क्या है जीएम सरसों? इसके खिलाफ क्यों उठ रहे हैं विरोध के सुर?

पर्यावरण मंत्रालय के जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी की ओर से जीएम सरसों के उत्पादन की मंजूरी मिलने के बाद इसका विरोध होना शुरू हो गया है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इससे देश की जैव विविधता को खतरा हो सकता है। फिलहाल इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। इस मामले को लेकर 10 नवंबर को अगली सुनवाई होगी।

सरसों रबी की मुख्य तिलहन फ़सल है. भारत में खाद्य तेल के रूप में सबसे ज्यादा सरसों के तेल का उपयोग किया जाता है. ऐसे में जीएम सरसों के उत्पादन से पैदावार बढ़ाने और खाद्य तेल पर विदेशी आयात पर निर्भरता कम करने के दावे किए जा रहे हैं। इसके अलावा मानव पर इसके नकारात्मक प्रभाव की आशंका भी जताई जा रही है।

क्या है जीएम सरसों?

जेनेटिक मोडिफाई फ़सल वह होती है जिनके जीन में कृत्रिम रूप से परिवर्तन किया जाता है अर्थात एक जीव के अंदर दूसरे जीव के लक्षण डाले जाते हैं। इससे फसलों को सूखे, खरपतवार, कीटों आदि से बचाने के साथ ही अधिक उत्पादन और पोषण भी प्राप्त किया जा सकता है।

जीएम सरसों में भी यही प्रक्रिया अपनाई गई है। कृत्रिम रूप से जीन में परिवर्तन कर पौष्टिकता और सरसों के उत्पादन में वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है। इससे पहले भी भारत में जीएम सरसों की किस्म ‘ धारा मस्टर्ड हाइब्रिड -11’ (डीएमएच -11) स्वदेशी रूप से विकसित की गई है। डीएमएच -11 सरसों का आनुवांशिकी तौर पर संशोधित रूप है। इसे वरुण नमक एक पारंपरिक प्रजाति के साथ पूर्वी-यूरोप की अर्ली-हीरा-2 के साथ क्रॉस करके विकसित किया गया है। इससे सरसों के उत्पादन में वृद्धि हुई है।

जीएम फसलों का इतिहास

1980 के दशक अमेरिका में फसलों को संशोधित करने के प्रयास शुरू हुए। 1982 में इसका प्रयोग पहली बार तम्बाकू पर किया गया। 1990 में पहली बार जीएम फसल तैयार की गई । इस विधि से अमेरिका की एक निजी कंपनी ‘कैलगेने’ ने टमाटर पर इसका प्रयोग पहली खाद्य फ़सल पर किया था। इसके बाद बैंगन, धान, मक्का, कपास, सरसों आदि फसलों पर भी इसका प्रयोग किया गया है।

भारत में जीएम फसलों की शुरुआत 1996 में हुई। भारत में पहली जीएम फ़सल ‘बीटी-कपास’ थी पहली बार इसके व्यवसायिक उपयोग की अनुमति दी गई। जीएम सरसों के परीक्षण के लिए राजस्थान के दो बड़े उत्पादक जिले श्रीगंगानगर और भरतपुर को चुना गया है। इसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को लेकर स्थानीय जनता और किसानों में संदेह बना हुआ है। कुछ किसानों का कहना है कि जीएम सरसों किसानों की पैदावार में बढ़ोतरी करेगी जिससे किसानों की आय में इजाफा होगा. वहीं कुछ प्रकृति के प्रति संवेदनशील किसानों ने इससे होने वाले नुकसान को लेकर चिंता जताई है। अभी तक इस मुद्दे पर किसानों व किसान संगठनों की मिली-जुली प्रतिक्रिया रही है।

जीएम सरसों के सकारात्मक पक्ष

कम लागत में अधिक उत्पादन
खरपतवार व कीटों जैसी समस्याओं से छुटकारा
सूखे व अन्य रोगों से छुटकारा
पोषक तत्वों की प्रचुरता (सुनहरी चावल एक जीएम खाद्य उत्पाद है जिसमे विटामिन ए की प्रचुर मात्रा है।)
विदेशी आयात नहीं करना पड़ेगा

जीएम सरसों के नकारात्मक पक्ष या संभावित खतरे

बीज पर अतिरिक्त खर्च बढ़ेगा।
बीज को दोबारा प्रयोग में नहीं लिया जा सकता।
पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव हो सकता है।
स्थानीय किस्में नष्ट हो सकती हैं।
शहद उत्पादन पर प्रभाव पड़ेगा।
स्वास्थ्य संबधी खतरे हो सकते है।
कीटों पर प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की संभावना।
खरपतवार की नई किस्म के विकसित होने की संभावना।
मिट्टी के उपजाऊपन में कमी हो सकती है (बीटी कॉटन इसका प्रबल उदाहरण है।)

राजस्थान प्रदेश में सरसों का उत्पादन

वर्ष 2019-20 , उत्पादन 42.88%
वर्ष 2020-21, उत्पादन 44.82%
वर्ष 2021-22, उत्पादन 71.60%

(नोट : आंकड़े लाख मीट्रिक टन में)

कृषि महानिदेशक, श्रीगंगानगर जीआर मटोरिया ने हमें बताया, “अभी जीएम सरसों का परीक्षण शुरू होना है, फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में है, कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है। इसके सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष परीक्षण होने के बाद पता चलेंगे।”

ग्रामीण किसान-मजदूर समिति श्रीगंगानगर के अध्यक्ष संतवीर सिंह मोहनपुरा ने बताया, “सुनने में आया है कि जीएम सरसों के परीक्षण के लिए श्रीगंगानगर व भरतपुर को चुना गया है. इसके सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष को देखते हुए इस मामले पर उचित प्रतिक्रिया दी जाएगी।”

हरियाणा में सरसों खरीद को लेकर किसान नाराज क्यों हैं?

