सरकारी योजनाओं से वंचित सपेरा जनजाति, सरकार के ‘हर घर नल-से-जल’ के दावे की खुली पोल!  

 

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के विधानसभा क्षेत्र और स्मार्ट सीटी करनाल के गांव फुरलक में सरकारी योजनाएं सपेरा जनजाति तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ रही हैं. पिछले 40 साल से गांव के बाहरी छोर पर पानी से लभालभ जोहड़ (तालाब) के किनारे रह रहे सपेरा जनजाति के परिवार सरकार की अनदेखी का शिकार हैं.

दोपहर के करीब 2 बजे हैं भीम नाथ सपेरा अपनी मोटरसाइकल के दोनों और लटके कबाड़ से भरे कट्टे उतारकर आराम करने की मुद्रा में हैं। भीम नाथ बचपन से बीन के लहरे और सांपों से खेल के बीच बड़े हुए हैं लेकिन अब सरकार द्वारा सांप रखने और सांप का खेल दिखाने पर रोक लगाए जाने के बाद सपेरा जनजाति के लोगों का रहन सहन पूरी तरह से बदल गया है। करीबन 38 साल के भीम नाथ, कबाड़ी का काम करते हैं। भीम नाथ गांव-गांव जाकर रद्दी खरीदते हैं और उसे कबाड़ी की दुकान पर बेचकर अपने परिवार का गुजर-बसर कर रहे हैं।  

गांव के जोहड़ के ठीक सामने पेड़ की छाव तले बनी बांस की झोपड़ी के नीचे बैठे भीमनाथ ने बताया, “दोपहरी का वक्त है तो कबिले के अधिकतर लोग काम-धंधे के लिये बाहर गए हैं। पहले बीन बजाने और सांप का खेल दिखाने का काम करते थे लेकिन अब हमारे अधिकतर लोग कबाड़ी का काम करते हैं.”  

सिर पर सफेद परना बांधे और गले में ओम की आकृति का बड़ा-सा लोकट पहने भीम नाथ ने बताया, “चालीस साल पहले गांव में एक आदमी को सांप काट गया था जिसके बाद मेरे पिता ने उसका इलाज किया था. इलाज के बदले गांव वालों ने हमें इसी गांव रहने के लिए जमीन दे दी थी, तब से हम लोग इसी गांव में रह रहे हैं।

वहीं पास बैठे युवा संजय ने बताया, “हमारे पास आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर कार्ड जैसे सभी कागजात हैं. चुनावों में नेता लोग केवल वोट मांगने आते हैं. चुनाव के बाद कोई देखने तक नहीं आता.”     

22 मार्च को जल दिवस पर हरियाणा सरकार ने दावा किया था कि प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार के 2024 के ‘हर घर, नल से जल’ पहुंचाने का लक्ष्य हासिल कर लिया है. लेकिन मुख्यमंत्री मनोहर लाल के विधानसा क्षेत्र से मजह 20 किलोमीटर दूर सपेरा जनजाति के लोगों तक कोई नल की सुविधा नहीं पहुंची है. यहां मौजूद 11 परिवार गली के कोने पर लगे केवल एक नल से पानी भरते हैं.    

गांव के बाहर रह रहे 11 सपेरा परिवारों में से केवल पांच परिवारों के पास बीपीएल कार्ड है. बीपीएल कार्ड बनवाने के लिए सरकारी दफ्तरों के कईं चक्कर काट चुके हैं लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई. अधिकारी हर बार गांव में दोबारा सर्वे होने का बात कह कर टला देते हैं.

प्रधानमंत्री आवास योजना से कोसों दूर सपेरा जनजाति के लोग बांस और तिरपाल की बनी झोपड़ी में रह रहे हैं. केवल चार परिवारों के पास पक्के मकान है उनमें से केवल दो मकानों के लिए सरकारी मदद मिली थी.    

कबीले में केवल बलजीत नाथ हैं जो आसपास के गांवों में चून (आट्टा) मांगने जाते हैं। सुरजीत नाथ पहले गले में सांप डालकर मांगने जाते थे लेकिन अब वो बिना सांप के ही गांव में मांगने के लिए जाते हैं।  

रीति रिवाज के सवाल पर भीम नाथ ने बताया,  “पहले लड़की की शादी में कन्यादान के तौर पर एक सांप और बीन देते थे लेकिन अब यह रीति भी खत्म हो चुकी है.”