बाढ़ के बीच पंजाब के “पंजाब” होने का सबूत!

 

पंजाब, जिसे भारत का “अन्न भंडार” कहा जाता है, इस समय बाढ़ की चपेट में है. सतलुज, ब्यास और रावी दरिया फैलकर समंदर बन चुके हैं, जिसमें पंजाब के 1400 गांव के खेत समा गए हैं. कई शहर भी पानी में डूबे हुए हैं. आबादी का निचला हिस्सा डूबा हुआ है. किसानों और चरवाहों के मवेशी भी बह गए हैं. गरीबों की तो पूरी जिंदगी की जमा-पूंजी तक पानी में बह गई है. पंजाब सरकार के मुताबिक अभी तक 29 लोगों की मौत हो चुकी है.

पंजाब के 12 जिले बाढ़ की चपेट में हैं. इनमें अमृतसर, गुरदासपुर, मोगा, पठानकोट, तरनतारन, फिरोजपुर, होशियारपुर, पटियाला, मोहाली, कपूरथला, जालंधर और लुधियाना शामिल हैं. भाखड़ा का जलस्तर खतरे के निशान को छूने में बस तीन फीट नीचे है.

पंजाब की रावी नदी में कम पानी रहता था. लाहौर के इलाके में तो बिल्कुल कम. लेकिन इसबार रावी ने अलग ही रूप दिखाया है और उसके किनारे बसे कई शहरों को भी चपेट में लिया है. इन नदियों के किनारों पर मुस्लिम गुज्जर अपनी भैंसों के साथ रहते थे. भयावह बाढ़ में सबसे अधिक जानवर मुस्लिम गुज्जरों के ही बहे हैं.

2019 और 2023 की बाढ़ ने पंजाब को गहरे जख्म दिए, और 2025 की बाढ़ ने उन घावों को और गहरा कर दिया है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2023 की बाढ़ में पंजाब के 1,600 से अधिक गांव प्रभावित हुए, 1.5 लाख हेक्टेयर से ज्यादा फसलें बर्बाद हुईं, और अनेकों लोग बेघर हो गए. पंजाब सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, 2023 में बाढ़ से हुए आर्थिक नुकसान का अनुमान 12,000 करोड़ रुपये से अधिक था.

इस साल, नुकसान का आंकड़ा और भी भयावह होने की आशंका है. लाखों लोग सीधे प्रभावित हुए हैं. पंजाब सरकार केंद्र से 60 हजार करोड़ रुपए का बकाया फंड जारी करने की मांग कर रही है. हिमालय में हुई अधिक बारिश के कारण हिमाचल प्रदेश, जम्मू, पंजाब, उत्तराखंड और हरियाणा प्रभावित हैं, पर अभी तक केन्द्र सरकार ने कोई विशेष राहत पैकेज का एलान नहीं किया है.

पंजाब हिमालय का फ्लड प्लेन है. हिमालय से निकलने वाले दरिया जब फैलकर चौड़े हो जाते हैं तो उससे पंजाब की जमीनें सरसब्ज़ होती हैं और कुछ ईकोसिस्टम को मदद मिलती है. वहीं, दूसरी तरफ इसकी वजह से बड़े पैमाने पर तबाही भी होती है. पंजाब में इस समय हिमालय की तलहटी में बने बांधों को लेकर चर्चा है. लोग कह रहे हैं कि यह तबाही इन बड़े बांधों के कारण हुई है. पंजाब के बहुतेरे चिंतक बांधों के प्रबंधन पर बड़े सवाल उठा रहे हैं और ज्यादातर राजनैतिक धड़े बांधों का प्रबंधन पंजाब को सौंपे जाने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में बड़ा सवाल है कि बाढ़ का आना इस समय पंजाब के लिए अच्छा है या बुरा?

भूविज्ञानियों का मानना है कि मौसमी बाढ़ कई पारिस्थितिक तंत्रों के लिए महत्वपूर्ण है. पंजाब में, सतलुज, रावी और ब्यास नदियों की बाढ़ मिट्टी के पोषक तत्वों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाती है, जिससे खेतों की उर्वरता बढ़ती है. ये पोषक तत्व नदी के मैदानों और डेल्टा क्षेत्रों तक पहुंचते हैं, जो जैव विविधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. बाढ़ का पानी नदियों की तलछट को साफ करता है, मिट्टी में पोषक तत्वों का वितरण करता है, और कई प्रजातियों को निचले क्षेत्रों तक पहुंचाता है. पंजाब के खेतों में बाढ़ के बाद छोड़ी गई तलछट और पोषक तत्व मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं, जिससे फसलों की पैदावार बढ़ती है. यही कारण है कि पंजाब की हरियाली और कृषि समृद्धि नदियों के आसपास केंद्रित रही है. इसके अलावा, बाढ़ का पानी भूजल स्तर को बढ़ाने में भी मदद करता है.

