरक्षण की सीमा को निर्धारण करने में ट्रिपल टेस्ट एक जरूरी एवं लंबी प्रक्रिया है. इस टेस्ट में तीन स्तर होते हैं:

1.   राज्य में पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करना.

2.   आयोग द्वारा सर्वे करवाकर संबंधित वर्ग के आंकड़े इकट्ठे करना.

3.   इन आंकड़ों के आधार पर सिफ़ारिश करना. जैसे कि कितना आरक्षण देना है, वह क्यों जरूरी है, इस से समाज में क्या प्रभाव पड़ेगा आदि.

किसी भी राज्य के भीतर अगर पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान करना है या कोई योजना लागू करनी है तो राज्यों के पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश या अनुशंसा के बिना लागू नहीं किया जा सकता. परन्तु हरियाणा में तो 2019 में पिछड़ा वर्ग आयोग ही भंग कर दिया गया. उसके बाद से आयोग का गठन भी नहीं किया गया. ट्रिपल टेस्ट का पहला कदम ही आयोग का गठन है. जब आयोग ही नहीं है तो आंकड़ें कहाँ से आएंगे?

ट्रिपल टेस्ट के आखरी जटिल प्रक्रिया के अंतर्गत आयोग को ये ध्यान रखना होता है के अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में आरक्षित कुल सीटों का 50 % से अधिक नही होगा.

 इसमें सरकार की क्या भूमिका है?

सरकार की ओर से महाधिवक्ता बी आर महाजन एवं दीपक बाल्यान इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखने में नाकामयाब रहे क्योंकि हरियाणा सरकार के पास 2011 की जनगणना के अंतर्गत पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या के आंकड़े ही नही हैं.

लंबे समय से पिछड़ा वर्ग के विभिन संगठनों की मांग रही है कि पिछड़ा वर्ग की जन गणना की जाए. ताकि आवंटित बजट का योजनबद्ध तरीके से इस्तेमाल किया जा सके पिछड़े वर्ग की गिनती हो सके. परन्तु ऐसा करने की बजाय सरकार ने 2019 में पिछड़ा वर्ग आयोग को ही भंग कर दिया और आज तक पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन नही किया गया.

ओबीसी अधिकार मंच से जुड़े डॉ अजय प्रजापती का कहना है, “बिना आंकड़ों के कैसे इस केस में हरियाणा सरकार उच्च न्यायालय में अपना पक्ष मजबूती से रख सकती है? इससे साफ साफ नजर आता है कि पिछड़ा वर्ग को आरक्षण के नाम पर गुमराह करने के सिवाए कुछ नही हो रहा.”

इस से पहले क्रीमीलेयर के मामले में भी ऐसा हो चुका है. बिना आंकड़ों के सरकार ने क्रीमीलेयर लागू कर दिया और फिर कोर्ट में फटकार भी खानी पड़ी और अपने फैसले को भी वापस लेना पड़ा.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल विधानसभा में एक भाषण में कहते हैं कि फ़ैमिली आईडी के जरिये सरकार ने पिछड़े वर्ग से संबंधित डाटा इकट्ठा किया है. इसमें ऐसे परिवारों की संख्या से लेकर वार्षिक आय तक का ब्यौरा हमारे पोर्टल पर उपलब्ध है. परिवार पहचान पत्र सरल पोर्टल पर बनाये गए जो कि मुख्यमंत्री जी की निगरानी में कार्य करता है. अब ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि सारा डाटा अगर सरकार के पास है तो सरकार ने यह आंकड़े कोर्ट में पेश क्यों नहीं किए? जब परिवार पहचान पत्र में शैक्षणिक योग्यता, और परिवार की आय का ब्यौरा मौजूद है तो सरकार अपने पक्ष में इन आंकड़ो को कोर्ट में रख सकती थी परन्तु नही रखे गए.

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की एक टीम 2019 में चण्डीगढ़ आई भी थी. हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़ के पिछड़ा वर्ग के मुद्दों को लेकर आयोग ने सिफारिश भी की थी. आयोग ने 2021 की जनगणना में ओबीसी का कॉलम जोड़ने की भी बात की थी क्योंकि पिछड़ा वर्ग की योजनाओं को लागू करने में हर जगह दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. परन्तु हरियाणा  सरकार द्वारा इस पर अभी तक कोई भी कदम नही उठाया गया है.

पिछड़ा समाज के संगठन भी इस मुद्दे पर सक्रिय हो चुके हैं. इन संगठनों द्वारा इस फैंसले का कड़ा विरोध किया जा रहा है. 22 मई को हरियाणा के फतेहाबाद में दर्जनों पिछड़ा वर्ग के संगठनों के हजारों सदस्य इकट्ठे हुए और पंचायत चुनाव में आरक्षण के साथ-साथ बैकलॉग और ओबीसी जनगणना जैसे मुद्दों पर भी आंदोलन करने का फैसला लिया. इन संगठनों द्वारा अगला कार्यक्रम सोनीपत में किया जाएगा.