किसान आन्दोलन से दूरी क्यूं बनाए हुए है अहीरवाल

 

26 नंवबर 2020 को जब किसान दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे तो उनकी योजना थी कि दिल्ली को चारों तरफ़ से घेरा जाए ताकि सरकार पर ज़बरदस्त दबाव बनाया जा सके.

सिंघु, टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर घेरने में तो किसान सफ़ल रहें. मगर दिल्ली का गुडगाँव की तरफ़ सरहौल गाँव के नज़दीक लगने वाला बॉर्डर किसान नहीं घेर पाए. ये बॉर्डर मुख्यतः दिल्ली को जयपुर से जोड़ने वाले नेशनल हाईवे नम्बर 8 पर पड़ता है. किसानों द्वारा दिल्ली – गुडगाँव बॉर्डर न घेर पाने के पीछे मुख्य कारण था अहीरवाल.

दक्षिणी हरियाणा के तीन ज़िलों गुडगाँव, रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ को मिलाकर बने क्षेत्र को अहीरवाल बोला जाता है. हालांकि अहीरवाल में कुछ क्षेत्र राजस्थान के अलवर ज़िले का भी आता है जिसमें बहरोड़, तिजारा, कोटकासिम आदि मुख्य रूप से शामिल है.

अहीरवाल बोले जाने के पीछे कारण है इस इलाक़े में अहीर (यादव) जाति के लोगों की सबसे अधिक आबादी होना. हरियाणा की राजनीति में जाति के आधार पर क्षेत्रों का नाम रखे जाने की परंपरा काफ़ी प्रचलित है जैसे जाटलैंड, अहिरवाल आदि.

हरियाणा के कुल क्षेत्रफ़ल का लगभग 10.74 प्रतिशत भू भाग अहीरवाल में पड़ता है. वहीँ अगर जनसंख्या की बात करें तो समूचे प्रदेश की लगभग 11.70 प्रतिशत आबादी अहीरवाल में निवास करती है.

अहीरवाल की राजनैतिक ताक़त

अहीरवाल के तीनों ज़िलों को मिलाकर वहां 11 विधान सभा सीटें पड़ती हैं. गुडगाँव में 4, रेवाड़ी में 3 और महेंद्रगढ़ में 4 सीटें आती है.

इसके अलावा अगर लोकसभा सीटों की बात करें तो अहीरवाल में मुख्य रूप से 2 सीटें आती है. गुडगाँव और भिवानी – महेंद्रगढ़ सीट. इनमें से गुडगाँव सीट पर अहीरवाल के लोगों का सीधा हस्तक्षेप रहता है वहीँ भिवानी- महेंद्रगढ़ सीट पर आंशिक रूप से उनका प्रभाव रहता है.

पहले महेंद्रगढ़ अपने आप में अलग और अहीरवाल की इकलौती लोक सभा सीट हुआ करती थी. साल 2008 में परीसीमन के बाद महेंद्रगढ़ और भिवानी को मिलाकर एक लोक सभा सीट बना दी गई वहीँ गुडगाँव को अलग लोक सभा सीट बना दिया गया.

इन सब से इतर अहीरवाल की सामाजिक और राजनीतिक पहचान यहाँ के रेवाड़ी राजघराने से भी रही है. रेवाड़ी के राजा राव तुलाराम ने 1857 की क्रान्ति में अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ अहीरवाल क्षेत्र के नसीबपुर गाँव में लड़ाई लड़ी थी. हालांकि वो इस युद्ध को जीत नहीं पाए और 23 सितम्बर 1863 को उनकी मृत्यु हो गई. हर वर्ष हरियाणा सरकार 23 सितम्बर को राव तुलाराम के शहीदी दिवस के रूप में मनाती है.

आज़ादी के बाद रेवाड़ी राजघराना चुनावी राजनीति में आ गया और यहाँ उसे रामपुर हाउस के नाम से जाना जाने लगा. रामपुर रेवाड़ी में राव तुलाराम का पैतृक गाँव है. राव तुलाराम के पहले राजनीतिक वंशज हुए राव बिरेंदर सिंह. राव बिरेंदर सिंह हरियाणा – पंजाब के बंटवारे के बाद हरियाणा के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने. हालांकि वो ज्यादा दिन टिक नहीं पाए और केवल 241 दिन बाद ही उनकी सरकार गिर गई.

