गेहूं खरीद 187 लाख टन पर अटकी, सेंट्रल पूल में मई का स्टॉक 5 साल में सबसे कम

जैसा कि अनुमान व्यक्त किया जा रहा था, रबी मार्केटिंग सीजन में गेहूं की सरकारी खरीद संशोधित लक्ष्य तक भी नहीं पहुंच सकी. सेंट्रल फूडग्रेन्स प्रोक्योरमेंट पोर्टल (सीएफपीपी) पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस सीजन में 187 लाख टन से भी कम गेहूं की खरीद हुई है. सरकार का संशोधित लक्ष्य 195 लाख टन का था.

कम खरीद से मई में सेंट्रल पूल में गेहूं का स्टॉक पांच साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है. भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के मुताबिक इस वर्ष मई में गेहूं का स्टॉक 303.46 लाख टन था. मई में इससे कम स्टॉक 2017 में 296.41 लाख टन का था.

मई में सेंट्रल पूल में गेहूं का स्टॉक

2017296.41 लाख टन
2018353.45 लाख टन
2019331.60 लाख टन
2020357.70 लाख टन
2021525.65 लाख टन
2022303.46 लाख टन
(आंकड़े सिर्फ मई के, स्रोतः एफसीआई)

खरीद बढ़ाने के लिए सरकार ने 13 मई को गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था. तब माना जा रहा था कि किसान अपनी उपज बेचने मंडियों में आएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. निर्यात पर रोक के दिन तक 179.89 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी. आंकड़े देखकर लगता है कि उसके बाद सात लाख टन गेहूं की ही खरीद हुई है.

पिछले साल 434 लाख टन खरीद को देखते हुए केंद्र सरकार ने इस वर्ष 444 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा था. लेकिन बाद में उसे संशोधित कर आधे से भी कम, 195 लाख टन किया गया. इस वर्ष 17.26 लाख किसानों ने केंद्रीय पूल के लिए गेहूं बेचा है. उनमें से अभी तक 15.12 लाख किसानों को 33,168.74 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है.

खरीद कम होने के दो प्रमुख कारण माने जा रहे हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की सप्लाई कम हो गई और दाम काफी बढ़ गए हैं. शुरू में भारत ने भी गेहूं निर्यात में तेजी दिखाई, सरकार भी इस पर जोर दे रही थी. लेकिन तभी पता चला कि मार्च से ही मौसम का तापमान बढ़ने के कारण गेहूं की फसल को नुकसान हुआ और दाने सिकुड़ गए. खास कर उत्तरी राज्यों में ऐसा देखने को मिला जिससे कुल उत्पादन में गिरावट आई. खरीद बढ़ाने के लिए सरकार ने 15 मई को नियमों में भी ढील दी थी और कहा था कि 18 फीसदी तक सिकुड़े दाने बिना दाम में कटौती के खरीदे जाएंगे. इसके बावजूद खरीद में तेजी नहीं आई.

पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसानों ने तो 15 से 20 फीसदी तक कम उत्पादन की बात रूरल वॉयस को बताई थी. ऐसे में देश में गेहूं की उपलब्धता बरकरार रखने के लिए सरकार को इसके निर्यात पर पाबंदी लगानी पड़ी. हालांकि सरकार ने अपनी तरफ से गेहूं उत्पादन के अनुमान में अभी तक ज्यादा कटौती नहीं की है. पहले 11.13 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान था, जिसे घटाकर 10.6 करोड़ टन किया गया है. 2020-21 में 10.96 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था.

सेंट्रल फूडग्रेन्स प्रोक्योरमेंट पोर्टल (सीएफपीपी) के अनुसार निर्यात पर रोक के बाद पंजाब में गेहूं की खरीद ना के बराबर ही हुई. अंतिम तारीख बढ़ाने के बावजूद राज्य में खरीद का आंकड़ा 97 लाख टन तक भी नहीं पहुंच सका. अन्य प्रमुख उत्पादक राज्यों मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी निर्यात पर रोक के बाद खरीद बहुत कम हुई. जानकार इसकी एक और वजह यह मान रहे हैं कि संभव है किसान आगे बेहतर कीमत मिलने की उम्मीद में अभी अपनी उपज नहीं बेचना चाहते. इससे यह संकेत भी मिलता है कि आने वाले दिनों में कीमतों में ज्यादा गिरावट की गुंजाइश कम है.

