पंजाब में कपास की सफेदी कम, धान पर जोर अधिक! नहीं पूरा हुआ कपास की बिजाई का सरकारी लक्ष्य

 

लगातार तीन सालों से कपास की फसल पर हो रहे कीटों के हमले से पंजाब के किसान परेशान हैं. सूबे के कुछ इलाकों में तो इससे बड़ा भारी नुकसान होता है. इसी वजह से कृषि विभाग भी अलर्ट पर है.

कपास की फसल पर फूल आने वाले हैं, लेकिन उससे पहले ही कीटों ने फसल को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया हैं. पंजाब के कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां ने गुरुवार को मानसा जिले के खैरा कलां, मानखेड़ा गांवों का दौरा किया और किसानों से कहा कि अगर कपास की फसल पर कीट नुकसान पहुंचाते हैं तो किसान विभाग के अधिकारियों के दिए निर्देशों के हिसाब से उसका हल कर सकते हैं.

साल 2021 और 2022 में कपास की फसल में गुलाबी सूंडी (पिंक बॉलवर्म) और सफेद मक्खी से हुए नुकसानों के कारण इस साल पहली बार पंजाब में कपास की बिजाई 2 लाख हेक्टेयर रकबे से कम हुई है. सफेद मक्खी और गुलाबी सूंडी जैसे कीटों के हमले के कारण कपास के किसान अपनी लागत कर निकालने में नाकाम रह रहे हैं. सफेद मक्खियां पौधे का रस चूसकर कपास को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे कपास का पौधा सही तरह से बड़ा नहीं हो पाता और उससे कपास की उपज में कमी आ जाती है, जबकि गुलाबी सूंडी के लारवा, कपास के फूल के बीजों को खाते हैं, जिससे फसल के रेशे नष्ट हो जाते हैं जिसके कारण कपास के उत्पादन में भारी कमी दर्ज की गई है.

पंजाब में कपास का रकबा लगातार घटता जा रहा है,

किसानों ने इस बार फिर से सफेद कपास के स्थान पर धान को तवज्जो दी है. इस साल सरकार ने तीन लाख हेक्टेयर में सफेद कपास का लक्ष्य रखा था, लेकिन इस खरीफ सीजन में पंजाब में अब तक का सबसे कम 1.75 लाख हेक्टेयर कपास का रकबा ही बिजा गया है.

लगातार घटती पैदावार से परेशान किसानों ने कपास की खेती से मुंह मोड़ने का मन बना लिया है, किसान कीटों के हमले की जानकारी विभाग को देते हैं लेकिन विभाग के आश्वासन के बावजूद उन्हें पिछले साल भारी नुकसान उठाना पड़ा और अब खेतों में खड़ी इस साल की फसल की चिंता है.

पंजाब में 90 के दशक में सात लाख हेक्टेयर में कपास की खेती होती थी लेकिन बाद के वर्षों में यह धीरे-धीरे कम होती गई. साल 2012-13 में कपास की खेती 4.81 लाख हेक्टेयर में हुई थी, जो 2017-18 में घटकर 2.91 लाख हेक्टेयर रह गई थी. साल 2018-19 में कपास की खेती का क्षेत्रफल 2.68 लाख हेक्टेयर रहा, लगातार कम होते होते साल 2019-20 में सिर्फ 2.48 लाख हेक्टेयर रकबा ही रह गया.

साल 2020-21 में भी कपास का रकबा 2.51 लाख हेक्टेयर पर सिमटकर रह गया था और मौजूदा साल में यह 2 लाख का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाया है.