वैश्विक बाजार में यूरिया की कीमत 45 फीसदी तक घटी, मांग में गिरावट का असर
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उर्वरकों की रिकॉर्ड बनाती कीमतों के चलते बढ़ते सब्सिडी बजट के मोर्चे पर सरकार को कुछ राहत मिलती दिख रही है. यह राहत यूरिया की कीमतों में आई भारी गिरावट के चलते मिलेगी. फरवरी के बाद से ऑफ सीजन और मांग में भारी कमी के कारण वैश्विक बाजार में यूरिया और इसके कच्चे माल अमोनिया की कीमतों में काफी गिरावट दर्ज की गई है. उद्योग सूत्रों के मुताबिक करीब एक हजार डॉलर तक पहुंची यूरिया की कीमतें घटकर 550 डॉलर प्रति टन पर आ गई हैं. वहीं यूरिया के कच्चे माल अमोनिया की कीमत भी 1100 डॉलर प्रति टन से घटकर 850 डॉलर प्रति टन रह गई है. ऊंची कीमतों के चलते भारत को 980 डॉलर प्रति टन की कीमत तक यूरिया खरीदना पड़ा था.
वैश्विक बाजार में यूरिया और अमोनिया की कीमतों में आई इस कमी की मुख्य वजह यूरिया उत्पादन की क्षमता, खपत से अधिक होना है. वहीं फरवरी से मई तक चार माह के ऑफ सीजन ने उत्पादक कंपनियों पर अतिरिक्त स्टॉक का दबाव बना दिया है. ब्राजील में सूखा होने के चलते वहां आयात भी कम हुआ है. ब्राजील ने सूखे के चलते यूरिया आयात के एडवांस सौदे भी नहीं किये हैं. उर्वरक उद्योग से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि फरवरी के बाद यूरिया का उपयोग लगभग बंद हो जाता है. केवल चीन में कुछ उपयोग होता है. अधिकांश देशों में फरवरी से मई तक के चार महीनों को ऑफ सीजन माना जाता है. इस दौरान उर्वरक कंपनियां यूरिया और अमोनिया का जो उत्पादन कर रही थीं उसकी स्टॉकिंग भी बड़ी समस्या उनके सामने खड़ी हो गई. इसके चलते कीमतों में यह गिरावट देखने को मिली है.
भारत सरकार द्वारा जुलाई के पहले सप्ताह में यूरिया आयात का टेंडर जारी करने की उम्मीद है. भारत को 540 डॉलर प्रति टन की कीमत में आयात सौदे मिलने की संभावना है. सरकार 5900 रुपये प्रति टन की कीमत पर किसानों को यूरिया बेचती है. 970 और 980 डॉलर प्रति टन की कीमत पर आयातित यूरिया के चलते सब्सिडी में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई थी. उद्योग सूत्रों के मुताबिक 540 डॉलर प्रति टन की कीमत पर होने वाले सौदों पर पांच फीसदी का आयात शुल्क और 1500 रुपये प्रति टन का हैंडलिंग और बैगिंग खर्च जोड़ने पर यह कीमत करीब 42 हजार रुपये प्रति टन पड़ेगी. यह एक समय करीब 75 हजार रुपये प्रति टन पर पहुंच गई थी. कीमतों में आई गिरावट के चलते सरकार को सब्सिडी के मोर्चे पर उच्चतम स्तर पर गई कीमत के मुकाबले करीब 30 हजार रुपये प्रति टन की बचत होगी.
देश में करीब 350 लाख टन यूरिया की खपत होती है. इसके बड़े हिस्से की आपूर्ति देश में उत्पादित 260 लाख टन यूरिया से होती है. हमें हर साल करीब 100 लाख टन यूरिया का आयात करना होता है. लेकिन रामागुंडम और गोरखपुर उर्वरक संयंत्रों में उत्पादन शुरू हो जाने के चलते घरेलू उत्पादन क्षमता में करीब 10 लाख टन का इजाफा होगा. इसके चलते आयात में कमी आएगी.
साभार- Rural Voice
(हरवीर सिंह रूरल वॉइस के एडिटर हैं. उनका भारत की खेतीबाड़ी और ग्रामीण पत्रकारिता में महत्वपूर्ण स्थान है)
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