स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में खुलासा, खराब स्थिति में ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचा!

हाल ही में देश के स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडवीया ने ग्रामीण क्षेत्रों में हेल्थ ढ़ांचे की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की थी. रूरल हेल्थ स्टैटिसटिक्स के नाम से आई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश के कई जिलों में डॉक्टरों, अस्पतालों की बड़ी कमी है. इसका सबसे अधिक खामियाजा हाशिये पर खड़े लोगों को भुगतना पड़ रहा है.

लोगों के लिए हेल्थ सुविधा प्रदान करने का दारोमदार पीएचसी यानि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) पर है. लेकिन स्वास्थ्य मंत्री द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर अधिक बोझ है.

मार्च 2021 तक ग्राणीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या 25,140 और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या 5,481 थी. नियम के अनुसार एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के द्वारा 20 से 30 हजार लोगों को स्वास्थ्य सुविधा दी जानी चाहिए. वहीं जुलाई 2021 तक के आंकड़े बताते हैं कि एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर 35,602 लोग निर्भर थे. 

सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को लेकर भी यही हाल है. एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की क्षमता 80,000 से 1,20,000 लोगों की है जबकि जुलाई 2021 तक के आंकड़े बताते हैं कि एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर 1,63,298 लोग निर्भर हैं.

पहाड़ी और मरुस्थलीय इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए यह अनुपात अलग है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर निर्भर लोगों की अधिकतम संख्या 20,000 हो सकती है. जबकि रिपोर्ट में सामने आया है कि एक पीएचसी पर 25,507 लोग निर्भर हैं.

ऐसे ही चिंतित करने वाले आंकड़े सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को लेकर भी हैं. एक सीएचसी की अधिकतम क्षमता 80 हजार लोगों की है लेकिन इसपर 1,03,756 लोग निर्भर हैं. साल 2021 तक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए स्वीकृत हेल्थ असिस्टेंट के 64.2% पद खाली थे. वहीं डॉक्टरों के स्वीकृत पदों में से 21.1% पद खाली हैं.

सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर आम लोगों को विशेषज्ञों से इलाज लेने का मौका मिलता है. 31, मार्च 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक 72.3% सर्जन, 69.2% फिजिशियन, 64.2% स्त्री विशेषज्ञों की सीट खली थी. कुल मिलाकर सीएचसी पर विशेषज्ञों के 68% पद खली पड़े थे. अब किसी बने हुए अस्पताल में उपलब्ध सुविधा के नजरिये से देखें तो सीएचसी में 83.2% सर्जन, 74.2% स्त्री एवं प्रसूति विशेषज्ञ, 80.6% बच्चों के विशेषज्ञ के पद खाली पड़े थे. अगर अस्पताल में उपलब्ध सुविधा के आधार पर देखें तो 79.9% विशेषज्ञों के पद खली पड़े हैं.

ग्रामीण रोजगार सृजन में आई 50 फीसदी की गिरावट!

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत मिलने वाले काम में भारी कमी आई है. इसकी एक वड़ी वजह कृषि और गैर-कृषि कार्यों में तेजी को भी माना जा रहा है. नरेगा में मिलने वाला काम पहले की तुलना में जुलाई में लगभग आधा हो गया है. यानी नरेगा के तहत मिलने वाले काम में 50 फीसदी की कमी दर्ज की गई है. वहीं मजदूरों के गांव वापस लौटकर आने की संख्यां में भी कमी इसका एक कारण है. 

वहीं पिछले आंकड़ों को देखे तो पता चलता है कि हर साल वित्त वर्ष के पहले तीन महीनों में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत मिलने वाले काम में बढ़ोतरी दर्ज की गई है लेकिन इस वित्त वर्ष में रोजगार सृजन में गिरावट आई है.

अगस्त में आए आंकड़ों के नरेगा के तहत अप्रैल में केवल 22 करोड़ लोगों को रोजगार मिला जिससे लगभग 2 करोड़ परिवारों तक लाभ पहुंचा था वहीं मई में 43 करोड़ लोगों को रोजगार मिला था जससे करीबन 2.5 करोड़ परिवारों को लाभ पहुंचा था. इस वित्तीय वर्ष में नरेगा के तहत काम में लगातार कमी आ रही है.

पिछले महीने संख्या में गिरावट मुख्य रूप से कृषि गतिविधियों में तेजी के कारण हुई, क्योंकि खरीफ की खेती के लिए श्रम की मांग बढ़ी है. ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक कार्यों के लिए श्रमिकों की मांग में वृद्धि और अधिकांश श्रमिकों की औद्योगिक शहरों में वापसी,  महामारी के चरम के दौरान देखे गए रिवर्स माइग्रेशन के निकट अंत के कारण, कम लोगों को काम की तलाश में भी प्रेरित किया गया।

द इकॉनोमिक टाइम में छपी रिपोर्ट के अनुसार योजना श्रम विशेषज्ञ केआर श्याम सुंदर ने कहा, “ऐसा लगता है कि आर्थिक गतिविधियों में तेजी ने श्रम बाजार को स्थिर कर दिया है.” सुंदर ने कहा, “हालांकि, औद्योगिक उत्पादन में निरंतरता की कमी और रुपये के कमजोर होने से विनिर्माण उत्पादन प्रभावित हो सकता है जो श्रम बाजार को प्रभावित कर सकता है.”

कार्य सृजन में गिरावट योजना के तहत काम की मांग में गिरावट के अनुरूप है और ग्रामीण भारत में बेरोजगारी दर में आई गिरावट भी नये काम सृजन में कमी का एक कारण है.