राव बिरेंदर सिंह दोबारा कभी हरियाणा के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए और तब से लेकर आजतक अहीरवाल के राजनीतिक गलियारों में इस इलाक़े से प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सपना कई नेताओं के दिलों में बरकरार है. इलाक़े के कुछ लोग भी ये चाह रखते हैं.

राव बिरेंदर सिंह के बाद रामपुर हाउस की कमान आई उनके सबसे बड़े बेटे राव इंद्रजीत सिंह के पास जो कि वर्तमान में गुडगाँव से भाजपा की टिकट पर सांसद है. प्रदेश में सरकार किसी की भी रही हो मगर अहीरवाल में हमेशा रामपुर हाउस का ही दबदबा रहा है. इस समय राव इंद्रजीत सिंह अहीरवाल के सबसे बड़े नेता है और पिछले 40 सालों से लगातार राजनीति में बने हुए हैं.

किसान आन्दोलन में अहीरवाल के शामिल न होने के प्रमुख कारण

दिल्ली से सटे हरियाणा के सभी इलाक़ों में किसान आन्दोलन की मज़बूत पकड़ है. चाहे आप दिल्ली से सटे बहादुरगढ़ – रोहतक बॉर्डर को देख लीजिए, सोनीपत- कुंडली बॉर्डर को देख लीजिए या फिर गाज़ीपुर बॉर्डर को देख लीजिए. मगर इन सब में एक अपवाद है दिल्ली- गुडगाँव बॉर्डर जहाँ आपको किसान आन्दोलन का जरा सा भी असर देखने को नहीं मिलेगा. ऐसा क्यों है कि किसान आन्दोलन को लेकर अहीरवाल के लोगों में किसी प्रकार का कोई उत्साह नहीं है, इसको विस्तार से समझतें हैं.

अहीरवाल में बाकी हरियाणा के किसानों के मुक़ाबले कम ज़मीन होना

रेवाड़ी ज़िले के 55 वर्षीय किसान रविंदर 1.5 एकड़ भूमि पर खेती करते हैं. उनसे जब हमने किसान आन्दोलन के बारे में पुछा तो उन्होंने कहा, “ देखो जी हमारी साइड तो लोगों के पास ज़मीन ही बहुत कम बची है. ज्यादातर 1-2 कीले वाले किसान हैं. हमारी खेती से कोई मोटी कमाई तो होती नहीं इसलिए हम इस लफड़े में नहीं पड़ेंगे.”

किसान रविंदर की कम ज़मीन वाली बात की तस्दीक करने के लिए हमने हरियाणा सरकार के सरकारी रिकॉर्ड को खंगाला. रिकॉर्ड इस बात की पुष्टि करता है कि अहीरवाल क्षेत्र में प्रति परिवार ज़मीन की दर हरियाणा के बाक़ी इलाक़ों से कम है.

नीचे टेबल के माध्यम से दिए गए डाटा पर आप नज़र डालेंगे तो पाएँगे कि अहीरवाल में पड़ने वाले तीन प्रमुख ज़िलों– रेवाड़ी, गुडगाँव, महेन्द्रगढ़ के परिवारों के पास हरियाणा के अन्य ज़िलों की तुलना में ज़मीनें कम हैं.

हरियाणा के जिन ज़िलों में किसान आन्दोलन का सबसे ज्यादा असर देखने को मिल रहा है, उनमें से केवल सोनीपत और पानीपत ऐसे ज़िले हैं जहाँ प्रति परिवार ज़मीन की दर अहीरवाल के तीनों ज़िलों से कम है, बाक़ी हर ज़िले में ये दर अहीरवाल से ज़्यादा है.

Landholdings as per Agricultural Census 2010 -11.

