पंजाब में Scholarship का भुगतान नहीं होने पर 2 लाख एससी छात्रों ने कॉलेज की पढ़ाई बीच में छोड़ी

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) ने बुधवार को कहा कि पंजाब सरकार द्वारा एक छात्रवृत्ति योजना (Scholarship Scheme) के तहत करीब 2,000 करोड़ रुपये के बकाये का भुगतान नहीं करने के चलते अनुसूचित जाति (SC) कैटेगरी के करीब दो लाख छात्रों ने कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने मैट्रिक बाद दी जाने वाली छात्रवृत्ति योजना में कथित अनियमितता की व्यापक जांच के पिछले हफ्ते आदेश दिए थे। यह कथित अनियमितता राज्य में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के दौरान सामने आई थी।

पंजाब सरकार ने नहीं जमा की छात्रों की फीस

एनसीएससी के अध्यक्ष विजय सांपला ने पत्रकारों को बताया कि आयोग ने राज्य सरकार से इस बात पर स्पष्टीकरण मांगा है कि केंद्र द्वारा बकाये का भुगतान किए जाने के बावजूद कॉलेजों को पैसे का भुगतान क्यों नहीं किया गया है। उन्होंने कहा, “हमने मामले का स्वत: संज्ञान लिया है। इस तरह की कई शिकायतें हैं कि एससी समुदाय के छात्रों को कॉलेज में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि सरकार ने उनका शुल्क जमा नहीं किया है।” सांपला ने कहा, “करीब तीन लाख छात्र 2017 में योजना से लाभांवित हुए थे और यह संख्या 2020 में घटकर एक लाख से लेकर सवा लाख के बीच रह गई। हमने जब राज्य सरकार से पूछा तो उसने बताया कि इन छात्रों ने पढ़ाई बीच में छोड़ दी है।”

पंजाब सरकार से अगले बुधवार तक स्पष्टीकरण देने को कहा

सांपला ने बताया कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय और पंजाब सरकार के अधिकारियों के बीच सोमवार को इस विषय पर बैठक हुई थी। उन्होंने कहा, “बैठक में यह बात सामने आई कि केंद्र सरकार पर कुछ भी बकाया नहीं है जबकि राज्य सरकार को इन कॉलेजों को 2 हजार करोड़ रुपये का बकाया अदा करना है। जो रकम बकाया है, वह कहां गई?” सांपला ने बताया कि पंजाब सरकार से अगले बुधवार तक स्पष्टीकरण देने को कहा गया है।

2020-21 में भी सरकार ने नहीं किया भुगतान

आपको बता दें कि इससे पहले 2020-21 में भी सरकार ने छात्रों को स्पष्ट निर्देशों के अभाव में पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति राशि का कुछ हिस्सा छात्रों के खाते में वितरित किया था और छात्र उस राशि का भुगतान कॉलेजों को नहीं कर रहे थे। इतना ही नहीं 90 करोड़ पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप की भरपाई नहीं की गई थी जो विभिन्न तकनीकी पाठ्यक्रमों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए थी।

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

ई-श्रम पोर्टल: 94% मजदूरों का वेतन 10,000 से भी कम, 74.44 फीसदी मजदूर समाज के पिछड़े वर्ग से आते हैं

भारत में आधी से ज्यादा जनसंख्या मजदूर वर्ग के रूप में काम करती है, लेकिन 94 फीसदी अनौपचारिक मजदूरों की आमदनी 10,000 रुपये से कम है. ई-श्रम पोर्टल (e-Shram Portal) पर रजिस्टर्ड 27.69 करोड़ असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के डेटा से यह खुलासा हुआ है. आंकड़ों से पता चलता है कि पोर्टल पर रजिस्टर्ड 94.11 फीसदी असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की मासिक कमाई 10,000 रुपये से भी कम है. वहीं 4.36 फीसदी की कमाई 10,001 से 15,000 रुपये के बीच है. पोर्टल पर रजिस्टर्ड 74.44 फीसदी मजदूर समाज के पिछड़े वर्ग से आते हैं.

