चार दशक में पहली बार साल भर शून्य से नीचे रहेगी जीडीपी ग्रोथ

अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर देश कई चुनौतियों से जूझ रहा है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान पूरे साल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर शून्य से नीचे यानी निगेटिव रहेगी। यह स्थिति तब है जबकि अर्थव्यवस्था को सामान्य मानसून और कृषि क्षेत्र का भरपूर साथ मिल रहा है।

गुरुवार को मौद्रिक नीति की समीक्षा के बाद आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि कोविड-19 महामारी के चलते चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही के दौरान इकनॉमी सकुंचित रहेगी। पूरे वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान भी वास्तविक जीडीपी ग्रोथ निगेटिव रहने का अनुमान है। अगर महामारी पर जल्द काबू पा लिया जाता है तो आर्थिक स्थिति सुधर सकती है लेकिन अगर महामारी और ज्यादा फैलती है या फिर मानूसन सामान्य नहीं रहता है तो अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा।

India GDP Growth Rate 1961-2020. www.macrotrends.net. Retrieved 2020-08-06.

महामारी में महंगाई का खतरा

अर्थव्यवस्था में सुस्ती के साथ-साथ महंगाई का खतरा भी बढ़ता जा रहा है जिसे देखते हुए आरबीआई ने ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं की है। इस साल जून में वार्षिक महंगाई दर मार्च के 5.84 फीसदी के मुकाबले बढ़कर 6.09 फीसदी रह गई, जो केंद्रीय बैंक के मीडियम टर्म टारगेट से अधिक है। आरबीआई का टारगेट 2 से 6 फीसदी है।

कोरोना संकट को देखते हुए ऋणों के एक बार पुनर्गठन की छूट दे दी है। इस तरह की राहत का कॉरपोरेट जगत को बेसब्री से इंतजार था। बैंकों का कर्ज डूबने और एनपीए संकट के पीछे इस तरह के कर्ज पुनर्गठन बड़ी वजह है। हालांकि, आरबीआई ने कर्ज भुगतान में मोहलन यानी लोन मोरेटोरियम के बारे में आज कोई ऐलान नहीं किया। लोन मोरेटोरियम की अवधि 31 अगस्त को खत्म हो रही है।

साल दर साल बढ़ती आर्थिक सुस्ती

पिछले चार दशक में यह पहला मौका है जब भारत की जीडीपी ग्रोथ शून्य से नीचे रहेगी। इससे पहले सन 1979 में जनता पार्टी सरकार के वक्त जीडीपी की विकास दर शून्य से नीचे रही थी। साल 2005 से 2014 के दौरान जीडीपी की ग्रोथ रेट 7-8 फीसदी के आसपास रही है। लेकिन 2016 से जीडीपी ग्रोथ में गिरावट का सिलसिला जारी है। साल 2019-20 में देश की जीडीपी ग्रोथ 11 साल में सबसे कम 4.2 फीसदी रही थी, लेकिन इस साल तो जीडीपी में इतनी वृद्धि की उम्मीद भी नहीं है।

देश की अर्थव्यवस्था पर महामारी की मार का अंदाजा मई महीने में ही लग गया था, तभी से जीडीपी ग्रोथ निगेटिव रहने की आशंका जताई जा रही हैं। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच के मुताबिक, अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस का असर अगले कई वर्षों तक रहेगा। हालांकि, आरबीआई गवर्नर ने कृषि क्षेत्र से उम्मीद लगाते हुए कहा कि खरीफ की फसल अच्छी रहने से ग्रामीण क्षेत्र में मांग सुधरेगी। शून्य या इससे भी नीचे की विकास दर असर रोजगार, वेतन, मांग और बिक्री समेत अर्थव्यवस्था के हरेक हिस्से और हर व्यक्ति पर पड़ेगा।

जीडीपी ग्रोथ 6 साल में सबसे कम, एग्रीकल्चर ग्रोथ साल भर में हुई आधी   

अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई-सितंबर तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की ग्रोथ घटकर 4.5 फीसदी रह गई है जो पिछले छह वर्षों में सबसे कम है। पिछले साल इसी अवधि में जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी जबकि इससे पहली तिमाही में यह 5 फीसदी थी। जीडीपी ग्रोथ में गिरावट का सिलसिला पिछली 6 तिमाही से जारी है। डेढ़ साल पहले वित्त वर्ष 2017-18 की आखिरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 8.1 फीसदी थी जो अब 4.5 फीसदी रह गई है। इससे पहले इतनी कम जीडीपी ग्रोथ साल 2012-13 की आखिरी तिमाही में 4.3 फीसदी रही थी।

सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में कमी से अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्रों और उद्योगों की हालात को समझा जा सकता है। देश की आधी से ज्यादा आबादी की निर्भरता वाले कृषि क्षेत्र की ग्रोथ महज 2.1 फीसदी है जो पिछले साल की समान अवधि में 4.9 फीसदी थी। यानी एक साल में कृषि क्षेत्र की ग्रोथ घटकर आधी से भी कम रह गई है।

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भी कृषि क्षेत्र की ग्रोथ (जीवीए) 2 फीसदी थी। जबकि साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए कम से कम 10 फीसदी की ग्रोथ होनी चाहिए। लेकिन कृषि क्षेत्र की ग्रोथ बढ़ने के बजाय लगातार कम होती जा रही है। कुल मिलाकर ये आंकड़े गहराते कृषि संकट को बयान करते हैं।

इस समय सबसे बुरा हाल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का है। मेक इन इंडिया के तमाम दावों के बावजूद जुलाई-सितंबर के दौरान मैन्युफैक्चरिंग की ग्रोथ -1.0 फीसदी रही जबकि पिछले साल इसी दौरान मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 6.9 फीसदी की ग्रोथ दर्ज की गई थी। इसी तरह कंस्ट्रक्शन सेक्टर की ग्रोथ भी 8.5 फीसदी से घटकर 3.3 फीसदी रह गई है।

जीडीपी ग्रोथ में कमी का कारण कृषि, खनन और विनिर्माण जैसे अहम क्षेत्रों का फीका प्रदर्शन है। इस आर्थिक सुस्ती को उपभोक्ता मांग और निजी निवेश में कमी के अलावा वैश्विक सुस्ती से भी जोड़कर देखा जा रहा है। हाल के महीनों में केंद्र सरकार ने अर्थव्यवस्था को सुस्ती से उबारने के लिए कॉरपोरेट टैक्स में कटौती जैसी कई राहतों और रियायतों को ऐलान किया है जिसका असर दिखना अभी बाकी है। आर्थिक चुनौतियों से उबरने के लिए मोदी सरकार कई सरकारी उपक्रमों का निजीकरण भी करने जा रही है।

देश की अर्थव्यवस्था को दोबारा 8-9 फीसदी की रफ्तार देना मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में निगेटिव ग्रोथ उपभोक्ता मांग में कमी की ओर इशारा कर रही है। इसका असर रोजगार के मौकों पर पड़ना तय है। इस आर्थिक चुनौती से उबरने के लिए सरकार को कुछ बड़े कदम उठाने पड़ेंगे, लेकिन सरकार पहले ही वित्तीय घाटे से जूझ रही है। नोटबंदी की मार और जीएसटी के भंवर में फंसी अर्थव्यवस्था कुछ बड़े उपायों का इंतजार कर रही है।