लेकिन यह पूरी तरह से मौसमी बाढ़ नहीं है. यह बाढ़ हिमालय में घट रही एक्सट्रिम वेहदर कंडिशन्स की देन है. लोवर शिवालिक हिल्स से पंजाब में पड़ने वाले छोटे चो, जिन्हें पुआद की भाषा में राओ कहा जाता है, में फ्लैश फ्लड की घटनाएं देखने को मिली हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण पंजाब में बाढ़ की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ रही है. अप्रत्याशित बारिश और अनियंत्रित बाढ़ ने हाल के वर्षों में भारी तबाही मचाई है, जिससे पंजाब की ईकोसिस्टम और जमीन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. फ्लैश फ्लड मिट्टी के ऊपरी हिस्से को बहा ले जाती है, जिसमें सबसे ज्यादा पोषक तत्व होते हैं. यह ऊपरी परत फसलों के लिए महत्वपूर्ण है, और इसका बह जाना मिट्टी की उर्वरता को कम करता है. फ्लैश फ्लड नदी के किनारों और बाढ़ के मैदानों को नष्ट कर देता है, जिससे मिट्टी का कटाव होता है और प्रजातियों का प्रजनन चक्र बाधित होता है. पंजाब के हरिके वेटलैंड जैसे क्षेत्र, जो जैव विविधता का महत्वपूर्ण केंद्र हैं, बाढ़ के दौरान प्रभावित हैं. प्रवासी पक्षियों और अन्य प्रजातियों के प्रजनन स्थल नष्ट हुए हैं.

इस बाढ़ के पानी में औद्योगिक रसायन, और शहर के सिवरेजों का पानी मिल रहा है, जो पौधों और जानवरों के लिए हानिकारक हो सकता है. यह दूषित पानी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर सकता है, जिससे मानव स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है. पंजाब के दरियाई पानी में औद्योगिक रसायनों की मिलावट को लेकर पहले भी आंदोलन होते रहे हैं.

इस पूरी तबाही के बीच नेशनल मीडिया गायब है. नेशनल मीडिया में पंजाब की तस्वीरें गायब हैं, खबरें गायब हैं, सरकार गायब है, हीरो हिरोइन गायब हैं, उद्योगपति गायब हैं, और इन सबकी हमदर्दी भी.

लेकिन पंजाब के शहरों की गलियों से लेकर बाढ़ग्रस्त गांवों तक, लोग अपने दुखों को भुलाकर एक-दूसरे के लिए जी रहे हैं. कोई ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में राहत सामग्री भरकर बाढ़ के बीच पहुंच रहा है, तो कोई मिट्टी से लदी ट्रॉलियां लेकर तटबंधों को बचाने की जद्दोजहद में जुटा है. और फिर, कुछ ऐसे भी हैं, जो अपनी खोई हुई दुनिया के बीच से भी मेहमाननवाजी की मिसाल कायम कर रहे हैं. बाढ़ में फंसे लोग, जिनके पास अब शायद ही कुछ बचा हो, चाय की पेशकश कर रहे हैं, पैसे दान कर रहे हैं, और अपने सीमित साधनों से दूसरों की मदद कर रहे हैं.

पंजाब के पत्रकार आईपी सिंह लिखते हैं, “ये दृश्य, ये क्षण, कैमरों में कैद हो रहे हैं, मगर जो नहीं दिखता, वह है इन अनगिनत कहानियों का वह जज़्बा, जो पंजाब की मिट्टी में रचा-बसा है.” एक वीडियो में, राहत सामग्री लेकर गांव-गांव घूम रहे वालेंटियरों को एक बुजुर्ग सिख किसान रोकता है. उसकी आंखों में कृतज्ञता है, और आवाज में एक गहरी सादगी. वह कहता है, “तुम लोग गांव-गांव जाकर मदद कर रहे हो, तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है.” फिर वह अपने परिवार के एक युवा से कहता है, “सूक्खी, जा, दो हज़ार रुपये ले आ.” वह वालिंटेयरों को दान देना चाहता है. पानी की बोतलों का क्रेट लिए एक युवक और सूक्खी पैसे लाने के लिए साथ चल पड़ते हैं. ट्रैक्टर पर सवार लोग, इस अप्रत्याशित उदारता से अभिभूत, हाथ जोड़कर कहते हैं, “आपने बहुत बड़ा दिल दिखाया…” और विनम्रता से पैसे लेने से मना कर देते हैं. मगर बुजुर्ग अडिग है. वह कहता है, “तुम लोग बड़ी सेवा कर रहे हो, हमें भी कुछ सेवा करने दो.”

यह पंजाब है, जहां बाढ़ की तबाही के बीच भी मानवता का सूरज चमक रहा है. यह वह धरती है, जहां दुख की गहराई में भी लोग एक-दूसरे के लिए जी रहे हैं, जहां हानि के बीच भी उदारता का जज़्बा जिंदा है. यह कहानी सिर्फ़ बाढ़ की नहीं, बल्कि उस अटूट आत्मा की है, जो पंजाब को पंजाब बनाती है.