74% मजदूर दलित, आदिवासी व ओबीसी

पोर्टल पर दिए गए आंकड़ों के अनुसार 74 फीसदी मजदूर दलित, आदिवासी और ओबीसी वर्ग से आते हैं. इनमें से 45.32 फीसदी ओबीसी, 20.95 फीसदी दलित और 8.17 फीसदी आदिवासी वर्ग के हैं. सामान्य श्रेणी से आने वाले मजदूरों की संख्या 25.56 फीसदी है.

उम्र के लिहाज से देखा जाए, तो 61.72 फीसदी मजदूरों की उम्र 18 से 40 साल और 22.12 फीसदी की 40 से 50 साल के बीच है. पोर्टल पर रजिस्टर्ड 13.23 फीसदी मजदूरों की उम्र 50 साल से अधिक है. वहीं 2.93 फीसदी की उम्र 16 से 18 साल के बीच है. पोर्टल पर रजिस्टर्ड 52.81 फीसदी मजदूर महिलाएं और 47.19 फीसदी पुरुष हैं.

रजिस्ट्रेशन के मामले में शीर्ष पांच राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और ओडिशा हैं. रजिस्टर्ड मजदूरों में सबसे अधिक 52.11 फीसदी मजदूर खेती का काम करते हैं. वहीं 9.93 फीसदी घरों में काम करते हैं जबकि 9.13 फीसदी निर्माण क्षेत्र में मजदूरी करते हैं.

38 करोड़ मजदूरों के रजिस्ट्रेशन का लक्ष्य

The Hindu के अनुसार विशेषज्ञों का मानना है कि ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन बढ़ने के साथ पता चलता है कि समाज में काफी असमानता है. असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की संख्या करीब 38 करोड़ है. ई-श्रम पोर्टल का उद्देश्य देश में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का एक व्यापक डेटाबेस तैयार करना है. पोर्टल का लक्ष्य है कि असंगठित क्षेत्र के सभी मजदूरों का रजिस्ट्रेशन किया जाना चाहिए.

नवंबर 2021 में मासिक 10,000 रुपये से कम की कमाई वाले असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की संख्या 92.37 फीसदी थी. उस समय पोर्टल पर 8 करोड़ से कुछ ज्यादा मजदूर रजिस्टर्ड थे. उस समय पोर्टल पर पंजीकृत दलित, आदिवासी और ओबीसी वर्ग के मजदूरों की संख्या 72.58 फीसदी थी.

26 अगस्त 2021 को शुरू हुआ था पोर्टल

इस पोर्टल को 26 अगस्त, 2021 को शुरू किया गया था. इस पोर्टल के जरिये सरकार देश के असंगठित क्षेत्र के सभी मजदूरों के स्थिति देखना चाहती है. साथ ही सभी मजदूरों को कल्याण योजनाओं का लाभ प्रदान करना भी उद्देश्य है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक, ई-श्रम पोर्टल पर कुल 27.69 करोड़ असंगठित क्षेत्र के मजदूर रजिस्टर्ड हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि असंगठित क्षेत्र के सभी मजदूर गरीबी में अपना जीवनयापन कर रहे हैं और इनमें से ज्यादातर मजदूर समाज के पिछड़े समुदाय से आते हैं.