हरियाणा में सरसों पैदा करने वाले किसान गुस्से में हैं। पिछले कई दिनों से इन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सरसों की सरकारी खरीद को लेकर हरियाणा के किसानों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

हरियाणा में इस साल सरसों की अच्छी पैदावार हुई है। इसके बावजूद सरसों किसानों को अपनी फसल के बदले उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। दरअसल, केंद्र सरकार ने इस सीजन के लिए सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,200 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। लेकिन किसानों को इस दर से प्रति क्विंटल 800 से 900 रुपये कम मिल रहे हैं।

दूसरी समस्या यह हो रही है कि किसानों की कुल पैदावार की सरकारी खरीद हरियाणा के मंडियों में नहीं हो पा रही है। सरकार ने अधिकतम खरीद की सीमा तय कर रखी है। यह सीमा प्रति एकड़ 6.5 क्विंटल की है। लेकिन हरियाणा से यह जानकारी मिल रही है कि इस साल वहां प्रति एकड़ औसतन 10 से 12 क्विंटल सरसों का उत्पादन हुआ है।

इस लिहाज से देखें तो किसानों से उनकी सरसों की कुल पैदावार को मंडियों में नहीं खरीदा जा रहा है। इसके अलावा मंडियों में एक दिन में एक किसान से 25 क्विंटल सरसों खरीदने की अधिकतम सीमा भी तय की गई है। इन दोनों वजहों से किसानों को खुले बाजार में औने-पौने दाम में सरसों बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है।

पिछले दिनों स्वराज इंडिया पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक योगेंद्र यादव ने हरियाणा की कुछ मंडियों का दौरा करके सरसों किसानों की समस्याओं को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश की थी। उन्होंने आरोप लगाया है कि किसानों से खरीदी जा रही सरसों की फसल की तौल में भी किसानों के साथ धोखा किया जा रहा है। उनका आरोप है कि हर बोरी पर किसानों की फसल लूटी जा रही है। योगेंद्र यादव ने सरकार से मांग की कि इस समस्या को दूर करने के साथ खरीद पर तय की गई अधिकतम सीमा तत्काल हटाई जानी चाहिए।

सरसों किसानों की समस्या बढ़ाने का काम खरीद एजेंसी में बदलाव की वजह से भी हुआ है। पहले हरियाणा में सरसों खरीद का काम नैफेड और हैफेड के माध्यम से किया जा रहा था। लेकिन इन एजेंसियों का खरीद लक्ष्य पूरा हो गया। जबकि मंडियों में सरसों की आवक जारी रही। इस वजह से अब सरसों खरीद का काम खाद्य एवं आपूर्ति विभाग को दिया गया है। खरीद एजेंसी में हुए इस बदलाव से हरियाणा के विभिन्न मंडियों में अव्यवस्था बनी हुई है।

एजेंसी बदलने की वजह से किसानों को नए सिरे से रजिस्ट्रेशन कराना पड़ रहा है। क्योंकि बगैर रजिस्ट्रेशन के किसानों की सरसों नहीं खरीदने का प्रावधान किया गया है। एजेंसी में बदलाव किए जाने की वजह से खरीद प्रक्रिया ठीक से चल नहीं रही है। प्रदेश में कुछ जगहों पर तो नाराज किसानों ने हंगाम भी किया। कुछ जगहों पर किसानों ने सड़क जाम भी किया।

बहादुरगढ़ की मंडी में सरसों किसानों को हंगाम करने का बाध्य होना पड़ा तब जाकर सरसों खरीद शुरू हो सकी। बहादुरगढ़ मंडी में खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ही गेहूं की खरीद भी कर रहा है। इस वजह से न तो मंडी में विभाग के पर्याप्त कर्मचारी थे और न ही कोई उपयुक्त व्यवस्था बन पाई।

हरियाणा की मंडियों में सरसों की सरकारी खरीद ठीक से नहीं होने की वजह से कुछ मंडियों में सरसों से लदे ट्रालियों की लंबी कतारें लगी हुई हैं। रेवाड़ी में नाराज सरसों किसानों ने सड़क जाम किए। यहां किसानों से सरसों की खरीद ही शुरू नहीं हो पा रही थी। जबकि उन्हें सरसों खरीदने से संबंधित टोकन जारी हो गया था।

सरसों किसानों को इन समस्याओं का सामना तब करना पड़ा है जब केंद्र सरकार में बैठे नीति निर्धारक तिलहन के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने और खाद्य तेलों का आयात कम करने की बात लगातार कर रहे हैं। केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने दोबारा सत्ता में आने के बाद तिलहन मिशन शुरू करने का वादा किया है। मार्च, 2019 में भारत ने 14.46 लाख टन खाद्य और अखाद्य तेलों का आयात किया।

एक तरफ भारी आयात है तो दूसरी तरफ देश में हो रहे उत्पादन की खरीदारी ठीक से नहीं हो रही है। ऐसे में क्या ये किसान फिर से सरसों उपजाने का निर्णय लेंगे? अगर ये फिर से सरसों नहीं उपजाते हैं या उपजाते भी हैं तो अगर सरसों की खरीद ठीक ढंग से नहीं हो पाती है तो क्या देश को तिलहन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का सपना पूरा हो पाएगा।