मणिपुर हिंसा में पत्रकारों को भी बनाया निशाना, राहत कैंप में रहने को मजबूर हुए पत्रकार!

 

मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हुई हिंसा में पत्रकारों को भी निशाना बनाया गया. मणिपुर हिंसा के दौरान स्थानीय पत्रकारों को उनका काम करने से रोका गया. इस बीच बहुत से पत्रकारों को विस्थापन का भी दंश झेलना पड़ा और इतना ही नहीं कुछ पत्रकारों के परिवार रिलीफ कैंप में भी रहने को मजबूर हैं. आठ साल पहले पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले रवि (बदला हुआ नाम) नॉर्थ ईस्ट के न्यूज चैनलों के मुख्य चेहरों में से एक हैं. रवि के पिता मणिपुर के इंडो मान्यमार बोर्डर से लगते मोरेह के पहले पत्रकार थे वहीं पिता की तरह रवि ने भी पत्रकारिता को ही अपना पेशा चुना है. मणिपुर हिंसा के बीच मैतेई समुदाय से आने वाले पत्रकार रवि और उनके पूरे परिवार को कुकी बाहुल्य मोरेह को छोड़कर जाना पड़ा. रवि अकेले पत्रकार नहीं है जिनको इस तरह अपना घर छोड़कर जाना पड़ा है रवि जैसे दर्जनों पत्रकार हैं जो मैतई और कुकी समुदाय के बीच छिड़ी हिंसा के शिकार हुए हैं.

वहीं हिंसा के दौरान करीबन एक हफ्ते से खबरें न मिलने में समस्या के चलते एक संपादक ने अपना न्यूजपेपर तक छापना बंद कर दिया था. मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच हुई हिंसा में दोनों समुदाय से जुड़े पत्रकारों को भी निशाना बनाया गया. हमारे सूत्रों के मुताबिक दोनों समुदायों से जुड़े अब तक कम से कम दस पत्रकारों को अपना घर छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ा है. यहां तक कि मोरेह में तो 7 से 8 पत्रकारों को निशाना बनाकर उनके घरों को आग के हवाले किया गया है. वहीं कुछ पत्रकार अपने परिवार समेत राहत शिविरों में रह रहे हैं. वहीं इंफाल में रहने वाले कुकी समुदाय के कुछ पत्रकारों को मैतेई समुदाय के लोगों ने निशाना बनाया जिसके बाद पीड़ित पत्रकार दूसरे राज्यों में चले गए हैं.

नॉर्थ ईस्ट के जाने माने न्यूज चैनलों में काम कर चुके मैतेई समुदाय के 28 साल के नौजवान पत्रकार ने बताया कुकी बाहुल्य मोरेह में हिंसा से पहले मैतेई समुदाय के करीबन 4500 परिवार रहते थे. मैतेई समुदाय के लोगों पर हमला किया गया उनके घरों और दुकानों में आग लगा दी गई, हमें भी अपनी जान बचाने के लिए अपने घर छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ा. पत्रकार ने आगे बताया, “मेरे पिता मोरेह के पहले पत्रकार हैं और मैं भी 2016 से पत्रकारिता कर रहा हूं. मेरे पिता के घर में लूटमार की गई, मेरे घर में भी आग लगा दी गई अब मेरा पूरा आठ सदस्यीय परिवार कुकी समुदाय के लोगों के हमले के कारण विस्थापित हो चुका है.

वहीं इंफाल के कांगला फोर्ट के पास मेरी एक और पत्रकार से मुलाकात हुई. पत्रकार ने मुझे पहचानते हुए कहा, “हम इसी साल के शुरुआती महीनों में पहले भी मिल चुके हैं” यह मेरे लिए हैरान करने वाला था कि इन्होंने मुझे देखते ही पहचान लिया. कैमरे पर बात न करने की शर्त पर उन्होंने बताया दूसरे पत्रकारों की तरह मैं भी अपने परिवार सहित मोरेह से इंफाल आ गया हूं. मैं मैतेई समुदाय से हूं तो कुकी बाहुल्य इलाके में नहीं जा सकता हूं”

13 अगस्त को जब मैं पूर्वी इंफाल के आइडियल गर्ल कॉलेज में बने रिफ्यूजी कैंप में जा रहा था तो रास्ते में मुझे स्कूटर पर बैठे चार बच्चों का एक ग्रुप मिला वहीं पर कुछ बच्चे साइकिल रिक्शा के साथ खेल रहे थे. ये सभी बच्चे मोरेह के रहने वाले थे, उन्हीं में से एक बच्चा जो हिंसा भड़कने से पहले ईस्टर्न साइन स्कूल में पढ़ता था ने बताया, “उस दिन कुकी समुदाय के लोगों ने मोरेह बाजार के होटल्स में आग लगाना शुरू कर दिया था. हम सभी मैतेई अपने घर पर थे हमें वहां से मणिपुर पुलिस के कमांडो बचाकर पुलिस थाने ले गई वहां से आर्मी की मदद से हमें इंफाल लाया गया.” वहीं वीडियो इंटरव्यू के दौरान जब मैंने बच्चे से उनके परिवार में बारे में पूछा तो पता चला कि वह उस पत्रकार का बेटा था जिससे 8 अगस्त को मेरी मुलाकात हुई थी. यह हैरान करने वाला था कि एक पत्रकार का परिवार रिलीफ कैंप में रहने को मजबूर है.

