कृषि विधेयकों की इन खामियों को दूर करना जरूरी

सरकार द्वारा हाल ही में तीन कृषि विधेयक लाये गये जिसका किसानों में भारी विरोध है क्योंकि इन अध्यादेश से किसानों को अपना वजूद खत्म होने का डर हैं। और डर का मुख्य कारण हैं विधेयकों में आई विसंगतियां! इन विसंगतियों को दूर करने के लिए भारतीय किसान संघ ने सरकार को सुझाव दिया है कि किसानों की फसल खरीद के भुगतान की गारंटी सरकार ले क्योंंकि किसान मंडी के बाहर फसल विक्रय हेतु देगा तो क्या गारंटी कि उसका भुगतान व्यापारी द्वारा समय पर किया जायेगा। इसलिए सरकार गारंटर की भूमिका में रहे।

मंडियों में जब किसान अपनी फसल लेकर आता है तब उसे 8-10 फीसदी तक मंडी शुल्क देना पड़ता है। इसका फायदा यह था कि व्यापारी को किसानों का भुगतान समय पर करना पड़ता था क्योकि मंडी प्रशासन द्वारा व्यापारी पर समय पर भुगतान करने का दबाव रहता था। किन्तु व्यापारी जब मंडी के बाहर फसल खरीदेगा तो गारंटी कौ लेगा? इसलिए भारतीय किसान संघ गारंटर के रूप में सरकार को रहने की मांग करता है।

नये विधेयक में व्यापारी अगर तीन दिन में किसानों का भुगतान नहीं करता है तो पांच लाख रुपये तक का अर्थ दंड या दस हजार रुपये प्रति दिन है। यह बहुत कम है इसलिए इस पर कोई सुरक्षा कवच होना चाहिए। इसके अलावा सरकार जिन 24 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करती हैं, उन पर खरीद की अनिवार्यता का कोई प्रावधान इन विधेयकों में नहीं है। जबकि कहीं भी न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे फसल की खरीद-बिक्री ना हो इसकी पुख्ता व्यवस्था सरकार द्वारा की जानी चाहिए जो इन विधेयकों के अंदर दिखाई नहीं देती है।

सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारण करने की विधि ठीक नहीं है। सरकार के बार-बार संज्ञान मे लाने के बाद भी एमएसपी A2+FL से निर्धारित की जाती हैं जबकि किसानों को लाभकारी मूल्य तभी मिलेगा जब एमएसपी C2 के आधार पर तय की जाए। कांट्रैक्ट खेती या अनुबंध आधारित खेती मे कंपनी और किसान के बीच विवाद की स्थिति उत्पन्न होने पर न्याय क्षेत्र एसडीएम, कलेक्टर या अन्य अनुविभागी अधिकारी को ना रखते हुए कृषि न्यायालयों की स्थापना होनी चाहिए क्योंकि एसडीएम, कलेक्टर या अन्य अधिकारी पर काम का बोझ ज्यादा रहता है जिससे वह समय पर सुनवाई करने में असमर्थ हैं। एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसमें हल चला कर मेहनत करने वालों, ट्रैक्टर चलाने वालों का देश है। यहां पूंजीपतियों, कंपनियों और कॉर्पोरेट को कभी भी कृषक के तौर पर मान्यता नहीं दी जानी चाहिए।

हाल में मध्यप्रदेश सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर कहा है कि निजी मंडियों को मान्यता दी जाएगी। इसका अर्थ है कृषि बाजार केवल एपीएमसी के अधिकार क्षेत्र में नहीं रहेगा। यहां होना यह चाहिए कि जिन 24 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाता है उस पर खरीद की गारंटी हो और सरकार एक बिल लेकर आये जिसका नाम एमएसपी गारंटी कानून हो। किसानों की फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे खरीदना दण्डनीय अपराध हो।

इसके अलावा जो व्यापारी कृषि उपज का व्यापार करना चाहता है उसे राज्य अथवा केन्द्र सरकार के अंतर्गत लाइसेंसधारी होना चाहिए। उसकी कोई सुरक्षित राशि यानी एफडी कहीं ना कहीं जमा होना चाहिए, उसको घोषित करो और एक एप्प बनाकर उसे सार्वजनिक करे। जिससे कोई भी किसान अपनी उपज बेचने से पहले उसे देखकर अपना वहम दूर कर ले। और तीसरी बात, कंपनी या कॉर्पोरेट को किसान का दर्जा ना दिया जाए। साथ ही देश में कृषि न्यायालय की स्थापना की जानी चाहिए और न्याय का क्षेत्र कृषक का गृह जिला होना चाहिए।

