ग्रामीण भारत में गरीबी के उन्मूलन और आर्थिक विकास हेतु अच्छी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच होना महत्वपूर्ण है। यह लेख, भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) के 2004-05 और 2011-12 के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए दर्शाता है कि पक्की सड़कों से जुड़े गांवों के परिवारों में अपराध, श्रम बल की भागीदारी और पारिवारिक आय के सन्दर्भ में उन गांवों में रहने वालों की तुलना में बेहतर परिणाम पाए गए जहाँ पक्की सड़कें नहीं थी।
विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में विशेष रूप से विकास और आर्थिक विकास के लिए सड़क सुविधाएँ बहुत आवश्यक हैं। 2000 के दशक की शुरुआत में उच्च आर्थिक विकास हासिल करने के बावजूद, भारत कमजोर और अपर्याप्त बुनियादी ढांचे के नेटवर्क से जूझ रहा है। बुनियादी सुविधाएँ शहरी क्षेत्रों के लिए आवश्यक हैं ही, ग्रामीण क्षेत्र में भी गरीबी के उन्मूलन और आर्थिक विकास हेतु बेहतर बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच होना बहुत महत्वपूर्ण है। बुनियादी अवसंरचना के अंतर्गत, आजादी के बाद से ग्रामीण सड़क विकास योजनाओं पर ध्यान दिए जाने के साथ-साथ, भारत में आर्थिक विकास की दृष्टि से सड़क-निर्माण सबसे आगे रहा है। तथापि, योजना की कमी, अनुचित डिजाइन और खराब निगरानी के कारण ग्रामीण सड़क नेटवर्क में कई कमियां हैं (सामंता 2015)। अधिकांश सड़कें अपर्याप्त तटबंध और खराब जल निकासी नेटवर्क के चलते खराब मौसम के दौरान पहुंच योग्य नहीं हैं।
इस पृष्ठभूमि के मद्देनजर, वर्ष 2000 में केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) शुरू की गई। इस योजना का प्राथमिक उद्देश्य ग्रामीण बस्तियों1 के 500 मीटर के क्षेत्र में हर मौसम में बनी रहनेवाली पक्की सड़क प्रदान करना था। हालाँकि यह योजना केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई एक योजना थी, राज्य और स्थानीय सरकारें भी परियोजना के कार्यान्वयन में सक्रिय रूप से शामिल थीं। पीएमजीएसवाई को जनसंख्या मानदंड के अनुसार चरणबद्ध तरीके से लागू किया गया था- पहले चरण (कुछ अपवादों2 के साथ) में 1,000 या उससे अधिक की आबादी वाले गांवों को प्राथमिकता दी गई थी, दूसरे चरण में 500 की आबादी वाले गांव शामिल थे, और तीसरे (और अंतिम) चरण में 250 की आबादी वाले गांव शामिल थे। तथापि, वर्ष 2010 से यह योजना सभी गांवों के लिए लागू की गई। इसके अतिरिक्त, बनाई जानेवाली सड़कों को राज्य के भीतर की सड़कों के मुख्य नेटवर्क से जोड़ा जाना था।
वर्ष 1951 में, केवल 20% भारतीय गांवों में हर मौसम में बनी रहनेवाली सड़क थी, जो 2000 में बढ़कर 60% हो गई (ग्रामीण विकास मंत्रालय, 2011, लेई एवं अन्य 2019)। 2019 तक, 73% भारतीय गांवों में सड़कें बन गईं। कुछ अध्ययनों ने विशेष रूप से भारत में आर्थिक परिणामों पर परिवहन नेटवर्क के प्रभाव का विश्लेषण किया है। गनी एवं अन्य (2016) ने पाया कि भारत में राजमार्ग निर्माण और सुधार परियोजना- स्वर्णिम चतुर्भुज (जीक्यू)- ने राजमार्ग के करीब के जिलों में विनिर्माण उत्पादन में सुधार किया। एक अन्य अध्ययन में, लेई एवं अन्य (2019) ने यह दर्शाया कि सड़क की सुविधा व्यक्तियों के लिए रोजगार के बेहतर परिणामों से जुडी है, और खासकर महिलाओं के सन्दर्भ में इसका मजबूत प्रभाव पाया गया है। हाल के एक शोध (जैन और बिस्वास 2021) में, हम परिवहन नेटवर्क के एक और महत्वपूर्ण लेकिन कम अध्ययन किए गए आयाम का पता लगाते हैं, अर्थात, ग्रामीण भारत में सड़क की बुनियादी सुविधा वहां की आपराधिक गतिविधियों के साथ कैसे संबंधित है।