DistrictOverall Average (In Hectare)Less than 1 Hectare (In Percentage)More than 10 Hectare (In Percentage)
Gurgaon1.656.21.2
Rewari1.852.51.9
Mahendergarh1.851.42
Hisar3.036.04.7
Bhiwani3.039.05.0
Rohtak2.447.42.4
Jhajjar2.147.82.4
Jind2.640.94.1
Kaithal2.843.94.9
Kurukshetra2.746.24.3
Karnal2.4746.73.5
Sonipat1.3562.60.9
Sirsa2.837.23.9
Panipat1.562.21.1
Fatehabad2.437.73.0

वैसे तो इन कृषि कानूनों का असर छोट-बड़े सभी किसानों पर पड़ेगा लेकिन सबसे अधिक प्रभावित होंगे बड़े किसान परिवार जिनके पास ज़मीन भी ज्यादा है और जिनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा खेती से आता है.

अहीरवाल में पूरी तरह से खेती पर निर्भर परिवार बहुत कम है

दरअसल पानी की क़िल्लत और कम ज़मीन होने के कारण अहीरवाल क्षेत्र के लोग खेती के अलावा दूसरे व्यवसायों में अधिक हैं. यहाँ के लोग नौकरी-पेशा में अधिक विश्वास रखते हैं. इसके पीछे एक बड़ा कारण अहीरवाल का औद्योगीकरण भी है. गुडगाँव और रेवाड़ी जिलें के कई क्षेत्र ओद्योगिक हब के रूप में बनकर उभरे हैं. जहाँ लगभग पूरा गुडगाँव ज़िला एक आधुनिक शहर में बदल गया वहीं रेवाड़ी ज़िले के बावल और धारूहेड़ा जैसे कस्बों में बड़ी- बड़ी कम्पनियां लग गई हैं. इसलिए लोग खेती छोड़कर प्राइवेट धंधो की तरफ़ ज़्यादा जा रहे हैं. यहाँ लगभग परिवारों में खेती आमदनी का दूसरा साधन बन गई है, मुख्य कमाई नौकरी पेशे से आ रही है.

अहीरवाल में भूमिगत जल की भारी क़िल्लत होना

महेंद्रगढ़ ज़िले के गाँव बुडीन निवासी पीयूष बताते है कि, “मेरे गाँव में 80 प्रतिशत कुओं का पानी सूख चुका है. गाँव में केवल एक तिहाई खेती की ही सिंचाई हो पाती है बाक़ी सब बारिश पर निर्भर है. लोगों ने गेहूँ बोना छोड़ दिया है.”

पीयूष ने ये भी बताया कि उनके इलाक़े में कहीं-कहीं नहरें तो आईं, मगर उनमें पानी समय पर नहीं आता. लोग अपने एक कुएं से नाली दबाकर दूर-दूर तक खेतों में पानी ले जाने को मज़बूर हैं.

ज़िला रेवाड़ी के गाँव कुंडल निवासी बिक्रम सिंह 4 एकड़ की खेती करतें हैं. उन्होंने गाँव सवेरा को बताया कि, “हमारे गाँव में ऐसे–ऐसे किसान हैं जो 2-3 बार बोरिंग कर चुके हैं मगर कुए में पानी नहीं लगा. जिसके यहाँ लगा भी है उसका 1-2 साल के अंदर सूख गया. हम खेती करें तो भी मरे न करे तो भी मरे.”

रेवाड़ी के ही गाँव टिंट के रहने वाले रामकिशन के पास बोरिंग मशीन है. वो कहते हैं कि, “एक बार बोरिंग करवाने का ख़र्च लगभग 1 लाख रूपए आता है. ऊपर से डार्क ज़ोन होने की वजह से कुएं के लिए नया बिजली कनेक्शन नहीं मिलता. किसी का ठप हुए कुएं का कनेक्शन आप अपने नाम करवा सकतें हैं. उसके लिए भी लोग मनमाना पैसा वसूलतें हैं क्योंकि नए कनेक्शन न मिलने के कारण पुराना कनेक्शन ख़रीदना लोगों की मज़बूरी है.” 

वैसे तो हरियाणा के लगभग सभी ज़िलों में भूमिगत जल का स्तर लगातार तेज़ी से गिर रहा है. साल 2017 में आई राज्य सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, हरियाणा के कुल 128 ब्लॉक  में से 78 ब्लॉक “डार्क ज़ोन” की श्रेणी में चिन्हित किए गए हैं. डार्क ज़ोन उस इलाक़े को कहा जाता है जहाँ 100 प्रतिशत से भी अधिक भूमिगत जल का दोहन हो रहा हो.