साभार – Rural Voice

गेहूं खरीद में मध्यप्रदेश नंबर वन, पंजाब को पीछे छोड़ा

मध्य प्रदेश ने चालू रबी सीजन में 127.67 लाख टन गेहूं की खरीद कर पंजाब को पीछे छोड़ दिया है। अब मध्यप्रदेश देश में सबसे ज्यादा गेहूं खरीद करने वाला राज्य बन गया है। पंजाब में इस साल 127.62 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है। बरसों से सबसे ज्यादा गेहूं खरीद पंजाब की उपलब्धि रही है। लेकिन इस बार एमपी ने बाजी मार ली।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस उपलब्धि के लिए प्रदेश के किसानों और मंडी अधिकारियों को बधाई दी है।

मध्यप्रदेश की यह उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि राज्य में पिछले साल के मुकाबले 74 फीसदी ज्यादा गेहूं खरीद हुई, जो देश की कुल गेहूं खरीद का करीब एक तिहाई है। गेहूं खरीद के मामले में पंजाब का प्रदर्शन भी काबिलेतारीफ है। लेकिन देश के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में सिर्फ 27.5 लाख टन गेहूं खरीदा गया है, जो तय लक्ष्य का सिर्फ 50 फीसदी है। राजस्थान और गुजरात से भी गेहूं की बहुत कम खरीद हुई है।

गेहूं की सरकारी खरीद के चलते किसानों को उपज का सही दाम मिलना संभव हुआ है। लॉकडाउन के दौरान जहां तमाम काम-धंधे ठप पड़ गए थे, वहीं कृषि मंडियों और सरकारी खरीद की व्यवस्था ने गेहूं किसानों को नुकसान पहुंचने से बचाया है। प्याज-टमाटर जैसी जिन फसलों में एमएसपी और सरकारी खरीद की व्यवस्था नहीं है, वहां फसलें कौड़ियों के भाव बिक रही हैं।

इस साल देश में कुल 386 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है। यानी इतनी उपज पैदा करने वाले किसान लॉकडाउन के बावजूद समर्थन मूल्य पर फसल बेचने में कामयाब रहे हैं। चालू रबी के दौरान देश में 407 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य तय किया गया था, जबकि पिछले रबी सीजन में 341.32 लाख टन गेहूं खरीद हुई थी।

मध्यप्रदेश में गेहूं की खरीद बढ़ने के पीछे सरकारी प्रयासों का बड़ा हाथ है। इस बार राज्य में खरीद केंद्रों की संख्या 3545 से बढ़ाकर 4529 की गई थी। रिकॉर्ड गेहूं खरीद के चलते राज्य में 14 लाख किसानों के खाते में करीब 20 हजार करोड़ रुपये की धनराशि पहुंच चुकी है।

 

 

गेहूं खरीद में पंजाब सबसे आगे, लॉकडाउन में भी 77% खरीद पूरी

पूरी दुनिया कोरोना संकट से जूझ रही है। महामारी की रोकथाम के लिए लागू हुए लॉकडाउन ने काम-धंधे ठप कर दिए हैं। लेकिन ऐसी विकट परिस्थतियों में खेती और ग्रामीण अर्थव्यवस्था लोगों को सहारा दे रही है। देश के खाद्यान्न भंडार भरे पड़े हैं। यह संभव हो पाया है 60 के दशक में सुधरनी शुरू हुई सरकारी वितरण और खरीद प्रणाली के बूते।

लोगों को सस्ती दरों पर अनाज मुहैया कराने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की एजेंसियां किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर गेहूं व धान जैसी कई फसलों की खरीद करती हैं। इससे किसानों को फसल का उचित दाम और देश को खाद्य सुरक्षा मिलती है। इसमें राज्यों के साथ-साथ केंद्र सरकार की भी इसमें बड़ी भूमिका है।

इस साल जब महामारी फैलनी शुरू हुई तब गेहूं, धान व सरसों जैसे रबी फसलों की कटाई जोरों पर थी। लॉकडाउन के चलते सरकारी खरीद देर से शुरू हुई। हालांकि, कृषि और मंडी से जुड़े कामों को छूट दी गई थी। लेकिन जब सब कुछ बंद था तो फसल कटाई और सरकारी खरीद में भी कई अड़चनें आईं। फिर सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल भी रखना था।

