विद्यार्थियों के मुंह पर ताले जड़ते विश्वविद्यालय

 

हरियाणवी में एक कहावत है, “ठाड्डा मारै भी और रोण भी ना दे.” जिसका मतलब है, ताकतवर कमजोर को पीटता भी है और रोने भी नहीं देता. लेकिन क्या हो अगर ताकतवर इस से भी आगे बढ़कर कहे कि पीटेंगे भी और अगर रोना भी है तो कैसे रोना है यह भी वह खुद ही तय करेंगे?

पिछले कुछ समय में उत्तर भारत के कई विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राओं की कुछ इसी तरह की घेराबंदी हुई है. पहले विश्वविद्यालय प्रशासन फीस बढ़ाता है और जब विद्यार्थी इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाते हैं तो कहा जाता है कि बिना अनुमति के आप धरने-प्रदर्शन नहीं कर सकते. अगर करेंगे तो विश्वविद्यालय प्रशासन तय करेगा कि किस हिसाब से होगा और कहां होगा.

 22 अप्रैल को दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोक्टर कार्यालय ने एक नोटिस जारी कर कहा है, “अगर कोई भी संगठन यूनिवर्सिटी कैंपस में प्रदर्शन, धरना, रैली या किसी भी तरह का प्रोग्राम करना चाहता है, तो उसे लिखित में प्रॉक्टर ऑफिस से आज्ञा लेनी होगी.” जिस प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन करना है उसी प्रशासन से अनुमति लेनी है.

डीयू प्रॉक्टर द्वारा जारी किए गए इस नोटिस में कहा गया है कि किसी भी प्रकार के जुटान, प्रतिरोध या प्रदर्शन के लिए छात्रों को विश्वविद्यालय प्रशासन से 24 घण्टे पहले अनुमति लेनी आवश्यक है. साथ ही आयोजक छात्रों छात्राओं को अपनी पूरी अकादमिक जानकारी देनी होगी. प्रशासन के इस नोटिस के ख़िलाफ़ छात्र संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से 25 अप्रैल को डीएसडब्ल्यू को ज्ञापन सौंपा गया है. छात्र संगठनों का आरोप है कि 22 अप्रैल को नई शिक्षा नीति के खिलाफ़ छात्र संगठनों और अध्यापक संगठनों ने मिलकर एक बड़ा प्रदर्शन किया था, कैम्पस में इस तरह की आवाज़ों को उठने से रोकने के लिए ही प्रशासन ने यह नोटिस इस प्रोग्राम के तुरंत बाद ही निकाला है.

इस से पहले भी सर्वोच्च न्यायालय के वकील प्रशांत भूषण के कार्यक्रम को प्रशासन बिलकुल शुरू होने से पहले ही रद्द कर चुका है. बीती 25 मार्च को “भारतीय संविधान के सामने चुनौतियां” नाम से यह प्रोग्राम होना था, जिसे शुरू होने से ठीक पहले रद्द कर दिया गया. ऐसा ही एक कार्यक्रम 19 अप्रैल को भगत सिंह छात्र एकता मंच ने रखा था, जिसको रद्द करने की पूरी कोशिश की गई और अंत में सिर्फ चर्चा तक इस कार्यक्रम को सीमित कर दिया गया.

24 अप्रैल को रविवार के दिन हरियाणा में रोहतक के महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय (एमडीयू) के रजिस्ट्रार ने भी इसी तरह का आदेश जारी किया है, जिसमें उन्होंने कहा है, “वीसी के आवास,सचिवालय, परीक्षा सदन, पुस्तकालय, शिक्षण खंड, टैगोर सभागार, आरके सभागार, छात्रावास परिसर और विश्वविद्यालय के गेटों के 100 मीटर के दायरे में किसी भी संघ/संगठन/व्यक्तियों के समूह द्वारा कोई धरना/प्रदर्शन नहीं किया जाएगा.”  अप्रत्यक्ष तौर पर प्रशासन कहना चाहता है कि विश्वविद्यालय में कहीं भी धरना प्रदर्शन नहीं कर सकते. अगर करना है तो 72 घण्टे पहले अनुमति लेनी होगी. मदवि के छात्र संगठनों ने कहा है कि वे 26 अप्रैल को इस फैसले की प्रति जलाकर विरोध करेंगे. छात्र एकता मंच से नरेश, छात्र युवा संघर्ष समिति से लोकेश, दिशा छात्र संगठन से इंद्रजीत अरविन्द, वाल्मीकि छात्र महासभा से रमन ने संयुक्त रूप से कहा,”हमें संगठित होकर विरोध करने का हक संविधान में मिला है जिसे प्रशासन खत्म कर रहा है. यह विद्यार्थियों की आवाज़ दबाने का प्रयास है जिसे हम सहन नहीं करेंगे.“ 

इस साल मदवि प्रशासन ने अलग-अलग तरह की फ़ीसों में दो से ढाई गुना तक बढ़ोतरी की है. विद्यार्थी बढ़ी हुई फ़ीसों के खिलाफ़ संघर्ष कर रहे हैं. 19 अप्रैल को छात्र संगठनों ने प्रदर्शन कर चेतावनी दी थी कि अगर फीस कम नहीं की गई, तो 25 अप्रैल को स्थाई धरना शुरू करेंगे. धरना शुरू करने से ठीक एक दिन पहले प्रशासन ने यह नोटिस निकाला गया है. इसके बावजूद विद्यार्थी लाइब्रेरी के पास धरने पर बैठे हुए हैं.

