सही निकली किसानों की आशंका, दालों की जमाखोरी ने बढ़ायी सरकारी की चिंता

 

तीन विवादित कृषि कानूनों में से एक आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को लेकर किसानों की आशंका सही साबित हुई। केंद्र सरकार ने जिस कानून को बदलकर अनाज, दाल, खाद्य तेल, तिलहन, आलू और प्याज को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर कर दिया था, अब जमाखोरी रोकने के लिए उसी पुराने कानून का सहारा लेना पड़ रहा है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, गत वर्ष की तुलना में दालों के खुदरा दाम 33 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। इसके पीछे जमाखोरी को वजह माना जा रहा है।  

सोमवार को भारत सरकार के उपभोक्ता मामलों के विभाग की सचिव लीना नंदन ने राज्यों के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के प्रमुख सचिवों के साथ वीडियो कांफ्रेंस करते हुए देश में दालों की उपलब्धता और कीमतों की समीक्षा की। बैठक में दालों की कीमतों में अचानक बढ़ोतरी के पीछे जमाखोरी की आशंका जतायी गई। केंद्र सरकार ने राज्यों को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए जरूरी चीजों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने को कहा है। इससे पहले 14 मई को केंद्र सरकार ने राज्यों को पत्र लिखकर व्यापारियों, निर्यातकों और मिलर्स से दालों के स्टॉक की जानकारी लेने को कहा था। राज्यों को साप्ताहिक आधार पर दालों की कीमतों पर नजर रखने के निर्देश दिए गये हैं।  

केंद्र सरकार ने पिछले साल आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन कर अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, आलू और प्याज को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर कर दिया था। इसके लिए केंद्र सरकार लॉकडाउन के दौरान ही आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, 2020 लेकर आई थी और सितंबर में इसका विधेयक संसद में पारित हुआ था। मगर किसान आंदोलन के चलते इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 समेत तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगा दी। फिलहाल आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 लागू है, जिनका इस्तेमाल सरकार जमाखोरी पर अंकुश लगाने के लिए कर रही है।

किसान संगठन पिछले साल से ही कृषि उत्पादों को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर कर जमाखोरी की खुली छूट दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। अब कोराना संकट के बीच जैसे ही दालों की कीमतों में उछाल आया तो केंद्र सरकार को नेहरू दौर के उसी आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 की याद आई, जिसे बदलने के लिए उसने पूरी ताकत लगा दी थी। यह कानून उस समय का है जब आजादी के बाद देश खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था और जमाखोरी रोकना बड़ी चुनौती था। इस कानून की जरूरत बाद के वर्षों में भी बनी रही और 22 आवश्यक वस्तुओं को स्टॉक लिमिट के दायरे में लाया गया। इन पर स्टॉक लिमिट लगाने और जमाखोरों पर कार्रवाई करने का अधिकार राज्य सरकारों का दिया गया है।

पिछले साल कृषि सुधारों के तहत अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, आलू और प्याज को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर करते हुए सरकार ने तर्क दिया गया था कि इससे कृषि क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा। कृषि उपज के स्टॉक की पूरी छूट मिलने से कोल्ड स्टोरेज और फूड सप्लाई चेन में निवेश आकर्षित होगा। जरूरी वस्तुओं को केवल विशेष परिस्थितियों जैसे युद्ध, अकाल, प्राकृतिक आपदा या कीमतों में अत्यधिक बढ़ोतरी की स्थिति में ही रेगुलेट किया जाएगा। जबकि जमाखोरी पर अंकुश लगाने की जरूरत सामान्य परिस्थितियों में भी है। देश की खाद्य सुरक्षा को जमाखोरे के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। कृषि कानूनों के आलोचकों का यही तर्क है।

नए कानून में बागवानी उपज का खुदरा मूल्य 100 फीसदी और जल्द खराब न होने वाली कृषि उपज के खुदरा दाम 50 फीसदी बढ़ने पर ही स्टॉक लिमिट लगाने का प्रावधान किया गया है। लेकिन प्रोसेसर्स और एक्सपोर्टर्स को उनकी क्षमता और ऑर्डर के आधार पर स्टॉक लिमिट से छूट दी गई। यह लगातार दूसरा साल है जब केंद्र सरकार को जरूरी चीजों  की जमाखोरी रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 का सहारा लेना पड़ रहा है। इससे कृषि उत्पादों से स्टॉक लिमिट हटाने की केंद्र सरकार की कोशिशों को झटका है। क्योंकि जमाखोरी रोकने के लिए आवश्यक वस्तुओं पर स्टॉक लिमिट लगाने जैसे उपायों की जरूरत लगातार महसूस की जा रही है।