अहीरवाल के तीनों ज़िलों को मिलाकर यहाँ 14 ब्लॉक पड़ते हैं. इन 14 ब्लॉक्स में से ज़िला रेवाड़ी के जाटूसाना ब्लॉक को छोड़कर बाक़ी सभी 13 ब्लॉक्स डार्क ज़ोन की श्रेणी में आते हैं. केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक़ इन 13 ब्लॉक्स में भूमिगत जलस्तर काफ़ी तेजी से नीचे जा रहा है और यहाँ तुरंत जल संरक्षण पर काम करने की आवश्यकता है.

सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL) की मांग

पूरे हरियाणा प्रदेश में अगर कहीं SYL नहर को लेकर सबसे अधिक चुनावी राजनीति होती है तो वो दक्षिणी हरियाणा का अहीरवाल क्षेत्र ही है. चूँकि ये इलाक़ा लगभग पूर्ण रूप से डार्क ज़ोन में आता है इसलिए सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL) यहाँ के लोगों के लिए बाक़ी हरियाणा की तुलना में सबसे अधिक मायने रखती है.

20 दिसंबर 2020 को भाजपा ने महेंद्रगढ़ ज़िले के नारनौल में SYL मुद्दे को लेकर जल अधिकार रैली का आयोजन किया था. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इसके पीछे भाजपा का मकसद था कि अहीरवाल से किसान आन्दोलन के समर्थन में मांग न उठे और SYL के मुद्दे पर अहीरवाल के किसानों और अन्य क्षेत्र के किसानों के बीच तकरार बनी रहे.

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने जल अधिकार रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि, “जो किसान कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं उनको अपने एजेंडा में SYL की मांग भी रखनी चाहिए और केंद्र सरकार से इस बारे में बात करनी चाहिए.”

पंजाब सरकार पर निशाना साधते हुए खट्टर ने कहा था कि, “पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह सुप्रीम कोर्ट द्वारा हरियाणा के पक्ष में फ़ैसला दिए जाने के बावजूद इसपर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं.”

महेंद्रगढ़ ज़िले के छाजीवास गाँव के रहने वाले तेजपाल का कहना है कि, “भाजपा सरकार ने स्वयं SYL के मुद्दे पर अहीरवाल के लोगों के साथ धोखा किया है. जिस वक्त सुप्रीम कोर्ट से SYL को लेकर हरियाणा के पक्ष में फ़ैसला आया उस समय केंद्र, पंजाब, हरियाणा – तीनों जगह भाजपा की सरकार थी, फिर भी भाजपा ने SYL का निर्माण नहीं करवाया.”

तेजपाल के अनुसार SYL केवल एक राजनीतिक मुद्दा बनकर रह गया है और कोई भी पार्टी इस मुद्दे को लेकर गंभीर नज़र नहीं आती.  

अहीरवाल में किसान यूनियनों का मज़बूत न होना

भारतीय किसान यूनियन (चढुनी) के ज़िला प्रधान समय सिंह कहतें हैं, “ मैं साल 2010 से गुरनाम सिंह चढुनी जी की किसान यूनियन से जुड़ा हुआ था और उस समय जाटूसाना ब्लॉक का प्रधान था. हमने ख़ूब कोशिश की अहीरवाल के किसानों को जोड़ने की मगर यहाँ के नेता राव इंद्रजीत सिंह के प्रभाव के कारण लोग किसी भी तरह से उनके ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाते. उसके बाद हमारी यूनियन एक तरीके से निष्क्रिय हो गई.”

समय सिंह ने ये भी बताया कि देशभर में किसान आन्दोलन की शुरुआत के बाद उन्होनें  दोबारा से अहीरवाल में किसान यूनियन को सक्रीय किया है. अब उनके संगठन का विस्तार हो रहा है और उन्होनें लगभग 50 लोगों की एक सक्रीय टीम तैयार कर ली है जो किसानों के मुद्दों पर लगातार आवाज़ उठा रही है.

जय किसान आन्दोलन की रेवाड़ी इकाई से जुड़े राजबीर सिंह का कहना है कि, “अहीरवाल में कभी भी किसानों के नाम पर राजनीति नहीं हुई. यहाँ से चौधरी छोटू राम या चौधरी देवी लाल जैसे किसान नेता भी नहीं निकले. यहाँ तो सामंती व्यवस्था है जिसमें रामपुर हाउस पहले भी राज करता था और आज भी कर रहा है.”