वहीं 27 जून को ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नालिस्ट यूनियन और एडिटर गिल्ड मणिपुर ने मोरेह के अलग-अलग न्यूज संस्थानों से जुड़े 8 पत्रकारों के घर जलाए जाने की एक संयुक्त प्रेस स्टेटमेंट में निंदा की. प्रेस स्टेटमेंट में उल्लेख किया गया है कि “मोरे ताली रोड पर स्थित लैरेनलाकपम माईपाक (पोकनाफाम) के घर, उसी लेइकाई के एस. शांतिपुर (नाहरोलगी थौडांग), मोरे हेइनौमाखोंग के असेम ललित (इम्फाल फ्री प्रेस), मोरे बाजार के बी.रामचंद्र (डीडीके न्यूज) , मोरेह प्रेमनगर के लीशांगथेम ब्रोजेंड्रो (एआईआर), सगोलसेम संजॉय (आईएसटीवी), माईबम इनाओचा (इम्पैक्ट टीवी), और मोरेह ट्यूरेल वांग्मा के युमनाम मांग (सनालीबाक) के मकान गिरा दिया गया है. 26 जुला,ई की घटना से पहले ही उनके घर लूट लिए गए थे और अब वे इंफाल स्थित रिलीफ कैंप में रह रहे हैं.”

ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नालिस्ट यूनियन (AMWJU) के महासचिव ए जितेन के अनुसार, मोरेह से कम से कम आठ मैतेई पत्रकार और वहीं इंफाल से 3-4 कुकी पत्रकार विस्थापित हुए हैं. वहीं इसके साथ ही उन्होंने दावा किया, हमने चार पत्रकारों को वित्तीय सहायता दी है. जितेन ने कहा, ”हमारे लिए पत्रकारों की सुरक्षा मुख्य चिंता है और हम संघर्ष में दोनों पक्षों से कोई हस्तक्षेप नहीं चाहते हैं. हम सिर्फ पत्रकार के रूप में काम करना चाहते हैं किसी समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में नहीं”

मैतेई समुदाय के पत्रकार ही नहीं कुकी समुदाय के भी चार पत्रकारों ने अपने परिवार सहित इंफाल छोड़ दिया है. सुआनमोई गुटी, जो 2018 से पाइट भाषा मणिपुर एक्सप्रेस के लिए काम करते हैं, सेंट्रल चुराचांदपुर के नेहरू मार्ग पर अपने घर पर हैं. गुटी इंफाल में प्रेस कॉन्फ्रेंस को कवर करने से लेकर इंटरव्यू और इवेंट की स्पॉट रिपोर्टिंग करते थे. उन्हें 4 मई को इंफाल के खोंगसाई वेंग इलाके में अपना घर छोड़कर भागना पड़ा और राज्य की राजधानी के लाम्फेल इलाके में सीआरपीएफ शिविर में शरण लेनी पड़ी. गुटी ने पत्रकार को बताया, ”मेरे परिवार के सभी 6 सदस्यों ने सीआरपीएफ शिविर में शरण ली और बाद में हम मैतेई बहुल इम्फाल से कुकी-प्रभुत्व वाले चुराचांदपुर तक यात्रा नहीं कर सके, जो सिर्फ 60 किलोमीटर की दूरी पर है. इसके बजाय, हमने इंफाल से गुवाहाटी के लिए उड़ान भरी, कुछ दिन वहां रुके और बाद में मिजोरम की राजधानी आइजोल के लिए उड़ान भरी और फिर सड़क मार्ग से चुराचांदपुर आए जहां हम सभी अब एक संयुक्त परिवार की तरह रह रहे हैं. गुटी के अनुसार, वह मणिपुर की घाटी से ग्राउंड-रिपोर्टिंग और समाचारों की पुष्टि का अपना काम नहीं कर सकते. उन्होंने अपनी बेबसी जाहिर करते हुए कहा कि उनके हाथ बंधे हुए हैं और संकट की इस घड़ी में वह कुछ नहीं कर सकते. उनके समुदाय के तीन अन्य पत्रकार हैं जिन्होंने बात करने से इनकार कर दिया लेकिन सुरक्षा चिंताओं के कारण उन्हें इंफाल छोड़ना पड़ा. उसी समाचार संगठन में काम करने वाले पत्रकारों में से एक इम्फाल छोड़कर दिल्ली चले गए हैं उन्होंने दावा किया कि एक अन्य व्यक्ति आइजोल में रहता है और अब किसी भी संगठन के लिए काम नहीं करता है.

