किसान, महिला और समाज सुधारक विरोधी तिलक!

 

23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र में रत्नागिरी के चिखली गांव में जन्मे बाल गंगाधर तिलक की आज जयंती है. सोशल मीडिया पर तिलक की जयंती की बधाई संदेश दिए जा रहे हैं. पिछले साल तो सीपीआई(एम) नेता सीताराम येचुरी ने भी ट्वीट कर तिलक की जयंती पर बधाई संदेश दिया था. जिसके बाद येचुरी के ट्वीट की लिबरल खेमे में काफी आलोचना हुई थी, उसका असर यह हुआ कि इस साल सीताराम येचुरी तिलक को याद करना भूल गए. वहीं खुद को सामाजिक न्याय की पक्षधर बताने वाली बहुजन समाज पार्टी के बड़े नेता भी तिलक की जयंती पर संदेश साझा कर रहे हैं.

प्रोफेसर परिमाला वी.राव ने तिलक पर एक शोधपत्र जारी किया है. प्रोफेसर परिमाला वी.राव ने अपने शोधपत्र में मुख्य रूप से तिलक के अखबार मराठा के हवाले से जानकारी दी हैं. प्रो.परिमाला की तिलक पर की गई रिसर्च के अनुसार तिलक के विचार किसान विरोधी, महिला विरोधी और गैर-ब्राह्मण को शिक्षा देने के विरोधी थे.

समाज सुधारक महादेव रानाडे के अनुसार राष्ट्र निर्माण के लिए किसानों और महिलाओं का सशक्तिकरण, हर नागरिक को शिक्षा और समाज सुधार के अन्य कदम उठाए जाने जरुरी हैं. लेकिन तिलक ने रानाडे के इन सभी सामाजिक कार्यों का विरोध किया और अपने अखबार मराठा के जरिए संपादकीय लिखकर समाज सुधार के कामों, किसानों के उत्थान, महिलाओं और गैर-ब्राह्मणों की शिक्षा का पुरजोर विरोध किया. 

किसानों के विरोध में तिलक      

किसानों को सूदखोरों के चुंगल से बचाने के लिए महादेव गोविंद रानाडे ने ‘डेक्कन एग्रीकल्चरिस्ट्स रिलीफ बिल’ का ड्राफ्ट तैयार किया था. महाराष्ट्र में 1870 के दशक में आए अकाल के चलते किसानों पर भारी कर्ज हो गया था. इसी कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिए ड्राफ्ट तैयार किया गया था. साथ ही किसानों को इस तरह बदहाल न होना पड़े, इसके लिए महादेव गोविंद रानाडे ने शेतकारी बैंकों की स्थापना का प्रस्ताव भी रखा था.

इस बैंक के जरिए किसानों को कम ब्याज दर और आसान शर्तों पर कर्ज देने की योजना थी. लेकिन तिलक के भारी विरोध के कारण सरकार को डेक्कन कानून बनाने और कृषि (शेतकारी) बैंकों को खोलने का फैसला रद्द करना पड़ा. इतना ही नहीं तिलक ने सूदखोरों को किसानों का भगवान बताते हुए सरकार से सिफारिश की कि जो लोग सूदखोरों का पैसा नहीं लौटा रहे हैं, उनके लिए जेल भेजने वाले कानून को लागू किया जाना चाहिए.’

साथ ही तिलक का स्पष्ट मानना था कि किसान और कारीगर जातियों का राजनीति में कोई काम नहीं है. 1918 में जब इन जातियों ने राजनीति में प्रतिनिधित्व की मांग की तो तिलक ने एक सभा के दौरान कहा कि

“तेली-तमोली-कुनबी विधानसभा में जाकर क्या करेंगे.”     

शोलापुर की सभा में तिलक का बयान

गैर-ब्राह्मण शिक्षा विरोधी

वहीं किसानों के बच्चों को शिक्षा देने के मसले पर भी तिलक के विचार किसान विरोधी थे. तिलक का कहना था कि किसानों के बच्चों को शिक्षा देना बेकार है. पढ़ना-लिखना सीखना और गणित, भूगोल की जानकारी का उनकी व्यावहारिक जिदगी से कोई लेना-देना नहीं है. पढ़ाई-लिखाई उन्हें फायदा नहीं, नुकसान ही पहुँचाएगी.’ तिलक ने कहा

“गैर-ब्राह्मणों को तो बढ़ईगिरी, लुहार, राज मिस्त्री के काम और दर्जीगिरी सिखाई जानी चाहिए. उनका जो दर्जा है, उसके लिए यही काम सबसे उपयुक्त हैं.”

साथ ही तिलक ने रानाडे के गैर-ब्राह्मणों को उच्च शिक्षा के लिए बॉम्बे विश्वविद्यालय में भेजने के प्रयासों का भी विरोध किया. जिसके चलते गैर-ब्राह्मणों ने तिलक के इन विचारों का कडा़ विरोध किया.

जाति व्यवस्था का समर्थक

आगे चलकर तिलक जाति-व्यवस्था के बचाव में भी खुलकर बोलने लगा. तिलक के अनुसार जाति व्यवस्था ही राष्ट्र के निर्माण का आधार थी. तिलक ने 22 मार्च 1891 को लिखा,

“हमारे लिए आधुनिक पढ़े-लिखे ब्राह्मण और नए जमाने के पढ़े-लिखे गैर-ब्राह्मणों के बीच अंतर करना मुश्किल होगा. इस असमानता को महसूस करने का वक्त आ गया है.”

वहीं प्रोफेसर परिमाला वी.राव के रिसर्च पेपर के अनुसार 10 मई, 1891 को तिलक ने अखबार के संपादकिय में लिखा

“एक हिंदू राष्ट्र यह मानता है कि अगर इस पर जाति का प्रभाव नहीं होता तो यह कब का मिट चुका होता. रानाडे जैसे सुधारवादी लोग जाति की हत्या कर रहे हैं और इस तरह वे राष्ट्र की प्राण शक्ति को भी खत्म कर रहे हैं.”

10 मई,1891 के मराठा अखबार में तिलक के विचार

 साथ ही तिलक ने ब्रिटिश सरकार में जाति व्यवस्था के कमजोर होने पर भी नाराजगी जताई.

महिला शिक्षा विरोधी 

महिलाओं की उच्च शिक्षा और अंग्रेजी शिक्षा पर तिलक ने 26 सितंबर 1884 को लिखा,

“अंग्रेज़ी शिक्षा महिलाओं को स्त्रीत्व से वंचित करती है, अंग्रेजी शिक्षा हासिल करने के बाद वे एक सुखी सांसारिक जीवन नहीं जी सकती. महिलाओं को सिर्फ देसी भाषाओं, नैतिक शिक्षा और सिलाई-कढ़ाई की शिक्षा दी जानी चाहिए. लड़कियों को केवल तीन घंटे पढ़ाया जाना चाहिए ताकि उन्हें घर का काम करने और सीखने का वक्त मिल सके.”

26 सितंबर,1884 को मराठा अखबार में तिलक