समाजसेवा या सजा? नए नियमों से बदलेगा कंपनियों के दायित्व का नजरिया

 

सामाजिक मापदंड समय के साथ नियमों में तब्दील हो जाते हैं और कानूनों का रूप ले लेते हैं। कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के नियम भी ऐसे ही विकसित हो रहे हैं। आठ साल पहले, जब देश में पहली बार सीएसआर के नियम बने तो कॉरपोरेट्स को अपनी योजनाएं बनाने और नवाचार की काफी छूट दी गई थी। हालांकि, बहुत-सी कंपनियों ने जन कल्याण से जुड़े कदम उठाये, लेकिन सीएसआर उनके संगठन का अहम हिस्सा नहीं बन पाया।   

कई कंपनियों में सीएसआर मानव संसाधन विभाग का हिस्सा था तो कई कंपनियों में इसे मार्केटिंग, कम्यूनिकेशसं या पब्लिक रिलेशंस से जोड़ दिया। सामाजिक कार्यों पर बड़ा बजट खर्च करने वाले कॉरपोरेशन का जोर भी सीएसआर की बजाय दूसरे उद्देश्यों को पूरा करने पर था। छह साल पहले मैंने सीएसआर को कन्फ्यूज्ड सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी करार दिया था। उस समय सीएसआर को लेकर स्पष्टता और स्पष्ट एजेंडा का अभाव था। सीएसआर का पैसा ब्रांड प्रमोशन, कंपनी के मौजूदा कार्यक्रमों या फिर कर्मचारियों पर खर्च होता था। बीते वर्षों में कई प्रमोटर्स ने मुझसे कंपनी की सीएसआर समितियों में शामिल होने का आग्रह किया, लेकिन संगठन स्तर पर स्पष्टता की कमी के कारण मैं बचता रहा। मेरा मानना है कि किसी पहल का प्रभाव उसकी व्यापकता यानी स्केल पर निर्भर करता है।

सीएसआर की भूमिका ऐसे उदाहरण पेश करना है जिन्हें सरकार अपना सके और विस्तार दे सके। अगर सीएसआर की पहल सही असर पैदा कर सकती है और इसे विस्तार दिया जा सकता है तो सरकार या बाजार को इसे अपनाकर व्यापक बनाना चाहिए। यह काम पहले के मुकाबले अब ज्यादा हो रहा है, क्योंकि सीएसआर कानून सामाजिक प्रभाव को दर्शाने के लिए ज्यादा स्पष्टता, फोकस और डेटा पर जोर दे रहा है।    

ऐसी बहुत कम गैर-सरकारी संस्थाएं (एनजीओ) दिखायी पड़ती हैं जो सीएसआर से जुड़ी पहल को कैसे विस्तार देना है, इसे स्पष्ट करते हुए कायदे से परियोजना के दस्तावेज तैयार करती हैं। ऐसी कोशिशों में एटीई फाउंडेशन का जलाशयों के पुनरुद्धार का काम शामिल है। यह काम निर्माण, सुधार और दूर बैठे डिजिटल निगरानी के मॉडल पर आधारित है ताकि सरकार इसे विस्तार दे सके या कहीं दोहरा सके। तालाब खोदने वाली जेसीबी मशीनों के समय से लेकर हरेक काम और एक-एक पैसे का हिसाब रखा जाता है ताकि परियोजना के कुल खर्च पर नजर रखी जा सके। पूरे प्रयास को इस तरीके से डॉक्यूमेंट किया गया है कि केंद्र या राज्य सरकारें इस मॉडल को आसानी से अपना सकें और जलाशयों के पुनरुद्धार की योजना बना सकें। इस तरह परियोजना शुरू करने के साथ ही नीतिगत विकास का मॉडल तैयार करने और उसकी पैरवी को ध्यान में रखना चाहिए।

सीएसआर नियमों में अहम बदलाव

22 जनवरी, 2021 को एक अधिसूचना के जरिया कंपनी (सामाजिक उत्तरदायित्व नीति) नियम, 2014 में नये बदलाव किये गये हैं जो सीएसआर कानून को खर्च करो और बताओ की बजाय खर्च करो वरना सजा पाओ की तरफ ले जाते हैं। सीएसआर कानूनों से स्वेच्छा का पहलू खत्म कर दंड के प्रावधान को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।

ये नये बदलाव सीएसआर के नियमों को पालन करो और खुश हो जाओ की बजाय भागीदारी और विस्तार की तरफ ले जाते हैं। कॉरपोरेट में सीएसआर के पैसे को ब्रांडिंग पर खर्च करने की प्रवृत्ति थी। बहुत-से म्यूचुअल फंड्स ने तो सीएसआर की आड़ में टेलीविजन पर वित्तीय जागरुकता के विज्ञापन चलवा दिये थे। इससे कुछ जागरुकता तो बढ़ी होगी, लेकिन कई म्यूचुअल फंड्स ने गलत रिपोर्टिंग की या फिर अपने उत्पादों को गलत ढंग से बेचा। फंड का दुरुपयोग कर कईयों ने तो अपनी कथित सीएसआर योजनाओं को ही खत्म कर दिया। यानी वित्तीय सुरक्षा की जो सलाह उन्होंने अपने विज्ञापनों में दी, खुद उनके नेतृत्व ने उस पर अमल नहीं किया।