एक ऐसा ही आदेश चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय के प्रशासन ने 20 अप्रैल को निकाला था. पंजाब विश्वविद्यालय प्रशासन ने बढ़ी हुई फीस का विरोध कर रहे विद्यार्थियों को रोकने के लिए नोटिस निकाला था कि उन्हें हर समय अपने पहचान पत्र साथ रखने होंगे. अगर प्रदर्शन में शामिल कोई भी विद्यार्थी पहचान पत्र नहीं दिखाता है, तो उसको एक हफ्ते के लिए विभाग से सस्पैंड कर दिया जाएगा.

सिर्फ इतना ही नहीं है, अगर कोई विद्यार्थी वाइस चांसलर से मिलना चाहता है तो यह अब मुश्किल होने के साथ-साथ नामुमकिन होता जा रहा है. एमडीयू के छात्र सुमित कुमार ने गांव सवेरा को बताया, “एमडीयू वीसी ने छात्रों से मिलकर उनकी समस्या सुनने की परपंरा और कर्तव्य से पूरी तरह पल्ला झाड लिया है. सिक्योरिटी गार्डस को वीसी की तरफ से आदेश है कि छात्रों को मेरे ऑफिस में ना भेजा जाए. इस आदेश की पालना में गार्ड छात्रों के साथ बदतमीजी तक उतर आते हैं. कई दफे तो वीसी से मिलने आए छात्रों को घसीट कर ऑफिस से बाहर निकाला गया है.”

सुमित ने बताया कि एमडीयू के वीसी से मिलने के लिए 5 दरवाजों से होकर गुजरना पड़ता है और हर दरवाजे पर पूछताछ की जाती है. ऐसे में कोई आम छात्र तो वीसी से मिलने की सोच भी नहीं सकता. छात्र संगठनों के साथ भी वीसी का यही रवैया रहता है. जब छात्र संगठन विरोध-प्रदर्शन करते हुए वीसी से मिलने जाते है तो गार्डस का एक ही सुर निकलता है “V. C नहीं मिला करता और बता दो किसतै मिलना है”.

छात्र युवा संघर्ष समिति के लोकेश कुमार हमें ने बताया, “वीसी का यह बर्ताव केवल उन्हीं छात्र संगठनों के साथ होता है जो लगातार छात्र हितों की आवाज उठाते रहते हैं. ऐसे छात्र संगठन एमडीयू प्रशासन की आंख की किरकिरी बने हुए हैं. इसके उल्ट भाजपा की छात्र विंग एबीवीपी व अन्य छात्र संगठन जो वीसी की जी हुजूरी में लगे रहते हैं, उनको एमडीयू वीसी का पूरा स्पोर्ट रहता है. बीती 23 मार्च को ऐसे ही एक छात्र संगठन के कार्यक्रम मे एमडीयू वीसी ने स्वयं मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत की थी. वीसी ऑफिस में छात्रों को मोबाइल ले जाने की मनाही है. बाहर ही गार्ड द्वारा उनके मोबाईल ले लेते हैं, जबकि वीसी के चहेते छात्र संगठन एबीवीपी के कार्यकर्ता वीसी ऑफिस में मोबाइल भी लेकर जाते है और उनके साथ फोटो भी खिंचवाते है और सुबह अखबार में खबर भी छपी मिलती है. यह दोगला व्यवहार छात्रों के साथ एमडीयू वीसी सरेआम करते हैं.”

यही हाल दिल्ली विश्वविद्यालय का भी है. डीयू के राजनीति विज्ञान विभाग के छात्र दीपक ने गाँव सवेरा को बताया, “कोई भी साधारण छात्र या छात्रा वीसी से नहीं मिल सकता. वीसी से मिलना इतना आसान नहीं है. अपने ऑफिस में वह आते जरूर हैं लेकिन साधारण छात्र-छात्राओं की परेशानी से उन्हें कोई सरोकार नहीं है.”

छात्र अधिकार कार्यकर्ता और पंजाब विश्वविद्यालय के छात्र गगन बताते हैं, “पिछले चार साल में वाइस चांसलर एक बार भी नहीं मिले हैं. भाजपा के आने के बाद ज़्यादातर वाइस चांसलर या तो संघ की पृष्ठभूमि से आ रहे हैं या फिर उसकी विचारधारा से प्रभावित. पहले अथॉरिटी और विद्यार्थियों के बीच एक चर्चा चलती रहती थी, लेकिन अब यह चर्चा रुक गयी है. सारी शक्तियां वाइस चांसलर ने खुद तक सीमित कर ली हैं और खुद विद्यार्थियों से मिलते भी नही हैं. वाइस चांसलर ने अपने घर के चारों तरफ ऐसी तार पुरवा रखी है, जैसे अफगानिस्तान में अमेरिकन एंबेसी हो.“ 

आखिर क्यों हो रहा है यह सब?

द कैरवैन पत्रिका के संपादक हरतोष सिंह बल ने अप्रैल 2019 में एक रिपोर्ताज “सोच पर कब्जा: RSS की बौद्धिक जगत में घुसपैठ” के नाम से लिखा था. इस रिपोर्ताज में वह समझाने कि कोशिश करते हैं कि कैसे शिक्षा जगत में संघ अपनी विचारधारा के अधिपत्य को स्थापित करने के उद्देश्य से काम कर रहा है.

इसी तरह की राहुल संपाल की एक स्टोरी जुलाई 2020 में द प्रिंट में छप चुकी है, जिसमें वह बताते हैं कि किस तरीके से देश के प्रमुख शैक्षणिक, कला और सांस्कृतिक संस्थानों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा के लोगों को बैठाया जा रहा है.