अपने आसपास के वातावरण में प्राकृतिक आपदा, नागरिक अशांति, महामारी, या हिंसक अपराध जैसे महत्वपूर्ण परिवर्तनों का सामना करने वाले व्यक्ति अधिक जोखिम-प्रतिकूल हो जाते हैं (ब्राउन एवं अन्य 2019)। जोखिम-प्रतिकूलता में अपराध-प्रेरित वृद्धि का मानव विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जिसमें उनकी गतिशीलता सीमित होकर रोजगार और शिक्षा के अवसरों (दत्ता और हुसैन 2009) तक पहुंच कम हो जाती है। इसके अलावा, अनौपचारिक बाजारों, कमजोर संस्थानों और बुनियादी अवसंरचना की खराब गुणवत्ता के चलते विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में अपराध करने पर पकड़े जाने और दोषी ठहराए जाने की संभावना कम होती है (बेनेट 1991, चटर्जी और रे 2014)। बेकर (1986) ने ‘अपराध के अर्थशास्त्र’ की अग्रता की, और इंगित किया कि अपराधी तर्कसंगत सोच रखते थे और अपराधों से मिलनेवाले लाभों और लागतों के आधार पर अपराधों में लिप्त होना है या नहीं यह तय करते थे। बेकर (1986) के बाद, बृहत साहित्य ने अपराध के निर्धारकों की खोज की है। इन अध्ययनों ने उच्च अपराध दर में योगदान देने वाले कई कारकों की पहचान की, जैसे कि बेरोजगारी, शहरीकरण का प्रभाव, अप्रवासियों की उपस्थिति, अपराध की पिछली घटनाएं और संस्थानों की गुणवत्ता। दूसरी ओर, समाजशास्त्रीय साहित्य ने इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि कैसे सापेक्ष अभाव का सामाजिक सिद्धांत अपराध के महत्वपूर्ण निर्धारकों में से एक हो सकता है। यह सिद्धांत मानता है कि अधिक गरीब और असमान समाजों में अपराध की दर अधिक होती है क्योंकि वहां के लोग अपने साथियों की तुलना में खुद को वंचित महसूस करते हैं।
इन सामाजिक-आर्थिक कारकों के अलावा, सड़क अवसंरचना भी अपराध दर को प्रभावित कर सकती है (ह्यूजेस 1998)। दो चैनल हैं जिनके माध्यम से सड़कें अपराध को प्रभावित कर सकती हैं। पहला, सड़कों के माध्यम से स्थानीय विकास से रोजगार के बेहतर अवसर मिल सकते हैं। बेकर्स (1968) मॉडल से पता चलता है कि बेहतर रोजगार के अवसरों के साथ अपराध की अवसर लागत बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप, व्यक्ति अपराध में समय न बिताकर उसी समय में रोजगार कर सकते हैं। इसलिए, बेकर (1968) के फ्रेमवर्क का तात्पर्य है कि सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के निर्माण से अपराध का रुकना और उसका निवारण होना चाहिए। तथापि, यदि सड़कों के निर्माण के कारण रोजगार के आर्थिक लाभ अनुपातहीन रूप से कुशल और संपन्न व्यक्तियों को मिलनेवाले हैं, तो अकुशल व्यक्ति अभी भी आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं। इन संदर्भों में, यदि बेहतर सड़क अवसंरचना से जनसंख्या का बहुत छोटा हिस्सा लाभान्वित होता है, तो सड़क अवसंरचना के परिणामस्वरूप असमानता में वृद्धि के जरिये आपराधिक गतिविधि में वृद्धि हो सकती है।