हिंसक टकराव ने मैतेई और कुकी पत्रकारों में दरार का काम किया है जिसके कारण चुराचांदपर के न्यूजपेपर की
प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ गई है. मणिपुर में ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन (AMWJU), एडिटर्स गिल्ड मणिपुर (EGM) और मणिपुर हिल जर्नलिस्ट्स यूनियन (AMHJU) समेत तीन पत्रकार संघ हैं, इनमें से मणिपुर हिल जर्नलिस्ट्स यूनियन के जनरल सेक्रेटरी और जोगाम टुडे के सम्पादक लुन ने कहा,”हम पत्रकार हैं और हमें स्टोरी कवर करने के लिए स्वतंत्र रूप से आने जाने की सहूलियत होनी चाहिए. लेकिन जातीय हिंसा के कारण हम कहीं भी नहीं आ जा सकते हैं. इतना ही नहीं, हम आदिवासी पत्रकार घाटी में रहने वाले मैतेई समुदाय के अपने साथी पत्रकारों से भी नहीं मिल सकते हैं.” 

हिंसा के चलते लुन के अखबार को भी भारी नुकसान झेलना पड़ा है. लुन, इंफाल से महज 60 किलोमीटर दूर अपने शहर चुराचांदपुर में अखबार छापने के लिए कागज की सप्लाई नहीं ले पा रहे हैं. अब उनके पास 330 किलोमीटर दूर आइजोल से कागज और स्याही मंगवाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. लुन का दावा है कि इससे अखबार की उत्पादन लागत में भरी बढ़ोतरी हुई है क्योंकि आइजोल से अखबार के लिए कच्चा माल मंगाने में ट्रांसपोर्ट का खर्च इंफाल से कईं गुणा ज्यादा पड़ता है. अखबार की छपाई की लागत बढ़ने के कारण लुन ने अखबार के पेज की संख्या 4 से घटाकर एक कर दी है.हिंसा के शुरुआती दिनों में इंटरनेट न होने और फेरी वालों की ओर से अखबार बांटने से मना करने के कारण लुन ने अखबार निकालना बंद कर दिया था.

लुन, संपादक, जोगाम टुडे

उन्होंने बताया पत्रकारों की समस्या केवल विस्थापन तक नहीं है यहां पत्रकारों को कुकी समुदाय की भीड़ द्वारा घेरा गया था जिसके बाद आर्मी की कुमाऊं रेजीमेंट ने पत्रकारों को बचाने का काम किया था.इंफाल फ्री प्रेस के लिए काम करने वाले थॉमस नगनगोम ने बताया 27 जून को घाटी के पांच पत्रकार स्टोरी के सभी पक्षों को कवर करने के उद्देश्य से सेना अधिकारियों के साथ मैतेई-प्रभुत्व वाले कांटो सबल गांव से कांगपोकपी जिले के कुकी-प्रभुत्व वाले हेंजंग गांव आर्मी के ट्रेनिंग कैंप और बंकरों पर एक स्टोरी कवर करने गए थे. हम सभी यह कवर करना चाहते थे कि भारतीय सेना द्वारा बंकरों को कैसे संवेदनशील बनाया गया है जिसके बाद ग्रामीणों ने हमपर चिल्लाना शुरू कर दिया और जिसके बाद हम सभी पत्रकारों ने भारतीय सेना के अधिकारी के वाहन में शरण ली.

थॉमस ने आगे कहते हैं,” वह वाहन कुकी समुदाय के लोगों से घिरा हुआ था और उन्होंने हमें कैमरे और फोन से सभी फोटो और वीडियो हटाने के लिए मजबूर किया. थॉमस ने आगे बताया, “कुकी समुदाय के लोगों ने हमें कहा कि वे मैतेई-पत्रकारों को अपने क्षेत्र को कवर करने की अनुमति नहीं दे सकते.” उस घटना के बाद से मैतेई समुदाय के थॉमस और उनके साथी पत्रकार हमले के डर से कुकी इलाकों में नहीं जा सकते हैं. घटना पर हैरानी जताते हुए थॉमस ने कहा, “उन्हें नहीं पता कि उन्हें और उनके साथी पत्रकारों को उनकी जातीयता के कारण कब तक पत्रकार के रूप में अपना कर्तव्य निभाने की अनुमति नहीं दी जाएगी.”