अगर अगले संसद सत्र में भारतीय किसान संघ की मांग के अनुसार किसानों के अनुकूल इसमे बदलाव नहीं किये गये तो भारतीय किसान संघ जन आंदोलन के माध्यम से सड़को पर उतरेगा

(लेखक भारतीय किसान संघ, सतवास, जिला देवास मध्यप्रदेश से जुड़े हैं)

दिखने लगा महाराष्‍ट्र के मंडी कानून में बदलाव का असर

मंडी कानून में बदलाव कर किसानो को ये अधिकार दे दिया गया की वे चाहें तो अपना उत्पाद डायरेक्ट उपभोक्ता या रिटेलर को बेच सकते हैं।

टमाटर 30 रुपया किलो खीरा 15 रुपया किलो भिन्डी और करेला 40 रुपय किलो! सब्जियों के ये दाम मुंबई में हैंं। मात्र 20 दिन पहले ये सभी सब्जियां 80 से 100 रुपया किलो बिक रही थीं। आम तौर पर बरसात के मौसम में सप्लाई की किल्‍लत रहती है। कभी फसल नुकसान के नाम पर तो कभी ट्रांसपोर्टेशन में दिक्कत के नाम पर अगस्त-सितम्बर में सब्जियां महँगी बिकती थीं। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है।

दरअसल पिछले महीने महराष्ट्र सरकार ने फल और सब्जियों को APMC यानी कृषि उत्‍पादन मंडी समिति की लिस्ट से बहार कर दिया। मंडी कानून में बदलाव कर किसानो को ये अधिकार दे दिया गया की वे चाहें तो अपना उत्पाद सीधे उपभोक्ता या रिटेलर को बेच सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे गाँव और छोटे कस्बों के बाज़ार में किसान सब्जी बाज़ार में अपना उत्पाद ले जाकर सीधे ग्राहकों को बेचते हैं। ऐसा ही कुछ हो रहा है मुंबई और उपनगरीय इलाकों में जहाँ किसान सीधे रिटेलर को अपना उत्पाद बेच रहे हैं इससे मार्केट में सप्लाई अचानक बढ़ गई है।

व्‍यापारियों की तरफ से पहले तो इस बदलाव का काफी विरोध हुआ। खास करके कमीशन एजेंटों ने इसका विरोध किया और सरकार पर दबाव बनाने के लिए तीन चार दिन के लिए राज्य भर की मंडियों को बंद कर दिया। नतीजा सब्जियों के दाम आसमान पर चढ़ने लगे। यह अफवाह भी फैलाई गई कि बगैर एजेंटों के कृषि बाज़ार का अस्तित्व ही नहीं रहेगा। दरअसल नए कानून के तहत किसानों से अब वे 4 से 6% का कमीशन नहीं ले सकते। बल्कि खरीददारों से उन्हें ये कमीशन लेना होगा। यहाँ ये बात बतानी ज़रूरी है कि अगर किसान डायरेक्ट अपना माल रिटेलर या कंजूमर को बेचता है तो कमीशन एजेंटों को कुछ भी वसूलने का हक़ नहीं होगा।

हालाँकि अभी यह बदलाव शुरूआती चरण में है। कमीशन एजेंट अभी भी दखल बनाने की कोशिश मेंं हैं लेकिन खबरे ये भी आ रही हैंं कि किसान अपना ग्रुप या अग्रीगेटर बना रहे हैं जो पूरे समूह की सब्जी को लेकर मुंबई जैसे बड़े बाजारों तक जायेंगे। अगर यह व्यवस्था सफल होती है तो पूूरे देश के लिए एक मिसाल कायम होगी। फिलहाल महाराष्ट्र के आलावा मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश और कर्णाटक में इस तरह की व्यवस्था है। लेकिन महाराष्ट्र में मुबई जैसे बड़े बाजार में ये ज्यादा असरदार दिख रही है। केंद्र सरकार ने पिछले साल ही फल और सब्जियों को APMC से बहार कर दिया था लेकिन कृषि बाजार राज्यों की सूची में होने की वजह से इसे लागू करने का अधिकार राज्यों पर ही है।