पिपली कांड का एक साल: किसानों पर सिविल वर्दी में लाठी बरसाते पुलिसवाले क्या आपको याद हैं!

पीपली में किसानों पर लाठीचार्ज को आज पूरा एक साल हो गया है.
केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि अध्यादेशों के विरोध में हरियाणा के किसान 10 सितंबर को पीपली में एकजुट हुए थे.
हरियाणा सरकार ने किसानों को रोकने की तमाम कोशिशें की. जिसे देखते हुए जिला प्रशासन ने पीपली क्षेत्र में धारा 144 लगाकर विरोध में की जा रही सभा आयोजित करने की अनुमति नहीं दी थी. लेकिन पिपली में किसान बचाओ मंडी बचाओ रैली के लिए बड़ी संख्या में किसान, व्यापारी और मजदूर एकजुट हुए थे. इस सभा के लिए आए लोगों को वहां से तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया था.

इस पुलिस लाठीचार्ज में बहुतेरे किसानों को चोटें आई थीं, जिसके बाद गुस्साए किसानों ने दिल्ली-चंडीगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग जाम कर दिया था और अपनी मांग पर अड़े रहे. तकरीबन एक घंटे तक जाम करने के बाद प्रशासन ने हार मानते हुए किसानों को अपनी सभा करने की इजाजत दी थी.

हरियाणा के कई जिलों से पहुंचे किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने जगह-जगह नाकेबंदी की थी. लेकिन सभी बाधाओं को पार करके बड़ी संख्या में किसान कुरुक्षेत्र पहुंचे थे. दिनभर कई जगह पुलिस और किसानों के बीच टकराव की स्थिति बनती रही और अंत में पुलिस ने किसानों को रोकने के लिए बर्बर लाठीचार्ज किया था. इस लाठीचार्ज में बहुतेरे पुलिस वाले सिविल वर्दी में ही किसानों पर लाठियां बरसाते दिखे थे.

इस लाठीचार्ज में बुजुर्ग किसान नत्थासिंह घायल हुए थे. लाठीचार्ज और किसानों को हिरासत में लिए जाने के बाद भी किसानों ने अपनी सभा आयोजित की थी.
भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी समेत बड़ी संख्या में किसानों ने अपनी सभा में तीनों कृषि अध्यादेशों को किसान विरोधी घोषित किया था.
इस घटना ने तीन कृषि अध्यादेशों के खिलाफ पूरे देश भर के किसानों में चिगांरी का काम किया था.
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