कंपनियों के प्रशासन को कहीं ना कहीं सीएसआर प्राथमिकताओं से जोड़ने की आवश्यकता है। इन दो पहलूओं के बीच तालमेल बैठाने के लिए ही सीएसआर के नियमों में बदलाव किये गये हैं, जो इन चार बातों पर जोर देते हैं:

पुनः परिभाषित: सीएसआर नियमों में हुए हालिया बदलाव कॉरपोरेट्स को उनकी सीएसआर नीति पर पुनर्विचार करने को कहते हैं। मतलब, कॉरपोरेट्स को उनकी सीएसआर नीति लघु और दीर्घ अवधि को ध्यान में रखते हुए तैयार करनी होगी। साथ ही यह भी ध्यान में रखना होगा कि सीएसआर के प्रभाव का आकलन समूची प्रक्रिया का अहम हिस्सा है। इसलिए अधिकांश कॉरपोरेट्स को उनकी सीएसआर नीति के दृष्टिकोण, दिशा और कार्य योजना को नए सिरे से परिभाषित करना होगा।

मूल्यांकन: सरकार चाहती है कि सीएसआर के प्रभाव मूल्यांकन से जुड़ी गतिविधियां ज्यादा से ज्यादा डेटा आधारित हों। वे दिन लद गये जब सीएसआर के परिणाम और प्रभाव को खुशनुमा तस्वीरों से प्रदर्शित किया जा सकता था। अपने लक्ष्यों को पुन: परिभाषित करते हुए कॉरपोरेट्स को इस पर भी विचार करना चाहिए कि उनकी पहल के असर का मूल्यांकन कैसे होगा? इसके लिए डेटा कैसे जुटाया जाएगा? इससे नवाचार और निर्णय-प्रक्रिया में हाथ थोड़े बंध सकते हैं, लेकिन बेहतर यही होगा कि सीएसआर के असर का मूल्यांकन आंकड़ों से किया जाये। इसके अलावा सीएसआर से जुड़ी परियोजनाओं की अधिक जानकारी प्रकाशित करनी होगी, जिससे कामों पर जनता की नजर रहेगी।

अब सीएसआर के जरिये निर्मित पूंजीगत परिसंपत्तियों की जानकारी अलग से देनी होगा। इसकी अधिकतम सीमा 5 फीसदी तय की गई है। प्रशासनिक खर्चों को साफ तौर पर परिभाषित किया गया है, जिससे सीएसआर खर्चों की निगरानी और प्रबंधन में आसानी होगी।

विश्वसनीयता: जब स्व-प्रमाणन या स्व-निगरानी कारगर नहीं होते तो ऑडिट और अनुपालन अनिवार्य हो जाता है। सीएसआर की धनराशि का दुरुपयोग रोकने और सालाना खर्च सुनिश्चित करने के लिए कंपनी के सीएफओ की जिम्मेदारी तय की गई है। सीएफओ धनराशि के उपयोग संबंधी दस्तावेजों को प्रमाणित करेगा। इसका मतलब यह है कि सीएसआर के खर्चों के लिए अलग से ऑडिट होगा, जिसे सीएफओ प्रमाणित कर सकता है। जाहिर है कि सीएफओ के लिए हरेक खर्च और उपयोग पर खुद नजर रखना संभव नहीं होगा, इसलिए नियमों की अनुपालना पर खर्च बढ़ेगा। हालांकि, यह कोई बड़ा खर्च नहीं है, लेकिन इसकी कटौती सीएसआर के आवंटन से होगी।

रणनीति: नये बदलाव कॉरपोरेट ब्रांडिंग और कर्मचारियों के कल्याण पर सीएसआर का पैसा खर्च करने की छूट नहीं देते हैं। इन पर साफ तौर पर पाबंदी लगायी गई है। कॉरपोरेट्स और एनजीओ दोनों को ही सीएसआर के नए नियमों के हिसाब से खुद को ढालना होगा। इसके लिए एनजीओ को अपने संगठन के स्वरूप और लोगों में बदलाव लाने होंगे। जबकि कॉरपोरेट्स को भी अपने सीएसआर रणनीति पर पुनर्विचार कर कम से कम अगले तीन साल की रणनीति बनानी चाहिए।

(लेखक नीतिगत मामलों के विशेषज्ञ हैं। उनका ट्विटर पता है @yatishrajawat)