एक अन्य चैनल जो यह निर्धारित करता है कि सड़क अवसंरचना अपराध को कैसे प्रभावित कर सकती है, बुनियादी सुविधाओं के विकास के कार्यान्वयन से ही उपजा है। सड़कें समय की लागत को कम करती हैं और आपराधिक और आर्थिक गतिविधियों- दोनों के लिए महत्वपूर्ण गतिशीलता को बढ़ाती हैं। अच्छी तरह से जुड़ा सड़क नेटवर्क संभावित हॉटस्पॉट तक अपराधियों की आवाजाही को आसानी से उत्प्रेरित कर सकता है।
इस पृष्ठभूमि के मद्देनजर, हम इस बात की जांच करना चाहते हैं कि सड़क-निर्माण की बुनियादी सुविधा ग्रामीण भारत में अपराध को कैसे प्रभावित करती है।
भारत में आपराधिक गतिविधियों के बारे में जानकारी एकत्र करने के दो संभावित तरीके हैं – संबंधित नोडल एजेंसी द्वारा बनाए गए अपराध रिकॉर्ड, यानी एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) और एक सर्वेक्षण के माध्यम से पीड़ितों से सीधे एकत्र की गई जानकारी। सूचना का पूर्व स्रोत अपराध स्थल और नोडल एजेंसी के बीच कई मध्यस्थ एजेंटों से होकर गुजरता है। साथ ही, एनसीआरबी द्वारा अपराधों से संबंधित पुलिस रिकॉर्ड का उपयोग करने से अपराध के वास्तविक पैटर्न को पकड़ने में कई सीमाएं हो सकती हैं क्योंकि भारत में खराब बुनियादी ढांचे, कमजोर संस्थानों और सामाजिक कलंक के कारण विभिन्न अपराधों को रिपोर्ट नहीं किए जाते हैं। वास्तव में, अपराध की कम रिपोर्टिंग एक वैश्विक मुद्दा है- अंतर्राष्ट्रीय अपराध शिकार सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर केवल 40% किये गए अपराध ही रिपोर्ट किए जाते हैं। हालांकि, विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में अपराध की कम रिपोर्टिंग अधिक प्रचलित है। अध्ययन में यह भी दर्ज किया गया है कि भारत में हत्या जैसे हिंसक अपराधों की प्रवृत्ति विकसित दुनिया से बहुत अलग नहीं है, लेकिन चोरी और चोरी जैसी अन्य आपराधिक गतिविधियों की रिपोर्ट3 नहीं होने की संभावना अधिक है। इसके अलावा, भारत में अपराध की कम रिपोर्टिंग, पीड़ितों द्वारा रिपोर्ट न करने का विकल्प चुनने और पुलिस द्वारा इसे रिकॉर्ड न करने का निर्णय लेने का ही परिणाम है (अंसारी एवं अन्य 2015)। जबकि पुलिस रिकॉर्ड जानकारी का एक मूल्यवान स्रोत है, पीड़ित द्वारा रिपोर्ट किए गए अपराध की गणना करने से अंदाजन (बढ़ा-चढ़ा कर मूल्यांकन) को कम किया जा सकता है। सीधे सर्वेक्षणों के माध्यम से उत्तरदाताओं से यह पूछकर कि क्या उन्होंने पिछले एक साल में किसी अपराध का सामना किया है, इस तरह के डेटा एकत्र किए जाते हैं।
हम 2004-05 और 2011-12 में किये गए भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) के डेटा का उपयोग करते हैं। आईएचडीएस के चार प्रश्न हैं कि क्या परिवारों को चोरी, धमकी या हमलों, महिला उत्पीड़न और किसी के घर में घुसने की घटनाओं का सामना करना पड़ा। इन आपराधिक गतिविधियों के आधार पर, हम अपराध के दो मापों का निर्माण करते हैं: (i) चार प्रकार के अपराधों में से प्रत्येक का एक साधारण औसत, और (ii) यदि परिवार में से कोई भी इन चार प्रकार के अपराध में से किसी का शिकार हुआ है|
आईएचडीएस के दोनों सर्वेक्षणों में अन्य विशेषताओं के साथ-साथ गाँव-स्तरीय सुविधाओं, जनसंख्या रचना और व्यवसाय संरचना के लिए एक अलग प्रश्नावली है। गाँव की प्रश्नावली से प्राप्त जानकारी का उपयोग करते हुए कि क्या हर मौसम में बनी रहने वाली पक्की सड़क या कच्ची सड़क के माध्यम से गाँव पहुँचा जा सकता था, या वह दुर्गम था, हम अपने फोकल चर का निर्माण करते हैं- गाँव में पक्की सड़क का होना। हम गांव और परिवार स्तर के कारकों पर भी विचार करते हैं जो अपराध को प्रभावित कर सकते हैं।