राजबीर ने आगे जोड़ते हुए कहा, “2014 में मोदी लहर के दौरान समूचे देश ने सत्ता परिवर्तन किया था मगर अहीरवाल ने नहीं. यहाँ सिर्फ़ पार्टी और झंड़े बदले चेहरे आज भी वही है. जबतक इस इलाक़े के लोग रामपुर हाउस की सामंती व्यवस्था को नहीं तोड़ते, अहीरवाल का विकास नहीं हो सकता.”

गाँव राजपुरा से किसान रोहतास सिंह कहते हैं, “हमारे यहाँ किसान यूनियनें बिलकुल भी सक्रीय नहीं है. यूनियनों में चाहिए पैसा, कम जोत होने के कारण यहाँ के किसानों के पास इतना पैसा नहीं है कि वो यूनियन को दे सकें.” 

किसान यूनियनों के मज़बूत न होने के कारण अहीरवाल के किसानों तक कृषि कानूनों का केवल वही पक्ष पहुंचा है जो सरकार पहुँचाना चाहती है. अधिकतर किसानों को इन कृषि कानूनों के बारे में पूरी जानकारी ही नहीं है. 

अहीरवाल vs जाटलैंड

अहीरवाल में एक लंबे अरसे से इस इलाक़े की बाक़ी हरियाणा और ख़ासकर जाट बहुल इलाक़ों के विकास से तुलना होती रही है. अहीरवाल के राजनेता और लोग इस बात को ज़ोर देकर कहतें हैं कि उनके इलाक़े और जाट बहुल इलाक़ों में विकास के नाम पर भेदभाव हुआ है. अधिकतर लोग इसके पीछे हरियाणा की जाट केंद्रित राजनीति को ज़िम्मेदार मानते हैं.

विधान सभा चुनावों में भाजपा ने अहीरवाल में इसको एक मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया था. भाजपा के नेता उनकी सरकार आने पर क्षेत्रवाद और नौकरियों में पक्षपात खत्म करने का वायदा लेकर अहीरवाल के चुनावी मैदान में उतरे थे.

खोल गाँव से समाज सेवक और पेशे से प्राइवेट अध्यापक हेमंत शेखावत कहते हैं, “अहीरवाल में ये आम धारणा है कि इस इलाक़े को सभी सरकारों ने अनदेखा किया है. सरकारी नौकरियों में भी जाट बहुल इलाक़ों के लोगों को अधिक महत्व दिया जाता रहा है. भाजपा ने इसी को चुनावी मुद्दा बनाकर यहाँ चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.”

गाँव राजपुरा से 62 वर्षीय किसान रामेश्वर का कहना है, “किसान आन्दोलन कुछ नहीं है, यहाँ सारा रोला चौधर का है. जो जाटलैंड है वहां के लोग कांग्रेस के साथ है और वो नहीं चाहते कि दक्षिणी हरियाणा में कुछ काम हो. वो लोग अपनी चौधर चाहते हैं और हमें उनकी चौधर नहीं चाहिए.”

जब से किसान आन्दोलन शुरू हुआ है तब से हरियाणा में भाजपा और जेजेपी के कोई भी कार्यक्रम किसान नहीं होने दे रहें हैं. वहीँ दूसरी और अहीरवाल में भाजपा और जेजेपी बिना किसी विरोध के बड़ी आसानी से अपने सभी कार्यक्रम कर रही है. नारनौल में भाजपा की जल अधिकार रैली, जेजेपी के दुष्यंत चौटाला का रेवाड़ी में भीम राव आंबेडकर जयंती पर होने वाला कार्यक्रम इसके उदाहरण है.

अहीरवाल की राजनीति से खेती-किसानी का गायब रहना

रेवाड़ी दैनिक भास्कर ब्यूरो चीफ अजय भाटिया का कहना है कि अहीरवाल के इतिहास में कोई ऐसा नेता नहीं हुआ जो खेती-किसानी को लेकर मुखर रहा हो. उनके अनुसार अहीरवाल की राजनीति कभी भी किसानों के मुद्दों पर केंद्रित नहीं रही और यही सबसे बड़ा कारण है कि यहाँ के लोग वर्तमान किसान आन्दोलन से दूरी बनाए हुए हैं.

