तेलंगाना का किसान मित्र हेल्पलाइन बचा रहा है कई किसानों की जान

 

तेलंगाना में एक किसान मित्र हेल्पलाइन शुरू किया गया है। इसे तेलंगाना सरकार के कृषि विभाग और सेंटर फाॅर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर ने शुरू किया है। 2017 के अप्रैल से लेकर अब तक इस हेल्पलाइन के जरिए तकरीबन 4,000 किसानों की मदद की गई है।
दरअसल, इस हेल्पलाइन को शुरू करने का मकसद यह था कि जो किसान कृषि संकट की वजह से बहुत परेशान हैं, उनकी मदद की जाए। इसके लिए 18001203244 हेल्पलाइन शुरू किया गया। इसके जरिए किसानों के सवालों का जवाब दिया जा रहा था और उनकी शिकायतों को भी दर्ज किया जा रहा था।
लेकिन जैसे-जैसे यह काम आगे बढ़ा, वैसे-वैसे इस हेल्पलाइन का इस्तेमाल खुदकुशी करने की कगार पर खड़े किसानों को बचाने के लिए होने लगा। कृषि क्षेत्र की संकट की वजह से बड़ी संख्या में किसान पिछले कई सालों से खुदकुशी कर रहे हैं।
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो ने किसानों की खुदकुशी से संबंधित आंकड़ों को 2015 के बाद अपडेट नहीं किया है। 2015 में 8,007 किसानों और 4,595 कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की थी। 2015 के बाद से किसानों की आत्महत्या से संबंधित कोई भी आधिकारिक आंकड़ा सरकार सामने लेकर नहीं आई है। जबकि इसके बाद पूरे देश में कई किसान आंदोलन हुए हैं।
जब तक के किसानों के खुदकुशी के आंकड़े हैं, उनमें महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर तेलंगाना ही है। इसका मतलब यह हुआ कि हर साल बड़ी संख्या में तेलंगाना के किसान मौत को गले लगाने के लिए विवश हैं।
लेकिन अब तेलंगाना के किसानों को इस हेल्पलाइन के जरिए जो मदद मिल रही है, उससे बिल्कुल आत्महत्या करने का मन बना लेने वाले किसान भी अपना निर्णय बदल रहे हैं। इस हेल्पलाइन की सबसे बड़ी खासियत है कि स्थानीय प्रशासन के साथ इसने बेहतर तालमेल स्थापित किया है। इस वजह से जरूरत पड़ने पर तुरंत ही इसके जरिए हस्तक्षेप करके स्थितियों को संभाला जा रहा है।
इसे अगस्त 2018 के उदाहरण के जरिए समझा जा सकता है। कपास उपजाने वाले एक किसान ने इस हेल्पलाइन पर फोन किया और कहा कि उसकी फसल बाढ़ में डूब गई है और अब उसे भविष्य का डर इतना सता रहा है कि वह कीटनाशक पीने जा रहा है। इस हेल्पलाइन पर उससे जो प्रतिनिधि बात कर रहे थे, उन्होंने हेल्पलाइन के एक क्षेत्र प्रतिनिधि को उस किसान के पास पहुंचने के लिए रवाना किया।
उसने वहां पहुंचते ही उस स्थानीय कृषि अधिकारी को बुलाया। किसान से उसे मिलवाया। फिर किसान को लेकर जिला अधिकारी के पास गया। किसान ने एक जमीन बेची थी। जिला अधिकारी की मदद से उसे उसके पैसे मिल गए और सरकारी योजना के तहत जिला अधिकारी ने उसे आॅटो रिक्शा लेने के लिए कर्ज दिलाया। उसके बाद खुदकुशी करने जा रहा वह किसान एक अच्छा जीवन जी रहा है।
यह हेल्पलाइन सिर्फ किसानों को खुदकुशी से रोकने के लिए ही नहीं बल्कि उन्हें बैंकों से संस्थागत कर्ज दिलाने से लेकर न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने तक के लिए काम कर रहा है। 2018 के खरीफ सीजन में जब कपास की कीमतें काफी कम हो गईं तो किसान मित्र के हस्तक्षेप से ही यहां के किसान अपनी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेच पाए।
लेकिन इतनी उपयोगी इस हेल्पलाइन की सीमा यह है कि इसे तेलंगाना के सिर्फ तीन जिलों में ही काम करने के लिए स्थानीय प्रशासन से सहयोग मिल पा रहा है। इसलिए इन जिलों में तो ये हेल्पलाइन प्रभावी है। लेकिन अगर इन जिलों से बाहर की कोई शिकायत इनके पास पहुंचती है तो ये इसमें कुछ खास नहीं कर पाते।  ये सिर्फ शिकायतों को संबंधित जिला प्रशासन के पास भेज देते हैं ताकि वहां से कार्रवाई हो सके।
इस हेल्पलाइन को प्रभावी बनाने के लिए न सिर्फ इसका विस्तार तेलंगाना के अन्य जिलों में होना चाहिए बल्कि किसानों को राहत देने में मददगार इस सफल माॅडल को देश के दूसरे राज्यों में भी अपनी स्थानीय जरूरतों के हिसाब से बदलाव करके अपनाया जाना चाहिए। ताकि पूरे देश के किसानों को ऐसी सेवाओं का लाभ मिल सके।