आधी से ज्यादा गेहूं खरीद पूरी 

किसानों के साथ-साथ सरकारी खरीद तंत्र और मंडी व्यापारियों की तारीफ करनी होगी, जिनकी मदद से लॉकडाउन के बावजूद गेहूं खरीद का 56 फीसदी लक्ष्य पूरा हो चुका है। वह भी तब जबकि पूरा देश महामारी के खौफ, लॉकडाउन की मार और लेबर की किल्लत से जूझ रहा है।

चालू रबी सीजन के दौरान देश में 407 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें से 227 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है। इसमें सबसे बड़ा योगदान पंजाब और हरियाणा का है। अब तक हुई गेहूं खरीद में इन दो राज्यों ने 70% योगदान किया है, जबकि देश के कुल गेहूं उत्पादन में इनकी हिस्सेदारी करीब 30% है।

लॉकडाउन के बावजूद पंजाब में 104 लाख टन गेहूं खरीदा गया है जो 185 करोड़ टन के अनुमानित उत्पादन का करीब 56% और 135 लाख टन के खरीद लक्ष्य का 77% है।

5 दिन बाद खरीद शुरू करने वाले हरियाणा में करीब 56 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है, जो 115 लाख टन के अनुमानित उत्पादन का करीब 49% और 95 लाख टन के खरीद लक्ष्य का 59% है।

दरअसल, पंजाब-हरियाणा की मजबूत खरीद प्रणाली और मंडी व्यवस्था ही इन्हें इस मामले में बाकी राज्यों से अलग करती है। यह इन राज्यों में किसानों के लंबे संघर्ष का नतीजा है। सरकारी खरीद की वजह से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ मिल पाता है। ऐसे समय जब किसान अपनी उपज कौड़ियों के भाव बेचने को मजबूर है, सरकारी खरीद प्रणाली पर दारोमदार बढ़ जाता है।

यूपी पिछड़ा, बिहार जीरो  

देश में सबसे ज्यादा गेहूं पैदा करने वाले उत्तर प्रदेश में अब तक 11 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है जो राज्य के कुल उत्पादन का महज 3% और 55 लाख टन के खरीद लक्ष्य का करीब 20% है। इससे भी बुरा हाल बिहार का है जहां गेहूं की खरीद जीरो है।

यूपी में जूट बोरियों की कमी को खरीद पिछड़ने की वजह बतायाा जा रहा है। इस वजह को नजरअंदाज भी कर दें तो इस साल उत्तर प्रदेश ने 55 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा है जो अनुमानित उत्पादन का सिर्फ 15% है। जबकि पंजाब में उत्पादन के मुकाबले 73% और हरियाणा में 83% गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा गया है। गेहूं खरीद के मामले में यूपी मध्य प्रदेश से भी पीछे है। 

मध्य प्रदेश में करीब 45 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है जो 190 लाख टन के अनुमानित उत्पादन का 24% और 100 लाख टन के खरीद लक्ष्य का 45% है। उधर, राजस्थान में अभी तक केवल 2.5 लाख टन गेहूं खरीदा गया है जबकि इस साल राज्य में करीब 100 लाख टन गेहूं के उत्पादन का अनुमान है। राजस्थान में उत्पादन के मुकाबले सिर्फ 17% गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा गया और अब तक 3% गेहूं की खरीद भी नहीं हुई है।

सरकारी खरीद पर अंकुश के प्रयास 

पिछले कई वर्षों से सरकारी खरीद पर अंकुश लगाने की कोशिशें जारी है। साल 2015-16 से 2019-20 के बीच देश में गेहूं खरीद केंद्रोंं की संंख्या करीब 25% घटी है। जबकि इस दौरान गेहूं का उत्पादन बढ़ा है। सरकारी खजाने पर बोझ घटाने के लिए केंद्र सरकार राज्यों को गेहूं व धान पर बोनस देने से भी रोकती रही है।

मौजूदा आपदा ने सरकारी खरीद पर अंकुल लगाने की नीति को गलत साबित कर दिया है। सोचिए, अगर अनाज भंडार भरे न होते तो मास्क और सैनिटाइजर की तरह खाद्यान्न की कालाबाजारी भी शुरू हो जाती।