साभार: Workers Unity

अप्रैल में गेहूं समर्थन मूल्‍य से नीेचे बि‍कने की नौबत

दक्षिण भारत में गेहूं का भारी मात्रा में आस्ट्रेलिया, यूक्रेन और फ्रांस से आयात हो रहा है तथा अभी तक करीब 30 लाख गेहूं भारतीय बंदरगाहों पर पहुंच चुका है।

नई दिल्ली। चालू सीजन में अभी तक करीब 30 लाख टन गेहूं का आयात हो चुका है तथा 28 फरवरी तक कुल आयात 40 लाख टन होने का अनुमान है। ऐसे में अगर केंद्र सरकार ने जल्दी ही आयात को रोकने के लिए आयात शुल्क नहीं लगाया तो गेहूं की नई फसल आने पर अप्रैल में उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में गेहूं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे बिकने की आशंका है।
इस समय दक्षिण भारत में गेहूं का भारी मात्रा में आस्ट्रेलिया, यूक्रेन और फ्रांस से आयात हो रहा है तथा अभी तक करीब 30 लाख गेहूं भारतीय बंदरगाहों पर पहुंच चुका है। आयातक 28 फरवरी 2017 से पहले की शिपमेंट के आयात सौदे कर रहे हैं, क्योंकि आयातकों को डर है कि केंद्र सरकार आयात को रोकने के लिए 28 फरवरी 2017 के बाद आयात शुल्क लगायेंगी। ऐसे में 28 फरवरी 2017 तक कुल 40 लाख टन गेहूं का आयात होने का अनुमान है। ऐसे में दक्षिण भारत की फ्लोर मिलों के पास मार्च-अप्रैल तक की पिसाई का गेहूं उपलब्ध रहेगा, जिस कारण इनकी मांग उत्तर प्रदेष, राजस्थान और मध्य प्रदेश से कम रहेगी। जिसका असर गेहूं की कीमतों पर पड़ेगा। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश की मंडियों में गेहूं का भाव घटकर 1,450 से 1,500 रुपये प्रति क्विंटल रह जायेगा, जबकि रबी विपणन सीजन 2017-18 के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं का एमएसपी 1,625 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
आस्ट्रेलिया से आयातित गेहूं का भाव तुतीकोरन बंदरगाह पर 1,700 से 1,780 रुपये प्रति क्विंटल क्वालिटीनुसार है जबकि यूक्रेन से आयातित गेहूं का भाव 1,650 रुपये प्रति क्विंटल है। दक्षिण भारत की फ्लोर मिलें गुजरात की मंडियों से एमएसपी पर गेहूं की खरीद करती हैं तो मिल पहुंच भाव 1,950 से 2,000 रुपये प्रति क्विंटल बैठेंगे, तथा अगर उत्तर प्रदेश या राजस्थान से खरीद करेंगी तो लागत बढ़कर 2,200 से 2,300 रुपये प्रति क्विंटल हो जायेगी। इसलिए दक्षिण भारत की फ्लोर मिलें आयातित गेहूं का स्टॉक कम रही है ताकि अगले अगले दो-तीन महीने उनको घरेलू मार्किट से खरीद ना करनी पड़े। दक्षिण भारत की मिलों को लगता है कि केंद्र सरकार 28 फरवरी 2017 के बाद आयात शुल्क लगा देगी, लेकिन अगर केंद्र सरकार ने ऐसा नहीं किया तो फिर आयात बढ़कर 50 से 60 लाख टन के स्तर पर भी पहुंच सकता है।

इस साल बुवाई ज्‍यादा 
चालू रबी में मध्य प्रदेश के साथ ही उत्तर प्रदेश में गेहूं की बुवाई में भारी बढ़ोतरी हुई है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में गेहूं की बुवाई बढ़कर 315.55 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 292.52 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी। सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में बुवाई 100.52 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 94.99 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई थी। इसी तरह मध्य प्रदेश में बुवाई बढ़कर 62.23 लाख हैक्टेयर में हुई जबकि पिछले साल 51.84 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई थी।
चालू रबी में बुबाई में हुई बढ़ोतरी के साथ ही मौसम भी अनुकूल होने से गेहूं का बंपर उत्पादन होने का अनुमान है। पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में गेहूं की एमएसपी पर खरीद होगी, लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में खरीद सीमित मात्रा में होने के कारण इन राज्यों की मंडियों में गेहूं का भाव एमएसपी से नीचे बिकेगा।