भाटिया ने बताया कि जिस तरह से हरियाणा के बाक़ी इलाक़ों में चौधरी देवीलाल, चौधरी छोटू राम आदि नेताओं की पुराने समय से ही खेती-किसानी वाली राजनीति करने की पहचान रही है, वैसा कोई नेता कभी अहीरवाल में नहीं हुआ.

भाटिया कहतें है, “अहीरवाल की गिनती हमेशा शांत इलाक़ों में होती है. हरियाणा जितना उत्तेजित माना जाता है, अहीरवाल कभी भी उतना उत्तेजित नहीं होता. यहाँ के लोग अपनी मांगों को लेकर कभी भी अड़ियल रुख़ नहीं अपनाते. सत्ता के लिहाज से अहीरवाल में किसी के लिए भी राज करना बाक़ी हरियाणा के मुक़ाबले काफ़ी आसान होता है.”

इन तमाम कारणों के अलावा राव इंद्रजीत सिंह का राजनीतिक विकल्प न होना भी लोगों को काफ़ी खलता है. रेवाड़ी के किसान अमीलाल ने गाँव सवेरा से बातचीत में कहा, “हमारे यहाँ लीडर की भी कमी है. हम किसान आन्दोलन में जाए भी तो किसकी अगुवाई में?. राव इंद्रजीत सिंह को हमने इसलिए वोट दिया क्योंकि वो भाजपा से चुनाव लड़े, अन्यथा हम उनको वोट नहीं देते.”

अहीरवाल क्षेत्र में भाजपा की मज़बूत पैंठ

राव इंद्रजीत सिंह पहले कांग्रेस में हुआ करते थे लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया. उसके बाद वो 2 बार भाजपा की टिकट पर लड़ते हुए गुडगाँव से लोकसभा पहुंचे हैं.

2014 के विधान सभा चुनावों में अहीरवाल क्षेत्र ने भाजपा को ज़बरदस्त मज़बूती देने का काम किया. अहीरवाल की जनता ने सभी 11 सीटें भाजपा की झोली में डाल दी. यही नहीं इलाक़े में पड़ने वाले 2 लोकसभा सीटों पर भी भाजपा ने जीत दर्ज़ की.

2019 के विधान सभा चुनावों में भी अहीरवाल ने भाजपा को 11 में से 9 सीटें पर जीत का तोहफ़ा दिया. साथ ही 2019 के लोकसभा चुनावों में इलाक़े की दोनों सीटें भाजपा के खाते में गई.

2014 से पहले भाजपा अहीरवाल में कभी इतनी मज़बूत स्तिथि में नहीं रही जितनी वो आज नज़र आती है. चुनावी राजनीति के लिहाज से देखा जाए तो लगभग पिछले एक दशक में अहीरवाल भाजपा का मज़बूत क़िला बनकर उभरा है.

शाहजहांपुर बॉर्डर पर चल रहे किसान धरने की सीमा रेवाड़ी से लगती है. 26 जनवरी को लाल किले पर हुई घटना के बाद रेवाड़ी ज़िले के लोगों ने इस धरने का विरोध करना शुरू कर दिया था.

यही नहीं, शाहजहांपुर धरने से किसानों का एक जत्था बैरिकेड तोड़कर रेवाड़ी की सीमा में मसानी गाँव के नज़दीक जा पहुंचा था. स्थानीय लोगों ने उस जत्थे को भी 26 जनवरी की घटना के बाद वहां से हटने पर मज़बूर कर दिया, जिसके बाद वो जत्था वापस शाहजहांपुर बॉर्डर आ गया था. किसानों के विरोध का ये पूरा प्रकरण लोकल भाजपा कैडर के इशारों पर हुआ था.   

ये तमाम राजनितिक, सामाजिक और आर्थिक कारण है जिनकी वजह से हरियाणा का एक बड़ा हिस्सा – अहीरवाल न केवल किसान आन्दोलन से दूरी बनाए हुए है बल्कि समय-समय पर आन्दोलन के प्रति विरोधी रणनीति भी अपनाए हुए है.