शिमला: किसान नेताओं का अधिवेशन, छाया रहा किसान आय का मुद्दा

 

किसान एकता के बैनर तले शिमला में देश भर के किसान नेताओं का सम्मेलन चल रहा है। मौजूदा कृषि संकट और किसानों की आत्महत्याओं के मद्देनज़र यह अधिवेशन किसान आंदोलनों को एक मंच पर लाने का प्रयास है। इस दौरान किसानों के मुद्दों को राजनैतिक एजेंडे में लाने की रणनीति पर भी व्यापक चर्चा हो रही है। अधिवेशन के पहले दिन किसानों को आय की गारंटी दिलाने और न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म करने की सरकार की कोशिशों के खिलाफ किसान एकजुटता पर जोर दिया गया।

अधिवेशन के आयोजन में अहम भूमिका निभा रहे कृषि नीति के विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने बताया कि इस तरह का यह तीसरा सम्मेलन है जिसमें मणिपुर से लेकर राजस्थान और केरल से लेकर हिमाचल तक के किसान नेता भागीदारी कर रहे हैं। इससे पहले बेंगलुरु और चंडीगढ़ में इस तरह के दो अधिवेशन हो चुके हैं। इस अधिवेशन का मकसद किसानों से जुड़े अहम नीतिगत मसलों पर किसान नेताओं और संगठनों के बीच सामूहिक समझ विकसित करना है। खास बात यह है कि अधिवेशन में फिशरिज और डेयरी से जुड़े किसान नेताओं को भी बुलाया गया है। अब तक के विचार-विमर्श में किसानों को निश्चित आमदनी की गारंटी और पेंशन के मुद्दे पर किसान संगठन के बीच सहमति बन चुकी है।

अधिवेशन में किसान नेता ने न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की प्रणाली में खामियों और किसानों को उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है। समर्थन मूल्य तय करने वाली संस्था केंद्रीय कृषि एवं लागत मूल्य आयोग यानी सीएसीपी की कार्यप्रणाली को लेकर भी किसानों में काफी असंतोष हैे। हिमाचल प्रदेश के किसान नेता और फल, फूल एवं सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष हरीश चौहान का कहना है कि सरकार ने सेब  का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के लिए लागत को बेहद कम आंका है जबकि असल लागत इससे कहीं ज्यादा है! खाद, बीज व कीटनाशक आदि इनपुट के कई साल पुराने दामों के आधार पर फसल लागत की गणना की जाती है। भारतीय किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश सिरोही ने भी समर्थन मूल्य का दायरा बढ़ाने और फसल लागत तय करने की प्रणाली में सुधार के लिए किसानों के एकजुट होने पर जोर दिया।

फसल लागत पर 50 फीसदी दाम के चुनावी वादों को मोदी सरकार द्वारा पूरा नहीं करने और समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म करने की कोशिशों को लेकर किसानों में खासी नाराजगी देखी जा रही है। भारती किसान यूनियन पंजाब के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल ने बताया कि वह पिछले 45 साल से समर्थन मूल्य की लड़ाई लड़ते आ रहे हैं। हालांकि, न्यूनतम समर्थन मूल्य का फायदा सिर्फ कुछ चुनिंदा फसलों तक ही पहुंचा है। इसलिए देश भर के किसानों की दिक्कतों का हल सिर्फ समर्थन मूल्य से संभव नहीं है। इसलिए हम निश्चित आमदनी की गारंटी मांग रहे हैं।

राजनस्थान के किसान नेता रामपाल जाट का कहना है कि आमदनी की गारंटी का कानूनी अधिकार दिए बगैर किसानों की दिक्कतों का समाधान संभव नहीं है। भारतीय किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश सिरोही ने भी समर्थन मूल्य का दायरा बढ़ाने और फसल लागत तय करने की प्रणाली में सुधार के लिए किसानों के एकजुट होने पर जोर दिया।

अधिवेशन के पहले दिन इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स और फ्री ट्रेड एंग्रीमेंट यानी एफटीए से जुडे मुद्दों को किसान नेताओं के सामने रखा। अधिवेशन में प्रस्ताव पारित किया जाएगा कि खेती और किसानों से जुडा कोई भी इंटरनेशनल एग्रीमेंट करने से पहले सरकार किसानों के साथ विचार विमर्श करे।

इस दो दिवसीय अधिवेशन में भारतीय किसान यूनियन-राजेवाल, केआरआरएस कर्नाटक, भाकियू पंजाब, भाकियू अम्बवता, राष्ट्रीय किसान मज़दूर संघ, ऑल इंडिया किसान सभा, भारतीय किसान मोर्चा, एकता परिषद्, शेतकारी संगठन महाराष्ट्र, हरित सेना केरल सहित कई किसान संगठनों ने हिस्सा लिया।