सरकार नहीं चाहती कि किसान और मजदूर आंदोलनों की ठोस रिपोर्टिंग हो: मनदीप पुनिया

 

हरियाणा पंजाब के किसान 22 अगस्त को चंडीगढ़ कूच करने वाले थे, ताकि बाढ़ से हुए नुक़सान के लिए राहत पैकेज की माँग कर सकें. किसानों के इस कूच का ऐलान हरियाणा पंजाब के 16 किसान संगठनों ने मिलकर किया था, जिसमें किसानों द्वारा बाढ़ के कारण ख़राब हुई फसलों के मुआवज़े के अलावा पानी के कारण टूट गये घरों के नुक़सान, पालतू पशुओं की हुई मौत, किसी इंसान की मौत, मज़दूरों के काम बंद होने के कारण हुए आर्थिक नुक़सान जैसे कई तरह के नुक़सानों की भरपाई के लिए राहत पैकेज की माँगें उठाई जानी थीं. लेकिन हरियाणा और पंजाब की सरकारों ने 20 अगस्त से एक जॉइंट ऑपरेशन के तहत हरियाणा और पंजाब के किसानों नेताओं और सक्रिय किसानों को हिरासत में लेना शुरू कर दिया था.

दो दिन तक हरियाणा और पंजाब में किसानों के घरों में छापेमारियाँ चलती रहीं. किसानों के इस आंदोलन की हमारा न्यू मीडिया प्लेटफ़ॉर्म लगातार कवरेज कर रहा था, लेकिन 21 अगस्त की देर रात हमारा फ़ेसबुक पेज बंद कर दिया गया और 22 अगस्त को हमारा ट्विटर अकाउंट भी भारत में बंद कर दिया गया.

फ़ेसबुक से हमें कोई जवाब नहीं मिला है लेकिन ट्विटर ने मेल भेजकर हमें सूचित किया है कि उन्हें हमारा अकाउंट बंद करने (withheld) करने के लिए भारत सरकार की तरफ़ से कहा गया है. हमें लगता है कि सरकार चाहती है कि ग्रामीण संकट को लेकर सिर्फ़ सतही जानकारियाँ बाहर आएँ, सही और ठोस जानकारियाँ नहीं. ‘किसान या मज़दूर के कपड़े फटे हैं, मेहनत कर रहे हैं’ इस क़िस्म की जानकारियाँ जो लोगों को पहले ही पता हैं, सरकार उन्हें रिपोर्ट करने से बिल्कुल नहीं रोकती, लेकिन जैसे ही आप किसान और मज़दूरों द्वारा ग्रामीण संकट से निपटने के लिये उनके संघर्षों को रिपोर्ट करने लगते हैं तो सरकार कई तरह से तंग करने लगती है. ख़ासकर देहातियों द्वारा अपने संकट के उलट खड़े किए गए आंदोलनों की सही रिपोर्टिंग करने पर अलग अलग तरह से आपको तंग किया जाने लगता है. स्थानीय पुलिस को आपके घर और दफ़्तर पर भेजा जाता है और फिर भी आप लगातार रिपोर्टिंग जारी रखते हैं तो सरकार आपके प्लेटफ़ॉर्म को ही बंद कर देती है.

यानी सारा बखेड़ा तब खड़ा होना शुरू हो जाता है जब आप ग्रामीण संकट से लड़ रहे किसान और मज़दूरों के आंदोलनों की ठोस रिपोर्टिंग करने लगते हैं. सरकार नहीं चाहती कि ऐसी कोई भी खबर बाहर आए जिसमें लोगों के असल मुद्दे और उन मुद्दों के हल के लिए उनके संघर्षों की ग्राउंड जीरो से कवरेज हो.

भारत में ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है. वैसे तो पत्रकारिता का कोई स्वर्णिम युग भारत में नहीं रहा लेकिन यह सबसे ख़राब वक़्त ज़रूर है. पत्रकारों को नौकरियों से निकाला जा रहा है, पुलिस केस किए जा रहे हैं और उनके प्लेटफ़ॉर्म बंद किए जा रहे हैं.

सरकार ने इस किसान आंदोलन के दौरान सिर्फ़ गाँव सवेरा को ही निशाना नहीं बनाया है बल्कि खेतीबाड़ी एक्सपर्ट रमनदीप मान के ट्विटर अकाउंट को भी बंद किया है. इसके अलावा लगभग 12 किसान संगठनों के फ़ेसबुक पेज भी सरकार ने बंद किए हैं.

इस पूरे मामले में हम क़ानूनी कार्रवाही के लिए अपने साथियों से सलाह ले रहे हैं. बहुत सारे साथी कह रहे हैं कि हमें नया चैनल बना लेने चाहिए क्योंकि मामला अभी गर्म है और लोगों की निगाह में भी है तो खूब सारे फ़ॉलोवर्स एक दम जुड़ जाएँगे. हमारी टीम ने अभी कोई भी प्लेटफ़ॉर्म नहीं बनाने का फ़ैसला लिया है. यह आपदा में अवसर तलाशने जैसा होगा और लोगों को भावुक कर उनको अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करने जैसा भी. वैसे भी अभी फ़ेसबुक की तरफ़ से जवाब आना बाक़ी है. हम नहीं चाहते कि आधी अधूरी जानकारी के साथ सिर्फ़ फ़ायदा उठाने के लिए कोई कदम उठाया जाए. इसलिए हम पूरे धर्य के साथ अपनी लड़ाई लड़ेंगे.