माटी और शिल्प के लिए नये अवसरों का उत्सव

 

उत्तर प्रदेश माटी कला बोर्ड ने कारीगरों को सशक्त बनाने और उनके उत्पादों की बिक्री को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लखनऊ के खादी भवन में माटी कला मेले का आयोजन किया है। यह त्यौहार 5 नवंबर को शुरू हुआ था और 14 नवंबर तक चलेगा। इसमें पूरे राज्य के माटी कारीगरों को अपने उत्तम उत्पादों को प्रदर्शित करने और बेचने का मंच मिलेगा।

यह महोत्सव गोरखपुर, आजमगढ़ के ब्लैक पॉटरी, खुर्जा के बर्तनों जैसे वाराणसी, मिर्जापुर, बलिया, कानपुर, पीलीभीत, कुशीनगर और चंदौली के अन्य उत्पादों के साथ एमएसएमई की “वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट” योजना के तहत विभिन्न उत्पादों और कलाकारों को आगे बढ़ने का मौका दे रहा है। आत्‍मनिर्भर भारत और वोकल फॉर लोकल की राह पर यूपी के कदम तेजी से बढ़ रहे हैं।

दीपावली के पावन अवसर पर 30 स्‍टॉलों में आजमगढ़, गोरखपुर, प्रयागराज, कानपुर, बनारस समेत अन्‍य जनपदों की बेहतरीन कलाकृतियों की खरीदारी लोग जमकर कर रहे हैं। उत्सव के मुख्य आकर्षण हैं हाथ से बने, रंगीन दीये हैं।

इस आयोजन में कारीगरों को मुफ्त में स्टॉल प्रदान किए गए हैं। साथ ही यूपी माटीकला बोर्ड द्वारा उनके रहने की व्यवस्था भी की गई है। कारीगरों को पीओपी मास्टर डाई, स्प्रे पेंटिंग मशीन, दीया बनाने की मशीनें दी जा रही हैं। विशेषज्ञों द्वारा कारीगरों को नि: शुल्क प्रशिक्षण भी दिया गया है। यह पूरा आयोजन #GoVocalForLocal अभियान से जुड़ा है।

माटी कला मेले में शामिल कुशीनगर की दिव्‍या सिंह ने बताया कि वे 150 मिट्टी के तरह के सजावटी सामानों को लेकर आई हैं, जिन्हें लोग खूब पसंद कर रहे हैं। उसने बताया, “मुझे मिट्टी के बर्तन का व्यवसाय शुरू किये एक साल हो गया है। मिट्टी के बर्तन स्वास्थ्य लाभ के कारण बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं। आप इन बर्तनों में जो कुछ भी पकाएंगे, वह अपने खनिजों को बनाए रखेगा और मधुमेह जैसे कई बीमारियों में लाभदायक है।”

बाराबंकी के मिट्टी उत्पाद कारीगर कलाकार शिव कुमार प्रजापति कहते हैं, “हम सजावटी उत्पाद बेचते हैं। ये चीजें लोगों को काफी पसंद आ रही हैं। हमारे पास 10 रुपए से लेकर 1200 तक के प्रोडक्ट हैं। सरकार ने माटी कलाकारों को मंच दिया, जिससे हमारी कमाई दोगुनी हो रही है। हमें मिट्टी के उत्पादों को बढ़ावा देना ही चाहिए और चीनी उत्पादों को न खरीदें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लोकल के लिए वोकल होने का नारा दिया है। इससे स्थानीय दुकानदारों और कलाकारों को आजीविका चालने में मदद मिलेगी। माटी कलाकार लोगों को इको फ्रेंडली दिवाली मनाने और स्थानीय उत्पाद खरीदने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।”

मेले में खरीदारी करने आईं गोमतीनगर की पूनम गौतम ने कहा: “मैंने गोबर से बने दीयों के बारे में पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ा था, जो सुंदर भी हैं और इकोफ्रेंडली भी। इसलिए इस मेले में आने का बहुत मन था। खास बात यह है कि स्थानीय कारीगरों से खरीदने करने से स्थानीय कलाओं को भी सहारा मिलता है। जो हम ऑनलाइन खरीदते हैं यहा उसका आधा भी नहीं है। हम सभी को “गो वोकल फॉर लोकल” के अभियान से जुड़ना चाहिए।