हम सड़क की बुनियादी सुविधा और अपराध के बीच समग्र पैटर्न को इस बात पर ध्यान केंद्रित करके मापते हैं कि पक्की सड़कों वाले गांवों और उनके बिना गांवों के बीच विभिन्न आर्थिक परिणाम कैसे भिन्न होते हैं। ये परिणाम हम तालिका 1 में संकलित करते हैं।
चर | पक्की सड़कें | पक्की सड़कें नहीं | अंतर |
आपराधिक गतिविधि के प्रकार | |||
अपराध सूचकांक 1 | 0.023 | 0.028 | -0.005*** |
अपराध सूचकांक 2 | 0.188 | 0.188 | 0.000 |
चोरी | 0.036 | 0.045 | -0.008*** |
हमला | 0.023 | 0.030 | -0.007*** |
उत्पीड़न | 0.145 | 0.150 | -0.004* |
घर में घुसना | 0.009 | 0.010 | 0.001 |
अन्य सुविधाएं और आर्थिक परिणाम | |||
स्ट्रीट लाइट | 0.437 | 0.236 | 0.201*** |
बस स्टॉप की दूरी | 1.043 | 1.471 | -0.428*** |
रोजगार अनुपात | 0.759 | 0.684 | 0.074*** |
परिवार की आय | 0.327 | 0.279 | 0.048*** |
नोट: (i) इस धारणा को देखते हुए कि शून्य परिकल्पना सच है, पी-वैल्यू कम से कम उतना ही चरम परिणाम प्राप्त करने की संभावना है जितना कि परिणाम देखे गए हैं। उल्लिखित महत्व स्तर से कम पी-मान को सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण माना जाएगा (यदि पी <0.01, यह 1% के स्तर पर सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण है)। * पी<.05, ** पी <.01, ***पी <. 001=”” span=””>(दो तरफा )।
तालिका 2 से पता चलता है कि अधिकांश अपराध माप बिना पक्की सड़कों वाले गांवों में रहने वाले परिवारों की तुलना में हर मौसम में बनी रहने वाली पक्की सड़क वाले गांवों में रहने वाले परिवारों के सन्दर्भ में कम हैं। इसके अलावा, हम पाते हैं कि पक्की सड़कों वाले गांवों में सार्वजनिक कार्यक्रम के माध्यम से स्ट्रीट लाइट मिलने की संभावना भी अधिक होती है। इसी प्रकार से, इस समूह के गांवों में एक बस स्टॉप भी है और यह पक्की सड़क की सुविधा नहीं होनेवाले उन गांवों के समूह की तुलना में, गांव के करीब भी है। अंततः, अच्छी तरह से जुड़ी सड़कों वाले गांवों में रहने वाले परिवार श्रम शक्ति भागीदारी की बेहतर दर और उच्च पारिवारिक आय प्रदर्शित करते हैं। ये पैटर्न इंगित करते हैं कि भारत में अपराध से निपटने में ग्रामीण सड़क अवसंरचना प्रभावी हो सकती है।
हमारे प्रारंभिक अवलोकन विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में ठोस बुनियादी सुविधाओं के निर्माण के महत्व को उजागर करते हैं। रोजगार के अवसरों में सुधार के साथ साथ ही, सड़क अवसंरचना कम अपराध के रूप में सकारात्मक स्पिलओवर प्रभाव उत्पन्न करती है। परियोजना पूरी होने की लंबी अवधि के बावजूद इन परियोजनाओं में निवेश संसाधनों पर ध्यान केंद्रित करने वाली नीतियों को डिजाइन करने और लागू करने में इसके महत्वपूर्ण नीतिगत निहितार्थ हैं। वर्तमान कोविड-19 महामारी ने भारत में आय, लिंग और जाति की मौजूदा असमानता को गहरा कर दिया है (डीटन 2021, देशपांडे 2021, विश्व बैंक, 2020)। इन परिस्थितियों में, सड़कों जैसी बुनियादी सुविधाओं वाली परियोजनाओं में निवेश बढ़ाने में सरकार की भूमिका यह सुनिश्चित करने के लिए निर्णायक हो जाती है कि महामारी की वजह से असमानता में आई वृद्धि अल्पकालिक होगी और इससे आपराधिक गतिविधियों में कमी आएगी।
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